Balyan
Balyan (बाल्यान)[1] Baliyan (बालियान)[2][3] Balian (बालियान) Balyan (बलयाण)[4][5] Valyan (वाल्यान) is gotra of Jats found in Uttar Pradesh, Haryana, Rajasthan, Bihar and Madhya Pradesh.
Contents
- 1 Origin
- 2 History
- 3 Villages founded by Balyan clan
- 4 Balyan Khap
- 5 सूर्यवंशी बल-बालान-बालियान जाटवंश का इतिहास
- 6 बालियान खाप
- 7 बालियान खाप के ऐतिहासिक गांव
- 8 बालियान खाप के उजड़े हुए गांव
- 9 इतिहास
- 10 Distribution in Uttar Pradesh
- 10.1 Villages in Muzaffarnagar and Shamli district
- 10.2 Villages in Bareilly district
- 10.3 Villages in Bulandshahar district
- 10.4 Villages in Aligarh district
- 10.5 Villages in Saharanpur district
- 10.6 Villages in Hapur district
- 10.7 Villages in Meerut district
- 10.8 Villages in Bijnor district
- 10.9 Villages in Shamli district
- 10.10 Villages in Hariwar district
- 11 Distribution in Madhya Pradesh
- 12 Locations in Jaipur city
- 13 Distribution in Haryana
- 14 Distribution in Delhi
- 15 Distribution in Rajasthan
- 16 Distrbution in Punjab
- 17 Distrbution in Bihar
- 18 Distribution in Bihar
- 19 Notable persons
- 20 References
Origin
They are said to be originated from King Bali, dauhitra of Prajapati Daksha. [6]
History
Balyan is the name of Khap and the Gotra is "Raghuvanshi". It is found in Western Uttar Pradesh (mostly in and around District Muzaffarnagar), Haryana (in Jhajjar)and Rajasthan. Chaudhary Mahendra Singh Tikait is "Chaudhary" (Head) of the Baliyan khap. "Tikait" is the title conferred to the head of Baliyan Khap by Raja Harshavardhana, the Jat ruler of Thanesar, in 7th century. Since then it is used by Chaudhary of the Khap as its surname.
Megasthenes has described about this clan in Indica as Bolingae. He writes, Then next to these towards the Indus come, in an order which is easy to follow The Amatae (Antal), Bolingae (Balyan), Gallitalutae (Gahlot), Dimuri (Dahiya), Megari (Maukhari), Ordabae (Buria), Mese (Matsya). (See -Jat_clans_as_described_by_Megasthenes)
Villages founded by Balyan clan
Balyan Khap
Balyan Khap khap has 100 villages. Its head village is Sisauli in muzaffarnagar. Its main villages are: Sauram, Harsauli , Barbala. Ch. Mahendra Singh Tikait - President, Bharatiya Kisan Union, is from this khap. The famous jat historian Choudhary Kabul Singh was from this khap and It has been mentioned in the chronicles of Jat 'Sarv Khap', which are still preserved with Chaudhry Kabul Singh. The great Bappa Rawal was their ancestor. James Tod has called them Balvanshi. [7]
सूर्यवंशी बल-बालान-बालियान जाटवंश का इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[8] लिखते हैं:
कुछ इतिहासकार इस वंश का आदिप्रवर्तक चन्द्रवंशी सम्राट् ययाति के पुत्र अनु की परम्परा में बलि को मानते हैं। महाभारत आदिपर्व, 66वें अध्याय में लिखा है कि ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति की 13 कन्याओं का विवाह सूर्यवंशी कश्यप महर्षि के साथ हुआ। उनमें से एक का नाम दिति था जिससे एक पुत्र हिरण्यकशिपु हुआ जिसका पुत्र प्रह्लाद था। प्रह्लाद का पुत्र विरोचन था जिसका पुत्र बलि हुआ1। बहुत से इतिहासकारों के लेख अनुसार यह माना गया है कि इस बल वंश के आदिप्रवर्तक सूर्यवंशी विरोचनपुत्रशिरोमणि प्रतापी राजा बलि ही थे। कर्नल टॉड ने इस वंश को भी 36 राजवंशों में गिना है। यह बलवंश जाटवंश है। इस बलवंश के सम्राटों की प्राचीन राजधानी के विषय में ठीक निर्णय नहीं हुआ है। अयोध्या, प्रयाग और मुलतान में से कोई एक इनकी राजधानी थी।
527 से 814 संवत् (सन् 470 से 757 ई०) तक इस बलवंश का शासन गुजरात में माही नदी और नर्मदा तक, मालवा का पश्चिमी भाग, भड़ौच कच्छ सौराष्ट्र, काठियावाड़ पर रहा। वहां पर राज्य की स्थापना करने वाला भटार्क नामक वीर महापुरुष था। यह संवत् 512 से 524 (सन् 455 से 467 ई०) तक सम्राट् स्कन्दगुप्त का मुख्या सेनापति था। किन्तु संवत् 526 (सन् 469 ई०) में
- 1. जाट वीरों का इतिहास प्रथम अध्याय, दक्ष की पुत्री दिति की वंशावली देखो।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-234
गुप्त राज्य के अस्त होने पर भटार्क ने अपने वंश के नाम पर कच्छ काठियावाड़ में बलभीपुर राज्य की स्थापना की। इस नगर का दूसरा नाम बला भी था। “कार्पस इन्स्कृशन्स इन्डिकेर” 3/169 के उल्लेखानुसार विक्रमी 559 के लिखे हुए मालिया से मिले एक शिलालेख द्वारा यह प्रमाणित हुआ है कि भटार्क के चार पुत्रों धरसेन, ध्रुवसेन, द्रोणसिंह और धरपट में से प्रत्येक ने बला नगर की स्थिति को क्रमशः राज्यसत्ता पाने पर अधिकाधिक सुदृढ़ किया। इन चारों ने महासामन्त - महाप्रतिहार - महादण्डनायक - महाकार्ताकृतिक महाराज की उपाधि धारण की थी। ह्युनसांग ने लिखा है कि -
- “भटार्क के चारों पुत्रों के शासनकाल के पश्चात् क्रमशः गुहसेन, धरसेन द्वितीय, शिलादित्य, खरग्रह, धरसेन तृतीय, ध्रुवसेन द्वितीय राजा हुए। कन्नौज के वैस1 सम्राट् हर्षवर्द्धन ने अपनी पुत्री का विवाह ध्रुवसेन द्वितीय से किया था। इस ध्रुवसेन द्वितीय के पुत्र धरसेन चतुर्थ ने भड़ोंच को बला राज्य में मिलाया। इस सम्राट् ने परमेश्वर चक्रवर्ती उपाधि भी धारण की। इसके ही आश्रित महाकवि भट्टी ने भट्टीमहाकाव्य की रचना की। इस बला राज्य को बल्लभी अथवा गुजरात राज्य कहा गया है जिसका शासक ध्रुवसेन द्वितीय था।”
इसके बाद ध्रुवसेन तृतीय, खरग्रह द्वितीय, शिलादित्य तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ, सप्तम शिलादित्य क्रमशः राज्याधिकारी हुए। इन अन्तिम राजाओं के अनेक उल्लेख निम्न प्रकार से मिलते हैं - शिलालेखों, ताम्रपत्रों की प्रतिलिपियां एपिग्राफिका इण्डिका जिल्द 4 पृ० 76, इण्डियन एन्टिक्वेरी जिल्द 7-11-5-17, वीनर जीट्स काफ्ट जिल्द 1 पृ० 253, लिस्ट आफ इन्सक्रिपशन्स आफ नार्दन इण्डिया नं० 492-493, गुप्त इन्सक्रिपशन्स पृ० 173 आदि में उल्लिखित है। इनके आधार पर यह निश्चयात्मक रूप से कहा जा सकता है कि ये सम्राट् शैवधर्मानुयायी थे क्योंकि इनके ताम्रपत्रों और सिक्कों पर बैल की मुहर, नन्दी और शिवलिंग की मूर्तियां अंकित हैं। कुछ राजाओं की विशेष रुचि बौद्धधर्म की ओर भी हुई थी। इस वंश ने कला-कौशल और विद्या में विशेष उन्नति की थी। चीनी यात्री इत्सिंग ने लिखा है कि “इस समय भारत में नालन्दा और बल्लभी दो ही विद्या के घर समझे जाते हैं।” दूसरे चीनी यात्री ह्यूनसांग ने बलवंश की इस राजधानी को 6000 बौद्ध भिक्षुओं का आश्रय स्थान तथा धन और विद्या का घर लिखा है।
विक्रमी संवत् 814, हिजरी सं० 175 (सन् 757 ई०) में सिन्ध के अरब शासक हशाब-इब्न-अलतधलवी के सेनापति अवरुबिन जमाल मे गुजरात काठियावाड़ पर चढ़ाई करके बला (बल्लभी) के इस बलवंश के राज्य को समाप्त कर दिया।
मुहणोंत नैणसी भाट के लेखानुसार यहां से निकलकर इस वंश से ही गुहिलवंश प्रवर्तक गुहदत्त उत्पन्न हुए। टॉड ने भी इसी मत की पुष्टि करते हुए ‘शत्रुञ्जय महात्म्य’ नामक जैन ग्रन्थ के आधार पर विजोल्या नामक स्थान के एक चट्टान पर खुदे हुए एक लेख को उद्धृत किया है। प्रतोल्यां बलभ्यां च येन विश्रामितं यशः - अर्थात् मेवाड़ के गुहिल वंशियों ने बल्लभी पर भी यश स्थापित किया।
उदयपुराधीश राजा राजसिंह के ‘चरित्र राजविलास’ ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही लिखा है कि “पश्चिम
- 1. यह वैस जाट गोत्र है। सम्राट् हर्षवर्द्धन वैस या वसाति गोत्र का जाट था। वैश्य दूसरा शब्द है जो एक वर्ण का नाम है तथा वैश्य बनिया (महाजन) को भी कहते हैं।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-235
दिशा प्रसिद्ध देश सोरठधरदीपत नगर बाल्लिका नाथ जंग करि आसुर जीपत।”
सोरठ से पराजित बल्ल लोगों के नाथ के लिए गौरीशंकर हीराचंद ओझा मेवाड़ इतिहास पृ० 18 पर इसी राजविलास का उल्लेख करते हैं कि बल्लभी क्षेत्र के राजा का रघुवंशी पुत्र गुहादित्य बाप्पा रावल मेवाड़ में आया। उसने अपने नाना राजा मान मौर्य जो कि चित्तौड़ का शासक था, को मारके चित्तौड़ का राज्य हस्तगत कर लिया। नैणसी भाट के लेख अनुसार - “मौरी दल मारेव राजरायांकुर लीधौ।” ‘राजप्रशस्ति महाकाव्य’ सर्ग 3 में भी लिखा है -
- ततः स निर्जित्य नृपं तु मौरी, जातीयभूपं मनुराजसंज्ञम् ।
- गृहीतवांश्चित्रितचित्रकूटं, चक्रेऽत्र राज्यं नृपचक्रवर्ती ॥
इस प्रकार बल वंश की ही शाखा गुहिल सिसौदिया सिद्ध होती है - स्थान-परिवर्तन से इस प्रकार नाम भी परिवर्तित हुआ।
बलवंश का मूलस्थान पंजाब ही था। यहीं से धारणवंशी (जाट गोत्र) गुप्त सम्राटों का सेनापति भटार्क पहले बिहार मगध और बाद में वल्लभी पर अपनी सत्ता स्थिर कर सका। किन्तु वह पद्धति एकतन्त्री थी। पंजाब में इस बलवंश के शेष वंशधर प्रजातन्त्री रूप से अपनी आदि भूमि पंजाब में ही भूमि के अधिपति रहे। इनका पंजाब में यह बल जनपद मुगलकाल में बहावलपुर के अन्तर्गत देवागढ़ उपनाम देवरावर किले के अधिपति देवराज भट्टी यादव द्वारा समाप्त कर दिया गया। किन्तु ‘जनरल रायल एशियाटिक सोसायटी’ सन् 1894 पृ० 6 के अनुसार -
- येन सीमाकृता नित्यास्त्रवलीबल्लदेशयो: ।
- भट्टिकं देवराजं यो बल्लमण्डलपालकम् ॥
काकराणवंशी राजा शिलुक ने बल्लमण्डल के पालक देवराज भट्टी को मारकर त्रवणी और बल्ल देश तक अपनी सीमा स्थिर की1। तदनन्तर कुछ बलवंशी सीमाप्रान्त की ओर सिंध में और कुछ ऊंचे स्थान पर आबाद हो गये। जहां वे बलोच नाम से प्रसिद्ध होकर इस्लाम धर्म के अनुयायी हो गये। वैदिक सम्पत्ति पृ० 416, लेखक स० पं० रघुनंदन शर्मा साहित्यभूषण ने लिखा है कि “बलोचिस्तान भी बलोच्च्स्तान शब्द का अपभ्रंश है। इसमे कलात नामक नगर अब तक विद्यमान है। यह कलात तब का है, जब किरातनामी पतित आर्यक्षत्रिय यहां आकर बसे थे। ये क्षत्रिय होने से ही बल में उच्च स्थान प्राप्त कर सके थे2।”
इस बलवंश (गोत्र) के जाट सिक्ख अमृतसर, जालन्धर, गुरदासपुर, कपूरथला, लुधियाना जिलों में बड़ी संख्या में बसे हुए हैं।
बल गोत्र के हिन्दू जाट अम्बाला, करनाल, हिसार और मुरादाबाद जिलों में अच्छी संख्या में हैं। उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर एक ऐसा जिला है जहां आज भी बलवंशी हिन्दू जाट बालियान नाम से एक विशाल जनपद के रूप में बसे हुए हैं। इन लोगों के 50 वर्गमील उपजाऊ भूमि पर 84 विशाल गांव हैं जिनमें इनकी बहुत सम्पन्न स्थिति है। काली नदी के दाएं-बाएं 20 मील तक यात्रा करने पर विशाल अट्टालिकाएँ नजर आती हैं जो इनके वैभव का परिचय देती हुई इनके गांव का बोध कराती हैं।
- 1. देखो तृतीय अध्याय, काकुस्थ या काकवंश प्रकरण।
- 2. सूर्यवंशी बल-बालान-बालियान जाटवंश, जाटों का उत्कर्ष पृ० 313-316, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-236
बालियान खाप - उत्तरप्रदेश में बालियान खाप के छोटे-बड़े लगभग 100 गांव हैं। इस खाप का सबसे बड़ा गांव सिसौली है। दूसरा प्रसिद्ध गांव शोरम है जहां सर्वखाप पंचायत का मुख्य कार्यालय पुराने समय से चला आ रहा है। इसी सर्वखाप पंचायत के सम्बन्ध में पुराने हस्तलिखित ऐतिहासिक कागजात चौ० कबूलसिंह मन्त्री (वजीर) सर्वखाप पंचायत के घर में आज भी सुरक्षित रक्खे हुए हैं। मैंने (लेखक) भी चौ० कबूलसिंह मन्त्री के घर कई दिन तक ठहर कर इनकी सहायता से इन कागजात के जाटों के विषय में आवश्यक ऐतिहासिक घटनायें लिखी हैं जिनका उल्लेख उचित स्थान पर किया जायेगा। इस बलवंश के अति प्रसिद्ध वीर योद्धा ढलैत की हरयाणा में कहावत “वह कौन सा ढलैत है”, “जैसा तू ढलैत है, सब जानते हैं”, “देख लेंगे तेरे ढलैत ने” सैंकड़ों वर्षों से प्रचलित है। उसी वीर योद्धा का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार से है -
बलगोत्री जाट ढमलचन्द उपनाम ढलैत वीर योद्धा -
वीर ढमलचन्द का जन्म संवत् 1550 (सन् 1493 ई०) में ग्राम सिसौली जिला मुजफ्फरनगर में हुआ था। इसके पिता का नाम चौ० मेहरचन्द तथा माता का नाम श्यामो देवी था जो कि दहिया जाट गोत्र की थी। इस वीर का वजन 52 धड़ी (6½ मन) था। यह जंगली भैंसे के सींगों को पकड़ कर उसे चक्कर कटा देता था। इसके कोई बहिन नहीं थी। अतः इसने जसवन्तनगर के हरिराम ब्राह्मण की पुत्री हरकौर को अपनी धर्मबहिन बनाया। हरकौर के कोई भाई नहीं था सो उसने इसको धर्मभाई बना लिया। हरकौर ने ही ढमलचन्द का उपनाम ढलैत रख लिया।
ढलैत की शक्ति व योग्यता को जानकर रीवा के राजा वीरसिंह बघेला ने इसको अपनी सेना में भरती कर लिया और 200 घुड़सवारों और 300 पैदल सैनिकों का सरदार बना दिया। एक बार राजा वीरसिंह ढलैत को साथ लेकर किसी जंगल में से जा रहे थे। वहां पर एक शेर ने राजा पर अकस्मात् आक्रमण करके, उसके घोड़े को एक ही थाप में मार दिया। राजा पर वार करने से पहले ही ढलैत ने शेर की थाप को अपनी ढाल पर रोक लिया और अपनी 15 सेर वजन की तलवार से एक ही वार में शेर के दो टुकड़े कर दिये। इससे प्रसन्न होकर राजा ने ढलैत को 2000 सवारों का मनसबदार नियुक्त कर दिया। इसके पश्चात् ढलैत ने अपने पुराने साथियों कीर्तिमल और भीमपाल उपकरण को महाराज की सेना में ऊँचे पदों पर लगवा दिया। राजा वीरसिंह का एक राजपूत भीमपाल नामक 7 गांव का जागीरदार था। उसकी पुत्री राजकली थी। यह 28 धड़ी वजन के पत्थर के मुदगर को दोनों हाथों से कई-कई बार ऊपर-नीचे कर देती थी। एक बार राजा वीरसिंह बघेला अपने साथ ढलैत वीर योद्धा को लेकर जागीरदार भीमपाल के निवास-स्थान पर आये थे। वहां पर मल्लों की युद्धकला का प्रदर्शन हुआ। राजकली भी प्रदर्शन देख रही थी। महाराजा की आज्ञा से ढलैत ने राजकली के उस 28 धड़ी के मुदगर को कभी दायें हाथ और कभी बायें हाथ से ऊपर नीचे और चारों ओर घुमाकर भूमि पर दूर फेंक दिया। तीन बार ऊपर फेंककर अपने कन्धों पर रोककर नीचे गिरा दिया। इससे भी भारी मुदगरों को उठाने की कला दिखलाकर दर्शकों को चकित कर दिया। उसी अवसर पर एक मरखना हाथी बिगड़कर इस प्रदर्शन स्थल पर आ गया। उसे देखकर लोग भागने लगे। इतने में ढलैत ने बड़ी तेजी से आगे बढ़कर 19 धड़ी की मोगरी उस हाथी के माथे पर जोर से मारी जिसके लगते ही हाथी पीछे को भाग गया। इस अद्भुत मल्ल युद्ध की कला को देखकर उपस्थित जनसमूह ने जोर-जोर से जयकारे लगाये “हरयाणा के मल्ल
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-237
ढलैत की जय हो।” उसी समय उस राजपूत लड़की राजकली ने ढलैत को मन से अपना पति मान लिया और उससे स्वयंवर विवाह कर लिया।
ढलैत की धर्मबहिन ब्राह्मण लड़की हरकौर का विवाह पण्डित प्रेमनाथ के पुत्र देवव्रत के साथ हुआ। देवव्रत हरद्वार में अध्यापक थे और वहां के निकट गांव बाहपुर जाट के निवासी थे। एक दिन हरकौर अपने देवर जयभगवान के साथ बहली में बैठकर अपने गांव जसवन्तनगर से अपनी ससुराल जा रही थी। रास्ते के जंगल में हैदरगढ़ के नवाब के बेटे हसनखां ने अपने शस्त्रधारियों सहित बहली पर आक्रमण कर दिया और हरकौर को हैदरगढ़ के किले में ले गया। यह घटना संवत् 1580 (सन् 1523 ई०) की है। उस समय इब्राहीम लोधी दिल्ली का बादशाह था।
हसनरज़ाखान हरकौर से निकाह (विवाह) करने के प्रयत्न करता रहा। परन्तु वह इन्कार करती रही। हरकौर ने अपनी अंगरक्षक एक मुस्लिम फकीरनी के माध्यम से उसके पोते रमजान को पत्र देकर अपने धर्मभाई ढलैत के पास भेजा। रमजान ने यह पत्र ढलैत को मथुरा के राजा के कैम्प में दिया। ढलैत ने अपनी धर्म-बहिन हरकौर के सतीत्व को बचाने के लिये राजा वीरसिंह से आज्ञा लेकर अपने साथ कीर्तिमल, भीमपाल उपकरण तथा 200 घुड़सवार लिए और हैदरगढ को चल दिया। इनके साथ राजकली भी ऊँटनी पर सवार होकर चली। वहां पहुंचकर इन वीर योद्धाओं ने हैदरगढ़ किले को घेर लिया और बड़ी युक्ति से धावा करके नवाब के हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। राजकली ने हसनरजा के उन 5 सैनिकों का अपनी तलवार से सिर उतार दिया जो कि हरकौर को जबरदस्ती ले जाकर हसनरजाखान के साथ निकाह करवाना चाहते थे।
वीर योद्धा ढलैत ने अपनी तलवार से हसनरज़ाखान का सिर काट दिया। इस तरह से ढलैत ने अपनी धर्म-बहिन हरकौर के प्राण एवं सम्मान को बचा लिया। ढलैत की वीरता तथा हरकौर के सतीत्व की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। यह है ढलैत की वीरगाथा।
ढलैत की पत्नी राजकली की 48 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। इसके पश्चात् वीर ढलैत साथु बन गया। एक बार ढलैत अपनी धर्मबहिन हरकौर, मित्र कीर्तिमल एवं भीमपाल उपकरण के साथ शुक्रताल (जि० मुजफ्फरनगर) गंगा के तट पर स्नान करने गया। ये सब तीन दिन तक साधु सन्तों से धर्मकथा सुनते रहे। चौथे दिन ढलैत योद्धा का अकसमात् देहान्त हो गया। उसका दाह संस्कार वहीं गंगा तट पर किया गया। सतीदेवी हरकौर को अपने धर्म-भाई ढलैत की मृत्यु का भारी आघात पहुंचा। वह ढलैत की चिता के पास बैठकर “मेरा भाई ढलैत, मेरा भाई ढलैत” कहने लगी और तीन घण्टे पश्चात् अपने प्राण त्याग दिये1। यह है भाई-बहिन के सच्चे प्यार का उदाहरण।
बलवंश के शाखा गोत्र - 1. गुहिल-गहलोत गुहिलोत-गोहिल-गेलोत (सब एक हैं) 2. मुण्डतोड़ गहलावत 3. सिसौदिया 4. राणा 5. रावल ।
बालियान खाप
सिसौली या शिवपुरी- रघुवंशी वंश के जाटो की बालियान खाप का धावनी नगर से आकर या (भाट के ग्रन्थों के अनुसार) लाहौर (बल जनपद) से आकर सबसे पहले शिवपुरी (सिसौली) नामक यह गांव ही बसा था। जैसा की हम पहले ही लिख चुके हैं कि भाट ग्रन्थों व दयाचन्द राय भाट के अनुसार - चैत्र सुदी दशमी दिन मंगलवार सम्वत 845 वि0. (सन् 788 ई.) सर्वखाप के अनुसार - सम्वत 882 (सन् 825 ई.) में रघुवंशी जाट विजेराव के द्वारा इस शिवपुरी(सिसौली) को बसा कर बालियान खाप की स्थापना की गई थी। तत्पश्चात शिवपुरी (सिसौली) से चलकर ही रघुवंशी जाट पूर्वजों ने बालियान खाप का अपने-अपने गांव बसा कर विस्तार किया। जिसमें प्रत्येक जाति के लोगों की बराबरी थी। जो विजेराव के साथ ही आये थे वे उनके साथ ही शिवपुरी (सिसौली) में बस गये थे। विजेराव के साथ आकर सिसौली में बसने वाली जातियों के वंशज भी बालियान खाप के पूर्वजो द्वारा बसाये गये अलग-अलग गांवो में उन्ही के साथ बस गए। जिसके कारण ही बालियान खाप में निवास करने वाली ब्राह्मणो से लेकर वाल्मीकियो तक के प्रत्येक जातियों के चौधरी आज तक सिसौली में है।
सिसौली में तीन पट्टियों के नाम पर खाप चौधरियो की चौधराण पट्टी के नाम चौधराण, लायकराम की लेपराण पट्टी के नाम पर लेपराण तथा चन्र्दवीर सूरीमन की सूडियाण के नाम पर सूडियाण नामक तीन थाम्बे है। सिसौली बसने के समय के समय से ही स्थापित शिव तथा देवी मंदिर आज तक विद्यमान हैं। शिव मंदिर के पश्चिम में एक पक्का तालाब था। जो तत्कालीन शमय में तीर्थ कहलाता था। लगभग सोलहवीं शताब्दी के अन्त में इस रघुवंशी जाट वंश सिसौली में कालीसिंह व भूरीसिंह नामक दो सगे भाई हूए है। जिन्होंने अपनी 15 वर्ष से 25 वर्ष तक की आयू में शिक्षा प्राप्त कर ईश्वर भक्ति की। बाब कालीसिंह ने योग क्रियाओं व अपने तप द्वारा सिध्दि प्राप्त कर आयुर्वेद में पशुओं की जडी बूटियों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। जिससे उन्होंने दुर दुर तक पशुओं का निशुल्क उपचार कर प्रसिद्ध प्राप्त की थी। बाबा भूरीसिंह गोरखनाथ की योग क्रियाओं के अनुयायी थे। जिन्होने अपना जीवन ईश्वर भक्ति, तपस्या व धर्म प्रचार में बिताया था। बाबा कालीसिंह ओर बाबा भूरीसिंह के थान स्थान सिसौली में बने हुए हैं। जो पुज्य स्थल माने जाते है। बाबा कालीसिंह की मान्यता आज भी दूर दूर तक फैली हुई है। जिसके कारण ही बाबा कालीसिंह के पूज्य थान स्थान पर प्रत्येक रविवार को मेला लगता है। जिसमे दूर दूर से सभी जातियों के लोग प्रसाद चढाकर अपने पशुधन प्राप्ति की दुआ करते है।
किसान नेता स्व. चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत रघुवंशी जाटो, बालियान खाप के टिकैत (चौधरी) होने के साथ-साथ भारतीय किसान यूनियन(अराजनैतीक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे। जिन्होने सिसौली में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय कार्यालय का भी निर्माण करवाया था। जो आज किसान भवन के नाम से प्रसिद्ध है। जिसमें किसानों, समाज व देश शान्ति के लिए देशी घी की ज्योत जल रही है। जिसको लगभग सन् 1986 ई. में प्रज्वलित करके ही किसान नेता स्वर्गीय चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने भारतीय किसान यूनियन का नेतृत्व करते हुए सर्वप्रथम किसानो का करमूखेडी(शामली) बिजलीघर पर बाजली के बढे रेट का विरोध व किसानो की अन्य समस्याओं को लेकर प्रदर्शन शुरू किया था। बालियान खाप के चौधरी दानतराय अपने समय के विद्वान महान नेता हुए हैं। जो बालाजी बाजीराव के मित्र थे। जो महाराष्ट्र मंडल के दुसरे पेशवा थे। पानीपत के प्रसिद्ध युध्द में सन् 1761 ई. में इन्होनें वादेशी आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दली के विरूद्ध राजा भाऊ(मराठो) का साथ दिया था। इनके अतिरिक्त सिसौली में थानसिंह, नैना बानत,ढमलचन्द उर्फ ढलैत मलयोध्दा हुए है जिन्होंने अपने समय मे शूरविरता से प्रसिद्धि प्राप्त की थी। वर्तमान में स्वर्गीय चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत जी के पुत्र चौधरी नरेश टिकैत जी बालियान खाप चौधरी ओर भाकियू अध्यक्ष है।
बालियान खाप के ऐतिहासिक गांव
रघुवंशी वशं/बालियान खाप (बल, बलोच, बालाण) बालियान खाप के ऐतिहासिक गांव
1- सिसौली 2-शोरम 3-भाज्जू 4-निवादा 5-चरोली 6-जट भनेडा 7-अलावलपुर माजरा 8-टाला और टाली 9-मुन्डभर 10-भौरा(बडा) 11-भौरा(छोटा) 12-जैतपुर 13-ग्राम गढी नौआबाद 14-कपूरगढ 15-शिकारपुर 16-खेडी सुन्डीयान 17-मेहरचन्दपुर या मोहमदपुर माडन 18-सोटां 19-शाहटु या साहटु 20-हडौली 21-ढिंढावली 22-सदरुद्दीननगर या माजरा 23-नंगला 24-मुकन्दपुर 25-कठकगढ या कुटबा 26-कुटबी 27-धौलरा या दुलहेरा 28-गढी बाहदरपुर या गढी बहादुरपुर 29-कबीरपुर 30-खतौला 31-रजवाडा या करवाडा 32-मान्डी 33-लकडसन्दा 34-पीनना 35-छोटा नंगला या नंगला मुबारिक 36-सीमला या (सिमली) 37-हरसौली 38-काहनडा या काकडा 39-बरबाला 40-किनौनी 41-माजरा नरोत्तमपुर 42-सांजक 43-तेलूपुरा या तावली 44-फूलपुरी या रसूलपुर जाटान 45-गोयला 46-कसेरवा 47-किलानपुर या कल्याणपुर 48-टोडडा 49-पुरबालियान 50-दौलतपुर 51-जीवणा 52-सियालजुड्डी या शाहजुड्डी 53-ओल्ली या माजरा 54-सडब्बर या शाहडब्बर 55-मदीनपुर 56-मेहलाना 57-हैदरनगर, जलालपुर 58-साहवली या सहावली 59-लखान 60-धनान या धनायन 61-बघरा कस्बा 62-शाहपुर कस्बा 63-मुजफ्फनगर
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बालियान खाप के उजड़े हुए गांव
1-शेऊपुर(सेवपुर) 2-आलमपुर(अल्लमपुर) 3-झिमरखेडा 4-मोम्मदपुर(ब्राह्मणो का गांव था जिसमे पाँच घर जाटो के थे) 5-सिलारो 6-टांडा 7-टिमकया 8-भावपुरा 9-पुरातावटी 10-कारों 11-ताण्ला 12-मकसूदपुर आदि। जय जाट पुरख
- https://www.facebook.com/kuldeep.pilania.jat630 कुलदीप_पिलानिया_बाँहपुरिया
इतिहास
ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है .... पंजाब के हिसार जिले को सभी लोग जाटों का जिला मानते हैं। ईरान में जगातू नदी के पास हिसार एक प्रसिद्ध शहर रह चुका है। अब तो वह उजाड़ पड़ा है। ईरान के हिसार
[पृ.153]: पास |सेई कलह और सहना दो प्रसिद्ध स्थान हैं। हम नहीं जानते पंजाब के हिसार के पास भी इन्हीं नाम के जाटों के कोई नगर हैं या नहीं। इसके अलावा दो हिसार हम अफगानिस्तान के भूगोल में आज भी पढ़ते हैं। एक बाला हिसार और दूसरा मूंदा हिसार है। क्या इन में से एक हो बालाइन जाटों का और दूसरे को मूंद जाटों का हिसाब कहना उचित नहीं होगा।
Distribution in Uttar Pradesh
Balyans are present in a very good number in Muzaffarnagar. They have nearly 100 villages here. Some popular villages are 1. Sisauli, 2. Kinoni, 3. Purbaliyan, 4. Savtoo, 5. Garhi Noabad,6. Shoron, Sauram 7. Bhajju. Balyan Jats are also found in Mukanpur village of Uttar Pradesh. Found in Kiwana village in Muzaffarnagar district.
Villages in Muzaffarnagar and Shamli district
Atali, Alawalpur Majra, Bahadurpur Garhi, Barwala, Bhajju, Bhaneda Jutt, Bhora Khurd, Bhora Kalan, Daulatpur Majra, Dhindhawali, Dulhara, Gohrani, Garhi Noabad (Gadhi Jaitpur), Goyala, Haidarnagar Jalalpur, Harsoli , Halauli, Jeevna, Kabirpur, Kadipur, Khanjahanpur, Kanjer Heri, Karwara, Kakra (Kakda), Kinauni, Kuhad, Kutba, Kutbi, Majra, Mandi, Mohamandpur, Mohammadpur Madan, Mukandpur, Morna, Mundbhar, Muzaffarnagar, Nagla Mubarik, Parai, Purbaliyan, Rasulpur, Rathur, Shoron, Shoram, Savtu, Sahawali, Sonta, Sisauli,
Villages in Bareilly district
Villages in Bulandshahar district
Bhansroli Nasirpur, Bhopur, Bondra, Chhaturiya, Khairpur, Shahzadpur Kanaini,
Villages in Aligarh district
Atari Aligarh, Basera urf Bisara, Narayanpur, Noshilpur, Taharpur, Visara,
Villages in Saharanpur district
Bhaupur Saharanpur, Dharampur Saravagi, Gangauli, Manoharpur Saharanpur, Meerpur Sitapur, Suhagani,
Villages in Hapur district
Villages in Meerut district
Bahadarpur Meerut, Daurala, Kalyan Pur,
Villages in Bijnor district
Nangal Jat, Rashidpur Garhi, Shaha Nagar,
Villages in Shamli district
Villages in Hariwar district
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Nimach district
Villages in Ratlam district
Villages in Ratlam district with population of this gotra are:
Ratlam 3,
Villages in Bhopal district
Balyan Jats are also found in Bhopal in Madhya Pradesh.
Villages in Mandsaur district
Also found in Mandsaur, Thauri (Mandsaur district)
Villages in Guna district
Locations in Jaipur city
Distribution in Haryana
Village in Yamunanagar district
Villages in Jhajjar district
Villages in Sonipat district
Villages in Rewari district
Distribution in Delhi
Distribution in Rajasthan
Villages in Tonk district
Aranya Kankad (4),
Villages in Barmer district
Villages in Sikar district
Distrbution in Punjab
Villages in Patiala district
- Salempur Balian is village in Patiala tahsil in Patiala district in Punjab.
Villages in Sangrur district
Distrbution in Bihar
Villages in Patna district
Distribution in Bihar
Baliyan (बालियान) gotra Jats found in Bihar.[10]
Notable persons
- Hari Ji (8th century AD)
- Sajjan Singh (Balyan) - Ruler of Satara (Maharashtra)
- Mahendra Singh Tikait
- Dhamalchand Balyan (ढलैत - वीर योद्धा/ बलशाली)
- Naresh Kumar Balyan - BJP MP
- Naresh Baliyan, Jaildar - Parsad Navada (Uttam Nagar,Delhi)
- Choudhary Kabul Singh - Jat historian
- A.K. Balyan - President of NIPM
- Ch. Vijay Rao - Chairman of Sarv Khap (12thcentury AD)
- Damal Chand - Senapati of Raja Bir Singh (15th century AD)
- Ch. Mahendra Singh Tikait - President, Bharatiya Kisan Union
- Ch. Purshottam Singh Baliyan - E.O, Urban Development, Himachal Pardesh
- Dr. Kiran Baliyan - Eminent Scientist and Research Scholar
- Dr. Ashok Kumar Balyan - Chief HRD and director (HR) of ONGC
- Krishan Pal Balyan- OSD to Speaker Meira Kumar , Delhi
- Pradeep Balyan - Rowing
- Rateesh Devi Balyan - Rowing
- Dr. Kaul Singh - ex MD of HARTRON
- Ch. Attar Singh - ex sirpanch of gram panchayat shoron, first secretary and founder of rashtriya inter college shahpur
- Hon'ble Mr. Justice Ved Pal, High Court Judge Allahabad (Lucknow Bench) http://www.allahabadhighcourt.in/service/judgeDetail.jsp?id=131. He is the first High Court Judge of Khap Baliyan. He had been Ex-Director of Judicial Training and Research Institute (JTRI) Lucknow, U.P., Former Member of State Law Commission, U.P., Chairman of Process Re-Engineering Team, Allahabad High Court, Executive Member of Supreme Court and High Courts Judges' Association. Presently, he is associated with E-committee of Hon'ble Supreme Court of India.
- Sh. Brajpal Singh, Ex Chief Executive, food processing unit, received Niryat Ratan Award BY Indian Council of Small & Medium Industries
- Sh. Kiranpal Singh, headman of village Shoron (District Muzaffarnagar), and a renowned personality in social work. He had been Secretary of Rashtriya Inter College, Shahpur, District Muzaffarnagar
- Sh. Vivek Kumar Singh, Advocate Allahabad High Court
- Sh. Ajay Kumar Singh, Additional District and Sessions Judge
- Mr. Vinay Singh, MBA (Mumbai), Manager Prepaid IDEA,
- Dr. Swati Singh, MBBS, MD (OBs & GYNAE)
- Tej Veer Singh (Balyan) - IFS (Retd.), From: Village Kabirpur, tehsil Shahpur, Muzaffarnagar, U.P.
- Dr. Ajeet Kumar Baliyan - Alawalpur Majra, Muzaffarnagar, U.P.
- Dr. Sanjeev Kumar Balyan - MP from Muzaffarnagar, U.P. constituency from 2015, Ex. Agriculture & Food Processing Union Minister, currently moved to Union Minister of Water Resource & Ganga Plan in July 2016.
- Sh J P Baliyan S/o Sh Bhullan Singh Retd EX. BDO Village Alawalpur Majra
References
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.51,s.n. 1711
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ब-67
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.51,s.n. 1704
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ब-109
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.50, s.n. 1649
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 268
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p. 19
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.234-
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Navam Parichhed,p.152-153
- ↑ हवा सिंह सांगवान:असली लुटरे कौन, 2009, पृ. 84
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