Foolan Devi

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Foolan Devi (फूलां देवी) was a freedom fighter and social worker from Mandasi, Jhunjhunu, Rajasthan. She was mother of Har Lal Singh Mandasi. She was born in the village ...... Jhunjhunu, Rajasthan

A family committed for freedom

Jagirdars imprisoned Sardar Har Lal Singh in 1938 for one year in two cases against him. During this period his mother Foolan Devi and wife Kishori Devi took his place so that the movement is not adversely affected. They took a group of women in year 1939 and reached Jaipur for satyagrah. Both were arrested and put in Jail. Kishori Devi had his 6-month-old son with her who was also kept in Jail. His mother Foolan Devi was released from Jail only after when she was seriously ill. Seth Jamana Lal Bajaj and Hira Lal Shastri tried their best to take her to Jaipur for treatment but she refused to leave his village. His wife Kishori Devi was also active and took part in all the movements, rallies, gatherings etc for the freedom from 1930 - 1947. Her role in the awakening of women in Jhunjhunu district was unique.

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....चौधरी हरलालसिंह जी - [पृ.404]: सांगासी के पड़ोस में मांडासी एक गांव है। वही के चौधरी आसाराम जी के घर में आज से 46 वर्ष पूर्व चौधरी लाल सिंह ने जन्म लिया था। आप बोलते कम हैं और काम


[पृ.405]: ज्यादा करते हैं। सरदार हरलाल सिंह जी के अनन्य साथियों में आपका पहला स्थान है। आपने आरंभ में जाट सभा और जाट पंचायत का काम बड़े परिश्रम से किया। फिर आप प्रजामंडल में शामिल हो गए। जयपुर के प्रथम सत्याग्रह में आपकी माताजी (फूलां देवी) ने मुकुंदगढ़ वीरतापूर्ण सत्याग्रह आरंभ किया था और जिस में वहां की सुस्त जनता में जो जोश आरंभ हुआ था उसकी याद अमिट है। आप पुत्री शिक्षा और नारी स्वतंत्रता के बड़े प्रेमी हैं। आप की सुपुत्री सुवीरा देवी शेखावाटी की प्रथम जाट ग्रेजुएट कन्या है जिन्होंने बनस्थली विद्यापीठ में शिक्षा प्राप्त की है। आप बूरी गोत्र के जाट हैं।

किसान आन्दोलन का दमन

किसान आन्दोलन के दमन का सबसे भयंकर दृश्य शेखावाटी में था. जहाँ किसानों पर घोड़े दौडाए गए और जगह-जगह लाठी चार्ज हुआ. झुंझुनूं में 1 से 4 फ़रवरी 1939 तक एकदम अराजकता थी. पहली फ़रवरी को पंचायत के 6 जत्थे निकले, जिसमें तीस आदमी थे. इनको बुरी तरह पीटा गया. दो सौ करीब मीणे और करीब एक सौ पुलिस सिपाहियों ने जो कि देवी सिंह की कमांड में घूम रहे थे, लोगों को लाठियों और जूतों से बेरहमी से पीटा. जत्थे के नायक राम सिंह बडवासीइन्द्राज को तो इतना पीटा कि वे लहूलुहान हो गए. रेख सिंह (सरदार हरलाल सिंह के भाई) को तो नंगा सर करके जूतों से इतना पीटा कि वह बेहोश हो गए. उनकी तो गर्दन ही तोड़ दी. चौधरी घासी राम, थाना राम भोजासर, ओंकार सिंह हनुमानपुरा, मास्टर लक्ष्मी चंद आर्य और गुमान सिंह मांडासी की निर्मम पिटाई की. इन दिनों जो भी किसान झुंझुनू आया उसको सिपाहियों ने पीटा. यहाँ तक कि घी, दूध बेचने आने वाले लोगों को भी पीटा गया. [2]

महिलाओं का जत्था - बाद में यह निर्णय हुआ की शेखावाटी के आन्दोलनकारी जत्थे बनाकर जयपुर जायेंगे और वहां धरना देंगे. पंडित तदाकेशावर शर्मा की योजना थी की पहले महिलाओं का जत्था झुंझुनू से जयपुर भेजा जाय. 18 मार्च की तिथि तय की गयी. अब जत्थे निरंतर जयपुर भेजे जाने लगे. श्रीमती दुर्गादेवी (पंडित ताड़केश्वर शर्मा की पत्नी) पचेरी के नेतृत्व में महिलाओं ने जयपुर के जौहरी बाजार में गिरफ़्तारी दी. इन महिलाओं में ऐसी भी शामिल थीं जिनकी गोद में अति अल्पायु के शिशु थे. सब पर सत्याग्रह का जूनून चढ़ा था, अतः व्यक्तिगत सुख-स्वार्थ की बात पीछे छूट गयी थी. इस जत्थे में किशोरी देवी पत्नी ख्याली राम भामरवासी , फूलां देवी माता हरलाल सिंह मांडासी , रामकुमारी पत्नी हरलाल सिंह मांडासी, गोरा पत्नी गंगासिंह हनुमानपुरा, मोहरी देवी पत्नी सुखदेव पातुसरी आदि प्रमुख रूप से सम्मिलित हुई. (राजेन्द्र कसवा, p. 172)

19 मार्च 1939 को एक जत्था, जिसमें करीब 50 महिलाएं थीं, किशोरी देवी (धर्म पत्नी सरदार हरलाल सिंह) के नेतृत्व में गिरफ़्तारी देने जयपुर गया परन्तु उनके पहुँचने से पहले ही सत्याग्रह समाप्त हो गया अतः वे जयपुर से लौट आईं. आगे चलकर समझौता होने पर सभी गिरफ्तार लोगों को जेल से रिहा कर दिया. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 40)

1 मार्च 1939 को किसान दिवस का आयोजन

जयपुर राज्य की किसान विरोधी नीति के कारण पूरे राज्य में 1 मार्च 1939 को किसान दिवस मानाने का निर्णय प्रजामंडल ने लिया. झुंझुनू में भी किसान दिवस मनाने की जोरों से तैयारी होने लगी. इसी समय प्रजामंडल के आगरा कार्यालय ने घोषणा की कि सरदार हरलाल सिंह 15 मार्च 1939 को झुंझुनू में गिरफ़्तारी देंगे. इससे लोगों में जोश की लहर फ़ैल गयी. किसानों ने 15 मार्च के लिए सत्याग्रहियों के जत्थे तैयार करने शुरू कर दिए. हर गाँव में लोग सत्याग्रही बनाने को तैयार थे. 15 मार्च के दिन नगर के चारों और घोड़ों पर चढ़े पुलिस स्वर चक्कर लगा रहे थे. सर्वत्र पुलिस फैली हुई थी. शहर का कोई आदमी नजर नहीं आ रहा था. पूरे शहर में धरा 144 लगी हुई थी. सुबह दस बजे का समय था. अचानक शहर की सरहदों से 'इन्कलाब जिंदाबाद' के नारे सुनाई देने लगे. झुंझुनू शहर के हर कोने से सत्याग्रहियों के जत्थे प्रविष्ट होने लगे. पुलिस का लाठी चार्ज शुरू हो गया. लाठियों की बौछार के बीच ही सत्याग्रही आगे बढ़ते गए. लोग खून से लथपथ हो गए. इसी समय सारा पुलिस घेरा तोड़कर सरदार हरलाल सिंह वहां पहुँच गए और भाषण देना शुरू कर दिया. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर सेन्ट्रल जेल भेज दिया. इस प्रकार जयपुर राज्य और ठिकानेदारों की समस्त चालों और दुरभि संधियों को नाकाम करते हुए सरदार हरलाल सिंह ने अपना लक्ष्य पूरा किया. उनकी गिरफ़्तारी से बड़ी उत्तेजना फ़ैल गयी. लोगों के जत्थे निरंतर आते रहे और गिरफ्तार होते रहे. जनता पर इस समय जो कहर ढाए वे वर्णनातीत हैं. सैंकड़ों लोग बेहोश होकर गलियों में गिर पड़े. अनेकों के सर से रक्त की धरा बह निकली, पर उन्होंने झंडे को झुकने नहीं दिया. विद्यार्थी भवन से छात्रों की एक टोली झंडा लेकर निकली जिसे बेरहमी से पीटा गया. [3]

सरदार हरलाल सिंह के झुंझुनू पहुँचने की कहानी बड़ी रोचक है. पुलिस ने कमर कसली थी कि 15 मार्च 1939 को हरलाल सिंह तो क्या. किसी भी किसान को झुंझुनू नहीं पहुँचने दिया जायेगा. सरदार हरलाल सिंह आगरा में थे. पुलिस की योजना थी कि उन्हें रास्ते में ही गिरफ्तार किया जाये. लेकिन सरदार निश्चित दिवस से दो दिन पूर्व ही आगरा से रवाना हो गए. वे नारनौल तक गाड़ी में गए. वहां भेष बदला और ऊँट पर स्वर होकर रात को गुमनाम रास्ते से झुंझुनू के लिए चल पड़े. काटली नदी के किनारे बसे गाँव भामरवासी में वे ख्याली राम के घर रुके. दूसरी रात्रि को वे छुपते-छुपाते, झुंझुनू से सटी नेत की ढाणी में पहुंचे. वहां से पैदल चलकर झुंझुनू के एक सेठ रंगलाल गाड़िया के घर छुप गए. पुलिस और घुड़सवार पैनी दृष्टि गडाए थे लेकिन लम्बे-चोडे डील-डौल वाले सरदार हरलाल सिंह ने उनको चकमा दे दिया. उनको आगरा से सुरक्षित झुंझुनू पहुँचाने में ख्याली राम भामरवासी का विशेष योगदान बताया जाता है. ख्याली राम के साथ दु:साहसी युवकों की टोली रहती थी जो जोखिम भरे कार्य करने में हमेशा आगे रहती थी. [4]

सत्याग्रही किसान गाँवों से टिड्डी दल की तरह उमड़ पड़े. तिरंगा झंडा लिए महात्मा गाँधी की जय, पंडित नेहरु की जय, ब्रिटिश हुकूमत का नाश हो, जागीरदारी प्रथा ख़त्म हो, सरदार हरलाल सिंह की जय के नारे लगाते हुए आगे बढ़ने लगे. रेलवे स्टेशन के पास हजारों आदमियों को पुलिस व घुड़सवारों ने घेर रखा था. उन पर भयंकर बल प्रयोग किया गया. चार वर्ग किमी में घोड़े दौडाए गए , लाठी चार्ज किया गया परन्तु सत्याग्रहियों का आना जारी रहा. पुरुष जत्थों के पीछे महिला जत्थों का आना प्रारंभ हुआ. पुलिस एक बरगी हैरान रह गयी और आखिर उन पर टूट पडी. वीर महिलाएं अपने साथ सैंकड़ों अन्य महिलाओं को लेकर पहुँचीं. उन्होंने तिरंगे के पास पुलिस को फटकने नहीं दिया और आगे बढती गईं. पुलिस ने इन पर भी अकथनीय अत्याचार किये. निहत्थी और सर्वथा अहिंसक भीड़ पर घोड़े दौड़कर जागीरदारों ने नृशंस अत्याचार की पराकाष्ठ कर दी थी. [5]

अब जत्थे निरंतर जयपुर भेजे जाने लगे. श्रीमती दुर्गादेवी (पंडित ताड़केश्वर शर्मा की पत्नी) पचेरी ने जयपुर के जौहरी बाजार में गिरफ़्तारी दी. इन महिलाओं में ऐसी भी शामिल थीं जिनकी गोद में अति अल्पायु के शिशु थे. सब पर सत्याग्रह का जूनून चढ़ा था, अतः व्यक्तिगत सुख-स्वार्थ की बात पीछे छूट गयी थी. एक जत्था, जिसमें करीब 50 महिलाएं थीं, किशोरी देवी (धर्म पत्नी सरदार हरलाल सिंह) के नेतृत्व में गिरफ़्तारी देने जयपुर गया परन्तु उनके पहुँचने से पहले ही सत्याग्रह समाप्त हो गया अतः वे जयपुर से लौट आईं. आगे चलकर समझौता होने पर सभी गिरफ्तार लोगों को जेल से रिहा कर दिया. [6]

पाठ्यपुस्तकों में स्थान

शेखावाटी किसान आंदोलन ने पाठ्यपुस्तकों में स्थान बनाया है। (भारत का इतिहास, कक्षा-12, रा.बोर्ड, 2017)। विवरण इस प्रकार है: .... सीकर किसान आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सीहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा सोतिया का बास नामक गांव में किसान महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी की अध्यक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। सीकर ठिकाने ने उक्त सम्मेलन को रोकने के लिए धारा-144 लगा दी। इसके बावजूद कानून तोड़कर महिलाओं का यह सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। जिनमें श्रीमती दुर्गादेवी शर्मा, श्रीमती फूलांदेवी, श्रीमती रमा देवी जोशी, श्रीमती उत्तमादेवी आदि प्रमुख थी। 25 अप्रैल 1935 को राजस्व अधिकारियों का दल लगान वसूल करने के लिए कूदन गांव पहुंचा तो एक वृद्ध महिला धापी दादी द्वारा उत्साहित किए जाने पर किसानों ने संगठित होकर लगान देने से इनकार कर दिया। पुलिस द्वारा किसानों के विरोध का दमन करने के लिए गोलियां चलाई गई जिसमें 4 किसान चेतराम, टीकूराम, तुलसाराम तथा आसाराम शहीद हुए और 175 को गिरफ्तार किया गया। हत्याकांड के बाद सीकर किसान आंदोलन की गूंज ब्रिटिश संसद में भी सुनाई दी। जून 1935 में हाउस ऑफ कॉमंस में प्रश्न पूछा गया तो जयपुर के महाराजा पर मध्यस्थता के लिए दवा बढ़ा और जागीरदार को समझौते के लिए विवश होना पड़ा। 1935 ई के अंत तक किसानों के अधिकांश मांगें स्वीकार कर ली गई। आंदोलन नेत्रत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में थे- सरदार हरलाल सिंह, नेतराम सिंह गौरीर, पृथ्वी सिंह गोठड़ा, पन्ने सिंह बाटड़ानाउ, हरु सिंह पलथाना, गौरू सिंह कटराथल, ईश्वर सिंह भैरूपुरा, लेख राम कसवाली आदि शामिल थे। [7]

Gallery

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.404-405
  2. (डॉ पेमाराम, शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p. 167)
  3. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 39
  4. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 170
  5. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 39
  6. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 40
  7. भारत का इतिहास कक्षा 12, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, 2017, लेखक गण: शिवकुमार मिश्रा, बलवीर चौधरी, अनूप कुमार माथुर, संजय श्रीवास्तव, अरविंद भास्कर, p.155

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