Katrathal

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Location of Katrathal in Sikar district

Katrathal (कटराथल) is an ancient historical village in Sikar tehsil of Sikar district in Rajasthan, India.

Location

It is situated at a distance of 10 km from Sikar on SikarJhunjhunu Road. It is well connected by rail and road.

The founders

Jat Gotras

Ranmal Singh narrated that there are 42 Jat gotras dwelling in the village. The biggest gotra is of Garhwal. The other Jat gotras are narrated above.

History

The history of Katrathal was narrated by Ranmal Singh. According to him This ancient village is believed to be founded about 5000 years back. The ruins of Buddhist temples are found in the village. The village derives its name from combination of Sanskrit words ‘Katra’ (a market surrounded on all sides by walls) + ‘Sthal’ (place). (Katra+Sthal = Katrathal).

The village is believed to be associated with the King Kichak. Kichak was the brother of queen of King Virata, the king of Matsya. Kichak was slain by Bhima during one year of incognito exile spent by Pandavas at the court of king Virata.

In the ancient time the village was inhabited by Buddhist people. In later period there were Jains, Oswals etc but they migrated elsewhere. Muslims destroyed the Buddhist monuments and built fort which later was occupied by Shekhawats.

Coins of Allau-din-Khilji and Ibrahim Lodi have been obtained from Harsh and Katrathal respectively. Mughal coins have been obtained from Srimadhopur. Some years back coins of Nagavanshi rulers were obtained from village Sadeensar in Sikar district. On these coins these is image of Naga and palm tree and on other side a man. [1]

Historical Monuments

कटराथल के डोरवाल

कटराथल के डोरवाल के संबंध में रणमल सिंह[2] ने लिखा है कि.... मेरे डोरवाल पूर्वज संवत 1807 तदनुसार 1759 ई में ग्राम बारवा, उदयपुरवाटी जिला झुंझूनुं से कटराथल आए थे। कारण एक दुर्घटना घटित हो गई थी। कहते हैं कि छपनिया अकाल से पूर्व खेजड़ी छांगते नहीं थे । भेड़ बकरियों को ही कुल्हाड़ा या अकूड़ा से काटकर चारा डाल दिया करते थे। उस समय गाय ही प्रमुख पशुधन था। ऊंट व भैंस नाम के ही थे। उस समय कहावत थी कि “घोड़ां राज और बल्दां (बैल) खेती” पाला (बेर की झड़ी की पत्तियाँ) बहुत होता था , सो गायों को पाला डाल देते और कड़बी का पूला तोड़ देते। उस समय छानी नहीं काटी जाती थी। मेरे पूर्वजों के खेत में चार राजपूतों के लड़के आए और उन्होने खेजड़ी की टहनियाँ काटकर अपनी बकरियों को डाल दी। हमारे पूर्वज के चार बेटे थे। सबसे छोटा बेटा बकरियाँ लेकर खेत गया हुआ था। उसने उनका विरोध किया औए अकेला ही उन चारों से भीड़ लिया। एक लड़के ने उसकी गरदन पर कुल्हाड़े से वार कर दिया और उसकी वहीं मृत्यु हो गई। इसका समाचार जब उसके पिता को दिया तो वह लट्ठ लेकर चल पड़ा। उन चारों में से एक लड़का तो भाग गया शेष तीन को उसने जान से ही मार डाला। गाँव के राजपूतों ने मंत्रणा की कि ये चारों बाप-बेटे हम से तो मार खाएँगे नहीं , क्योंकि सभी 6 फीट के जवान थे। अन्य गांवों और आस-पास के राजपूतों को बुलाकर लाओ और रात को इनके घर को आग लगाकर इन्हें जीवित जलादो। यह सूचना एक दारोगा (रावणा राजपूत) ने इनको दे दी। सो अपना गाड़ा (चार बैलों वाला) और दो बैलों में बर्तन भांडे, औरतें तथा बकरियों के छोटे बच्चों तथा गायों के छोटे बछड़ों को गाड़े में बैठाकर यहाँ से चल पड़े और रात को बेरी ग्राम के बीड़ में आकर रुके। सुबह उठकर कटराथल पहुँच गए। उस समय कटराथल में चौधरी (मेहता) ज्याणी गोत्र का जाट था। हमारे गाँव में मुसलमानों ने बौद्धकालीन मंदिर तोड़कर टीले पर गढ़ बनाया था। उस की एक बुर्ज आज भी खड़ी है। बौद्धकालीन मूर्तियों को गढ़ की नींव में औंधे मुंह डाल दिया। कालांतर में शेखावतों ने गढ़ पर कब्जा कर लिया था। हमारे गाँव के दो राजपूत जयपुर-भरतपुर के बीच हुये युद्ध (मावण्डा) में मारे गए थे। उनकी छतरियाँ आज भी गाँव मैं मौजूद हैं। दो विधवा ठुकराणियां एवं उनके नौकर-चाकर ही थे।


[पृष्ठ-112]: ज्याणी गोत्र के जाट चौधरी ने उन ठुकराणियों को बताया कि एक आदमी अपने परिवार एवं पशुओं सहित आया है तो उन्होने कहा कि उसे यहीं बसाओ। खीचड़ गोत्र के जाट हमारे पूर्वजों से 50 वर्ष पहले ही कटराथल में आकर बसे थे। उनके पास ही हमारे पूर्वजों को बसा दिया गया।

मेरे परदादा का नाम चौधरी देवाराम डोरवाल था। उनके पिताजी का नाम चिमनाराम था। वे दो भाई थे, बड़े का नाम जीवनराम था। मेरे परदादा का ननिहाल भूकरों के बास में था। वे पाँच भाई बहिन थे। उनके पिताजी का देहांत हो जाने पर उनकी माताजी अपने बच्चों को लेकर अपने पीहर भूकरों का बास चली गई। ननिहाल वालों ने मेरे परदादा की सगाई सांवलोदा धायलान में बीरडा गोत्रीय परिवार में करदी। भूकरों के बास वालों ने अपनी बेटी को सलाह दी कि तुम्हारे छान-झूपे हमारे बाड़े में बँधवा देंगे और सांवलोदा लाड़खानी के ठाकुरों का बहुत बड़ा बाढ़ है, उसमें बाह-जोत करो। यहीं तुम्हारे पुत्र की शादी भी कर देंगे। किन्तु मेरे परदादा की माताजी ने साफ इंकार कर दिया कि मैं तो अपने ससुराल वापस जाऊँगी और वहीं मेरे बेटे का विवाह करूंगी , आप तो भात भरने आना।

जब मेरे परदादा की माताजी अपने पाँच बच्चों सहित कटराथल वापस आई तो उसे जेठ जीवनराम ने कहा कि वापस अपने पीहर ही जाओ, मैं तुमको न घर, बाड़ा व खेड़ा दूंगा और न बसने की जगह ही दूंगा। इस पर पड़ोसी नोलाराम खीचड़ के पिता ने दो बीघा जमीन अपने खेड़े में से दे दी और उसी में छान-झूपे बँधवा दिये। हमारी जमीन, बाड़ा , खेड़ा व खेती पर अब झझड़िया, पचारओला गोत्र के परिवारों का कब्जा है।

मेरे परदादा देवाराम जी के केवल एक ही पुत्र तुलछा राम थे और 6 बेटियां थी। मेरे दादा तुलछाराम जी का विवाह ग्राम कूदन में चौधरी करणाराम जी सुंडा की पौती व चौधरी नोपाराम जी सुंडा की बेटी के साथ हुआ। मेरी कूदन वाली दादी के तीन पुत्र व दो पुत्रियाँ हुई। दादी का जवानी में ही देहांत हो गया। पुजारी की ढ़ाणी (उदयपुरवाटी) में मेरे दादाजी का विवाह हुआ, उस दादी से दो पुत्रियाँ हुई। मेरे दादाजी का देहांत विक्रम संवत 1975 (1918 ई.) में प्लेग से हो गया। उनका एक बेटा भींवाराम 13 वर्ष की उम्र में ही चल बसा था। मेरे पिताजी चौधरी गणपत सिंह जी एवं भाई मोती सिंह जी दोनों के चार-चार पुत्र हुये।

मेरी शादी सन् 1936 (संवत 1993 अक्षय तृतिया ) में कस्तुरी देवी से हुई जो दासा की ढ़ाणी के चौधरी मूनाराम जाखड़ के बेटी थी।

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह[3] लिखते हैं कि [पृष्ठ-113]: सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने हमारे गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जाने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।

चैत्र सुदी प्रथमा को संवत बदल गया और विक्रम संवत 1992 प्रारम्भ हो गया। सीकर ठिकाने के जाटों ने लगान बंदी की घोषणा करदी, जबरदस्ती लगान वसूली शुरू की। पहले भैरुपुरा गए। मर्द गाँव खाली कर गए और चौधरी ईश्वरसिंह भामू की धर्मपत्नी जो चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथना की बहिन थी, ने ग्राम की महिलाओं को इकट्ठा करके सामना किया तो कैप्टेन वेब ने लगान वसूली रोकदी। चौधरी बक्साराम महरिया ने ठिकाने को समाचार भिजवा दिया कि हम कूदन में लगान वसूली करवा लेंगे।

कूदन ग्राम के पुरुष तो गाँव खाली कर गए। लगान वसूली कर्मचारी ग्राम कूदन की धर्मशाला में आकर ठहर गए। महिलाओं की नेता धापू देवी बनी जिसका पीहर ग्राम रसीदपुरा में फांडन गोत्र था। उसके दाँत टूट गए थे, इसलिए उसे बोखली बड़िया (ताई) कहते थे। महिलाओं ने काँटेदार झाड़ियाँ लेकर लगान वसूली करने वाले सीकर ठिकाने के कर्मचारियों पर आक्रमण कर दिया, अत: वे धर्मशाला के पिछवाड़े से कूदकर गाँव के बाहर ग्राम अजीतपुरा खेड़ा में भाग गए। कर्मचारियों की रक्षा के लिए पुलिस फोर्स भी आ गई। ग्राम गोठड़ा भूकरान के भूकर एवं अजीतपुरा के पिलानिया जाटों ने पुलिस का सामना किया। गोठड़ा गोली कांड हुआ और चार जने वहीं शहीद हो गए। इस गोली कांड के बाद पुलिस ने गाँव में प्रवेश किया और चौधरी कालुराम सुंडा उर्फ कालु बाबा की हवेली , तमाम मिट्टी के बर्तन, चूल्हा-चक्की सब तोड़ दिये। पूरे गाँव में पुरुष नाम की चिड़िया भी नहीं रही सिवाय राजपूत, ब्राह्मण, नाई व महाजन परिवार के। नाथाराम महरिया के अलावा तमाम जाटों ने ग्राम छोड़ कर भागे और जान बचाई।


[पृष्ठ-114]: कूदन के बाद ग्राम गोठड़ा भूकरान में लगान वसूली के लिए सीकर ठिकाने के कर्मचारी पुलिस के साथ गए और श्री पृथ्वीसिंह भूकर गोठड़ा के पिताजी श्री रामबक्स भूकर को पकड़ कर ले आए। उनके दोनों पैरों में रस्से बांधकर उन्हें (जिस जोहड़ में आज माध्यमिक विद्यालय है) जोहड़े में घसीटा, पीठ लहूलुहान हो गई। चौधरी रामबक्स जी ने कहा कि मरना मंजूर है परंतु हाथ से लगान नहीं दूंगा। उनकी हवेली लूट ली गई , हवेली से पाँच सौ मन ग्वार लूटकर ठिकाने वाले ले गए।

कूदन के बाद जाट एजीटेशन के पंचों – चौधरी हरीसिंह बुरड़क, पलथना, चौधरी ईश्वरसिंह भामु, भैरूंपुरा; पृथ्वी सिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; चौधरी पन्ने सिंह बाटड़, बाटड़ानाऊ; एवं चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल (मंत्री) कटराथल – को गिरफ्तार करके देवगढ़ किले मैं कैद कर दिया। इस कांड के बाद कई गांवों के चुनिन्दा लोगों को देश निकाला (ठिकाना बदर) कर दिया। मेरे पिताजी चौधरी गनपत सिंह को ठिकाना बदर कर दिया गया। वे हटूँड़ी (अजमेर) में हरिभाऊ उपाध्याय के निवास पर रहे। मई 1935 में उन्हें ठिकाने से निकाला गया और 29 फरवरी, 1936 को रिहा किया गया।

जब सभी पाँच पंचों को नजरबंद कर दिया गया तो पाँच नए पंच और चुने गए – चौधरी गणेशराम महरिया, कूदन; चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथाना; चौधरी जवाहर सिंह मावलिया, चन्दपुरा; चौधरी पन्नेसिंह जाखड़; कोलिडा तथा चौधरी लेखराम डोटासरा, कसवाली। खजांची चौधरी हरदेवसिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; थे एवं कार्यकारी मंत्री चौधरी देवीसिंह बोचलिया, कंवरपुरा (फुलेरा तहसील) थे। उक्त पांचों को भी पकड़कर देवगढ़ किले में ही नजरबंद कर दिया गया। इसके बाद पाँच पंच फिर चुने गए – चौधरी कालु राम सुंडा, कूदन; चौधरी मनसा राम थालोड़, नारसरा; चौधरी हरजीराम गढ़वाल, माधोपुरा (लक्ष्मणगढ़); मास्टर कन्हैयालाल महला, स्वरुपसर एवं चौधरी चूनाराम ढाका , फतेहपुरा

सीकर में जागीरी दमन

ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है .... जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर यज्ञ तो हो गया किंतु इससे वहां के अधिकारियों के क्रोध का पारा और भी बढ़ गया। यज्ञ होने से पहले और यज्ञ के दिनों में ठाकुर देशराज और उनके साथी यह भांप चुके थे कि यज्ञ के समाप्त होते ही सीकर ठिकाना दमन पर उतरेगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ समाप्त होने से एक दिन पहले ही सीकर जाट किसान पंचायत का संगठन कर दिया और चौधरी देवासिह बोचल्या को मंत्री बना कर सीकर में दृढ़ता से काम करने का चार्ज दे दिया।

उन दिनों सीकर पुलिस का इंचार्ज मलिक मोहम्मद नाम का एक बाहरी मुसलमान था। वह जाटों का हृदय से विरोधी था। एक महीना भी नहीं बीतने ने दिया कि बकाया लगान का इल्जाम लगाकर चौधरी गौरू सिंह जी कटराथल को गिरफ्तार कर लिया गया। आप उस समय सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के उप मंत्री थे और यज्ञ के मंत्री श्री चंद्रभान जी को भी गिरफ्तार कर लिया। स्कूल का मकान तोड़ फोड़ डाला और मास्टर जी को हथकड़ी डाल कर ले जाया गया।

उसी समय ठाकुर देशराज जी सीकर आए और लोगों को बधाला की ढाणी में इकट्ठा करके उनसे ‘सर्वस्व स्वाहा हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारेंगे’ की शपथ ली। एक डेपुटेशन


[पृ 229]: जयपुर भेजने का तय किया गया। 50 आदमियों का एक पैदल डेपुटेशन जयपुर रवाना हुआ। जिसका नेतृत्व करने के लिए अजमेर के मास्टर भजनलाल जी और भरतपुर के रतन सिंह जी पहुंच गए। यह डेपुटेशन जयपुर में 4 दिन रहा। पहले 2 दिन तक पुलिस ने ही उसे महाराजा तो क्या सर बीचम, वाइस प्रेसिडेंट जयपुर स्टेट कौंसिल से भी नहीं मिलने दिया। तीसरे दिन डेपुटेशन के सदस्य वाइस प्रेसिडेंट के बंगले तक तो पहुंचे किंतु उस दिन कोई बातें न करके दूसरे दिन 11 बजे डेपुटेशन के 2 सदस्यों को अपनी बातें पेश करने की इजाजत दी।

अपनी मांगों का पत्रक पेश करके जत्था लौट आया। कोई तसल्ली बख्स जवाब उन्हें नहीं मिला।

तारीख 5 मार्च को मास्टर चंद्रभान जी के मामले में जो कि दफा 12-अ ताजिराते हिंद के मातहत चल रहा था सफाई के बयान देने के बाद कुंवर पृथ्वी सिंह, चौधरी हरी सिंह बुरड़क और चौधरी तेज सिंह बुरड़क और बिरदा राम जी बुरड़क अपने घरों को लौटे। उनकी गिरफ्तारी के कारण वारंट जारी कर दिये गए।

और इससे पहले ही 20 जनों को गिरफ्तार करके ठोक दिया गया चौधरी ईश्वर सिंह ने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब कि कष्ट की परेशानी से बुखार आ गया (अर्जुन 1 मार्च 1934)।

उन दिनों वास्तव में विचार शक्ति को सीकर के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया था वरना क्या वजह थी कि बाजार में सौदा खरीदते हुए पुरानी के चौधरी मुकुंद सिंह को फतेहपुर का तहसीलदार गिरफ्तार करा लेता और फिर जब


[पृ 230]: उसका भतीजा आया तो उसे भी पिटवाया गया।

इन गिरफ्तारियों और मारपीट से जाटों में घबराहट और कुछ करने की भावना पैदा हो रही थी। अप्रैल के मध्य तक और भी गिरफ्तारियां हुई। 27 अप्रैल 1934 के विश्वामित्र के संवाद के अनुसार आकवा ग्राम में चंद्र जी, गणपत सिंह, जीवनराम और राधा मल को बिना वारंटी ही गिरफ्तार किया गया। धिरकाबास में 8 आदमी पकड़े गए और कटराथल में जहा कि जाट स्त्री कान्फ्रेंस होने वाली थी दफा 144 लगा दी गई।

ठिकाना जहां गिरफ्तारी पर उतर आया था वहां उसके पिट्ठू जाटों के जनेऊ तोड़ने की वारदातें कर रहे थे। इस पर जाटों में बाहर और भीतर काफी जोश फैल रहा था। तमाम सीकर के लोगों ने 7 अप्रैल 1934 को कटराथल में इकट्ठे होकर इन घटनाओं पर काफी रोष जाहिर किया और सीकर के जुडिशल अफसर के इन आरोपों का भी खंडन किया कि जाट लगान बंदी कर रहे हैं। जनेऊ तोड़ने की ज्यादा घटनाएं दुजोद, बठोठ, फतेहपुर, बीबीपुर और पाटोदा आदि स्थानों और ठिकानों में हुई। कुंवर चांद करण जी शारदा और कुछ गुमनाम लेखक ने सीकर के राव राजा का पक्ष ले कर यह कहना आरंभ किया कि सीकर के जाट आर्य समाजी नहीं है। इन बातों का जवाब भी मीटिंगों और लेखों द्वारा मुंहतोड़ रूप में जाट नेताओं ने दिया।

लेकिन दमन दिन-प्रतिदिन तीव्र होता जा रहा था जैसा कि प्रेस को दिए गए उस समय के इन समाचारों से विदित होता है।

सिहोट ठाकुर द्वारा दमनचक्र

सीकर ठिकाने की और से यह दमन-चक्र चल ही रहा था कि सिहोट के ठाकुर मानसिंह ने 200 हथियारबंद आदमियों के साथ सोतिया का बास नामक गाँव पर लगान वसूली के बहाने हमला कर दिया. मारपीट से गाँव में कोहराम मच गया. किसानों व बच्चों को गिरफ्तार कर मारते-पीटते गढ़ में ले गए और वहां कोठरी में बंद कर अनेक प्रकार की अमानुषिक यंत्रणाएं दी व खाने पिने को कुछ नहीं दिया. स्त्रियों द्वारा गाँव में विरोध करने पर ठाकुर के आदमी उन पर टूटपड़े, कपड़े फाड़ दिए और एक स्त्री को नंगा कर दिया. [पिलानिया:सरदार हरलाल सिंह, p.28] डॉ पेमाराम ने ठाकुर देशराज के जन सेवक पृ. 237 -238 में छपे इस गाँव की कानूड़ी देवी उम्र 21 वर्ष, जिसे नंगा किया गया था, का बयान उद्धृत किया है जो रोंगटे खड़े करने वाला है. घरों में घुसकर स्त्रियों के साथ मारपीट की गयी. कई स्त्रियों के तो इतनी चोटें आई कि वे बेहोश हो गईं. सिहोट ठाकुर द्वारा किसान स्त्रियों के साथ इस प्रकार के किये काण्ड से इलाके भर में व्यापक रोष फैला. [5]

कटराथल में महिला सभा - उपरोक्त अमानवीय काण्ड की निंदा करने के लिए 25 अप्रेल 1934 ई. को कटराथल गाँव में महिलाओं की एक बड़ी सभा करने का निश्चय किया. सीकर के अधिकारियों ने सभा न होने देने के अनेक उपाय किये और उस गाँव में धारा 144 लगा दी. धारा 144 तोड़कर श्रीमती उत्तमादेवी पत्नी ठाकुर देशराज के सभापतित्व में बड़ी सभा आयोजित की गयी. इसमें दस हजार से ऊपर स्त्रियाँ एकत्रित हुई. इस सभा की स्वागताध्यक्ष श्रीमती किशोरीदेवी धर्मपत्नी सरदार हरलालसिंह थी. यह महिला-सभा इस इलाके में प्रथम व अनूठी घटना थी. इस सभा में प्रस्ताव पारित किया गया कि सिहोट ठाकुर को दण्ड दिया जाय, किसानों की मांगें जल्दी पूरी की जाएँ और जयपुर सरकार की देखरेख में भूमि-बंदोबस्त चालू किया जाय. [ठाकुर देशराज: जन-सेवक, पृ.233], [6]

शेखावाटी के गाँवों से महिलायें विभिन्न जत्थे, रंग-बिरंगे परिधानों में सज्जित, गीत गाती हुई, कटराथल के लिए आईं. बात-बात में सामंतों का उपहास और उन्हें चेतावनी देते हुए शेखावाटी की मर्दानी महिलाएं सभास्थल पर एकत्रित हुई. महिला जत्थों का नेतृत्व करने वाली महिलाएं थी - दुर्गावती शर्मा (पत्नी पंडित ताड़केश्वर शर्मा) पचेरी बड़ी, फूलादेवी मांडासी, केशरीदेवी भामरवासी, रामदेवी जोशी आदि. महिलाएं निकटवर्ती गाँवों कूदन, कोलीड़ा, पालडी, पलथाना, बीबीपुर, सोतिया बास, गोठडा, भैरूपुरा आदि से आई थीं. [7]

कटराथल स्त्रियों की कांफ्रेंस 25.4.1934

ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है .... सीकर की ठिकाना शाही सत्ता जब जाटों के आंदोलन से घबरा उठी तो उसने सभाओं पर दफा-144 लगा दी। उस समय कानून भंग करने का जाट नेताओं ने एक उपाय सोचा और वह यह है कि पुरुषों की सभाएं न करके स्त्रियों की सभाएं की जायें। लगभग 10000 स्त्रियों ने उस कांफ्रेंस में भाग लिया जिसकी सभापति श्रीमती उत्तमा देवी (स्वर्गीय पत्नी ठाकुर देशराज) और स्वागताध्यक्ष श्रीमती किशोरी देवी जी (धर्मपत्नी सरदार हरलाल) थी।

जहां के लोगों ने हिम्मत करके और पुलिस की मार खाकर भी इस कांफ्रेंस को सफल बनाया वह गांव कटराथल के नाम से मशहूर है। यहीं के चौधरी खुमानाराम के पुत्र चौधरी गोरु राम जी हैं।

गांवों में सीकर ठिकाने द्वारा तबाही के दृश्य

ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है ....गांवों में सीकर ठिकाने द्वारा अन्यायों का तांता बन गया और गांवों में जाटों को पीटा जाने लगा।

कटराथल गांव में भी 1-2 जाटों का लगान बनिए व ब्राह्मणों से लिया गया।


[पृ.283] एक गांव में एक राजपूत से भी 2 घंटे में तमाम लगान देने को मेजर ने कहा और गालियां तक दी। उसे तंग कर तमाम लगान 2 घंटे में वसूल किया। इसी भांति एक गाँव में 6 ब्राह्मणों को बांधकर तमाम लगान वसूल करने के समाचार मिले है।

पाठ्यपुस्तकों में स्थान

शेखावाटी किसान आंदोलन ने पाठ्यपुस्तकों में स्थान बनाया है। (भारत का इतिहास, कक्षा-12, रा.बोर्ड, 2017)। विवरण इस प्रकार है: .... सीकर किसान आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सीहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा सोतिया का बास नामक गांव में किसान महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी की अध्यक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। सीकर ठिकाने ने उक्त सम्मेलन को रोकने के लिए धारा-144 लगा दी। इसके बावजूद कानून तोड़कर महिलाओं का यह सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। जिनमें श्रीमती दुर्गादेवी शर्मा, श्रीमती फूलांदेवी, श्रीमती रमा देवी जोशी, श्रीमती उत्तमादेवी आदि प्रमुख थी। 25 अप्रैल 1935 को राजस्व अधिकारियों का दल लगान वसूल करने के लिए कूदन गांव पहुंचा तो एक वृद्ध महिला धापी दादी द्वारा उत्साहित किए जाने पर किसानों ने संगठित होकर लगान देने से इनकार कर दिया। पुलिस द्वारा किसानों के विरोध का दमन करने के लिए गोलियां चलाई गई जिसमें 4 किसान चेतराम, टीकूराम, तुलसाराम तथा आसाराम शहीद हुए और 175 को गिरफ्तार किया गया। हत्याकांड के बाद सीकर किसान आंदोलन की गूंज ब्रिटिश संसद में भी सुनाई दी। जून 1935 में हाउस ऑफ कॉमंस में प्रश्न पूछा गया तो जयपुर के महाराजा पर मध्यस्थता के लिए दवा बढ़ा और जागीरदार को समझौते के लिए विवश होना पड़ा। 1935 ई के अंत तक किसानों के अधिकांश मांगें स्वीकार कर ली गई। आंदोलन नेत्रत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में थे- सरदार हरलाल सिंह, नेतराम सिंह गौरीर, पृथ्वी सिंह गोठड़ा, पन्ने सिंह बाटड़ानाउ, हरु सिंह पलथाना, गौरू सिंह कटराथल, ईश्वर सिंह भैरूपुरा, लेख राम कसवाली आदि शामिल थे। [10]

Population

As of 2001 census, the population of the village is 11798, out of them 1702 are SC and 29 are ST people.Now the village has about 2200 families dwelling in it out of which 1400 families are of Jats.

Notabe persons

  • Hans Raj (Daurwal) - Chief Conservator of Forests at Jaipur, Rajasthan. He is from village Katrathal in Sikar district in Rajasthan,India & presently residing at Jaipur at Hanuman Nagar Extensionm Vaishali Nagar. VPO: Katrathal, Distt. - Sikar, Rajasthan, He is son of Harful Singh, brother of Ranmal Singh.
  • M. P. Nehra -SDE (CMTS) BSNL, Date of Birth : 20-August-1972, Mob: 9427013500, Email : mpnehra@gmail.com
  • Rajendra Kumar (Bagaria) - Lecturer College Education, Date of Birth : 1-May-1969, Phone Number : 01572-248236, Mobile Number : 9829883634
  • Akhil Choudhary (Grandson of Sh Ranmal Singh), Advocate & Social Worker, Lions Lane, Hanuman Nagar Ext, Jaipur.
  • सन् 1938 में गाँव के चार लड़के सीकर उच्च प्राथमिक विद्यालय (हिन्दी मीडिल) माधो स्कूल में पढ़ने के लिए गए। ये छात्र थे – 1. रणमल सिंह, 2. गणपत सिंह नेहरा, 3. सुखदेव सिंह गढ़वाल एवं 4. झाबर सिंह गढ़वाल। [12]

Gallery

External links

References

  1. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, १९९८, पृ.257
  2. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 111-112
  3. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113-114
  4. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.228-230
  5. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.94-95
  6. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.94-95
  7. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 124
  8. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.309
  9. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.282-83
  10. भारत का इतिहास कक्षा 12, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, 2017, लेखक गण: शिवकुमार मिश्रा, बलवीर चौधरी, अनूप कुमार माथुर, संजय श्रीवास्तव, अरविंद भास्कर, p.155
  11. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0, पृष्ठ 113
  12. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0, पृष्ठ 117

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