Teja Singh Burdak

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Teja Singh Burdak (born:1884) (also Teja Ram Burdak) son of Uda Ram, from village Palthana (Sikar), was a leading Freedom fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan.

Family of freedom fighters

Teja Ram Burdak had a title of '23 Rai' awarded by Sikar Jat Panchayat. He was imprisoned many times. This title was given to indicate him superior to the British Viceroy ('bais ray' in local dialect).

Teja Singh Burdak had three sons: 1. Hardeva Singh Burdak, 2. Narayan Singh Burdak Palthana, and 3. Nop Ram Burdak

Teja Singh Burdak's eldest son Hardeva Singh Burdak was also freedom fighter.

Teja Singh Burdak's second son Narayan Singh Burdak father of Keshardev Burdak was also freedom fighter.

Teja Singh Burdak's youngest son Nop Ram Burdak was also freedom fighter. He was sarpanch of Palthana for about 28 years. Vidyadhar son of Nop Ram is AAO in Housing Board Jaipur.

Narayan Singh's son is Keshardev Burdak - Yoga Guru, Teacher Govt Sec. School Bandiawas Sikar, State Auditor Patanjali Yoga Samiti Rajasthan, Secretary Scout Guide Sikar, DOB: 1.8.1959. Mob: 9460168530

Genealogy

Rattu RamUda RamTeja Ram BurdakNarayan Ram BurdakKeshardev Burdak

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....चौधरी तेजसिंहजी पलथाना - [पृ.301]: पलथाना में जीवित शहीदों का एक घर है। उसमें


[पृ.302]: जितने भी आदमी हैं कौमी सेवा के रंग में रंगे हुए हैं। लड़कियों के दिल में भी जाति अभिमान की लहरें उठती है। उस घर के ग्रहपति हैं चौधरी तेजसिंह जी बुरड़क।

आप चौधरी उदय सिंह जी के सुपुत्र हैं। आपका जन्म संवत 1940 (1884 ई.) विक्रमी के माघ महीने में कृष्ण पक्ष की रात्रि को हुआ था।

आप के पुत्रों में नारायण सिंह और हरदेव सिंह जी से सीकर वाटी ही नहीं उसे बाहर के सभी पढ़े-लिखे जाट परिचित हैं।

हरदेव सिंह एक खिलौना आदमी है। उन्होंने कई वर्ष तक जूते नहीं पहने कि जब तक ठिकानेदार इसी प्रकार निरंकुश रहेंगे हम चैन से बैठना नहीं चाहते। उनकी नाक में नकेल डाल कर ही हम आराम की जिंदगी बिताएंगे। हुआ भी यही। हरदेव सिंह 5 वर्ष तक सीकर वाटी के जाट आंदोलन को अपने दौड़ धूप से पानी देते रहें और ठिकानेदारों के कान ढीले हो गए तब उन्होंने अपनी माली हालत सुधारने की ओर ध्यान दिया।

अपनी जिंदगी में ही और अपने ही हिम्मत से कोई आदमी कितना कमा सकता है इसका सबसे ऊंचा नमूना हरदेव सिंह जी ने रखा है। उन्होंने पहले तो लक्ष्मणगढ़ आदि में दुकानें की। इसके बाद मारवाड़ी सेठों के सट्टे के व्यापार में पैर रखा। दो-ढाई साल में ही इतना पैसा कमाया जिससे एक कोठी उन्होंने अपने गांव में खड़ी कर दी।

आपके छोटे भाई ने कुंवर हरि सिंह जी गोठड़ा के साथ जेरठी-दादिया स्टेशन पर एक दुकान आरंभ की।


[पृ.303]: इस प्रकार तीनों भाइयों ने व्यापार में बसने वाली लक्ष्मी को ढूंढ निकाला।

चौधरी तेज सिंह सीधे सच्चे और इमानदार आदमी है। वे एक रास्ते चलने वाले हैं। जाट वैदिक हाउस सीकर के लिए उन्होंने 1100 रुपये देकर एक कमरा बनवाया है।

आप आर्य रहन सहन के आदमी हैं और आपके बच्चे बच्चियाँ सभी कुरीतियों से ऊंचे उठ कर अपना जीवन बिताते हैं। यह आप की विशेषता है।

हरदेव सिंह जी और नारायण सिंह जी के अलावा आपके जो दो छोटे पुत्र हैं उनके नाम नोप सिंह और भूरा सिंह हैं। लड़की का नाम रामकुंवारी है।

चौधरी तेज सिंह जी आंदोलन के सिलसिले में इंचार्ज सरपंच की हैसियत से जब गिरफ्तार हुए तो आपको देवगढ़ के किले में बंद रखा गया था।

चौधरी हरदेव जी

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी हरदेव जी - [पृ.490]: चौधरी तेजसिंह पलथाना के मरदाने पुत्र हरदेव सिंह जी का जन्म संवत 1962 (1905 ई.) में हुआ था। आपके छोटे भाइयों में नारायण सिंह जी का जन्म संवत 1965 (1908 ई.), नोपसिंह जी का संवत 1972 (1915 ई.), भूर सिंह जी का संवत 1976 (1919 ई.) और रामकुमारी भाई का जन्म 1980 (1923 ई.) का है।

हरदेवसिंह जी ने जो किया उसका वृतांत सुंदर है।

1. झुंझुनू संवत 1987 में महाराज जयपुर को दरख्वास्त लगान को कम करने की दी। महाराजा उस समय दौरे पर पधारे थे। सरकारी कर्मचारी किसानों को नजदीक नहीं आने देते थे। हरदेव सिंह ने किसानों को एक स्थान पर बिठा दिया और खुद महाराज के पास पहुंचकर दरखास्त दे दी। तब महाराजा ने किसानों को बुलवाया।
2. झुञ्झुणु में जाकर सीकर में जलसा करने का निमंत्रण दिया।
3. पलथाना में स्कूल खुलवाया।

सन् 1905 में आपके दादा आंदोलन के सिलसिले में गिरफ्तार करके आगरे के किले में भेज दिए गए। तात्पर्य यह है कि आप का खानदान हमेशा से बहादुर रहा है।

जीवन परिचय

सन 1925 में पुष्कर सम्मलेन के पश्चात् शेखावाटी में दूसरी पंक्ति के जो नेता उभर कर आये, उनमें आपका प्रमुख नाम हैं [3]

सीकर में जागीरी दमन

ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है .... जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर यज्ञ तो हो गया किंतु इससे वहां के अधिकारियों के क्रोध का पारा और भी बढ़ गया। यज्ञ होने से पहले और यज्ञ के दिनों में ठाकुर देशराज और उनके साथी यह भांप चुके थे कि यज्ञ के समाप्त होते ही सीकर ठिकाना दमन पर उतरेगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ समाप्त होने से एक दिन पहले ही सीकर जाट किसान पंचायत का संगठन कर दिया और चौधरी देवासिह बोचल्या को मंत्री बना कर सीकर में दृढ़ता से काम करने का चार्ज दे दिया।

उन दिनों सीकर पुलिस का इंचार्ज मलिक मोहम्मद नाम का एक बाहरी मुसलमान था। वह जाटों का हृदय से विरोधी था। एक महीना भी नहीं बीतने ने दिया कि बकाया लगान का इल्जाम लगाकर चौधरी गौरू सिंह जी कटराथल को गिरफ्तार कर लिया गया। आप उस समय सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के उप मंत्री थे और यज्ञ के मंत्री श्री चंद्रभान जी को भी गिरफ्तार कर लिया। स्कूल का मकान तोड़ फोड़ डाला और मास्टर जी को हथकड़ी डाल कर ले जाया गया।

उसी समय ठाकुर देशराज जी सीकर आए और लोगों को बधाला की ढाणी में इकट्ठा करके उनसे ‘सर्वस्व स्वाहा हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारेंगे’ की शपथ ली। एक डेपुटेशन


[पृ 229]: जयपुर भेजने का तय किया गया। 50 आदमियों का एक पैदल डेपुटेशन जयपुर रवाना हुआ। जिसका नेतृत्व करने के लिए अजमेर के मास्टर भजनलाल जी और भरतपुर के रतन सिंह जी पहुंच गए। यह डेपुटेशन जयपुर में 4 दिन रहा। पहले 2 दिन तक पुलिस ने ही उसे महाराजा तो क्या सर बीचम, वाइस प्रेसिडेंट जयपुर स्टेट कौंसिल से भी नहीं मिलने दिया। तीसरे दिन डेपुटेशन के सदस्य वाइस प्रेसिडेंट के बंगले तक तो पहुंचे किंतु उस दिन कोई बातें न करके दूसरे दिन 11 बजे डेपुटेशन के 2 सदस्यों को अपनी बातें पेश करने की इजाजत दी।

अपनी मांगों का पत्रक पेश करके जत्था लौट आया। कोई तसल्ली बख्स जवाब उन्हें नहीं मिला।

तारीख 5 मार्च को मास्टर चंद्रभान जी के मामले में जो कि दफा 12-अ ताजिराते हिंद के मातहत चल रहा था सफाई के बयान देने के बाद कुंवर पृथ्वी सिंह, चौधरी हरी सिंह बुरड़क और चौधरी तेज सिंह बुरड़क और बिरदा राम जी बुरड़क अपने घरों को लौटे। उनकी गिरफ्तारी के कारण वारंट जारी कर दिये गए।

और इससे पहले ही 20 जनों को गिरफ्तार करके ठोक दिया गया चौधरी ईश्वर सिंह ने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब कि कष्ट की परेशानी से बुखार आ गया (अर्जुन 1 मार्च 1934)।

उन दिनों वास्तव में विचार शक्ति को सीकर के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया था वरना क्या वजह थी कि बाजार में सौदा खरीदते हुए पुरानी के चौधरी मुकुंद सिंह को फतेहपुर का तहसीलदार गिरफ्तार करा लेता और फिर जब


[पृ 230]: उसका भतीजा आया तो उसे भी पिटवाया गया।

इन गिरफ्तारियों और मारपीट से जाटों में घबराहट और कुछ करने की भावना पैदा हो रही थी। अप्रैल के मध्य तक और भी गिरफ्तारियां हुई। 27 अप्रैल 1934 के विश्वामित्र के संवाद के अनुसार आकवा ग्राम में चंद्र जी, गणपत सिंह, जीवनराम और राधा मल को बिना वारंटी ही गिरफ्तार किया गया। धिरकाबास में 8 आदमी पकड़े गए और कटराथल में जहा कि जाट स्त्री कान्फ्रेंस होने वाली थी दफा 144 लगा दी गई।

ठिकाना जहां गिरफ्तारी पर उतर आया था वहां उसके पिट्ठू जाटों के जनेऊ तोड़ने की वारदातें कर रहे थे। इस पर जाटों में बाहर और भीतर काफी जोश फैल रहा था। तमाम सीकर के लोगों ने 7 अप्रैल 1934 को कटराथल में इकट्ठे होकर इन घटनाओं पर काफी रोष जाहिर किया और सीकर के जुडिशल अफसर के इन आरोपों का भी खंडन किया कि जाट लगान बंदी कर रहे हैं। जनेऊ तोड़ने की ज्यादा घटनाएं दुजोद, बठोठ, फतेहपुर, बीबीपुर और पाटोदा आदि स्थानों और ठिकानों में हुई। कुंवर चांद करण जी शारदा और कुछ गुमनाम लेखक ने सीकर के राव राजा का पक्ष ले कर यह कहना आरंभ किया कि सीकर के जाट आर्य समाजी नहीं है। इन बातों का जवाब भी मीटिंगों और लेखों द्वारा मुंहतोड़ रूप में जाट नेताओं ने दिया।

लेकिन दमन दिन-प्रतिदिन तीव्र होता जा रहा था जैसा कि प्रेस को दिए गए उस समय के इन समाचारों से विदित होता है।

क्रूरता का तांडव

सन्दर्भ - डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.115-120

पलथाना गाँव में कैप्टन वेब - गोठड़ा से चलकर कैप्टन वेब पुलिस बल सहित 26 अप्रेल 1935 को पलथाना पहुंचा. यह हरिसिंह बुरड़क का गाँव था जो किसान आन्दोलन के प्रमुख नेता थे. वे 25 गाँवों के सरपंच थे. पञ्च-मंडली के भी अध्यक्ष थे. झुंझुनू सम्मलेन से लौटते समय उत्तर प्रदेश के निवासी मास्टर चन्द्रभान को साथ ले आये थे और गाँव में स्कूल प्रारंभ कर दी थी , जिसमें चन्द्रभान पढ़ाते थे. इससे पलथाना में तेजी से लोग साक्षर होने लगे. यह सब रावराजा और अंग्रेज अफसर को चिढाने के लिए काफी था. हरिसिंह ने लगान देने से मना कर दिया. क्रोधित वेब ने हरी सिंह का मकान भी ढहाने का आदेश दे दिया लेकिन मि. यंग ने ऐसा करने से रोक दिया. हरी सिंह की माँ, इन अंग्रेज अधिकारीयों के लिए दूध लेकर आई. कैप्टन वेब ने घृणा से मुंह फेर लिया. यंग अधिक व्यावहारिक था. उसने मुस्कराकर दूध अपने हाथ में ले लिया. बातचीत का आधार बन गया. लोगों ने कहा, 'स्कूल ने क्या बिगाड़ा था? आप लोग तो स्वयं शिक्षा के पक्ष में रहे हैं? यंग के बात समहज में आ गयी. उसने पूछा, 'स्कूल कि मरम्मत के लिए कितने रुपये लगेंगे? गाँव वालों ने 300 रुपये बताये. यंग ने तीन सौ रुपये गाँव में दे दिए लेकिन लगान न देने के लिए. यहाँ दो जाटों से तमाम गाँव के लगान का रूपया वसूल किया और जुरमाना लिया. यहाँ मास्टर चंद्रभानसिंह और चार मुखिया जाट हरिसिंह बुरड़क, तेजसिंह बुरड़क, बिडदा राम बुरड़कपेमा राम बुरड़क को गिरफ्तार कर लिया और स्कूल भवन को पूरी तरह नष्ट कर दिया. इन लोगों को पीटा गया और बाद में इन्हें गाँवों में घुमाते हुए लक्ष्मणगढ़ ले गए. वहां तहसील में इन्हें जूतों से पीटा गया और शहर में अपमानित कर जुलुस निकाला. इन्हें जूतों से पिटवाते हुए इसलिए घुमाया कि लोग जन सकें की आन्दोलनकारियों की इस तरह दुर्गति की जा सकती है. इस प्रकार के अन्यायों का ताँता बंध गया था और गाँवों में जाटों को पीटा जाने लगा. (डॉ पेमाराम, पृ.119)

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.301-303
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.490
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 100
  4. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.228-230

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