Khandelawati

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Khandelawati (खंडेलावाटी) is a region in Sikar district of Rajasthan.

खण्डेलावाटी

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है....[पृ.441]: जयपुर के पश्चिम उत्तर 40-50 मील के फासले पर रींगस तहसील है। इस तहसील का कुल इलाका और तोरावाटी, सीकरवाटी और मारवाड़ की सरहद से घिरा हुआ है खंडेलावाटी कहलाता है। खंडेला इस इलाके में एक बड़ा ठिकाना है जो दो हिस्सों (पानो) में बटा हुआ है। इसके अलावा कई छोटे छोटे और भोमिया तथा जागीरदार इस इलाके में फैले हुए हैं। यह तमाम ठिकानेदार कछवाहा राजपूत हैं। यह लोग इस प्रदेश पर तेरहवीं सदी में फैले थे। कछवाहा लोग आरंभ में ग्वालियर (निषद देश) और पीछे अहिच्छत्रपुर (बरेली) पीलीभीत के आसपास थे। बरेली से जब उन्हें भगा दिया गया तो उनका एक सरदार सोढा राय ग्यारहवीं सदी के आरंभ में दोसा के निकट आकर आबाद हुआ और उसने वहां के बड़गूजरों से मेल करके अपना डेरा जमाया। इसके बाद उसके उत्तराधिकारियों ने छल-कपट करके मीनों से आमेर को ले लिया। यही आमेर आगे चलकर कछवाहा नरेश जयसिंह जी के नाम पर जयपुर नाम से प्रसिद्ध हुआ।

बधाला गोत्र का इतिहास

ठाकुर देशराज लिखते हैं कि बधाला नाम एक गांव के नाम पर प्रसिद्ध हुआ है। तोमर जाटों का वह समूह, जो राजस्थान में बधाल नामक स्थान पर बसा था, वह बधाला के नाम से मशहूर हुआ।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-613


इनके भाट-ग्रन्थों में लिखा है कि दिल्ली से खडगल नामक सरदार ने अपने साथियों समेत राजस्थान में जहां अपने रहने के लिए छावनी बनाई, वहीं आगे चलकर खंडेल नाम से मशहूर हुई। यह भी कहा जाता है कि खडगल के नाम से ही कुल खंडेलावाटी प्रसिद्ध हुआ। खडगल के कई पीढ़ी बाद, बधाल नाम का एक पुत्र हुआ। उसने बधाल में अपना प्रभुत्व कायम किया। खंडेल और बधाल में लगभग 30 मील का अन्तर है। इन लोगों के दसवीं सदी से लेकर चौदहवीं तक, भूमियां ढंग के शासन-तंत्र इस भू-भाग पर रहे हैं।

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References


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