Ratan Singh Bajiya

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Ratan Singh Bajiya (1895-22.3.1935) (Ratna Ram Bajia) was a martyr and Hero of Shekhawati farmers movement. He belonged to village Fakirpura. He was killed by the Jagirdars on 22.3.1935 at village Khuri Bari in Sikar district in Rajasthan.[1]

जीवन परिचय

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....शहीद रतन सिंह - [पृ.316]: जिसने सीकर जाट आंदोलन को अपनी बलि देखकर जीवित बनाया। उस मरदाने वीर का नाम चौधरी रतन जी अथवा रतनसिंह जी था। फकीरपुरा के बाजिया गोत्र में संवत 1952 विक्रमी में उनका जन्म हुआ था। सीकर महायज्ञ के समय से ही वे कौम का काम करने लगे थे और आंदोलन में भी पूरा भाग ले रहे थे। खुड़ी में जबकि वे वहां के एक राजपूत जमीदार के मकान के सामने होकर निकल रहे थे राजपूत ने उनका सिर काट लिया। उन्होंने अपने पीछे तीन भाई और एक पुत्र छोड़ा है। वे मर गए हैं किन्तु उनका नाम अमर है। नौजवानों को प्रतिक्षण स्फूर्ति देता है।


रत्नाराम बाजिया शहीद हो गए

रणमल सिंह[3] लिखते हैं कि सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने कटराथल गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जाने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।

खुड़ी में गोलीकांड 1935

संभावना यह थी कि ठिकानेदारों के किसानों के साथ हुए दोनों समझौते 23 अगस्त 1934 और 15 मार्च 1935 अब अवश्य ही अमल में आएंगे किन्तु इस समझौते के ठीक पांचवें दिन एक ऐसी घटना हुई जिसने सारा खेल बिगड़ दिया. 20 मार्च 1935 को खुड़ी गाँव में एक जाट लड़की का विवाह था. जाट घोड़ी पर बैठकर तोरण मारना चाहते थे परन्तु वहां के राजपूत भौमियों ने ऐसा करने से रोक दिया. जाटों ने सीकर के अधिकारियों से भौमियों के इस अनुचित हस्तक्षेप के खिलाफ कार्यवाही करने की प्रार्थना की. सीकर के अधिकारियों ने भौमियों को नेक सलाह देने के बजाय दुल्हे के एक सम्बन्धी को गिरफ्तार कर लिया. इसका नजीता यह हुआ कि भौमियों का दिमाग और शह पर चढ़ गया और उन्होंने दूसरे दिन 22 मार्च 1935 को रतनाराम बजिया का , जबकि वह ठाकुरों की कोटड़ी के सामने से जा रहे थे, सर काट दिया. जाट इस पर भी शांत रहे. उन्होंने तोरण मारने के लिए धरना दे दिया, बारात वापस न की. जाट व राजपूत दिन-प्रतिदिन बड़ी संख्या में एकत्रित होने लगे. स्थिति गंभीर होती गयी. तब 27 मार्च 1935 को कैप्टन वेब स्वयं खुड़ी पहुंचे और जाटों और राजपूतों को बिखर जाने का आदेश दिया. राजपूत तो बिखर गए, परन्तु जाट डटे रहे. तब वेब ने लाठीचार्ज का हुक्म दे दिया. लाठी चलाने में गाँव के ठाकुरों ने भी आगे बढ़कर भाग लिया. वेब के सामने ही बर्बरता का खुला प्रदर्शन हुआ. निहत्ते किसान जमीन पर लेट गए. इस काण्ड में दो आदमी जान से मरे और 100 के लगभग घायल हुए. [4] इस घटना पर महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' में बड़े कड़े शब्दों में अपनी टिपण्णी लिखी. "जयपुर राज्य के अंतर्गत सीकर के ठिकाने में खुड़ी नाम का एक छोटा सा गाँव है. ...गत 27 मार्च को राजपूतों की एक टोली ने जाटों की एक बारात को घेर लिया और बेचारे निहत्ते जाटों पर उसने बुरी तरह लाठियां बरसाईं. गुस्ताखी उन बारातियों की यह थी कि उनका दूल्हा घोड़े पर स्वर था. ...राजपूतों ने इस लाठीचार्ज के पहले ही एक जाट को क़त्ल कर दिया... आशा करनी चाहिए कि राज्य के अधिकारी इस मामले की पूरी तहकीकात करेंगे और गरीब जाटों को ऐसा उचित संरक्षण देंगे की जिससे वे उन सभी अधिकारों को अमल में ला सकें जो मनुष्य मात्र को प्राप्त हैं." [5][6]

External links

सन्दर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.316
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.316
  3. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113
  4. [बीकानेर कोंफिड़ेंसियल रिकोर्ड, फ़ाइल न. २९-सी, रा.रा.ए. बीकानेर, दी सन्डे स्टेट्समेन 31 मार्च 1935]
  5. ठाकुर देशराज : जाट जन सेवक,पृ.279-280
  6. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.116

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