Sojat
Author: Laxman Burdak IFS (R) |
Sojat (सोजत) is a tahsil town in Pali district in Rajasthan.
Variants
- Sojat सोजत, दे. Shonitapura शोणितपुर राज. (AS, p.986)
- Shuddhadanti (शुद्धदंती)
- Shuddhadeti (शुद्धदेती)
- Tamravati (तम्रावती)
- Tamravatinagri (तम्रावतीनगरी)
- Trambavati (त्रंबावती)
- Shonitapura शोणितपुर (2) = Sojat (सोजत) (AS, p.913)
Location
Sojat city of Marwar region is situated on the left bank of the Sukri River, in Pali district Rajasthan. Sojat is located at 25.92°N 73.67°E. It has an average elevation of 257 metres (843 feet). The whole region lies on the way of "Aravali hills range".
Origin
It was called Shuddhadanti (शुद्धदंती) in ancient times.[1]
Villages in Sojat tahsil
Abkai Ki Dhani, Ajeetpura, Alawas, Atpara, Bagawas, Bagrinagar, Bariyala, Basna, Basni Anant, Basni Bhadawatan, Basni Jodhraj, Basni Mootha, Basni Narsingh, Basni Surayta, Basni Tilwadiyan, Bhaisana, Bhaniya, Bijliyawas, Bijpur, Bilawas, Birawas, Boyal, Butelao, Chamdiyak, Chandasani, Chandawal, Chandawal Station, Charwas, Chheetariya, Chopra, Chundlai, Dadi, Dara Ki Dhimdi (डारा की ढीमड़ी), Deo Nagar, Deoli Hulla, Dhagarwas, Dhakri, Dhandheri, Dheenawas, Dhoondha Lambodi, Dhurasani, Dornari, Gagira, Gajnai, Godelao, Guda Beeja, Guda Bhadawatan, Guda Chatura, Guda Kalan, Guda Ramsingh, Guda Shyama, Gura Bachhraj, Hapat, Hariya Mali, Heerawas, Hingawas, Jhupelao, Kanawas, Karmawas, Kelwad, Ker Khera, Khamal, Khariya Neev, Khariya Soda, Khariya Swami, Kharnikhera, Khejariya Ka Bala, Khera Nabra, Khokhara, Khoriya, Ladpura, Lakhan Ka Khet, Lanera, Lundawas, Malpuriya Kalan, Malpuriya Khurd, Mamawas, Mandla, Meo, Morawas, Murdawa, Nai Dhani, Napawas, Nathal Kundi, Naya Gaon, Pachchwa Khurd, Pachunda Kalan, Pachunda Khurd, Panchwa Kalan, Peeplad, Potaliya, Rajola Kalan, Ramasani Sandwan, Ramasaniwala, Rayara Kalan, Rayara Khurd, Rendari, Reprawas, Roondiya, Rupawas, Sand Magra, Sandiya, Sarangwas, Sardar Samand, Sardarpura, Shiv Nagar, Shivpura, Singpura, Sisarwada, Siyat, Sobrawas, Sohan Nagar, Sojat (M), Sojat Road (CT), Sundarda, Surayta, Tharasani, Udeshi Kua,
History
Sojat city was earlier (in the ancient times) known as Tamravatinagri. There is also a large and famous fort situated on top of one of the hillocks. The fort has a big reservoir and several temples like Sejal Mata, Chaturbhuj and so on. There is also an old temple of Chamunda Mata situated on top of one of the hillocks.
Dr Pema Ram writes that after the invasion of Alexander in 326 BC, the Jats of Sindh and Punjab migrated to Rajasthan. They built tanks, wells and Bawadis near their habitations. The tribes migrated were: Shivis, Yaudheyas, Malavas, Madras etc. The Shivi tribe which came from Ravi and Beas Rivers founded towns like Sheo, Sojat, Siwana, Shergarh, Shivganj etc. This area was adjoining to Sindh and mainly inhabited by Jats. The descendants of Shivi in Rajasthan are: Seu, Shivran, Shivral, Sihot, Sinwar, Chhaba etc. [2]
Stepwell in Pali district
The department of archaeology and museums (DAM) has decided to renovate a 9th- century unprotected five-storey stepwell dated back to the Chauhan Dynasty (800-1300 AD), which ruled Sojat in Pali. A team from Jodhpur and Jaipur inspected site located at Savrad village in Sojat city near Ramdev Temple.[3]
शोणितपुर
विजयेन्द्र कुमार माथुर [4] ने लेख किया है ...1. शोणितपुर (AS, p.912): प्राचीन किंवदंती के अनुसार महाभारत में ऊषा-अनिरुद्ध उपाख्यान के संबंध में वर्णित ऊषा के पिता बाणासुर की राजधानी। कहा जाता है कि कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने ऊषा का हरण इसी स्थान पर किया था और यहीं उनका बाणासुर से युद्ध हुआ था। महाभारत, सभापर्व 38 में बाणासुर को शोणितपुर का राजा कहा गया है- 'तस्माल्लबध्वा वरान् बाणो दुर्लभान् स सुरैरपि, स शोणितपुरे राज्यं चकाराप्रतिमो बली।' इस पुरी का वर्णन उपरोक्त अध्याय में (दाक्षिणात्यपाठ) इस प्रकार है- 'अथासाद्य महाराज तत्पुरीं ददृशुश्च ते, ताम्रप्रकार संवीतां रूप्यद्वारैश्च शोभिताम्, हेमप्रासाद सम्बाधां मुक्तामणिविचित्रिताम उद्यानवनसम्पन्नं नृत्तगीतैश्च शोभिताम्। तोरणैः पक्षिभिः कीर्णा पुष्करिण्या च शोभिताम् तां पुरीं स्वर्गसंकाशां हृष्टपुष्ट जनाकुलाम्।'
विष्णुपुराण 5, 33, 11 में भी बाणासुर की राजधानी शोणितपुर में बताई गई है- 'तं शोणितपुरं नीतं श्रुत्वा विद्याविदग्धया।'
शोणितपुर का अभिज्ञान कुछ विद्वानों ने असम की वर्तमान राजधानी गोहाटी से किया है। इसको प्राग्ज्योतिषपुर [p.913]: भी कहा जाता था।
श्रीमद्भागवत 10, 62, 4 में ऊषा-अनिरुद्ध की कथा के प्रसंग में शोणितपुर को बाणासुर की राजधानी बताया गया है- 'शोणिताख्ये पुरे रम्ये स राज्यमकरोत्पुरा, तस्य शंभोः प्रसादेन किंकरा इव तेऽमराः।' ऊषा की सखी सोते हुए अनिरुद्ध को द्वारिका से योग क्रिया द्वारा उठाकर शोणितपुर ले आई थी- 'तत्र सुप्तं सुपर्यंके प्राद्युम्निं योगमास्थिता गृहीत्वा शोणितपुरं सख्यै प्रियमदर्शयत्।' श्रीमद्भागवत 10, 62, 23
2. शोणितपुर (AS, p.913) = Sojat (सोजत)
3. शोणितपुर (AS, p.913) = इटारसी, म.प्र. से 30 मील दूर सोहागपुर रेल स्टेशन के निकट शोणितपुर स्थित है। स्थानीय जनश्रुति में इस स्थान को बाणासुर की राजधानी बताया जाता है। नर्मदा नदी ग्राम के निकट बहती है।
सोजत
सोजत राज. (AS, p.986): रेलवे स्टेशन बिलाड़ा से 16 मील दूर स्थित है. स्थानीय किंवदंती है कि बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह है इसी स्थान पर हुआ था जो बाणासुर की राजधानी शोणितपुर के नाम से विख्यात था. इस प्रकार की किवदंती अन्य स्थानों के बारे में भी प्रचलित है. (दे. शोणितपुर)[5]
सोजत परिचय
सोजत राजस्थान के पाली ज़िले में सूकड़ी नदी के किनारे स्थित एक शहर है। यह इसी नाम से एक तहसील भी है। सोजत राष्ट्रीय राजमार्ग 14 पर स्थित है। प्राचीन काल में यह शहर 'तम्रावती' के नाम से जाना जाता था। यह स्थान सेजल माता मन्दिर, चतुर्भुज मन्दिर और चामुण्डा माता मन्दिर जैसे तीर्थों और एक क़िले के लिये जाना जाता है। हिना की खेती इस शहर का प्रमुख आकर्षण है, जिसके लेप का उपयोग शरीर के हिस्सों पर अस्थाई डिज़ाइन बनाकर श्रृंगार के लिये किया जाता है।
ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी: प्राचीन ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी सोजत के रक्त रंजित इतिहास के साथ-साथ धार्मिक आस्था के बीच परवान चढ़ती अध्यात्म की ज्योति तथा सुर्ख मेहन्दी की आभा ने इसे अन्तराष्ट्रीय मानचित्र पर प्रसिद्धि दिलवाई है। यह भूमि देवताओं की क्रीड़ा स्थली एवं ऋषि मुनियों की तपोभूमि, प्राचीन सभ्यताओ की समकालीन रही है। शास्त्रों में 'शुद्धदेती' के नाम से प्रसिद्ध इस नगरी के नाम का सफर भी बड़ा ही रोमांचक एवं रोचक रहा है। आबू और अजमेर के बीच किराड़ू लोद्रवा के पुंगल राज के दौरान पंवारों का यहां पर भी राज था तथा राजा त्रंबसेन त्रववसेन सोजत पर राज करता था। तब इस नगरी का नाम 'त्रंबावती' हुआ करता था।
किंवदंती: राजा त्रवणसेन के सोजत सेजल नाम की एक 8-10 वर्षीय पुत्री थी, जो देवताओं की कला को प्राप्त कर शक्ति का अवतार हुई। यह बालिका आधी रात को पोल का द्वार बंद होने के बाद देवी की भाखरी पर चौसठ जोगनियों के पास रम्मत करने जाती थी। राजा को शक होने पर उसने अपने प्रधान सेनापति बान्धर हुल को उसका पीछा करने का निर्देश दिया। एक दिन सेजल के रात्रि में बाहर निकलने पर बांधर उसके पीछे-पीछे भाखरी तक गया। तब जोगनियों ने कहा आज तो तूं अकेली नहीं आई है। तब सेजल ने नीचे जाकर देखा तो उसे सेनापति नजर आया। सेजल ने कुपीत होकर उसे शाप देना चाहा, तब वह उसके चरणों में गिर गया तथा बताया कि वह तो उनके पिताजी के आदेश से आया है। इस पर उसने बांधर को आशीर्वाद दिया तथा अपने पिता को शाप दिया।
बालिका ने बांधर से कहा कि आज से राजा का राज तुझे दिया। तू इस गांव का नाम मेरे नाम सोजत पर रखकर अमुक स्थान पर मेरी स्थापना करके पूजा करना। इतना कहकर वह देवस्वरूप बालिका जोगनियों के साथ उड़ गई। राजा को जब यह बात पता चली तो दु:खी होकर उसने अपने प्राण त्याग दिए। इसी बांधर हुल ने सेजल माता का मंदिर एवं भाखरी के नीचे चबूतरा तथा पावता जाव के पीछे बाघेलाव तालाब खुदवाया। इसके बाद सोजत पर कई वर्षों तक हुलों का राज रहा, जिसमें हरिसिंह हुल, हरिया हुल नाम से प्रसिद्ध राजा हुए। इसके बाद में मेवाड़ के राणा ने इसे सोनगरा एवं सींघलों को दे दिया।[6]
विभिन्न शासकों का अधिकार: सन 1588 ई. में सोजत रावगंगा के अधिकार में रहा। उसके बाद उसके पुत्र राव मालदेव तथा उसके बाद राव चन्द्रसेन का राजतिलक हुआ। सन 1621 में अकबर का अधिकार सोजत पर हो गया। राव कला रांमोत के बाद क्रमश: सोजत पर राव सुरताण जैमलोत, संवत 1665 में राजा सूरज सिंह 1676 में राजा गजसिंह, 1694 में जसवन्त सिंह, रायसिंह का राज रहा। मोटा राजा उदयसिंह ने 1641 में इसे नवाब ख़ानख़ाना को दिया। 1656 मेें शक्ति सिंह को एक वर्ष के लिए दिया गया। 1664 में जहाँगीर ने इसे करम सेन उग्र से नोत को दिया। महाराजा विजय सिंह के समय सोजत में कई निर्माण कार्य हुए।
दर्शनीय स्थल: यहाँ आने वाले पर्यटक 'पीर मस्तान की दरगाह', 'रामदेवजी का मन्दिर', सोजत के देसुरी और कुकरी क़िलों को भी देख सकते हैं। यह शहर भगवान कृष्ण के प्रति अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाली कवयित्री मीराबाई की जन्मस्थली भी है।
हिना की कृषि: हिना की कृषि इस शहर का प्रमुख आकर्षण है। भारतीय महिलायें इस पौधे की पत्तियों को पतला पीस कर इसके लेप को अपने हाथों और पैरों पर विभिन्न डिज़ाइनों में लगाती हैं। सामान्यतः स्त्रियाँ विवाह और उत्सवों, जैसे- विभिन्न शुभ अवसरों पर इसे मेंहदी के रूप में प्रयोग करती हैं। यह पारम्परिक कला अब विश्व प्रसिद्ध हो गई है और अन्तर्राष्ट्रीय फैशन जगत में भी इसे अपनाया गया है। इसलिये कई विदेशी पर्यटक माउन्ट आबू जाते समय इस जगह भी आते हैं।
संदर्भ: भारतकोश-सोजत
त्रंबावती
विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...त्रंबावती (कठियावाड़, गुजरात) (p.413) त्रंबावती काठियावाड़, गुजरात की एक प्राचीन नगरी थी। यह प्राचीन नगरी खंभात से चार मील की दूरी पर बसी थी। त्रंबावती नगरी को 'स्तंब' या 'स्तंभ' तीर्थ भी कहा जाता था। खंभात इसी का विकृत रूप है।
Jat Monuments
Bhakt Siromani Karmabai Mandir - Inaugurated on 14 April 2016 by installing idol of Bhakt Siromani Karmabai along with Krishna. (Jat Express, 25.4.2016)
JAT hostel in sojat city JAT hostel made by 22 JAT villages for help students, there are also a Mahadev temple for public.
Notable persons
External Links
References
- ↑ Prithviraja Chauhan by Devi Singh Mandawa,p.140
- ↑ Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, First Edition 2010, ISBN:81-86103-96-1,p.14
- ↑ Times of India, Jaipur, 12 Jan 2022
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.912-913
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.986
- ↑ भारतकोश-सोजत
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.413
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