Ladu Ram Khichar

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (Retd.), Jaipur
Ch. Ladu Ram Khichar
जाट कीर्ति संस्थान चुरू द्वारा 31.8.2017 को ग्रामीण किसान छात्रावास रतनगढ में प्रदान किया गया सम्मान

Ladu Ram Ji Khichar (1887-1960) was from Sujangarh, in Churu district of Rajasthan. He was Freedom fighter and social worker. He is from Khichar Colony, Sujangarh.

His son Bhim Singh Arya is also a well known Social worker and Freedom fighter, Leading person in establishing Kisan Chhatrawas Sujangarh and author of 'Julm Ki kahani Kisan Ki Jubani', Awarded with Jat Siromani.

लादूराम खीचड़ का जीवन परिचय

चौधरी लादूराम जी खीचड़ का जन्म चौधरी समराराम खीचड़ के घर माता गंगा की कोख से संवत 1944 (1887 ई.) में सुजानगढ़ कस्बे में हुआ। वे अपने मता-पिता की अकेली संतान थे। इनका नहिहाल मारवाड़ के प्रसिद्ध खींयाला ग्राम के बीड़ासर गोत्र में था। खींयाला के चौधरी न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। वे बड़े-बड़े विवाद और गुत्थियों को चुटकी में हल कर देते थे। चौधरी लादूराम जी खीचड़ पर उनके ननिहाल का असर जीवन भर रहा है। उन्होंने भी अनेक जाट पंचायतों में पञ्च व प्रधान पञ्च की हैसियत से क्रान्तिकारी फैसले किये।[1]

पिता चौधरी समराराम का विद्रोह

लादूराम खीचड़ के पिता के पास सुजानगढ़ की रोही में 300 बीघा खेती की जमीन थी। सुजानगढ़ क़स्बा जोधपुर राज्य की सीमा पर होने से राजा का प्रतिवर्ष यहाँ दौरा होता था। राजा के दौरे में साथ उसके अनेक कारिंदे भी आते थे। वे किसानों से बेगार लेते थे। जाट किसानों के ऊँट और गायें, भैंस आदि पशुधन बेगार में पकड़ कर ले जाते थे। संवत 1953 (1896 ई.) की घटना है। सुजानगढ़ में बीकानेर के राजा का दौरा हुआ। चौधरी समराराम अपने खेत में हल चला रहे थे। राजा के कारिंदे उनका ऊँट बेगार में पकड़ने के लिए आये। चौधरी समराराम ने ऊँट देने से मना कर दिया। इस पर राजा ने नाराज होकर उनकी 300 बीघा जमीन छीन ली। विद्रोही किसान को खेत से बेदखल कर देना बहुत बड़ा दण्ड था। राजा द्वारा जमीन छिनने के बाद चौधरी समरा राम का देहांत हो गया। उस समय चौधरी लादूराम की उम्र 9 वर्ष थी। चौधरी लादूराम और उनकी वृद्ध माता के पास मजदूरी कर जीवन यापन करने के अलावा कोई चारा न था।[2]

आर्य समाजी बने

लादूराम खीचड़ जब 16 वर्ष के हुए तो जोधपुर जाकर रेलवे के ठेकेदार के नौकरी कर ली। ऊंटों को सँभालने और मजदूरों को भुगतान करने का काम सौंपा गया था उन्हें। उक्त ठेकेदार परिवार आर्य समाजी था और लादूराम खीचड़ को भाई के सामान समझता था। लादूराम खीचड़ पर आर्य समाज का प्रभाव यहीं से पड़ा। लादूराम खीचड़ ने न केवल स्वयं अपने यहाँ कुरीतियों को छोड़ा अपितु सुजानगढ़ के सभी खीचड़ परिवारों ने मृत्यु-भोज की प्रथा छोड़ दी। दैवयोग से ठेकेदार चल बसे तो लादूराम वापस सुजानगढ़ आ गए।[3]

लादूराम खीचड़ ने सुजानगढ़ आकर विवाह किया और कुछ वर्ष इधर-उधर खेती करने के उपरांत डूंगरास आथुना के जागीरदार से खेत लेकर खेती करना शुरू किया। पढाई की कोई व्यवस्था नहीं थी और एन्य लोग जाट को पढ़ाते भी नहीं थे। अनपढ़ होने बावजूद लादूराम खीचड़ सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों में रूचि रखने लगे। वे आर्य समाज के जलसों और धर्मप्रचार के कार्यक्रमों में नियमित भाग लेने लगे। इससे उनमे देशभक्ति का जज्बा पैदा हो गया।[4]

जाट प्रजापति महायज्ञ सीकर सन 1934

जाट प्रजापति महायज्ञ सीकर सन 1934 ने किसानों में राजनैतिक चेतना का संचार किया। उस सम्मलेन में सुजानगढ़ तहसील से जिन किसानों ने भाग लिया उनमे आप भी मुख्य थे।[5]

लादूराम खीचड़ अपने भाई जेसाराम खीचड़, आशाराम बाल्यान, खुमाराम घींटाला, मोती राम मूंड, तिलोक राम जानू और तिलोका राम बुरड़क आदि जाटों को साथ लेकर पहुंचे। बीकानेर रियासत से जो जाट सीकर सम्मलेन में पहुंचे थे उनको बीकानेर राजा गंगा सिंह द्वारा देशद्रोही करार दिया गया तथा लादूराम खीचड़ के खिलाफ मुकदमा चलाया गया। उन पर व जेसाराम खीचड़ पर दो वर्ष तक मुकदमा चला और डूंगरास आथुना के जागीरदार ने उनकी तीन सौ बीघा जमीन छीन ली। उल्लेखनीय है कि 37 वर्ष पहले लादूराम खीचड़ के पिता चौधरी समराराम से भी जमीन छिनी गयी थी। इस प्रकार इस परिवार पर दुबारा अत्याचारी शासकों की वही गाज गिरी। संवत 1990 के जाट सम्मलेन के पूर्णाहुति दिनांक बसंत पंचमी के सात दिन पूर्व लादूराम खीचड़ के सबसे छोटे पुत्र भीमसिंह आर्य का जन्म हुआ था। [6]

सीकर सम्मलेन में भाग लेने वाले आजादी के दीवाने शेखावाटी के गाँवों में चले गए और भूमिगत हो गए। भूमिगत रहते वे यदा कद ही घर आ पाते थे। इससे इनकी खेती उजड़ गयी और आर्थिक हालत ख़राब हो गयी। [7]

सुजानगढ़ में प्रजा परिषद् की स्थापना

वर्ष 1942 में गांधीजी ने देश में करो या मरो का नारा दिया और अंग्रेजों को भारत छोड़ने का जय घोष किया। गांधीजी के सत्याग्रह से प्रोत्साहित होकर सुजानगढ़ में भी बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् की स्थापना की। पंडित गिरीश चन्द्र मिश्र, सेठ सागरमल खेतान, बनवारीलाल बेदी, लालचंद जैन, फूलचंद जैन जैसे कार्यकर्त्ता शहरी तबके से थे।

ग्रामीण क्षेत्रों से जो कार्यकर्त्ता 1942 से 1945 तक बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् सुजानगढ़ के सदस्य बनकर इस संघर्ष में सामिल हुए और अंग्रेजी साम्राज्य, बीकानेर की राजशाही एवं जागीरदारी प्रथा के विरुद्ध बिगुल बजाया उनमे आप मुख्य थे। लादूराम खीचड़ ने प्रजा-परिषद् की गतिविधियों में सक्रीय भाग लिया।[8]

लादूरामजी खीचड़ के साथ प्रजा परिषद् का प्रचार-प्रसार करने वालों में मुख्य थे - रामूराम ढाका, चैनाराम बोला, जेसाराम राव, तिलोक राम बुरड़क, तिलोकराम जानू, बुधराम डूडी, आशाराम मंडा, गिरधारीराम मील आदि। [9]

जाट पंचायतों में चौधरी लादूराम खीचड़

चौधरी लादूराम जीखीचड़ जाट पंचायत के फैसलों में काफी न्याय प्रिय माने गए हैं। ढाका परिवार की एक लड़की को ससुराल पक्ष ने धन के नशे में धके देकर निकाल दिया। इसकी पंचायत नौरंगसर के ढाका जाटों ने सुजानगढ़ के जाट मंदिर के पास बुलाई जिसमे चौधरी लादू राम खीचड़ और चौधरी रामूराम ढाका आदि प्रमुख पञ्च चुने गए थे। चौधरी लादू राम खीचड़ ने उस परिवार पर आर्थिक दण्ड के बजाय कठोर सामाजिक दंड दिया गया।क्योंकि आर्थिक दंड से परिवार पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

इसी प्रकार रामपुर के एक कालेर की लड़की आबसर के किलका परिवार में ब्याही थी जिसको लड़के के बाप ने जबरन खुमाराम डोटासरा के साथ भेज दी। आबसर वालों ने जाटों की पंचायत गुलेरिया गाँव में बुलाई। इसमें निम्न लिखित पञ्च चुने गए।

परिवार पर 1300 रु. का आर्थिक दंड आरोपित किया।, लड़की के द्वारा उसके बाप के सर पर 51 जूते मरवाए, खुमाराम डोटासारा के सर पर 21 जूते मरवाए। लड़की को वापस उसके घर भिजवाया जहाँ आज भी वह आनंदपूर्वक अपना जीवन यापन कर रही है। उसका परिवार भरा-पूरा है।[10]

डकैती का झूटा मुकदमा

सन्दर्भ : भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006), p.55-56

इसी सिलसिले में तहसील के जागीरदारों व काँगड़ आन्दोलन के खलनायक रामसिंह DSP के उकसाने से जियाराम कालेर ने चौधरी लादूराम खीचड़, उमाराम खीचड़, दीपाराम खीचड़, तिलोकाराम गुलेरिया, ईशरराम गुलेरिया, उदाराम जानू, नेमाराम गोदारा नि. सुजानगढ़, तिलोकाराम बुरड़क नि. गुलेरिया, आशा राम मंडा नि. बालेरा, सुरजाराम पुनिया नि. पड़िहारा इन दस पंचों पर डकैती का झूटा मुकदमा किया जो पांच वर्ष चला। पंचायत में हजारों व्यक्तियों द्वारा पांच पञ्च चुने जाकर प्रचलित सामाजिक रिवाज के अनुक्रम में दोषी व्यक्तियों को अर्थ दण्ड से दण्डित किया और दण्ड की राशि शिक्षण संस्था 'विद्यार्थी भवन रतनगढ़' को दान में दे दिए। पञ्च उक्त पंचायत में पांच ही चुने गए थे। राम सिंह द्वारा गढ़ी गयी काल्पनिक कहानी निराधार थी किन्तु दसों व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। तथाकथित अभियुक्तों को व उनके परिजनों को इस दौरान आतंकित किया गया। सम्पति जप्त करने की धमकियां दी गयी। जिन पाँचों को जज करार दिया गया वे सभी सत्तर वर्ष से अधिक उम्र के वयोवृद्ध समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। शेष पांच व्यक्ति भी शांतिप्रिय गांधीवादी विचारधारा के राजनैतिक प्रचारक थे। मुकदमे का चालान दसों तथाकथित डाकुओं को हथकड़ी डालकर सुजानगढ़ के मुख्य बाजार में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।

अंत में चूरू के सत्र न्यायाधीस ने इस प्रकरण में अभियोगी और पुलिस की साजिस माना और विद्वान् न्यायाधीश ने व्यवस्था दी कि सामाजिक अपराधों में जातीय पंचों को दोषी नहीं माना जा सकता, उनको दोषी को दंड आरोपित करने के अधिकार हैं।पंचों पंचों सहित सभी दसों व्यक्तियों को बाइज्जत बरी कर दिया गया। विद्वान न्यायाधीश ने इनको प्रतिष्ठित सामाजिक, न्यायप्रिय पञ्च घोषित किया तथा मुकदमे को बेबुनियाद एवं राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से किया गया षड्यंत्र करार दिया गया।

व्यक्तित्व

चौधरी लादूरामजी खीचड़ अनपढ़ होते हुए भी हाजिर-जवाबी में उनको महारत हाशिल थी। हजारों लोगों की उपस्थिति में अनेक तार्किक कथनों से अपनी बात मनवाने की उनमें विलक्षण विशेषता थी। सिद्धांतों से समझोता उन्होंने कभी नहीं किया। प्रतिकूल व्यक्ति को भी अनुकूल कर लेने की उनमें करामात थी। धन कमाने की उन्होंने कभी चिंता नहीं की। मृतक-भोज जैसी बुराईयों को उन्होंने सं. 2004 में ही अपने खीचडों के घरों में बंद करा दिया था। चौधरी लादूरामजी खीचड़ देश के आजाद हो जाने, सामंती शासन का अंत हो जाने और जागीरदारी के समाप्त हो जाने के बावजूद भी सामाजिक कार्यों में जुटे रहे।[11]

परिवार

चौधरी लादूरामजी खीचड़ का परिवार भरा पूरा है। आज उनके परिवार में 2 लड़कियों सहित 3 लड़के धन्ना राम, सोहन राम और भीम सिंह मौजूद हैं। 14 पौते और 24 पड़पौते हैं। और उनके पोतों के भी पौते हैं। [12]

चौधरी समराराम + गंगा बीड़ासर

चौधरी लादूराम

1.धन्ना राम, 2.सोहन राम और 3.भीम सिंह

14 पौते

24 पड़पौते

देहांत

आसोज बड़ी 7 संवत 2017 को 73 वर्ष की आयु में देहांत हो गया।

साभार

1.स्वतंत्रता सेनानी हरीराम ढाका, निवासी - नौरंगसर (सुजानगढ़), चूरू, राजस्थान. पुस्तक - भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006)

2. उद्द्येशय, जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, चूरू, द्वितीय संस्करण जून 2013, p.37

References

  1. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.195
  2. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.196
  3. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.196
  4. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.197-98
  5. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.35
  6. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.199-200
  7. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.36
  8. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.40
  9. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.201
  10. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.204
  11. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.205
  12. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.205

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