Palsana

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Location of Palsana in Sikar district

Palsana (पलसाना) is a city in tahsil Danta Ramgarh in Sikar district in Rajasthan.

Origin

It was founded by Palsania clan of Jats.

Jat Gotras

Location

It is situated on National highway-11 at a distance of 25 km from Sikar in south direction. As of 2001 census it has population of 13251 out of them 2092 are SC and 321 are ST people. Geographical location :27° 29' 0" North, 75° 22' 0" STD code is 1576 Pin Code is 332402

History

विजयराणिया (1078-1515 ई.): विजयराणिया सिकन्दर महान् के समय के प्रतीत होते हैं। यूनानी लेखकों ने जो कि सिकन्दर के साथ भारत में आये थे, विजयराणिया लोगों का हाल लिखते समय उनके नाम का अर्थ लिख डाला। विजयराणिया यह इनका उपाधिवाची नाम है। रण-क्षेत्र में विजय पाने से इनके योद्धाओं को विजयराणिया की उपाधि मिली थी। जागा (भाट) लोगों ने इन्हें तोमर जाटों में से बताया है। हम उन्हें पांडुवंशी मानते हैं। कुछ लोगों का ऐसा मत है कि तोमर भी पांडुवंशी हैं। भाट लोगों ने इनके सम्बन्ध में लिख रखा है-‘‘सोमवंश, विश्वामित्र गोत्र, मारधुने की शाखा, 3 प्रवर’’। कहा जाता है संवत् 1135 विक्रमी (1078 ई.) में नल्ह के बेटे विजयसिंहराणिया ने बीजारणा खेड़ा बसाया। फिर संवत् 1235 में (1178 ई.) लढाना में गढ़ बनवाया। लढाने में गढ़ के तथा घोड़ों की घुड़साल के चिन्ह अब तक पाए जाते हैं। उस समय देहली में बादशाह अल्तमश (1211–1236 ई.) राज्य करता था। अन्य देशी रजवाड़ों की भांति विजयराणिया लोग भी विद्रोही हो गये। इस कारण अल्तमश को उनसे लड़ना पड़ा। इन्हीं लोगों में आगे जगसिंह नाम का योद्धा हुआ, उसने पलसाना पर अधिकार कर लिया और कच्ची गढ़ी बनाकर आस-पास के गांवों पर प्रभुत्व कायम कर लिया। यह घटना संवत् 1312 (1255 ई.) विक्रमी की है। संवत् 1572 (1515 ई.) में इस वंश में देवराज नाम का सरदार हुआ। इस समय शेखावतों और कछवाहों के राज्य का विस्तार हो रहा था। जयपुर राज्य के कई स्थानों में ये लोग पाये जाते हैं। इस वंश के लोग बहादुर होते हैं, साथ ही जाति-भक्त भी। यद्यपि इस समय उनके पास राज्य नहीं है, फिर भी वंश गौरव अब तक उनके हृदय में है। उसके उदाहरण मा. भजनलाल अजमेर और चौ. लादूराम गोवर्धनपुरा के हृदयों मे टटोले जा सकते हैं।

माली जाटों के इतिहास में

विक्रम संवत 1192 (=1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान के बाद मलसी ने मालीसर गांव बसाया- वैशाख सुदी आखा तीज के दिन विक्रम संवत 1194 साल (=1137 ई.)। जहां मलसी ने पनघट का कुआं खुदवाया, जोहड़ खुदवाया, सवा सौ बीघा पड़तल भूमि छोड़ी तथा महादेव जी की छतरी करवाई। [1]

मलसी माली (1135 ई.) (पत्नि:सुंदर पूनिया पुत्री जोधराज पूनिया, चन्द्रा की पोती ) → धरमा (पत्नि:हेमी गोदारा, पुत्री मेहा गोदारा/हिदु की पोती) → जैतपाल (पत्नि: रायमल भावरीया, की पुत्री सायर) (भाई: करमसी, बहिन: राजां, जोरां) → उदय (पत्नि: सुलखा हरचतवाल की बेटी सिणगारी) (भाई रतन, जीवराज, बहिन सरस्वती) → धनराज (बहिन गणी) [2]

धरमा माली ने बेटी राजा व जोरां का विवाह किया- वैशाख सुदी तीज विक्रम संवत 1278 (=1221 ई.) विवाह में 21 गायें दहेज में दी। विक्रम संवत 1329 (=1272 ई.) में मालीसर गांव में धर्मा की याद में करमसीजैतपाल ने ₹900 में पानी की 'पीय' कराई तथा विक्रम संवत 1338 (=1281 ई.) में मालीसर गांव में दान किया। विक्रम संवत 1342 (=1286 ई.) में मालीसर गांव में चौधरी उदय ने दान कार्य किया। (करमसी की पत्नि महासी निठारवाल की बेटी हरकू थी- वंश विराम)[3]

चौधरी उदयसी, रतनसी, जीवराज गांव मालीसर छोड़ पलसाना बसे- वैशाख सुदी 7 विक्रम संवत 1352 (=1295 ई.) (शनिवार) के दिन सवा पहर दिन चढ़ते समय छड़ी रोपी। [4]

विक्रम संवत 1513 (=1456 ई.) में चौधरी घासीराम माली पलसाना छोड़कर कासली बसा। [5]

वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1732 की साल (28 अप्रैल 1675 ई.) में चौधरी खडता व धर्मा ने कासली छोड़ गांव पूरां बसाया। [6]

विक्रम संवत 1746 (1689 ई.) की साल धर्मा ने पुरां में धर्माणा जोहड़ा खुदवाया। कार्तिक सुदी सात विक्रम संवत 1754 (=1697 ई.) में चौधरी पांचू, बीजा, लौहट ने पिता धर्मा का मौसर किया। वह गंगाजी घाल गंगोज कराया। विक्रम संवत 1780 (=1723 ई.) की साल चौधरी पांचू/बाछू ने दान कार्य किया। [7]

माली गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम:

रुल्याणा माली गांव के माली गोत्र के पूर्वज तुर्कों के सांभर पर आक्रमण के फलस्वरूप विक्रम संवत 1192 (1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान कर गए तथा विक्रम संवत 1194 (1137 ई.) की साल के किसी दिन छड़ी रोककर मालीसर गाँव बसाया। माली गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम निम्न तरह से मिलता है[8]:

सांभर (विक्रम संवत 1192 = 1135 ई.) → मालीसर (विक्रम संवत 1194 = 1137 ई.) → पलसाना (विक्रम संवत 1352 = 1295 ई.) → कासली (विक्रम संवत 1513 = 1446 ई.) → छापर (विक्रम संवत 1518 = 1461 ई.) → बाड़ा (विक्रम संवत 1522 = 1465 ई.) → बुसड़ी खेड़ा (?) (विक्रम संवत 1525 = 1468 ई.) → भींवसर (विक्रम संवत् 1535 ई. = 1478 ई.)

कासली (विक्रम संवत 1513= 1446 ई.) → पुरां डूंगरा की (विक्रम संवत 1732= 1675 ई.) → रुल्याणा माली (वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1841 = 22 अप्रैल 1784)

झाड़ी वाले माली ढूंढाड़बादलवासदुगोलीरुल्याणा माली

पलसाना से क्रमिक स्थानांतरण के लगभग चार सौ साल बाद माली पुरां (डूंगरा की) बसे और वहां से करीब सौ साल बाद दीपा माली का बेटा पीथा माली रुल्याणा माली में आकर बसा।

पलसाना किसान सम्मेलन 1943

ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है ....पलसाना के पास बिजारणिया जाटों की एक ढाणी है। यही के वाशिंदे चौधरी सेडूराम जी बिजारणिया है। आपका जन्म संवत 1959 (1902 ई.) विक्रमी में चौधरी भानाराम जी के घर हुआ था। आपने चौधरी लादूराम जी के आदेश पर संवत 2000 विक्रमी (1943 ई.) में एक शानदार किसान सम्मेलन पलसाना में कराया जिसके सभापति जयपुर के प्रसिद्ध वकील श्री चिरंजीलाल जी अग्रवाल थे। इस सम्मेलन के बाद आपके ऊपर भारत रक्षा कानून के अंतर्गत मुकदमा भी चलाया गया जिसमें आप बरी हो गए। आप बराबर किसानों के हित के कामों में दिलचस्पी से भाग लेते हैं और उम्मीद है कि आगे आप और भी अधिक काम करके दिखाएं।

Notable persons

Gallery

External links


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  1. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
  2. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
  3. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
  4. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
  5. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
  6. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
  7. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
  8. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.72
  9. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.461-462