Har Lal Singh Buri

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Harlal Singh Buri (चौधरी हरलालसिंह बूरी), from village Mandasi, Nawalgarh , Jhunjhunu), was a leading Freedom fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. His mother Foolan Devi and wife Ram Kumari also led the women group of Shekhawati farmers movement in 1939.

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....चौधरी हरलालसिंह जी - [पृ.404]: सांगासी के पड़ोस में मांडासी एक गांव है। वही के चौधरी आसाराम जी के घर में आज से 46 वर्ष पूर्व चौधरी लाल सिंह ने जन्म लिया था। आप बोलते कम हैं और काम


[पृ.405]: ज्यादा करते हैं। सरदार हरलाल सिंह जी के अनन्य साथियों में आपका पहला स्थान है। आपने आरंभ में जाट सभा और जाट पंचायत का काम बड़े परिश्रम से किया। फिर आप प्रजामंडल में शामिल हो गए। जयपुर के प्रथम सत्याग्रह में आपकी माताजी (फूलां देवी) ने मुकुंदगढ़ वीरतापूर्ण सत्याग्रह आरंभ किया था और जिस में वहां की सुस्त जनता में जो जोश आरंभ हुआ था उसकी याद अमिट है। आप पुत्री शिक्षा और नारी स्वतंत्रता के बड़े प्रेमी हैं। आप की सुपुत्री सुवीरा देवी शेखावाटी की प्रथम जाट ग्रेजुएट कन्या है जिन्होंने बनस्थली विद्यापीठ में शिक्षा प्राप्त की है। आप बूरी गोत्र के जाट हैं।

हरलाल सिंह मांडासी का जीवन परिचय

सन 1925 में पुष्कर सम्मलेन के पश्चात् शेखावाटी में दूसरी पंक्ति के जो नेता उभर कर आये, उनमें आपका प्रमुख नाम हैं [2]

किसान आन्दोलन का दमन

किसान आन्दोलन के दमन का सबसे भयंकर दृश्य शेखावाटी में था. जहाँ किसानों पर घोड़े दौडाए गए और जगह-जगह लाठी चार्ज हुआ. झुंझुनूं में 1 से 4 फ़रवरी 1939 तक एकदम अराजकता थी. पहली फ़रवरी को पंचायत के 6 जत्थे निकले, जिसमें तीस आदमी थे. इनको बुरी तरह पीटा गया. दो सौ करीब मीणे और करीब एक सौ पुलिस सिपाहियों ने जो कि देवी सिंह की कमांड में घूम रहे थे, लोगों को लाठियों और जूतों से बेरहमी से पीटा. जत्थे के नायक राम सिंह बडवासीइन्द्राज को तो इतना पीटा कि वे लहूलुहान हो गए. रेख सिंह (सरदार हरलाल सिंह के भाई) को तो नंगा सर करके जूतों से इतना पीटा कि वह बेहोश हो गए. उनकी तो गर्दन ही तोड़ दी. चौधरी घासी राम, थाना राम भोजासर, ओंकार सिंह हनुमानपुरा, मास्टर लक्ष्मी चंद आर्य और गुमान सिंह मांडासी की निर्मम पिटाई की. इन दिनों जो भी किसान झुंझुनू आया उसको सिपाहियों ने पीटा. यहाँ तक कि घी, दूध बेचने आने वाले लोगों को भी पीटा गया. [3]

महिलाओं का जत्था - बाद में यह निर्णय हुआ की शेखावाटी के आन्दोलनकारी जत्थे बनाकर जयपुर जायेंगे और वहां धरना देंगे. पंडित तदाकेशावर शर्मा की योजना थी की पहले महिलाओं का जत्था झुंझुनू से जयपुर भेजा जाय. 18 मार्च की तिथि तय की गयी. अब जत्थे निरंतर जयपुर भेजे जाने लगे. श्रीमती दुर्गादेवी (पंडित ताड़केश्वर शर्मा की पत्नी) पचेरी के नेतृत्व में महिलाओं ने जयपुर के जौहरी बाजार में गिरफ़्तारी दी. इन महिलाओं में ऐसी भी शामिल थीं जिनकी गोद में अति अल्पायु के शिशु थे. सब पर सत्याग्रह का जूनून चढ़ा था, अतः व्यक्तिगत सुख-स्वार्थ की बात पीछे छूट गयी थी. इस जत्थे में किशोरी देवी पत्नी ख्याली राम भामरवासी , फूला देवी माता हरलाल सिंह मांडासी , रामकुमारी पत्नी हरलाल सिंह मांडासी, गोरा पत्नी गंगासिंह हनुमानपुरा, मोहरी देवी पत्नी सुखदेव पातुसरी आदि प्रमुख रूप से सम्मिलित हुई. (राजेन्द्र कसवा, p. 172)

19 मार्च 1939 को एक जत्था, जिसमें करीब 50 महिलाएं थीं, किशोरी देवी (धर्म पत्नी सरदार हरलाल सिंह) के नेतृत्व में गिरफ़्तारी देने जयपुर गया परन्तु उनके पहुँचने से पहले ही सत्याग्रह समाप्त हो गया अतः वे जयपुर से लौट आईं. आगे चलकर समझौता होने पर सभी गिरफ्तार लोगों को जेल से रिहा कर दिया. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 40)

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.404-405
  2. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 100
  3. (डॉ पेमाराम, शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p. 167)

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