Govind Ram Dular

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Govind Ram and Shivnath Singh Hanumanpura

Govind Ram Hanumanpura (Dular) was a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. He was born in year ..... at village Hanumanpura in Jhunjhunu tahsil of district Jhunjhunu in Rajasthan. He was grandfather of Har Lal Singh (Dular)

Pushkar adhiveshan 1925

Pushkar adhiveshan 1925 organized by All India Jat Mahasabha was presided over by Maharaja Kishan Singh of Bharatpur. Sir Chhotu Ram, Madan Mohan Malviya, Chhajju Ram etc. farmer leaders had also attended. This function was organized with the initiative of Master Bhajan Lal Bijarnia of Ajmer - Merwara. The farmers from all parts of Shekhawati had come namely, Chaudhary Govind Ram, Kunwar Panne Singh Deorod, Ram Singh Bakhtawarpura, Chetram Bhadarwasi, Bhuda Ram Sangasi, and Moti Ram Kotri. 24-year young boy Har Lal Singh also attended it. The Shekhawati farmers took two oaths in Pushkar namely, 1. They would work for the development of the society through elimination of social evils and spreading of education. 2. ‘Do or Die’ in the matters of exploitation of farmers by the Jagirdars.

जीवन परिचय

दूलड़ों का बास हीरवा ठिकाने का गाँव था. हरलाल सिंह का अपनी किशोरावस्था में ही ठाकुर के जुल्मों से साबका पड़ा. प्रथम विश्व-युद्ध समाप्त होने पर शेखावाटी के सैनिक अपने-अपने गाँवों में लौट आये थे. इनसे बहादुरी और जीवट के किस्से सुन-सुन कर युवा हरलाल सिंह के मन में जागीरदारों के विरुद्ध आक्रोश धीरे-धीरे सुलगता गया और कुछ कर गुजरने की तीव्र तमन्ना पनपती गयी. बलरिया के ठाकुर ने हनुमानपुरा में चौधरी गोविन्द राम के नोहरे में आग लगादी जहाँ से फैलकर आग ने अनेक घरों को अपने आँचल में लपेट लिया. आग लगाने का कारण चौधरी गोविन्द राम की अन्याय का प्रतिरोध करने की प्रवृति थी. हरलाल सिंह ने ठाकुर की इस अत्याचारपूर्ण कार्यवाही का डटकर विरोध किया था. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 17)

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....सरदार हरलाल सिंह - [पृ.380]: पंजाब में किन्हीं दिनों भट्टी (यदुओं की एक शाखा) का बड़ा बोलबाला था। राजा रिसालू के बाद वहां दुल्ला भट्टी का नाम लिया जाता है। पंजाबी देहाती गीतों में दूल्हा की बहादुरी की प्रशंसा भरी पड़ी है। इसके नाम से पंजाब में ‘दुला की बार’ नाम से एक इलाका भी प्रसिद्ध रह चुका है। आगे चलकर भट्टियों की एक शाखा ही दुलड़ के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इसी शाखा के कुछ लोग अब से सैकड़ों वर्ष पूर्व नेहरा वाटी, जो अब शेखावाटी के नाम से पुकारी जाती है, में आकर आबाद हो गए। मंडावा के पास उनका एक गाँव ‘दुलड़ों का बास’ नाम से मशहूर है। जिसे हनुमानपुरा भी कहते हैं। शेखावाटी में सांगसी जो महत्व को प्राप्त है वही हनुमानपुरा को भी। यहां के बुड्ढे शेर चौधरी गोविंद राम जी को सदा श्रद्धा की दृष्टि से याद किया जाता रहेगा। चौधरी गोविंद राम जी चौधरी कानाराम जी दुलड़ के सुपुत्र थे। उनके भाई बालकिशन जी थे। और पुत्र दुलाराम और मोती सिंह हैं। जो


[पृ.381]: कौमी सेवा में कभी पीछे नहीं रहते।

चौधरी गोविंद राम जी शेखावाटी के प्रथम महारथियों चिमनाराम, भूदाराम, शिवकरण, राम सिंह आदि में से थे। वे सीधे थे लेक्चर देना नहीं जानते थे। लेकिन इरादों के पक्के थे। पक्के आर्य समाजी थे। मंडावा आर्य समाज के कार्यों में उन्होंने सदैव योग दिया। उनके बुढ़ापे का सबसे जबरदस्त काम था भरतपुर में सूर्यमल शताब्दी मनाने के लिए सन 1933 में जत्थेदार के रूप में गिरफ्तारी के लिए जाना और वहां के तत्कालीन दीवान मिस्टर हैनकॉक के सभा बंधी कानून को तोड़ना। लगभग 70 वर्ष की अवस्था में देहांत हो गया और अब वे हमारे बीच नहीं हैं।

चौधरी गोविंद सिंह जी के उसी दुलड़ों का बास में और उन्हीं के खानदान में चौधरी डालूराम जी के हरलाल सिंह, गंगा सिंह, रेख सिंह और बाबूराम नाम के चार पुत्र हुए। इनमें हरलाल सिंह और रेख सिंह सार्वजनिक जीवन में प्रविष्ट हुए।

चौधरी डालूराम जी के बेटे हरलाल सिंह बचपन में भी ‘खाली न रहने वाला’ दिमाग के आदमी थे। जवानी में प्रवेश करते ही उन्होंने अग्रगामी बनना आरंभ किया। मंडावा में लाला देवी बाक्स जी सर्राफ के नेतृत्व में आर्य समाज का प्रचार जोर पकड़ता जा रहा था। आप सन् 1927 के आसपास आर्य समाज के सिद्धांतों से प्रभावित हुए। सन् 1932 में आर्य समाज मंडावा के कर्मनिष्ठ मंत्री पंडित खेमराज जी ने ठाकुर देशराज जी को मंडावा समाज के वार्षिक अधिवेशन में आमंत्रित किया। यह जलसा पहले जलसों से अधिक समारोह पूर्ण था क्योंकि ठाकुर देशराज जी का आगमन


[पृ.382]: सुनकर शेखावाटी के हर कोने से जाट लोग इकट्ठे हुए थे। यहीं हर लाल सिंह ठाकुर देशराज जी के संपर्क में आए। ठाकुर साहब को आदमी की परख का अच्छा ज्ञान है। उन्होंने तुरंत हर लाल सिंह को अपने साथियों में चुन लिया और कुंवर पन्ने सिंह जी के बाद वे उन्हें अपना दूसरा लेफ्टिनेंट मानने लगे।

झुंझुनू का जलसा सफल बनाने के लिए जो डेपुटेशन रायसाहब हरिराम सिंह, ठाकुर झम्मन सिंह, ठाकुर देशराज जी आदि का शेखावाटी में घूमा उसमें हरलाल सिंह जी प्राय: साथ रहे। ठाकुर देशराज जी आप पर और भी आकर्षित हुए और उन्होंने आपको चौधरी हर लाल सिंह की बजाए सरदार हरलाल सिंह कहना आरंभ किया। पहले आप अपने को चौधरी हरलाल वर्मा लिखते थे जैसा कि आप के उस पत्थर से विदित होता है जो कि आपने राजगढ़ की ओर से झुंझुनू महोत्सव के चंदे के लिए भाई की बीमारी के कारण ठीक वक्त पर न जा सकने के कारण कुंवर पन्ने सिंह जी को लिखा था। और जो अब तक ठाकुर देशराज जी के संग्रह में मौजूद है।

जिन दिनों ठाकुर देशराज जी ने शेखावाटी में प्रवेश किया था शिवाय चौधरी राम सिंह जी बख्तावरपुरा के किसी का नाम सिंहान्त नहीं था। लोग पन्ने सिंह जी को पंजी और पन्नालाल के नाम से पुकारते थे। चौधरी रतन सिंह जी b.a. जिन्हें शेखावाटी से एक समय भागना पड़ा था, पन्ने सिंह जी को पन्नालाल ही लिखते थे। हां उनको यह स्वरूप भी ठाकुर देशराज जी ने ही दिया था फिर तो सिंहान्त नामों की एक बाढ सी शेखावाटी के जाटों में आ गई।

सरदार हरलाल सिंह में आरंभ से ही अनेक गुण थे।


[पृ.383]: जिन में निरंतर कुछ सीखना, आगे बढ़ने की तैयारी करना, लोगों को अपने अनुकूल बनाना गंभीर चिंतन और मनन। ये गुण ऐसे थे कि वह थोड़े ही दिनों में लेक्चर देना सीख गए और इस मामले में वे पन्ने सिंह जी से भी आगे बढ़ गए।

सन् 1932 में झुंझुनू जाट महोत्सव हुआ। उस समय तक लोग देवरोड और सांगासी की तरफ आंख रखते थे। इसके बाद ‘दूलड़ों का बास’ (हनुमानपुरा) भी उनकी आशाओं का केंद्र बन गया।

हनुमानपुरा बलरिया के ठिकाने में है। उस ठिकाने में 4-6 ही गांव है। जो ठिकानेदार जितना ही छोटा है उतना ही शोषक होता है। दो दो बार लगान लेना उस ठिकाने का साधारण सा काम था। शेखावाटी में जाट किसान पंचायत का संगठन थोड़ा सा मजबूत होते ही सरदार हरलाल सिंह ने ठिकाने को दुबारा लगान न देने की चुनौती दे दी। फिर क्या था मुकदमा और गांव की बर्बादी दोनों पर कमर बांधली। दो बार गांव में आग लगवाई और कई कई दिन गांव का घेरा रखा किंतु गांव सरदार हरलाल सिंह के नेतृत्व में डाटा रहा और ठिकाने को मुंह की खानी पड़ी। बस यहीं से सरदार हरलाल सिंह चमक उठे।

आप उन दिनों ठाकुर देशराज और कुंवर पन्ने सिंह जी को प्राणों से भी अधिक प्यार करते थे क्योंकि यही लोग उनको सब तरह से उत्साहित करने में अगुआ थे। सन् 1933 में जिन दिनों में गढ़वालों की ढाणी में चौधरी लादूराम जी बिजारणिया के सभापतित्व में खंडेलावाटी जाट सम्मेलन हो रहा था उन्हीं दिनों कुंवर पन्ने सिंह का स्वर्गवास हो गया। उनकी मृत्यु का भारी आघात आपको लगा।


[पृ.384]: इसके बाद सीकर महायज्ञ को सफल बनाने में आपने मय साथियों के दिन रात एक कर दिए। सीकर महायज्ञ की समाप्ति के बाद आपने सीकर के प्रमुख लीडरों के साथ मिलकर समस्त शेखावाटी के संगठन के लिए जाट किसान का आयोजन किया। किसान पंचायत के बढ़ते हुए संगठन और आंदोलन से जयपुर सरकार घबरा उठी और उसने चारों ओर दमन आरंभ कर दिया। ठिकानेदारों ने संगठित रूप से किसानों को दबाने की चेष्टाएं आरंभ कर दी। डुंडलोद ठिकाने के कामदार ईश्वरी सिंह ने सशस्त्र बल के साथ जयसिंहपुरा के किसानों पर खेत जोतते हुए ऊपर हमला किया जिसमें चौधरी टिकु राम जी शहीद हुए और कई स्त्री-पुरुष जख्मी हुए।

सरदार हरलाल सिंह जी ने इस केस को पंचायत के हाथ में लिया और ईश्वर सिंह को सजा दिलाने के लिए मैदान में कूद पड़े। ठिकाने की तरफ से लोभ भी दिया गया किंतु आप ने उसे ठुकरा दिया। ईश्वर सिंह को सजा हुई चाहे थोड़ी ही सही। इस घटना के बाद सरदार हरलाल सिंह शेखावाटी के सर्वोपरि नेता मान लिए गए।

सन् 1935 में खंडेलावाटी, तोरावाटी, सीकरवाटी और झुंझावाटी सब में दमन आरंभ हो गया। कूदन, खुड़ी, भूकर का गोठड़ा बर्बाद कर दिए गए। पलथाना, भैरूपुरा, हरिपुरा, कटराथल को मिटाने की कोशिश हुई। अग्नि-कांड मारपीट गोलियां लाठियां खेल हो गई। 2 वर्ष का टाइम इन इलाकों के लिए कठिनतम संकट का काल हो गया। सरदार हरलाल सिंह को दिन रात चैन नहीं रहा। रात और दिन गाड़ियों में बीतने लगे। उनके साथी मारे पिटे और जेलों में ठूँसे से जाने लगे।


[पृ.385]: इन्हीं दिनों हीरालाल शास्त्री प्रजामंडल को लेकर शेखावाटी में घुसे। सरदार हर लाल सिंह को वे अपने लिए ईश्वरीय देन समझते थे। धीरे-धीरे उन्होंने उनके दिल से जाति भक्ति को दूर करने की कोशिश की।

पहले शेखावाटी की सर्वप्रिय संस्था जाट किसान पंचायत को सिर्फ किसान पंचायत रखने की सलाह दी और आखिरकार उसे स्थगित कर देने पर तुल गए।

निरंतर लड़ने वाले सिपाही को थकावट के समय अच्छी मदद की जरूरत होती है। ठाकुर देशराज आदि जाट सभा के कार्यकर्ताओं पर प्रवेश निषेध की जयपुर भर में पाबंदी लगा दी गई थी। आखिरकार सरदार साहब ने पंडित हरिदास के हटूड़ी आश्रम में किसान सभा को दफना दिया।

इसके बाद एक और अप्रिय घटना आपके द्वारा झुंझुनू जाट बोर्डिंग हाउस का नाम बदलकर उसे विद्यार्थी भवन बना देने की हुई। इससे जो ख्याति आप को हिंदुस्तान भर के जाटों में प्राप्त थी उससे बड़ा धक्का लगा।

आपने प्रजामंडल में प्रवेश होकर जेल यात्रा की है, कष्ट सहे किंतु उतथान भी आपका खूब हुआ। इस समय आप शेखावाटी के एक ऐसे लीडर हैं कि कोई दूसरा संगठन जिसके विरोधी आप हों मुश्किल से ही पनप सकता है। आपको इस समय शेखावाटी का लीडर ही नहीं ‘लीडर मेकर’ कहा जा सकता है।

आप की पूछ इस समय जयपुर ही नहीं राजपूताने के उन तमाम व्यक्तियों में है जो प्रजामंडल से संबंधित हैं और आप राजपूताने के प्रमुख प्रजामंडल लीडरों में गिने जाते हैं। आपके पुत्र नरेंद्र सिंह और और फतेह सिंह जी होनहार


[पृ.386]: बच्चे हैं और तालीम पा रहे हैं। आप की पुत्रियां बनस्थली विद्यापीठ में पढ़ती हैं। बड़ी पुत्री श्रीदेवी वही की स्नातिका है। वह चाहे जिस ख्याल के हो किंतु वह अपने इरादों के मजबूत और महत्वकांक्षाओं के अद्भुत व्यक्ति हैं। इस समय आप ने जो स्थान बना लिया है वह आपकी तीव्र बुद्धि का ही फल है।

सांगासी में बैठक वर्ष 1921

भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे - शेखावाटी में किसान आन्दोलन और जनजागरण के बीज गांधीजी ने सन 1921 में बोये. सन् 1921 में गांधीजी का आगमन भिवानी हुआ. इसका समाचार सेठ देवीबक्स सर्राफ को आ चुका था. सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत थे. आप शेखावाटी के वैश्यों में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकानेदारों के विरुद्ध आवाज उठाई. देवीबक्स सर्राफ ने शेखावाटी के अग्रणी किसान नेताओं को भिवानी जाने के लिए तैयार किया. भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे में आप भी प्रमुख व्यक्ति थे. [2]

राजेन्द्र कसवा[3]लिखते हैं कि सन् 1921 में शेखावाटी से भिवानी गया जत्था जब लौटा तो वह नई ऊर्जा से भरा था. गांधीजी से मिलने और अन्य संघर्षशील जनता को देखने के बाद, किसान नेताओं में स्वाभाविक उत्साह बढ़ा . सन् 1921 में चिमना राम ने सांगासी गाँव में अपने घर अगुआ किसानों की एक बैठक बुलाई. इस प्रथम बैठक में चिमनाराम और भूदाराम दोनों भईयों के अतिरिक्त हरलाल सिंह, गोविन्दराम, रामसिंह कंवरपुरा, लादूराम किसारी, लालाराम पूनिया आदि सम्मिलित हुए. पन्ने सिंह देवरोड़ और चौधरी घासीराम इस बैठक में नहीं पहुँच सके थे लेकिन आन्दोलन करने के लिए सबका समर्थन और सहयोग था. इस बैठक में निम्न निर्णय लिए गए:

  • बेटे-बेटियों को सामान रूप से शिक्षा दिलाना
  • रूढ़ियों, पाखंडों, जादू-टोना, अंध विश्वासों का परित्याग करना और मूर्तिपूजा को बंद करना
  • मृत्युभोज पर रोक लगाना
  • शराब, मांस और तम्बाकू का परित्याग करना
  • पर्दा-पर्था को समाप्त करना
  • बाल-विवाह एवं दहेज़ बंद करना
  • फिजूल खर्च एवं धन प्रदर्शन पर रोक लगाना

इस बैठक के बाद भूदाराम में सामाजिक जागरण का एक भूत सवार हो गया था. वे घूम-घूम कर आर्य समाज का प्रचार करने लगे. अप्रकट रूप से ठिकानेदारों के विरुद्ध किसानों को लामबंद भी करने लगे. विद्याधर कुल्हरी ने अपने इस बाबा भूदाराम के लिए लिखा है कि, 'वह नंगे सर रहता था. हाथ में लोहे का भाला होता. लालाराम पूनिया अंगरक्षक के रूप में साथ रहता था. [4]

बगड़ में सभा 1922

गाँवों में प्रचार करने के पश्चात 1922 में भूदाराम, रामसिंह, गोविन्दराम आदि ने बगड़ में एक सार्वजनिक सभा करने की योजना बनाई. गाँवों में इसका प्रचार होने लगा. ठाकुरों के कान खड़े हो गए. शांति भंग होने के नाम पर ठाकुरों ने इनको गिरफ्तार करवा दिया और सभा टल गयी. पुलिस ने नाजिम झुंझुनू के समक्ष पेश किया. गोविन्दराम ने जवाब दिया - 'हम अपनी जाति में सुधार के लिए प्रचार कर रहे हैं. हमें यह हक है. हम सरकार के विरुद्ध कुछ नहीं कह रहे हैं.' नाजिम इस जवाब से प्रभावित हुआ और उसने सबको रिहा कर दिया. अब तो किसान नेताओं का हौसला बढ़ गया. वे पुन: बगड़ में ही सभा करने के लिए जुट गए. जागीरदारों ने बगड़ कसबे में आतंक और भय फैला दिया. ठाकुरों ने हुक्म फ़रमाया, 'सभा के लिए स्थान देना तो अपराध होगा ही, जो व्यक्ति सभा में भाग लेगा, उस पर जुर्माना किया जायेगा.'आम जन भयभीत हो गया. कोई भी सभा के लिए स्थान देने को तैयार नहीं हुआ. आखिर , बगड़ का पठान अमीर खां आगे आया. उसने अपने गढ़ में सार्वजनिक सभा करने की अनुमति दे दी. गढ़ में एक बड़ा हाल था. इसमें पांचसौ से अधिक व्यक्ति बैठ सकते थे. आसपास के गाँवों के प्रमुख किसान बगड़ पहुंचे. भूदाराम के साहस के कारण उन्हें राजा की पदवी दी गयी. समाज को संगठित होने और सामंती जुल्मों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ने का आव्हान किया गया. प्रकट में भविष में भी होने वाली सभाओं को समाज सुधार की सभाएं कहने का निश्चय किया. अंग्रेज अधिकारीयों को भी इससे कोई परेशानी नहीं थी. [5]

जाट महासभा का पुष्कर में जलसा सन् 1925

सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूरामसेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें आप भी सम्मिलित थे. वहां से आप एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण सेभान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से आप दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[6]


पुष्कर महोत्सव से आते ही 1925 ई. में हर लाल सिंह ने अपने दादा चौधरी गोविन्द राम के साथ मिलकर अपने गाँव हनुमानपुरा में बच्चों को पढ़ने के लिए एक पाठशाला खोली और उत्तर प्रदेश के मास्टर चंद्रभान को वहां शिक्षक नियुक्त किया. इसके साथ ही वे समाज सुधार में लग गए, जिसके अंतर्गत बच्चों को शिक्षा दिलाना, बल-विवाह और मृत्युभोज बंद करवाना, रूढ़ियों और कुरीतियों का त्याग करना, नशा बंद करवाना, फिजूल खर्ची पर रोक लगाना आदि प्रमुख थे. [7]

राजस्थान की जाट जागृति में योगदान

ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।

यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।

सन् 1925 में राजस्थान की रियासतों में जहां भी जैसा बन पड़ा लोगों ने शिक्षा का काम आरंभ कर दिया किन्तु महत्वपूर्ण कार्य आरंभ हुये सन् 1931 के मई महीने से जब दिल्ली महोत्सव के बाद ठाकुर देशराज अजमेर में ‘राजस्थान संदेश’ के संपादक होकर आए। आपने राजस्थान प्रादेशिक जाट क्षत्रिय की नींव दिल्ली महोत्सव में ही डाल दी थी। दिल्ली के जाट महोत्सव में राजस्थान के विभिन्न


[पृ 2]: भागों से बहुत सज्जन आए थे। यह बात थी सन 1930 अंतिम दिनों में ठाकुर देशराज ‘जाट वीर’ आगरा सह संपादक बन चुके थे। वे बराबर 4-5 साल से राजस्थान की राजपूत रियासतों के जाटों की दुर्दशा के समाचार पढ़ते रहते थे। ‘जाट-वीर’ में आते ही इस ओर उन्होने विशेष दिलचस्पी ली और जब दिल्ली महोत्सव की तारीख तय हो गई तो उन्होने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और दूसरी रियासतों के कार्य कर्ताओं को दिल्ली पहुँचने का निमंत्रण दिया। दिल्ली जयपुर से चौधरी लादूराम किसारी, राम सिंह बख्तावरपुरा, कुँवर पन्ने सिंह देवरोड़, लादूराम गोरधनपुरा, मूलचंद नागौर वाले पहुंचे। कुछ सज्जन बीकानेर के भी थे। राजस्थान सभा की नींव डाली गई और उसी समय शेखावाटी में अपना अधिवेशन करने का निमंत्रण दिया गया। यह घटना मार्च 1931 की है।

इसके एक-डेढ़ महीने बाद ही आर्य समाज मड़वार का वार्षिक अधिवेशन था। लाला देवीबक्ष सराफ मंडावा के एक प्रतिष्ठित वैश्य थे। शेखावाटी में यही एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनहोने कानूनी तरीके से ठिकानाशाही का सामना करने की हिम्मत की थी। उन्होने ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह दोनों को आर्य समाज के जलसे में आमंत्रित किया। इस जलसे में जाट और जाटनियाँ भरी संख्या में शामिल हुये। यहाँ हरलाल सिंह, गोविंद राम, चिमना राम आदि से नया परिचय इन दोनों नेताओं का हुआ।

सन्दर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.380-386
  2. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 70
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 95
  4. विद्याधर कुल्हरी:मेरा जीवन संघर्ष, पृ.27
  5. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 96-97
  6. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21
  7. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary: Jaton ki Gauravgatha, Rajasthani Granthagar, Jodhpur, 2008, p.248
  8. ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.1-2

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