Ratan Lal Mishra

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Dr Ratan Lal Mishra

Ratan Lal Mishra (रतन लाल मिश्र) is an author and historian from Mandawa in Jhunjhunu district of Rajasthan. He is retired Deputy Director from Public Relations Department. He is credited for his contribution to Jat History. He discovered origin of many villages and towns founded by Jats in Rajasthan.

List of Jat villages described by Mishra

  • Bissau (बिसाहू) or Bisau (बिसाहू)is a town in Jhunjhunun district in Rajasthan. Its old name was 'Vishala Jat Ki Dhani' (विशाला जाट की ढाणी). Keshari Singh son of Shardul Singh of Sikar Thikana got this village in Jagir. Keshari Singh constructed a palace here and the boundary wall for defence and named this habitation as Bissau in samvat 1812 (1755 AD). [1]
  • Fatehpur Sikar (फतेहपुर) - It is a town in Sikar district in Rajasthan. The village was known as Jaton Ka Bas before Kayamkhani Ruler Fatehkhan renamed as Fatehpur in 1451 AD. [2]Earlier the area belonged to Chaudhari Ganga Ram. [3] रतन लाल मिश्र[4]लिखते हैं कि एक दूसरा प्रमाण भी है जो फतेहपुर नगर के बसने की बात को थोड़ा पीछे ले जाता है. फ़तेहखां फतेहपुर आया तो अपने साथ पंडित, सेठ, साहूकार लेकर आया. श्री किशनलाल ब्रह्मभट्ट की बही के लेख से ज्ञात होता है कि फ़तेहखां हिसार से संवत 1503 में ही इधर आ गया था. इस बही में यों लिखा है -
"हरितवाल गोडवाल नारनोल से फतेहपुर आया, संवत 1503 की साल नवाब फ़तेहखां की वार में चौधरी गंगाराम की बार में."
  • Mandawa (मंडावा) is a town in Jhunjhunu district of Rajasthan in India. Mandu Jat founded Mandawa village. He first established a dhani (helmet) and dug a well here, which was completed on savan badi 5 samvat 1797 (1740 AD) [8]. Initially this place was known as ‘Mandu ki dhani’, ‘Mandu ka bas’ or ‘Manduwas’ which changed to ‘Manduwa’, ‘Mandwa’ and finally ‘Mandawa’. [9] रतन लाल मिश्र लिखते हैं कि शार्दुल सिंह का एक अन्य पुत्र नवल सिंह था. इसने झुंझुनू से दक्षिण की और 24 मील दूर रोहिली नामक स्थान पर गढ़ बनाकर एक गाँव बसाया जिसे नवलगढ़ नाम दिया गया. यह बात विक्रम संवत माघ शुक्ल 2, 1974 की है. इसने गंगवाने की लडाई में भाग लिया था. इसने अनेकों लड़ाइयों में भाग लिया जिनमें बहल, सिहाणी एवं ढूंढ मुख्य हैं. विक्रम संवत 1812 में इसने मांडू जाट की बस्ती में एक गढ़ बनाकर गाँव बसाया तथा उसे मंडावा नाम दिया गया. [10] मंडावा नगर शेखावतों के आने से पहले बस गया था. यह बात मंडावे के बाइयों के मंदिर के नाम से विख्यात देवालय के विद्वान संत वृजदास जी की बही के उल्लेख से पता लगता है. उस समय इसका नाम मांडवा या मांडवी था. नगर में भागचंद के लड़िये, गोयनके और हरलालके बस गए थे. बही में 13 रुपये 11 आने मांडू जाट की कूई की नाल के चक हेतु चैत बदी 8 विक्रम संवत 1788 की तिथि लिखी है. इससे ज्ञात होता है कि संवत 1788 (=1731 ई.) तक मांडू जाट की कच्ची कुई विद्यमान थी और मांडू ने इस स्थान को काफी वर्षों पहले बसाया था. [11]
  • Nawalgarh (नवलगढ) is a town and tahsil in Jhunjhunu district in Rajasthan. Its original name was Rohili (रोहिली). It was inhabited by Rohela (रोहेला) Jats. Thakur Nawal Singh , son of Shardul Singh , constructed a fort in Jhunjhunu district of Rajasthan on magha shukla 2 samvat 1794 (1738 AD) at place called Rohili (रोहिली) and named it Nawalgarh after him. Thakur Nawal Singh took part in many wars like Gagwana, Bahal, Sihani and Dhundh. He also constructed a fort on the habitation of Mandu Jat and named it Mandawa in vikram samvat 1812 (1755 AD). [12]

जीवन परिचय

Dr Ratan Lal Mishra

डॉ रतन लाल मिश्र शेखावाटी क्षेत्र के मंडावा नगर के निवासी हैं। जनसंपर्क विभाग राजस्थान से उप निदेशक के पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात उन्होंने अपना सारा समय लेखन और अध्ययन में लगाया। यह कला साहित्य और इतिहास के क्षेत्र में शोध कार्य में लगे रहे। अब तक इनकी 50 से अधिक पुस्तकें अंग्रेजी, हिंदी तथा राजस्थानी भाषा में प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने कई बृहद ग्रंथों का संपादन भी किया है। हाल ही में साहित्य एवं इतिहास तथा संस्कृति के क्षेत्र में सफल लेखन के लिए मेवाड़ फाउंडेशन अवार्ड के अंतर्गत महाराणा कुंभा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसके अतिरिक्त राजस्थान विश्वविद्यालय से ये स्वर्ण पदक विभूषित हैं। साहित्यकार अकादमी राजस्थान द्वारा इन्हें सहल पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। आपने प्राचीन भारत के विविध पक्षों पर भी शोध कार्य किया है।

रतन लाल मिश्र द्वारा लिखित पुस्तकें

1. Shekhawati Ka Navin Itihas (शेखावाटी का नवीन इतिहास),

Kutir Prakashan, Mandawa, Jhunjhunu, 1998.

2. जननायक श्री दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ -

संपादक: डॉ. रतनलाल मिश्र,

सह संपादक:डॉ. भीमसेन शर्मा, मंत्री अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन समिति,

प्रकाशक: सत्यप्रकाश मालवीय, अध्यक्ष जननायक दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन समिति, जयपुर।

प्रथम संस्करण 2008

शेखावाटी का नवीन इतिहास:कुछ पृष्ठ

जननायक श्री दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ

Jananayak Shri Daulat Ram Saran Abhinandan Granth is the book published in 2008 on the life of prominent leader of Rajasthan Daulat Ram Saran to commemorate his 85th birthday.

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें - जननायक श्री दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

  1. Ratan Lal Mishra:Shekhawati ka Navin Itihas, Kutir Prakashan, mandawa, Jhunjhunu, 1998,p. 171
  2. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 210
  3. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, कुटीर प्रकाशन मंडावा, 1998, पृ. 89
  4. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, कुटीर प्रकाशन मंडावा, 1998, पृ. 89
  5. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, १९९८, पृ.41
  6. ब्रूतेसम्प्रति चाहमानतिलको शाकंभरी भूपति: । श्रीमद्विग्रहरज एव विजयी संतानजान्नात्मजान ॥ अस्मामि: करदं व्यवधायि हिमवद्विन्ध्यान्तरांला भुव:। शेष स्वीकरणायमास्तु भवतामुद्द्योग शून्यो मन: ॥ Epigraphia Indica Vol.19 p. 218
  7. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, १९९८, पृ.257
  8. Shekhawati Bodh, A monthly magazine of Shekhawati region, Mandawa special issue, July 2005
  9. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 217
  10. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, कुटीर प्रकाशन मंडावा, 1998, पृ. 171
  11. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, कुटीर प्रकाशन मंडावा, १९९८, पृ. १८३
  12. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, कुटीर प्रकाशन मंडावा, १९९८, पृ. १७१

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