Khichar

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Khichar

(Khichad, Kheechad, Khinchad, Khinchar, Khicher)

Location : Rajasthan

Country : India

Languages : Rajasthani

Religion : Hinduism

कुलदेवी खीचड का App

Khichar (खीचड़)[1] [2] Khichad (खीचड़) Kheechad (खीचड़) Khinchad (खींचड़) Khinchar (खींचड़) Khicher (खीचड़) is gotra of Jats found in Rajasthan.[3] Veerbhan Khichar was the founder of Sikar. Khichars are believed to be originated from Johiyas and their capital was Sidhmukh. Probably they are same as Khichi clan of Chauhans. [4] They supported the ascendant clan Johiya and became part of a political confederacy:[5][6] [7]

Contents

Origin

History

Dr Pema Ram writes that after the invasion of Alexander in 326 BC, the Jats of Sindh and Punjab migrated to Rajasthan. They built tanks, wells and Bawadis near their habitations. The tribes migrated were: Shivis, Yaudheyas, Malavas, Madras etc. The Shivi tribe which came from Ravi and Beas Rivers founded towns like Sheo, Sojat, Siwana, Shergarh, Shivganj etc. This area was adjoining to Sindh and mainly inhabited by Jats. The descendants of Yaudheyas in Rajasthan are: Kulhari, Kuhad, Mahla, Mahil, Khichar etc. [9]

About origin of the gotra theory is that there was a king in Haryana who had three sons. One was Khichar , another was Mahla & third one was Kulhari. These sons came to Rajasthan. Mahlas settled in a place called Bhalaria in Jhunjhunu. From there they migrated to other places in Rajathan. As a matter of fact Mahla & Khichars are considered brothers & don’t marry in their gotras.

According to H.A. Rose[10] Jat clans Khichar is derived from Kinchi.

Khichar is a sept of Jats in Jind; see under Jaria.[11]

H.A. Rose[12] writes that Jaria (जरिया), a sept of Jats found in Jind. In that state five gots of Jats derive their names from as many parts of the beri tree, viz. :

(i) Rangi, from the rang, or bark of the beri tree used for dyeing,
(ii) Jaria, from jar, the root,
(iii) Beria, from ber, the fruit,
(iv) Jhari, or seedlings, and
(v) Khichar, or bud.

These five gots may however intermarry and are, collectively, called Jaria, which is also said to be derived from jora and to mean ' twin.'

History as per Bard

The History and Genealogy of Khichar Gotra has been narrated by Prabodh Khichar of village Bachharara, Ratangarh,Churu, Rajasthan by Email (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com) dated 5/8/2017.

Shiv Singh was ruler of Kot Marot (Sindh), Pakistan). He was attacked by Yavanas in 959 AD and lost his kingdom. He along with 12 sons moved from Kot Marot (Sindh, Pakistan) to Sidhmukh in Rajasthan. Shiv Singh's sons gave name to 12 Jat Gotras as under:

1. KhemrajKhichar, who founded Kanwarpura Bhadra (Bhadra, Hanumangarh)
2. BarasiBabal, who founded Barasari (Jamal Sirsa)
3. ManajiManjhu, Sihol, Loonka
4. KarmajiKarir
5. KarnajiKularia
6. JaggujiJhaggal
7. DurjanjiDurajana
8. BhinwajiBhanwaria
9. NarayanjiNiradhana
10. MalajiMechu

Gotrachara of Khichars:

Migration to south - After Shiv Singh lost his kingdom Kot Marot (Sindh, Pakistan) he came to Sidhmukh in Rajasthan. Descendants of his eldest son Khemraj were called Khichar. Khemraj's eldest son was Kanwar Singh who founded Kanwarpura (Bhadra, Hanumangarh) which still exists. After about 10-12 generations they had to again leave Kanwarpura due to continuous famines and moved to Bajawa village in Jhunjhunu. Mule Singh Bugalia was Chaudhari of Bajawa under Nawab of Jhunjhunu, who gave patta of Bajawa village to Khichar descendants Singhal and Bijal. Singhal married here with Deoo, daughter of Ch. Mule Singh Bugalia.

Singhal Khichar had son Mala Ram from his first wife, who founded Mainas village and his descendants were called Mengrasi Khichar. From his second wife he had son Mahidhar, who founded Sithal village and his descendants were called Mahla. Singhal Khichar had son Dhola Ram from his third wife Deoo Bugalia, who founded Dholas village and his descendants were called Dholarsi Khichar.

Khichars also founded villages Kumas Jatan (Sikar), inhabited about 5000 Khichar families; Bahia (Sirsa), inhabited about 400 Khichar families. Village Bachharara (Ratangarh, Churu) was founded after about 15 generations of Mala Ram. Bachharara has a sacred site of Sati Netu and Kesar. Netu Dhetarwal from Jaleu Ratangarh, wife of Mota Ram Khichar of Bachharara became Sati in 1761 AD on Falgun Sudi Teej.


Kesar Sakti Dadi was of Punia Gotra and wife of Narayan Ram Khichar. She became Sati on Kartik Sudi Teej Vikram Samvat 1747 (=1680 AD)

Villages founded by Khichar clan

  • Khicharwas (खिचड़्वास) - village in Sikar district of Rajasthan
  • Mainas - Singhal Khichar had son Mala Ram from his first wife, who founded Mainas village and his descendants were called Mengrasi Khichar.
  • Sithal - Singhal Khichar from his second wife had son Mahidhar, who founded Sithal village and his descendants were called Mahla.
  • Sikar - Original name of Sikar was Veerbhan-Ka-Bas which was founded by Veerbhan Jat of Khichar gotra (Year=?).

Sub divisions of Johiya

Bhim Singh Dahiya[14] provides us list of Jat clans who were supporters of the Johiya when they gained political ascendancy. The Khichar clan supported the ascendant clan Johiya and became part of a political confederacy.[15]


According to H.A. Rose[16] Jat clans derived from Joiya are: Pasal, Mondhla, Khichar, Jani, Machra, Kachroya, Sor and Joiya.

खीचड़ों का इतिहास एवं वंशावली

खीचड़ों का इतिहास एवं वंशावली की जानकारी प्रबोध खीचड़, खीचड़ों की ढाणी, बछरारा, रतनगढ़, चुरू, राजस्थान द्वारा ई-मेल से उपलब्ध कराई है। (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com) (5/8/2017).

कोट-मरोट के राजा: विक्रम संवत 1015 (959 ई.) में क्षत्रिय जाति के राजा शिवसिंह राज करते थे। इनकी राजधानी कोट-मरोट थी जो अब पाकिस्तान में है। सन् 959 ई. में यवनों ने इस राजधानी पर आक्रमण किया। यवनों की सेना बहुत विशाल थी परिणाम स्वरूप शिवसिंह को कोट-मरोट छोडना पड़ा। राजा शिवसिंह अपने 12 पुत्रों के साथ आकर सिद्धमुख (चुरू) में रहने लगे। राजा शिवसिंह के सबसे बड़े पुत्र खेमराज थे। बड़वा के अनुसार इनके वंशजों से खीचड़ गोत्र बना। खेमराज के वंशजों ने सर्वप्रथम कंवरपुरा गाँव बसाया। (तहसील: भादरा, हनुमानगढ़)। राजा शिवसिंह के पुत्रों से निम्न 12 उपगोत्र निकले -

1. खेमराज की सन्तानें खीचड़ कहलाई जिन्होने कंवरपुरा गाँव बसाया (तहसील: भादरा, हनुमानगढ़)
2. बरासी की सन्तानें बाबल कहलाई जिन्होने बरासरी (जमाल) गाँव बसाया
3. मानाजी की सन्तानें मांझु, सिहोल और लूंका कहलाई
4. करमाजी की सन्तानें करीर कहलाई
5. करनाजी की सन्तानें कुलडिया कहलाई
6. जगगूजी की सन्तानें झग्गल कहलाई
7. दुर्जनजी की सन्तानें दुराजना कहलाई
8. भींवाजी की सन्तानें भंवरिया कहलाई
9. नारायणजी की सन्तानें निराधना कहलाई
10. मालाजी की सन्तानें मेचू कहलाई

शिवसिंह के 12 पुत्रों में से 2 की अकाल मृत्यु हो गई थी। शेष 10 में से उपरोक्त गोत्र बने। मानाजी की तीन शादियाँ हुई थी जिनकी सन्तानें मांझु, सिहोल और लूंका कहलाई। इस प्रकार 12 भाईयों से उपरोक्त 12 गोत्र बने।

इस प्रकार उपरोक्त 12 गोत्र एक ही नख जोहिया, एक ही वंश सूर्यवंशी, एक ही गुरु वशिष्ठभैरव का नाम भीमलोचन है। यहाँ सती का ब्रह्मरंध्र गिरा था।

खीचड़ों का गोत्र-चारा:

दक्षिण की और प्रस्थान - कोट-मरोट छूटने के बाद सब बारह भाई सिधमुख आए। खेमराज जी की संतान खीचड़ कहलाई। खेमराज का बड़ा पुत्र कंवरसिंह था जिसके नाम से कंवरपुरा (भादरा) बसाया जो आज भी है। कंवरसिंह के दश-बारह पीढ़ियों के बाद इनको कंवरपुरा छोडना पड़ा। वहाँ 12 वर्ष तक अकाल पड़ा। ये दक्षिण की और चले गए।

ये लोग झुंझुनु नवाव की रियासत के एक गाँव में पहुंचे। इनके साथ सभी पशु, सामान और गाड़ियाँ थी। यहाँ मुलेसिंह बुगालिया जाट की 12 गांवों में चौधर थी। गाँव के पानी के जोहड़ के पास ये रुक गए। इधर मुलेसिंह बुगालिया का भी एक ग्वाला भेड़ों को चराता हुया आया और इस जोहड़ पर पानी पिलाने लगा। यहाँ रुके हुये बाहरी लोगों को देखकर उसने भला बुरा कहा। खीचड़ों के दल में सींघल और बीजल नाम के दो व्यक्ति बहुत बहादुर और दबंग थे। उन्होने मुले सिंह बुगालिया के ग्वाले के रेवड़ से उठाकर दो मेंढ़े ले लिए और उनका मांस पकाने लगे। मुलेसिंह बुगालिया के ग्वाले ने इसकी शिकायत अपने मालिक मुलेसिंह को की। मुलेसिंह बुगालिया नवाब को कर देता था। उसने नवाब के पास जाकर बढ़ा-चढ़ा कर शिकायत की कि ये लोग पूरे रेवड़ को काट कर खा गए हैं। यह भी शिकायत की कि इनके पास असला और हथियार भी हैं। ये लोग उसकी जागीर पर कब्जा करना चाहते हैं। नवाब ने एक सेना मुले सिंह के साथ भेजी जो जोहड़ की और रवाना हुई। सींघल और बीजल के पास कोई असला और हथियार नहीं थे केवल कृषि उपकरण आदि थे। नवाब की सेना आते देखकर उन्होने कोटवासन माता को याद किया। कहते हैं कोटवासन माता प्रकट हुई और कहा कि मैं आप लोगों की रक्षा करूंगी परंतु आपको मेरी निम्न चार बातें माननी होंगी -

  1. खीचड़ लोग कभी मांस नहीं खाएँगे।
  2. पराई औरत को अपनी बहिन बेटी समझेंगे।
  3. किसी की झूठी गवाही नहीं देंगे।
  4. करार से बेकरार नहीं होंगे।

कोटवासन माता ने आश्वासन दिया कि खीचड़ लोग इन बातों को मानते रहेंगे तो मैं सदा उनकी रक्षा करती रहूँगी। फौज जो चढ़ आई है उससे मैं निबट लूँगी। तुम्हारे खाने के जो बर्तन हैं वे उनको दिखा देना, उसमें चावल-मूंग की खिचड़ी होगी। यह कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई।

नवाब की फौज थोड़ी दूर पर थी तब नवाब ने देखा कि यहाँ तो कोई 25-30 लोग रुके हैं। उसने मुले सिंह से पूछा कि वह बड़ा काफिला कहाँ जो तुम बता रहे थे। नवाब ने फौज को दूर ही रोक कर कुछ ही लोगों को साथ लेकर पड़ाव की तरफ गया और यहाँ रुके लोगों से पूछा तुम लोग कौन हो और कहाँ से आए हो?

दोनों परिवार के मुखिया सींघल और बीजल नवाब के समक्ष आए और बताया कि हम खीचड़ जाट हैं और अकाल के कारण दक्षिण की और जा रहे हैं । यहाँ पानी देख कर पड़ाव डाल दिया था। हमने कोई रेवड़ नहीं काटा है, जैसा आरोप लगाया जा रहा है। आपका रेवड़ भी पास के जंगल में चर रहा होगा। नवाब ने इन तथ्यों की पुष्टि की। देखा कि सभी बर्तनों में खिचड़ी पक रही है और पास के जंगल में रेवड़ भी चर रहा है। नवाब ने मुले सिंह से कहा कि ये भले आदमी लगते हैं । तुमने इनकी झूठी शिकायत की है। इसलिए तुम्हारे 12 गांवों में से एक गाँव इनको दे दो।

बजावा गाँव में बसना - मुले सिंह नवाब के सामने झूटा साबित हो चुका था। उसने सोचा कि बजावा गाँव में वर्षा नहीं होती है और अकाल पड़ता है। ये लोग अपने आप ही भविष्य में यह गाँव छोड़ कर चले जाएंगे। मेरी चौधर तब यथावत 12 गांवों में बनी रहेगी। इस प्रकार सिंघल व बीजल के परिवारों को बजावा गाँव बसने के लिए मिल गया। नवाब ने बजावा गाँव का पट्टा इनके नाम कर दिया। बरसात का मौसम आया परंतु बजावा में वर्षा नहीं हुई। कहते हैं खीचड़ जाटों ने कोटवासन माता को याद किया। कोटवासन माता के आशीर्वाद से बजावा में अच्छी वर्षा हुई। कहते हैं कि कोटवासन माता ने यह भी वरदान दिया कि बजावा में कभी अकाल नहीं पड़ेगा। ग्रामीण लोग बताते हैं कि यह परंपरा अभी भी कायम है, बजावा में कभी अकाल नहीं पड़ता।

मुलेसिंह बुगालिया से विवाद: सिंघल व बीजल के परिवार बजावा में काफी स्मृद्ध हो गए थे। दोनों भाई घोड़ों पर चढ़कर दूसरे गांवों में भी जाते रहते थे। रास्ते में मुले सिंह बुगालिया का गाँव भी पड़ता था। मुलेसिंह की बेटी देऊ की सगाई धेतरवाल जाटों में तय हुई थी। वह लड़की गाँव की औरतों के साथ कुएं पर पानी भरने जाती थी। इधर से कई गांवों के लोग गुजरते थे। एक दिन उसी रास्ते से दोनों भाई सींघल और बीजल घोड़ों पर गुजर रहे थे तब देऊ ने ताना मारा - "घोड़े वाले दोनों बदमास और लुच्चे हैं। रोज इस रास्ते मुझे उड़ाने के लिए फिरते हैं। आज ये फिर आ गए हैं।" ताना सुनकर दोनों भाई हक्के बक्के रह गए। दोनों भाईयों ने पनिहारिनों से पूछा कि यह ऐसा क्यों कह रही है। पनिहारिनों बताया कि यह ऐसा रोज ही कहती है कि इन्होने पहले मेरे पिता से बजावा गाँव छीना और अब मेरे को छीनना चाहते हैं। दोनों भाईयों ने कहा कि पहले तो ऐसा विचार नहीं था परंतु अब इस पर विचार करना पड़ेगा। दोनों भाईयों ने देऊ का हाथ पकड़ा और घोड़े पर बैठा कर ले गए। देऊ के पिता इस पर आग-बबूला हो गए। उसने बदला लेने के लिए देऊ के ससुराल वाले धेतरवाल जाटों की मदद लेने की सोची। धेतरवाल उस समय 18 गांवों के चौधरी थे। धेतरवाल जाटों को साथ लेकर मुले सिंह बुगालिया झुंझुणु नवाब से मिले। लड़की को वापस लाने के लिए नवाब की सहायता मांगी। नवाब को मुले सिंह की पहले की झूठी शिकायत याद थी। उसने सींघल और बीजल को बुलावा भिजवाया। अब दोनों भाई और परिवार के लोग सोच में पड़ गए। सभी ने सलाह मशवरा किया और इस नतीजे पर पहुंचे की बुगालिया लड़की वापस नहीं की जाएगी चाहे इसके लिए कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। अगले दिन दोनों भाई नवाब के समक्ष कचहरी में उपस्थित हुये और यथा स्थिति से नवाब को अवगत कराया। दोनों भाईयों ने बताया कि यह रोज हम पर झूठा आरोप लगाती थी तब हमने इसको घरवाली बनाने की सोचकर साथ ले आए। नवाब ने सौचा ये दोनों बहादुर हैं, कभी हमारे काम आ सकते हैं। नवाब के पूछने पर जवाब दिया कि वे अब इस लड़की को घरवाली बना चुके हैं किसी भी कीमत पर वापस नहीं करेंगे। नवाब ने एक लाख रुपये जुर्माना तय किया। दोनों भाईयों ने कुछ ही दिन में जुर्माना भर दिया

खीचड़ों की वंशावली: मुलेसिंह बुगालिया की बेटी देऊ बुगालिया सींघल की तीसरी पत्नी थी। इससे पहले सींघल की दो शादियाँ और हो चुकी थी। तीनों पत्नियों से परिवार की वृद्धि निम्नानुसार हुई:

सींघल की पहली पत्नी से मालाराम हुये जिसने मैणास गाँव बसाया। इनकी संताने मेंगरासी खीचड़ कहलाई।

सींघल की दूसरी पत्नी से महीधर हुये जिससे महला गोत्र बना। मईधर ने शीथल गाँव बसाया।

सींघल की तीसरी पत्नी देऊ बुगालिया से ढोलाराम नामक पुत्र पैदा हुआ जिसने ढोलास नामक गाँव बसाया। इनकी संताने ढोलरासी खीचड़ कहलाई।

इस प्रकार महलाखीचड़ एक ही बाप से पैदा होने के कारण दोनों गोत्रों में आपस में भाईचारा है।

सींघल की संतानों ने तीन गाँव मैणास, शीथल और ढोलास गाँव बसाये। बजावा इनका पैतृक गाँव था।

खीचड़ गोत्र के आगे की पीढ़ियों में कुमास गाँव बसाया जो सीकर जिले में है तथा यहाँ पर 4-5 हजार की संख्या में खीचड़ परिवार निवास करते हैं।

हरयाणा के सिरसा जिले में बाहिया गाँव है जहां 400 घर खीचड़ जाटों के हैं।

उपरोक्त में से ढोलाराम के परिवार के खीचड़ अपने आप को कुछ हीन समझते थे क्योंकि वे ब्याहता की संतान नहीं थे, उनकी माता को भगाकर लाया गया था। वे बाद में सारे के सारे बिशनोई संप्रदाय में शामिल हो गए। ये बिशनोई खीचड़ कहलाते हैं।

बछरारा के खीचड़ों की वंशावली

सती नेतू दादी और सती केसर दादी की मूर्तियाँ ग्राम बछरारा

सक्ती नेतू दादी का धाम बछरारा: विक्रम संवत 1817 (1761 ई.) फाल्गुन सुदी तीज को ग्राम बछरारा तहसील रतनगढ़, जिला चुरू राजस्थान में मोटाराम खीचड़ पुत्र हीरा राम की मृत्यु हो गई। उनकी धर्मपत्नी नेतू धेतरवाल जालेऊ गाँव की रहने वाली थी। वह मोटाराम खीचड़ के साथ 1761 ई. में सक्ती हो गई। सक्ती नेतू दादी का धाम बछरारा गाँव में स्थित है। फाल्गुन सुदी तीज को इस धाम पर चुनड़ी चढ़ाई जाती है।

केसर सक्ती दादी पूनिया गोत्र की थी और नारायणराम खीचड़ की पत्नी थी। वह कार्तिक सुदी तीज विक्रम संवत 1747 (=1680 ई.) को सक्ती हुई।

बछरारा से खीचड़ों का प्रस्थान: मालाराम जी के मैनास गाँव बसाने के 15 पीढ़ी बाद उनके वंशज ने बछरारा गाँव बसाया। बछरारा गाँव के खीचड़ गोत्र के कुछ परिवार गाँव ललाना (नोहर, हनुमानगढ़) में आकर बस गए। ललाना से पूर्णराम जी हुये जिनके एक ही लड़का कुसलाराम था। कुसलाराम के 4 पुत्र थे, जो खड़ियाल (तह:एलनाबाद, सिरसा) में कुछ समय रहे। घगगर नदी तब खुली बहती थी और बाढ़ आने पर गाँव डूबता था। तब उन्होने ऊंचाई पर नीमला गाँव (तह:एलनाबाद) बसाया।


ललाना (नोहर, हनुमानगढ़) के खीचड़: पूर्णराम के पुत्र कुसला राम तब ललाना (नोहर, हनुमानगढ़) में आ बसे थे। कुसला राम के एक ही लड़का हुया केसरराम। केसरराम के 4 पुत्र थे - (1) बखता राम (2) खेता राम, (3) तारू राम, (4) बींझा राम। चारों भाईयों की सन्तानें नीमला मसानिया आ गए। केसर राम जी के चार पुत्रों में से बड़े बखता राम सलेमगढ़ मसानी चले गए। इनमें से कुछ रामपुरिया, नीमला, टिब्बी आदि में बस गए। बखता राम संवत 1913 में गाँव मसानिया (बाद में यह सलेमगढ़ मसानी बना) आ गए। कुछ परिवार टिब्बी, झमर में बसे। वर्ष 1857 ई में बखताराम गाँव मसानिया में रहते थे। गजेटीर में इन 45 गाँव का नाम भी मसानिया अंकित था। वर्तमान सिरसा गज़ट के अनुसार भी यह गाँव मसानिया ही था। जो सिरसा खंड जिला हिसार में था। 45 गाँव अंग्रेजों को देने के बदले टिबबी क्षेत्र के 45 गाँव बीकानेर स्टेट को दिये गये।

बखता राम 1857 ई में मसानिया गाँव में बस्ते थे। बखताराम के पुत्र सुखा राम हुये। दूसरे पुत्र मोहक राम छोटी उम्र में ही फौत हो गए। सूखा राम के पुत्र हुये जीवन राम व जेठा राम। जेठा राम की सन्तानें नथवानिया गाँव चली गई, जहां इनका ननिहाल था। जीवन राम के पुत्र जेठा राम व नारायण राम हुये, जो नथवानिया गाँव में रहते हैं। नारायण राम के दो पुत्र हुये लूणा राम (जन्म:1943-मृत्यु:20.2.2004) (सलेमगढ़)।

लूणा राम के 3 पुत्र हुये 1. कृष्णकुमार - इनके पुत्र हुये आदित्य, 2. महेंद्र - इनके पुत्र हुये सुभाष, 3. ओमप्रकाश - इनके पुत्र हुये संदीप


सुल्तानपुरिया (सिरसा, हरयाणा) के खीचड़: चुहड़जी खीचड़ बछरारा की वंशावली में उनके पुत्र पेमाजी ने संवत 1854 (1797 ई.) में सोढ़ाण गाँव बसाया. पेमाजी का पुत्र इसराजी सुल्तानपुरिया (सिरसा, हरयाणा) चला गया.

ईसराजी के 4 पुत्र हुये 1. दौलाजी, 2. बीराम 3. गिधाजी 4. मानाजी

बीराम के 2 पुत्र हुये 1. ऊदाराम जी और 2. खेताजी

खेताजी संवत 1919 (1862 ई.) सुल्तानपुरिया (सिरसा, हरयाणा) गाँव में बसे

खेताजी के 2 पुत्र हुये 1. भागू 2. जेठा

भागू के पुत्र हुये 1. बेगा 2 भींवा

भींवा के पुत्र कासीराम हुये

कसीराम के पुत्र हुये 1. क़ृष्ण 2. भँवरलाल 3 सतपाल (करमगढ़, सिरसा)

जेठा के पुत्र हुये 1. पूसा और 2. नानू

नानू के पुत्र हुये 1. मनफूल 2. लादू राम 3.नीकूराम 4. रामकुवार

ईसराजी के 4थे पुत्र मानाजी के 5 पुत्र हुये 1. खरथा 2. रामो 3. डूंगर 4. नंदा 5. राम

खरथा के पुत्र हुये 1. बींजा और 2. खेमा

खेमा के पुत्र हुये 1 हुकमाजी 2. रेडोजी 3 भोमाजी 4. बालू 5. सोहन 6.भादरा

रेडोजी के यादराम हुये और यादराम के 1. कालूराम 2. महावीर और 3. दूदाराम हुये (नागरसरी, नोहर)

भोमाजी के पुत्र रामजीलाल और उनके पुत्र कालूराम (सरपंच) तथा मांगीराम हुये.

बालू के पुत्र हुये 1.हंसराज 2.देवी लाल और 3 ओमप्रकाश

सोहन के पुत्र हुये 1. धनराज 2. गोपी राम 3. दूलीचंद 4. रणजीत 5. संत लाल और 6. हीरा दत्त हुये

गोपीराम के पुत्र विजय खीचड़ (Mob: 9416162451) हुये.


कुड़छी के खीचड़: ये बछरारा गाँव से आए थे. जगमाल जी खीचड़ कुड़छी गाँव से सिद्धूों का पांचला गाँव गए. → उनके पुत्र पिथा राम → उनके पुत्र सांवलाराम → उनके पुत्र भागचंद → उनके पुत्र गोविंद बायतु चिमनजी गाँव में बसे. गोविंद के पुत्र जय राम → उनके दो पुत्र हुये: 1. लधा राम और 2. सेवाराम

लधा राम हेमजी का तला गाँव में बसा. लधा राम के पुत्र पुरखा राम हुये जिनके 2 पुत्र हुये: 1. रामाराम और 2. हेमाराम

रामा राम के पुत्र बीरमाराम और उनके 5 पुत्र हुये: 1. सोनाराम 2. गोरधन 3. डूंगरराम 4. मगाराम 5.लुम्भा

सोना के 2 पुत्र हुए- 1.मेहरा 2.हीरा

गोरधन के 2 पुत्र हुए- 1.आईदान 2.दौलाराम

आईदान के 3 पुत्र हुए- 1.लक्ष्मण 2.विक्रम 3.हरजी

दौला के 2 पुत्र हुए-1.प्रकाश 2.पुरूषोत्तम

डूंगरा के 1 पुत्र हुआ-1. खेता

मगाराम के 4 पुत्र हुए-1.स्वरूप 2.राजु 3.देवा 4.भैरा

लुम्भा के 2 पुत्र हुए-1.गणेश 2.चुना

सेवाराम के पुत्र 3 हुये: 1. करणाराम 2. सुराराम 3. सुरताराम

करणाराम के पुत्र हुये: 1. कुंभाराम 2. भीमाराम

कुंभाराम के पुत्र खेमाराम और उनके पुत्र रेखाराम हुये.

भीमाराम के पुत्र पदमाराम पदमाराम के 5 पुत्र हुए: 1. जुजाराम 2. मंगला राम 3. घुड़ाराम 4. प्रह्लाद और 5. चुनाराम

सुराराम के कोई संतान नहीं.

सुरताराम के 3 पुत्र 1. 1. नागरराम 2. देदाराम 3. कुशलाराम

नागरराम के पुत्र हुये मूलाराम उनके 3 पुत्र हुये: 1. मोहन सिंह 2. सत्ता राम 3. डॉ. जुझाराम

देदाराम के 4 पुत्र हुये: 1. गोरधन 2. खूमा राम 3. रूपा राम 4. नन्द राम

कुशलाराम के पुत्र नहीं

गोकुलपुरा (सीकर) के खीचड़ों का वंश वृक्ष

गोकुलपुरा (सीकर) के चौधरी दानवीर जी खीचड और सोहनलाल जी खीचड़ (मो:08432286167) ने बताया कि खीचड़ के 12 गाँव नवलगढ़ के पास हैं. जगमालपुरा गाँव में खीचड़ों का पुराना मंदिर है. जगमालपुरा गाँव और चैनपुरा दादिया में पुराना शिव मंदिर है. शुरू में सिधमुख से चलकर खीचड़ आये और सीकर के पास गोकुलपुरा में बसे. चौधरी डालूराम खीचड़ ने गोकुलपुरा से आकर देवीपुरा बसाया.

चौधरी डालूराम के पुत्र लालाराम देवीपुरा के चौधरी थे. जिनके 6 बेटे थे : 1. बक्साराम, 2.नाराराम, 3. दौलाराम, 4.देवाराम, 5. सीताराम और 6.…

2. नाराराम खीचड़ का बास में बसे. उनके 3 पुत्र थे: 1. नौलाराम 2. किसनाराम और 3. कुशलाराम

1.नौलाराम के पुत्र का नाम बुधा था. बुधा के 3 पुत्र हुए:
1. लखूराम 2. खेताराम 3. हणमानराम
लखूराम के 3 पुत्र हुए: 1.गोपीराम 2. चन्द्राराम 3. बिरदाराम
खेताराम के 4 पुत्र थे: 1. सुखदेव 2. दूदाराम 3. हीराराम और 4. लक्ष्मणराम
हणमानराम के 5 पुत्र हुए : 1. भगीरथ 2. जीवणराम 3. शंकर 4. रणमल और 5. किशोर
2. किसनाराम के 3 पुत्र हुए: 1. भैरूराम 2. डूंगाराम और 3. कुशलाराम
1.भैरूराम के 4 पुत्र हुए: 1. लखुराम 2. साराराम 3. मंगलाराम और 4. सुआराम
लखुराम के पुत्र रामदेव हुए
साराराम के पुत्र कानादेव हुए
मंगलाराम के पुत्र मूलचंद हुए
सुआराम के पुत्र लक्ष्मण हुए
2.डूंगाराम के 5 पुत्र हुए: 1.रेखाराम 2. रामप्रताप 3. भगवानाराम 4. भगीरथ और 5. मनसाराम
रेखाराम के पुत्र हुए: दानवीर जी
रामप्रताप के 4 पुत्र हुए: 1.हेमराज 2. तुलछीराम 3. हर चंद और 4. हरफूल
भगवानाराम के 6 पुत्र हुए: 1.दलीप 2. महावीर 3. बलबीर 4. भरतवीर 5. वासुदेव और 6. अश्विनी
भगीरथ के 2 पुत्र हुए: 1. मोहन और 2. बजरंग
मनसाराम के 3 पुत्र हुए: 1. लक्ष्मण 2. सोहन लाल और 3. रामकुमार
3.कुशलाराम के 2 पुत्र हुए: 1. गुमाना राम और 2. गोपीराम
गुमानाराम के 1 पुत्र हुए: 1. नारायण
गोपीराम के 3 पुत्र हुए: 1. भूराराम 2. हीराराम और 3. रामेश्वर

3. दौलाराम भी खीचड़ का बास में बसे. उनके 3 पुत्र थे: 1.लच्छाराम 2. जालूराम और 3. मानाराम

1. लच्छाराम के पुत्र हुए पन्नाराम. पन्नाराम के 2 पुत्र हुए 1. नरसाराम और 2. भूराराम
नरसाराम के पुत्र हुए मालाराम जिनके 2 पुत्र हुए 1. नाथू और 2. मंगेज
2. जालूराम के 2 पुत्र हुए: 1. भूराराम और 2. नरसाराम
भूराराम के 1 पुत्र हुए: 1. घीसाराम
घीसाराम के 6 पुत्र हुए: 1.मोहनराम 2. मूलचंद 3. बलबीर 4. पहलाद 5. हरचंद और 6. भगवानराम
नरसाराम के 4 पुत्र हुए: 1. हुकमाराम 2. बोदूराम 3. लालूराम और 4. हणताराम
3. मानाराम के 2 पुत्र हुए: 1.भींवाराम 2. गोविंदराम
भींवाराम के 3 पुत्र हुए: 1. किसनाराम 2. गोदूराम और 3. बोदूराम
गोविंदराम के 2 पुत्र हुए: 1. देवाराम और 2. आशाराम
देवाराम के 4 पुत्र हुए: 1.महावीर 2. रिछपाल 3. बनवारी और 4. शीशराम
आशाराम के 5 पुत्र हुए: 1.हेमचंद 2. मेवाराम 3. नानूराम 4. हीराराम और 5. गिरधारीराम

लोक देवता तेजाजी (1074-1103 ई.) के भाई रूपजीत (रूपजी) की पत्नी रतनाई (रतनी) खीचड़ गोत्र की थी।

संत श्री कान्हाराम[17] ने लिखा है कि....खरनाल के धौलिया गोत्र के भाट भैरूराम की पोथी में तेजाजी के भाईयों के नाम और भाभियाँ निम्नानुसार थे –

  • 1. रूपजीत (रूपजी) ... पत्नी रतनाई (रतनी) खीचड़
  • 2. रणजीत (रणजी)...पत्नी शेरां टांडी
  • 3. गुणराज (गुणजी) ....पत्नी रीतां भाम्भू
  • 4. महेशजी ...पत्नी राजां बसवाणी
  • 5. नगराज (नगजी)....पत्नी माया बटियासर

रूपजी की पीढ़ियाँ - .... 1. दोवड़सी 2. जस्साराम 3. शेराराम 4. अरसजी 5. सुवाराम 6 मेवाराम 7. हरपालजी

विश्नोई खीचड़

राम कृष्ण विश्नोई ने निम्न जानकारी उपलब्ध कराई है:

गोत्र कुनबे की पहचान है गुरुर है जज्बा है। ओर अक्सर हम अपने कुनबे की पहचान को ट्रेक्टर ट्रॉली, ट्रक , घर के दरवाजो पर लिखते हैं। क्योंकि ये पहचान है।

हम जट्ट आज भले ही अलग अलग मजहब,पँथ, धर्म, सप्रदाय में बंटकर जट्ट बिश्नोई, जट्ट सिख, बौद्ध जाट, वैदिक जाट, मुस्लिम जट्ट में बदल गए हो लेकिन हमारा सरनेम "गोत्र" आज भी हमारे कुनबे हमारे कबीलाई हमारी सभ्यता की पहचान है। दुनिया में हर एक व्यक्ति का एक सरनेम जरूर होता है जिससे उसकी कुनबे उसके कबीले की पहचान होती हैं । सरनेम पर सबसे बड़ी मार अरब देशों और एशिया देशों पर पड़ी । यहा अलग अलग धर्मों ने अपना अपना हथौड़ा सरनेम पर खूब चलाया , इस्लामिक देशों में तकरीबन बड़ी आबादी ने अपना सरनेम धर्मिक शब्दों से शुरू कर दिया । पाकिस्तान में हम सबकी सरनेम वाले लोग है तरड़, रंधावा, चीमा, संधू, बाजवा, बुट्टर, मगर आपको उनके नाम के पीछे अहमद , मोहम्द या खान लिखा मिलेगा ।

धर्म को मानना बुरी बात नही , कोई अच्छा सिखाए तो सीख लेना चाहिए मगर अपनी जड़ को नही छोड़ना चाहिए , कम से कम हमें गोरों से ही सीख लेना चाहिये कि गोत्र यानी सरनेम का क्या महत्व है , इतना विकसित होने पर भी अगर वो सरनेम नही छोड़ रहे तो कोई तो बात इसमें जरूर होगी । आज मैं चाहे एक दिन में चार धर्म बदल लू मगर रहूंगा "खीचड़" ही, मैं किसी भी धर्म मे रहूं "खीचड़" सरनेम में पैदा हुआ हुआ हूं तो मरूंगा भी इसमे , दुनिया की कोई ताकत इस सरनेम को नही बदल सकती ।

मेरे पुरखे जोधपुर जिले (थार रेगिस्तान) के पिलवा, लोहावट से अकाल के कारण प्रवासित हुए ओर रायसिंहनगर के पास बसे। मेरे बापू के लरदादा जी रिमझाराम जी के बेटे मेरे परदादा 5 भाई थे जिनमें से एक लोहगढ़, लुनेवाला, भौमपुरा, 11 TK में बस गए और खेती करने लगे। जिनमे से मेरे पुरखे 11 TK से थे मेरे परदादा श्री गंगाबिशन जी खीचड़ जिनका ससुराल हरियाणा के चौटाला गांव में था "सहु" गोत्रों के था तो एक बार बापू से ही पूछा कि अपने दादा जी का नानका किन गोत्रों के था तो उन्होंन "सहु (Sahu)" बताया । धन्यवाद बहुत बहुत Facebook आपका। जिसके द्वारा मैं आज अपने वजूद अपने पुरखों के अतीत से रूबरू हो पाया। विभाजन के दौरान पुराने चरखों, बैलगाड़ियों के गाड़े, मांजे, देख पाया।

वर्तमान में फेसबुक के माध्यम से ही मैं विष्णु साहू Vishnu Sahu जी से जुड़े ओर बातचीत हुई तो वापिस अपने अतीत के वर्तमान इतिहास से जुड़ पाए। आज सुबह ही विष्णु साहू जी से बापू जी को सन्देश मिला कि उनके दादी जी का 106 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया जो मेरे परदादा गंगाबिशन जी की धर्मपत्नी के पीहर गांव चौटाला से परदादी के भाई बीरू राम जी की धर्मपत्नि थे। तो इस प्रकार चौटाला गांव में जाना हुआ। पास मे ही अबूबशहर गांव है जहाँ मेरी नानी का "धायल" गोत्रों के नानका था और मेरे लिए तो बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी थी कि मेरी "माँ" का जन्म भी यही हुआ । यह जानकर खुशी भी हुई कि हमारे जुड़ाव बहुत मजबूत है आज भी। बस एक कोशिश है करो अपनो को ढूंढने की । नानी मेरी "धारणिया" गोत्र से थी जिनका परिवार भारत विभाजन के दौरान "गांव कर्डवाली" में बस गया उनकी जोड़किया गांव मेरे नाना "बुधराम ज्याणी" से शादी हुई।

अभी कुछ ही माह पहले मैं एक हॉस्पिटल में काम से गया था जहाँ एक 102 वर्ष के बुजुर्ग से मिलना हुआ। वे वहाँ दीवार पर लिखी कुछ पंक्तियों को पढ़ रहे थे। मैं कुछ समय बात किया और पूछ लिया कि आप कितने पढ़े लिखे हो तो उन्होंने बताया वे स्कूल नही गए हां अक्षरों का ज्ञान है तो जोड़कर अनुभव से पढ़ लेते है। उन्होंने बातों ही बातों में पूछा कि मेरा गांव कहा है तो मैने मेरा नानक बताया क्योंकि वे मेरे नानके से 40 किलोमीटर से थे तो । मैने उनकी आयु के हिसाब से मेरे माँ के दादा ओर परदादा का नाम बताया तो उन्होंने पहचान लिया । दरअसल वे बुजुर्ग मेरे मॉ के दादा के मौसी बेटे भाई थे जो जांगू गोत्र से थे। और पीछे से पास ही के गांव बहवलनगर पाकिस्तान से थे विभाजन के दौरान वे भारत मे खेती करने लगे। और 102 वर्षीय बुर्जुग जो मेरे परनाना के मौसी बेटे भाई के पौते Rakesh Jangu Journalist जी जिनको में भैया भैया बुलाता था वो मेरे मामा निकले ।

इस प्रकार हमारा सरनेम हमे जोड़े रखता है। हां, भले ही आज हमारी आपसी मतभेद, कट्टर धार्मिकता , वाद विवाद, जमीन की रंजिश , राजनीति ने हमे एक दूसरे से दूर कर दिया हो लेकिन हमें कुछ समय के लिए इन सभी मुद्दों को दरकिनार कर अपने अतीत के पुरखो, अपनी जड़ (गोत्र इतिहास) बेमिसाल कार्यो जो हमारे जट्ट पुरखो द्वारा किये गए है उन पर सोचना चाहिए। परम्परागत रूप में जटो में के स्वभाव दो ही तरह के होते है एक वक़्त में बेहद ठंडा होता है और क्या पता दूसरे पल वो बेहद गुस्से में आ जाए वो बीच का कुछ नही होता अगर जट्ट ठंडा है तो चाहे कोई कितना भी नुकसान कर जाए वो कुछ नही कहेगा अगर जट्ट कोई गुस्सा आ जाये तो क्या पता किसी को अपनी डोल (वट) से किसी को भी ना गुजरने दे और अकेला कई से भीड़ जाए जट्ट इन्हें गुणों के कारण अक्सर चालाक लोग जट्ट हनुमान बना देते है और बेगानी लड़ाई में जट्ट अपनी पूछ जला लेता है। बाकि वर्तमान में सँभलना चाहिए ।भविष्य की ओर नजर दौड़ाओ साधन संसाधन जुटाओ ,आगे बढ़ो अपनी विरासत को धूमिल मत होने दो। ये जो गुरुर है अपनी नस्लो को सौंपकर जाना है। तो उन्हें आर्थिक ,शैंक्षणिक,सामाजिक मजबूती से जोड़ना होगा । मुझे गर्व है मैं ऐसी बेमिसाल नस्ल का हिस्सा हूँ ,आधी से ज्यादा धरती कहती है में इस नस्ल का किस्सा हूँ ।मैं भी यही चाहता हूँ एक नजर हम सभी अपनी मजबूती पर टिकाए रखे ।जो अपवाद हमे नुकसान दे रहे है। उनके समाधान के प्रयास किये जाने चाहिए ।

खीचड़ों की धरोहर - छतरी सादुल शहर, गंगानगर

सादुल शहर, गंगानगर में वर्ष 1946 में चौधरी दुलाराम खीचड़ ने अपनी माता स्व. श्रीमती कसवीदेवी व पिता चौधरी स्व. शेराराम खीचड़ एवं दादी स्व. श्रीमती रेवड़ीदेवी व दादा चौधरी सिंबूराम खीचड़ की स्मृति में निर्मित छतरी

पुरखों की धरोहर को संभालना वंशजों का धर्म है - एडवोकेट संजीव खीचड़

स्‍व. चौधरी औमप्रकाश खीचड की द्वितीय पुण्यतिथि पर सादुल शहर के संस्थापक पूर्वजों की छतरी का जीर्णोद्धार

अतीत से वर्तमान की ओर की पहली किस्त

हुकमपुरा की पावन धरा से: किसी भी गांव या कस्बे की पहचान उसके नाम से होती है। वर्तमान सादुल शहर कस्बा पहले हुकमपुरा के नाम से जाना जाता था जिसकी स्थापना खिचड़ जाटों द्वारा की थी। सादुल शहर आज उपखंड कार्यालय है एवं विधानसभा क्षेत्र के रूप में मुख्यालय स्थापित किए हुए है। इसके स्थापना के समय से इतिहास पर एक नजर डाली जाए तो हम पाते हैं कि इसने न सिर्फ अपने कई नाम बदले हैं बल्कि इसने मुगलों (हुमायूं) एवं राजपूतों का राजतंत्र, अंग्रेजों का अप्रत्यक्ष राज और लोकतंत्र का वर्तमान राज भी देखा है। बीकानेर रियासत के महाराज सरदार सिंह (1851-1872 ई.) के हुक्म से बीकानेर रियासत के ही अधीन चूरु जिले के जांदुआ गांव के इनामी खीचड़ परिवार के चौधरी पेमाराम खीचड़ व चौधरी पन्नाराम खीचड़ के वंशज चौधरी शम्भु राम खीचड़ ने विक्रमी संवत 1911 (1854 ई.) की वैशाख सुद्धी पूर्णिमा के दिन अपने निकट के रिश्तेदार चौधरी मानाराम सारण के साथ वर्तमान सादुल शहर में ठाकुर जी का मंदिर सहारन बास में रखी थी।

उल्लेखनीय है कि जांदुआ गांव के उक्त परिवार ने विक्रमी संवत 1871 (1814 ई.) में बीकानेर रियासत व चूरू ठिकाने के मध्य हुए युद्ध में बीकानेर राजघराने की सहायता की थी। इस जंग में अपने युद्धकला के कौशल एवम वीरता से लड़ने के कारण बीकानेर रियासत को विजय श्री दिलवाने पर बीकानेर दरबार द्वारा इस परिवार को इनाम दिया गया व इस परिवार को इनामी खीचड़ परिवार कहा जाने लगा।

इस इलाके को पंजाब की सीमा रेखा पर स्थित होने के कारण बीकानेर रियासत के राजस्‍व अभिलेखों में गदा कहा जाता था। बीकानेर रियासत में उस समय चने की फसल बहुतायत में होती थी। चौधरी सिंबू राम अपने गांव जांदुआ से व्यापार के सिलसिले में इस रास्ते से होकर पंजाब ऊंटों पर जाया करते थे। पूर्व में एक बार जाते हुए उन्होंने अपने साथ लाए चनों को इस धरती पर वर्षा काल से पहले बिखेर दिया था। वापसी में यहां फसल उगी देखकर उन्होंने इस भूमि की महत्ता को ध्यान में रखा और बीकानेर रियासत का हुक्म होने पर इसे अपनी कर्म स्थान बनाया।

इस स्‍थान पर बसने से पहले चौधरी शीभूराम ने वर्तमान प्रतापुपरा के पास एक जौहडी खुदवाकर वहा अपना अस्‍थाई निवास स्‍थान बनाया और सफेद झंडा लगाकर इस इलाके मे नई बसावट का सदेंश दिया। यह जौहडी आज भी शीभू की जौहडी के नाम से ग्रामीण इलाके में जानी जाती है । हुकमपुरा गांव के बसने के समय सहारण परिवार ठाकूर जी के मंदिर के सामने झौंंपडा बनाकर रहा। खीचड परिवार ठाकूर जी के मंदिर के उत्‍तर दिशा में रहा था जहांं आज चौधरी श्‍योलाल कडवासरा परिवार का मकान हैा कालांतर में आबादी बढने पर हुकमपुरा का दायरा भी बढता गया। कहते हैं कि बीकानेर रियासत ने उक्त भूमि, जिसमें 9000 बीघा का रकबा था, 700 सिक्कों के बदले प्रदान की थी। चौधरी सिंबू राम की पत्नी श्रीमती रेवड़ी देवी चौधरी मानाराम सहारण के परिवार से थी। चौधरी मानाराम का परिवार चूरू जिले के सरदारशहर कस्‍बे से 45 किमी दूर डूगरगढ रोड पर बनडाउ गांव के निवासी थे। चौधरी शीभूराम की शादी इसी परिवार मे रेवडी देवी से हुई थी। हुक्‍मपुरा बसाने के समय चौधरी शीभूराम के साथ उनकी धर्म‍पत्नि रेवडी देवी भी मौजूद थी अतः दोनों ही परिवारों ने उक्त भूमि पर बसावट का निर्णय लिया। चौधरी सिंबू राम के साथ उनके छोटे भाई चौधरी अमराराम खीचड़ के बेटे चौधरी सेवु राम भी कालांतर में इस परिवार के पास आकर बस गए क्योंकि बीकानेर रियासत के हुक्म से यहां बसने की इन परिवारों को इजाजत मिली थी। अतः इसी कारण इस कस्बे का नाम उस समय हुकमपुरा रखा गया इस कस्बे के साथ-साथ पंजाब सीमा पर स्थित पतली एवं पंजाब में स्थित भंगर गांव का रकबा भी इन परिवारों के अधीन था जो कालांतर में सरदारों को बेचान कर दिया गया। इस दौरान यहां पीने के पानी की व्यवस्था हेतु एक कुआं खुदवाया गया। कहा जाता है कि यह कुआं बावरी जाति के लोगों ने खोदा था जो इस कार्य में निपुण होते थे।

पशु संपदा मुख्य धनसंपदा थी: अब से लगभग 169 से 170 साल पहले की बात करें तो उस समय पशु-पदा ही मुख्य धनसंपदा होती थी और उनकी सार संभाल और सुरक्षा हेतु कस्बे में अधिक से अधिक मानव शक्ति का होना आवश्यक होता था। लुटेरों का इतना आतंक होता था कि वह रात को पशुधन चुरा कर ले जाते थे। सहारण एवं खीचड़ दोनों आपस में रिश्तेदार थे और दोनों ही अपने समय के मशहूर लड़ाके थे। अतः इस इलाके में इन लुटेरों का आतंक ज्यादा नहीं फैल पाया। इस दौरान चौधरी शीभूराम खीचड ने गाँव में झोरड, रेवाड, पूनिया, सिहाग, खैरवा, भाखर आदि जाटों को और कारीगर, नाई, ब्रहामण, आदि अन्य जातियों को यहां पर बसाने का काम किया।

हुकमपुरा से मटीली का सफर : जैसे-जैसे इन परिवारों में आबादी बढ़ती गई कहा जाता है कि पशु-धन संपदा एवं जमीनों के बंटवारे को लेकर मालिकाना हक को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई अतः चौधरी सिंबू राम के साढू चौधरी नत्थू राम जाखड़, जो घमुडवाली गांव के थे , ने दोनों परिवारों में पशुधन संपदा एवं जमीन का बंटवारा बराबर-बराबर कर दिया। जिससे वर्तमान संदर्भ में देखा जाए तो गुरुद्वारा सिंह सभा के पीछे वाली गली जो राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल की स्टेडियम से होकर घोड़ा चौक नहरी कॉलोनी तक जाती है के पूर्व दिशा में सहारणवास व पश्चिम दिशा में खीचड़ान बास अस्तित्व में आया। सहारणवास के पूर्व दिशा मे कलांतर में मण्‍डी कटने से मटीली सहारनान भी कहा जाने लगा, जबकि तमाम सरकारी महकमे जैसे पटवारघर, राजकुआ, पुलिस चौकी आदि खीचडान बास की जमीन में स्थित होने एवम खीचड परिवार से राज दरबार का लगाव होने से राजस्‍व रिकार्ड में मटीली खीचडान कहलाने लगी।

बीकानेर दरबार एवं खीचड़ परिवार: बीकानेर दरबार में महाराज सरदार सिंह के समय से खीचड़ परिवार के तालुकात थे जो महाराज सरदार सिंह के बाद बने महाराज डूंगर सिंह (1872 से 1887) और उनके बाद उनके छोटे भाई महाराज गंगा सिंह (1887 से 1943 ) व महाराजा गंगा सिंह के बाद महाराजा सार्दुल सिंह (1943 से आजादी तक) अनवरत बने रहे है।

छप्पनिया अकाल (1899 ईस्वी 1900 ईसवी) और खीचड़ परिवार का सहयोग: महाराजा गंगा सिंह जब भी इस इलाके में अपने निजी एवं राजकीय प्रवास पर आते तो चौधरी सिंबू राम के बेटे चौधरी शेरा राम खीचड़ एवं कालांतर में उनके बेटे चौधरी दुलाराम खीचड़ के आवास पर दरबार का आयोजन होता। इस आयोजन का सारा प्रबंध चौधरी शेरा राम और बाद में चौधरी दुलाराम खीचड़ करते थे।

महाराजा गंगा सिंह का दरबार इलाके की सुख सुविधाओं के संबंध में अपील से भरा होता था। वहीं न्याय हेतु भी लोग इस दरबार में उपस्थित होते थे। चौधरी दुलाराम के निवेदन पर यहां रेल लाइन का निर्माण, राजकुआ का निर्माण, पटवार घर, सन 1932 में व्यापार विस्तार हेतु मंडी निर्माण की स्वीकृति आदि अनेक जनहित के कार्य मंजूर हुए।

छप्पनिया अकाल के समय जब लोग-बाग भूख और बीमारी से मर रहे थे और कस्बे को छोड़कर अनंतर पलायन हेतु तैयारी कर रहे थे तब चौधरी दुलाराम अपने नेक स्वभाव एवं महाराजा गंगा सिंह के जनहित कार्यों के अनुकरण में एक बड़े समाज सेवक बनकर सामने आए। भूखे को अन्न, प्यासे को पानी, गरीब कन्याओं की शादी में सहयोग, जमीनों के मामलों को माफ करना एवं रहन रखी गई भूमि को लिखे गए स्टांप पेपर पर छेद करके उनको मुक्त करने का साहसिक कार्य किया। चौधरी दुलाराम खीचड़ ने आमजन से यह निवेदन किया कि आपको सब प्रकार की सुविधाएं, जो जीवन यापन के लिए न्यूनतम स्तर पर आवश्यक है, उपलब्ध होंगी भले ही मुझे इसके लिए कितना भी खजाना लगाना पड़े पर आप लोग इस इलाके को छोड़कर अन्‍यतर नहीं जाएंगे। जिसका प्रभाव यह पड़ा कि और लोगों को यह विश्वास हो गया कि यह इलाका उनके लिए सुरक्षित है। महाराजा गंगा सिंह छप्पनिया अकाल में इस इलाके में गांव-गांव यह देखने जाते थे कि उनकी प्रजा में कोई बीमार और भूखा तो नहीं है। ऐसे जननायक महाराजा गंगा सिंह का स्नेह है, इस इलाके पर उनके जीवन पर्यंत रहा। कालांतर में महाराजा शार्दुल सिंह ने भी खीचड़ परिवार से अपने पूर्वजों के संबंध को बनाए रखा।

पाग, सोने का कड़ा और चांदी की छड़ी का सम्मान : महाराजा सार्दुल सिंह द्वारा सोने का कड़ा, चांदी की छड़ी और पाग (पगडी) का सम्मान चौधरी दुलाराम को वर्ष 1946 में मटीली पधार कर दरबार का आयोजन करके दिया गया।

महाराजा के सम्मान में मटीली का नाम बदलकर सार्दुल शहर: महाराजा सार्दुल सिंह द्वारा चौधरी दुलाराम खीचड़ का मान सम्मान करने पर मटीली का नाम महाराजा सार्दुल सिंह के सम्मान में शार्दुल शहर कर दिया गया जो कालांतर में सादुल शहर कहलाने लगा।

ऐतिहासिक छतरी का निर्माण 1946: चौधरी दुलाराम खीचड़ ने अपनी माता स्वर्गीय श्रीमती कसवी देवी व अपने पिता चौधरी स्वर्गीय शेरा राम खीचड़ एवं दादी स्वर्गीय श्रीमती रेवड़ी देवी व दादा चौधरी सिंबू राम खीचड़ की स्मृति में उक्त छतरी के निर्माण की अनुमति महाराजा सार्दुल सिंह से मांगी। जिस पर महाराज बीकानेर ने बीकानेर से कारीगरों का एक दल इस कार्य हेतु भेजा। जिन्होंने अपनी उन्नत कला से उक्त छतरी जो सादुल शहर की धरोहर है, का निर्माण किया। उस समय इस कार्य पर ₹6000 खर्च आया था। बारीक एवं पक्की इंटों से निर्मित इस छतरी के मुख्य गुंबद पर सोने का छत्र एवं चारों कोणों पर चांदी के छत्र लगाए गए। बारीक नक्काशी का कार्य किया गया जिसकी चमक आज भी कायम है। वर्ष 2013 में चौधरी सिंबू राम खीचड़ के वंशज एडवोकेट संजीव खीचड़ द्वारा पहल करने पर इसका पहली बार जीर्णोद्धार किया गया और वर्तमान में इनकी माता श्रीमती विमला देवी खीचड़ ने अपने पति स्वर्गीय चौधरी ओम प्रकाश खीचड़ की द्वितीय पुण्यतिथि पर इसका जीर्णोद्धार करवा कर सादुल शहर की इस धरोहर को संरक्षित किया है। वर्तमान में यह धरोहर स्थापत्य कला एवं पुरानी विरासत को संभाल कर रखने का उन्नत उदाहरण है। वार्ड नंबर 2 में एडवोकेट संजीव खीचड़ के आवास पर 28 सितंबर 2022 को प्रातः 8:30 पर उनके पिता स्वर्गीय चौधरी ओम प्रकाश खीचड़ की द्वितीय पुण्यतिथि पर धार्मिक कार्यक्रम - सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया गया, तत्पश्चात 11:00 बजे हवन एवं उसके पश्चात इस छतरी का लोकार्पण पार्षद एडवोकेट संजीव खीचड़ व अजय खीचड़ की माता श्रीमती विमला देवी खीचड़ अपने कर कमलों से किया।

चौधरी शम्भुराम खीचड़ की वंशावली -

....शेष भाग दूसरी किस्त में जल्द ही

सकंलन एवम प्रस्‍तुतिकरण - प्रदीप झोरड, सादुलशहर

मोबाईल नम्‍बर 9414512548

Distribution in Rajasthan

Locations in Jaipur city

Ambabari, Harmara, Jhotwara, Murlipura Scheme, Malviya Nagar, Vaishali Nagar, Narayan Nagar, Shastri Nagar, Tonk Road, Vidyadhar Nagar,

Villages in Jaipur district

Deopura Dudu,

Villages in Sikar district

Badhadar, Badwasi, Bairas, Banuda (250), Bathot, Bhadwasi, Bheema, Bhojdesar, Bhuma Bada, Bhuma , Bidsar, Chachiwad Bara, Dadia, Dasa Ki Dhani, Dhandhan (1), Dujod, Fagalwa, Fatehpur, Gokulpura, Gunathu, Jakhal, Jakhala, Jhilmil, Katrathal, Khichar Ka Bas, Khichar Ki Dhani, Khud, Kirdoli, Lami Ki Dhani (Banuda), Laxmangarh, Losal, Mailasi (30), Majipura (Palsana), Nagal Ki Dhani, Nani, Narsara, Piploda Ka Bas, Sanwloda Purohitan, Sarwari[18], Sewa, Sikar, Sutot, Swami Ki Dhani, Tarpura, Tipania Ki Dhani,

Villages in Churu district

Following are villages of Khichar gotra in Churu district with number of families:

Abasar[19], Bheemsana, Bhojasar (5), Chalkoi Kheenchran, Chhapar Churu (8), Chhajusar Churu (80), Ghanghu (), Hansiyawas Rajgarh, Hardesar (4), Jandwa (250), Kalyansar, Kanoota, Khudera (5), Ladariya, Mailasi, Mainasar, Maulisar (15), Mundra (10) Juharpura (15), Sandan, Sanali Chhoti (20), Sardarshahar, Sujangarh (45), Tidiyasar (3),

Villages in Jhunjhunu district

Anandpura, Bajla, Bajawa, Bakra, Barwasi, Delsar Khurd, Dulipura, Kant Jhunjhunu, Kamalsar, Khicharon Ki Dhani (Nawaldi), Khichron Ka Bas, Kumawas, Nawalgarh, Neta Ki Dhani (Jhunjhunu), Niwai Jhunjhunu, Ranasar, Siriyasar Khurd,

Villages in Nagaur district

Acheena, Aspura, Barbata, Boseri, Jaswant Garh, Jathera, Madhaniyon Ki Dhani, Kalwa, Netiyas, Nimbi Jodhan (1000), Panchori, Surpaliya, Ugarpura,

Villages in Jodhpur district

Dhanari Kalan, Ekalkhori, Lawera Kalan (7),

Villages in Ganganagar district

Chhapanwali, Kupli, Sadulshahar,

Villages in Hanumangarh district

3 Rwd, Chaiya, Ghotra Khalsa, Kanwarpura Bhadra, Khichadanwali, Lalana, Makkasar, Matili (20), Mahiyanwali, Nagrasari, Nathwania, Nimla Nohar, Pacca Saharana, Ramgarh, Ramgarh Ujjalwas, Rampuriya Hanumangarh, Rampura Urf Ramsara, Rorawali, Nathwana, Tibbi Hanumangarh, Tidiyasar (50),

Villages in Tonk district

Naaner (1),

Villages in Barmer district

Bayatu Chimanji, Isrol (30), Hemji Ka Tala, Kheecharo Ka Was, Kurchhi, Panchla Siddha, Ratasar, Tankeliyasr,

Villages in Bikaner district

Bandhala, Bilniyasar, Kuchor Aguni,

Villages in Pali district

Alawas, Jhujanda,

Distribution in Haryana

Villages in Sirsa district

Ali Mohammad, Bahia Sirsa (400), Dhukara, Neemla Ellenabad, Sultanpuria,

Villages in Hisar district

Bandaheri Hisar, Kharia Hisar, Salemgarh,

Villages in Fatehabad district

Tibbi,

Villages in Jind district

Karamgarh,

Villages in Bhiwani district

Bisalwas,

Distribution in Uttar Pradesh

Villages in Agra district

Khicharpura is a village in Bah tahsil of Agra district in Uttar Pradesh.

Villages in Rampur district

Khandi Khera (8),

Distribution in Madhya Pradesh

Villages in Ratlam district

Panched is a notable village of Khichar jats. Villages in Ratlam district with population of this gotra are:

Badauda 2, Bangrod 1, Bilpank 1, Dantodiya 3, Delanpur 1, Dhaturiya 1, Dhaunswas 1, Dheekwa 1, Ghatwas 3, Kanchan khedi 2, Kanser 1, Madhopur Ratlam, Madhopura 1, Mundari 1, Namli 13, Narayangarh sailana 2, Negarda 2, Panched 150, Panchewa 2, Ramgarh sailana 9, Rupa kheda 1, Sikhedi 1, Surana 2,

Villages in Harda district

Nandara,

Villages in Badwani district

Madgaon

Villages in Shajapur district

Magraniya[20]

Villages in Shivpuri district

Shivpuri,

Villages in Dewas district

Dabri Dewas

Villages in Dhar district

Kanvan Dhar,

Villages in Ujjain district

Beriyakhedi,

Notable persons

  • Arjun Singh Choudhary (Khichar) - RPS Addl. SP (Retd.), Date of Birth : 1-January-1929, VILL.- Bhojdesar , teh. Fatehpur, distt.- Sikar, Rajasthan,Present Address:A-10, Subhash Nagar,Shastri Nagar,Jaipur, Phone Number : 0141-2280444, Mob: 9414361610
  • Mr. Wazir Singh Khicher - Excise & Tax Officer Excise & Taxation, Faridabad, 321, Sector-14 Faridabad, Haryana, 0129-2297931, 0129-2290991. Haryana (PP-904)
  • Ravindra Singh Khichar Vpo.Gokulpura .Sikar.Rajasthan Progressive Farmer And Social Worker
  • Choudhary Sitaram ji Khichar Gokulpura Former Pardhan Panchayat Samiti Piprali Sikar
  • Prabodh Khichar - From Khichadon Ki Dhani (Bachharara), Ratangarh tehsil, Churu district in Rajasthan. Mob: 9414079295, Presently at Fatehpur (Sikar), Earth Movers. He has got information about the Khichar clan. Email: prabodhkumar9594@gmail.com
  • Birma Ram Khichar (बिरमाराम खीचड़) from Chachiwad Bara, Fatehpur, Sikar, Rajasthan, was a freedom fighter and social worker, who played an important role in the abolition of Jagirs in Shekhawati region of Rajasthan.
  • Vijay Khichar - Mob: 9416162451, from Sultanpuria, Rania tahsil, District Sirsa in Haryana
  • Kalu Ram Khichar - Sarpanch, from Sultanpuria, Rania tahsil, District Sirsa in Haryana
  • Vivek Khichar - From Bachharara, Ratangarh tehsil, Churu district in Rajasthan is software Engineer in Multinational Co.
  • Major Pawan Kumar Khichar, from Hansiyawas, Churu, Rajasthan, was awarded with Shaurya Chakra for his act of bravery in killing terrorist in September 2017 at Shrinagar.
  • Priyanka Khichar : प्रियंका खीचड़ - जिला स्तरीय स्वाधीनता समारोह के मुख्य कार्यक्रम में कोरिया में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली राष्ट्रपति अवार्ड विजेता प्रियंका खीचड़ को माननीय राज्य मंत्री राजस्थान सरकार राजकुमार रिणवा जिला कलेक्टर दिनेश कुमार यादव ने स्मृति चिन्ह व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया प्रियंका खीचड़ ने गांव, समाज व जिले का नाम रोशन किया. प्रियंका के पिताजी का नाम महावीर खीचड़ गांव सियासर खुर्द पोस्ट शेखसर जिला झुंझुनू. प्रियंका खीचड़ ने स्काउट गाइड में कोरिया देश में इंडियन दल का प्रतिनिधित्व किया था (न्यूज़ झुंझुनू)
  • Kailash Chandra Khichar (Bishnoi) : IPS (2007)
  • Sant Sukhdas Baba (Khichar) was born in village Kirdoli of Dhod tahsil in Sikar district Rajasthan.
  • Ankita Chaudhary (Khichar): मेजर अंकिता चौधरी ने भागीरथी पहाड़ियों में 5797 मीटर की ऊंचाई पर योगासन कर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवाया है।
  • Magan Chand Khichar (15.8.1932-3.9.1965), from village Bakra, district Jhunjhunu, Rajasthan, became martyr on 3.9.1965 during Indo-Pak War-1965 fighting bravely with the enemies.
  • Chuna Ram Khicar (1912 -1989) was from village Gunathoo, tahsil and district Sikar, Rajasthan. He had joined the army of Jaipur state on 4/1/1931 and took part in many international wars fighting for British India. He was awarded with African Star Medal, Italy Star Medal, Defender Star Medal etc for his acts of bravery in these wars.
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  • Nikar Khichar Indian Administrative Service (IAS) 2020 from Kumawas (Khichran) village, Nawalgarh, District-Jhunjhunu
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  • Pradeep Kumar Khichar is an Industrial Engineer and presently posted at Technical Secretariat of CMD, Northern Coalfields Limited (NCL), a subsidiary of Coal India Limited. He is from village Bahia in Sirsa district of Haryana.
  • Vikram Singh Khichar - s/o Kesar Singh Khichar, Khichron Ki Dhani, Banuda, Sikar.
  • Vikram Singh Khichar - s/o Kesar Singh Khichar, Khichron Ki Dhani, Banuda, Sikar. जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में से एक “कैनेडियन जियोटेक्निकल जर्नल” में पीएचडी के दौरान विकसित एक नवीन तकनीक पर डॉ विक्रम सिंह का शोध पत्र प्रकाशित हुआ है। "मानव कल्याण हेतु शोध और आविष्कार के क्षेत्र में निरंतर अथक प्रयत्नशील रहो"। डॉक्टर विक्रम सिंह को विशिष्ट सेवा (engineering research) के क्षेत्र में नये कृतित्व को अंजाम देकर सम्पूर्ण समाज की गति विकसित करने के लिए श्री रामेश्वर डूडी पूर्व नेता प्रतिपक्ष एवं डॉ मनोज कुड़ी प्राचार्य गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज बीकानेर द्वारा सम्मानित किया गया [23]
  • आर्यन खीचड s/o सावंरमल खीचड माजीपुरा, सीकर, ने इतिहास रचकर खीचड कुल का नाम रौशन किया| गेट पिरक्षा 2023 में आल इंडिया टोपर रहा है|
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  • Khubi Ram Khichar (Captain) (1909-01.06.1993) was born at Bandaheri village in Hisar district of Haryana. He joined Indian Army in 1924. He took part in World War II, arrested by Japanese army, was POW for sometime. He was awarded various Medals for his act of bravery. He joined Rampur State Force 1947-1949. After Independence the Govt of India allotted him 100 acre land at Khandi Khera village in Rampur District, Uttar Pradesh. He spent rest of his retired life there and died on 01.06.1993.
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Unit: 18 Mahar Regiment.
Nopa Ram Khichar.jpg
Unit - 18 Jat Regiment

Gallery of Khichars

पिक्चर गैलरी

External links

References

  1. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ख-6
  2. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.33,sn-469.
  3. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX,p.695
  4. Rose:Tribes and Castes Vol. II, p. 375.
  5. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/J,p.376
  6. Jat Varna Mimansa (1910) by Pandit Amichandra Sharma,p. 58
  7. Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Appendices/Appendix I, p.316
  8. Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas, Agra 1998, p. 235
  9. Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, p.14
  10. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/J,p.376
  11. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/K,p.535
  12. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/J,p.356
  13. सोहनलाल जी खीचड़ (मो:08432286167)
  14. Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Appendices/Appendix I,p.316-17
  15. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/J,p.376
  16. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/J,p.376
  17. श्री वीर तेजाजी का इतिहास एवं जीवन चरित्र (शोधग्रंथ): लेखक - संत श्री कान्हाराम, मो: 9460360907, प्रकाशक: श्री वीर तेजाजी शोध संस्थान सुरसुरा, अजमेर, 2015, p. 215-216
  18. User:Harendrakeelka
  19. User:Babulalkeelka
  20. User:Sk56
  21. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.319
  22. उद्देश्य:जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह चूरू, 9 जनवरी 2013,पृ. 77
  23. Keshar Singh Khichar on Facebook, 12.02.2023

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