Jananayak Shri Daulat Ram Saran Abhinandan Granth

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Jananayak Shri Daulat Ram Saran Abhinandan Granth is the book published in 2008 on the life of prominent leader of Rajasthan Daulat Ram Saran to commemorate his 85th birthday.

दौलतराम सारण पर अभिनंदन ग्रंथ

जननायक श्री दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ -

संपादक: डॉ. रतनलाल मिश्र,

सह संपादक:डॉ. भीमसेन शर्मा, मंत्री अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन समिति,

प्रकाशक: सत्यप्रकाश मालवीय, अध्यक्ष जननायक दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन समिति, जयपुर।

प्रथम संस्करण 2008

नोट - श्री दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ उनके 85 वें वर्ष में प्रकाशित किया गया है। इसमें उनके परिचितों, जानकारों, सहकर्मियों के उनके प्रति विचार एवं अभिमत सन्निहित हैं। उनके कार्यों के लेखे-जोखे के रूप में कुछ गणमान्य व्यक्तियों के संदेश भी सम्मिलित हैं। इनके अलावा श्री सारण की जीवन गाथा के साथ-साथ उनके द्वारा संग्रहित थली प्रदेश की कहावतें भी दी गई है जो उनके साहित्यिक प्रेम की परिचायक हैं। जीवन की इस अवस्था में प्रस्तुत श्री सारण का अभिनंदन ग्रंथ उनके महान योगदान की स्वीकृति का प्रतीक है।


जननायक श्री दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ से कुछ संक्षिप्त उद्धरण निम्नानुसार प्रस्तुत हैं:-

स्वकथ्य

[p.v]: 85 वर्ष की अवस्था में जीवन का अंतिम पड़ाव है। जीवनपर्यंत प्रमाणिकता के साथ जागृत और संगठित जनमत हेतु कड़ी मेहनत, व्यापक जनसंपर्क का निष्ठा एवं दृढ़ता से भरसक प्रयत्न किया है। उतार चढ़ाव देखने का अवसर मिला है। गांव, समाज, देश की दिशा व दशा का भली-भांति अवलोकन किया है। नई दशा और दिशा के लिए प्रयत्न में सक्रिय सहयोगी होने का अवसर मिला है। व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष में राष्ट्र निर्माण और विकास के कार्यों में सक्रिय सहयोगी रहने का अवसर मिला है। गांव और समाज के जीवन का प्रारंभिक काल शोषण, उपेक्षा, उत्पीड़न का काल था। तिहरी गुलामी थी। राजाशाही जागीर व्यवस्था में जीवन घोर गुलामी का था। पूरे देश में अंग्रेजों की पराधीनता की पीड़ा थी, न किसान का घर अपना था, न खेत पर अधिकार था। लाग-बाग, बेठ-बेगार, शोषण, उत्पीड़न की त्रासदी असहनीय थी। पग-पग पर अपमान, अमानवीय व्यवहार, अनादर भोगना पड़ता था। सारी आवाम दुखी थी। परंतु बोलकर कहने, विरोध करने का साहस नहीं था। गांवों में कहीं भी स्कूल नहीं था। केवल तहसील स्तर पर शहर में मिडिल स्कूल था। बेकारी, घोर गरीबी, भारी शोषण और पराधीनता की पीड़ा थी। सर्वत्र अभाव, अशिक्षा, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियां, नशाखोरी 'उत्पीड़न', चेतना शून्यता की तंद्रा छाई हुई थी। विकृत स्थिति के परिवर्तन के लिए निरंतर जन जागरण, जन संगठन हेतु अथक प्रयास से कुछ जनचेतना आई। संगठित विरोध और मांग हेतु वातावरण बना। राजाशाही, जागीरदारी नहीं चाहिए की आवाज बुलंद हुई।


सोच में कुछ परिवर्तन हुआ। पुरानी मान्यताएं बदलने लगी। व्यवस्था में परिवर्तन संभव हुआ। अंग्रेज गए। राजा नहीं रहे, जागीरदारी समाप्त हुई। लोकतांत्रिक व्यवस्था बनी। गांव और खेत पर किसान को अधिकार मिला। व्यवस्था में नई सोच पैदा हुई। आम लोगों को भागीदारी मिली।

नई व्यवस्था में शिक्षा, स्वास्थ्य-चिकित्सा, आवागमन की सुविधा, उद्योग, व्यापार, खेती के अवरोध दूर हुए। पंचायत राज, सहकारी समाज व्यवस्था की अवधारणा बनी। योजनाबद्ध विकास की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। शासन तंत्र का विस्तार हुआ। लोगों को नए काम-धंधे, नई नौकरियों का अवसर मिलने लगा। तदुपरांत जन समस्याओं की आवाज उठने लगी। लोगों में राष्ट्रीय भावना, त्याग, सेवा और सामूहिक दृष्टिकोण कमजोर होने लगा। आपसी विश्वास का ह्नास हुआ। चारित्रिक गिरावट एवं एकांकी दृष्टिकोण, व्यक्तिगत स्वार्थपरता राष्ट्रीय एवं सामूहिक हितों के लिए खतरा बन रहे हैं। पद और पैसे की भूख बढ़ती जा रही है। इससे घूसखोरी, भ्रष्टाचार, दुराव, टकराव समाज, जाति और संप्रदाय की मानसिकता बढ़ती जा रही है। इस स्थिति और वातावरण के कारण घृणा, प्रतिशोध के कारण हिंसा,अलगाव, आतंकवाद को बढ़ावा मिला है। बढ़ती हुई इस विनाशक विघटनकारी स्थिति को ठीक करने और सुरक्षित भविष्य एवं उज्जवल वर्तमान हेतु प्रबुद्धजनों और युवाओं को सामाजिक समरसता, आपसी भाईचारा, प्रेम, पारस्परिक सद्भाव, सहयोग, समाज एवं राष्ट्र की एकता,


[p.vi]: अखंडता एवं सुदृढ़ता के लिए अथक प्रबल प्रयास की विशेष आवश्यकता है। तभी समय अनुकूल परिवर्तन संभव है। व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष में और राष्ट्र निर्माण के कार्यों में मैंने पूरी दृढ़ता, सक्रियता और प्रामाणिकता के साथ काम करने की भरपूर चेष्टा की है। आम जनता, विशेष रूप से किसान, मजदूर, दलित, पिछड़ा वर्ग में असीम प्यार, सहयोग, समर्थन दिया है। इनका प्यार, सहयोग, समर्थन ही मेरा संभल रहा है। इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूं। बुद्धिजीवियों, युवाओं का भी पूरा प्यार और सहयोग समर्थन मिला है। इन सब के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता हूं। --- ईमानदारी पूर्वक जो कुछ कर लिया उसके लिए किंचित संतोष है। चाहते हुए भी बहुत कुछ नहीं कर सका क्योंकि मनुष्य की क्षमता व शक्तियां सीमित होती हैं। अपनी क्षमता एवं सीमित शक्तियों द्वारा ईमानदारी से जितना कर सका, वह करने की पूरी चेष्टा की है। जिन्होंने मेरे व्यक्तित्व एवं कृतित्व के प्रति सहानुभूति सम्मान प्रकट किया है, उन सब के प्रति हार्दिक आभार। ॐ शुभम्।

दौलतराम सारण

संपादकीय

[p.vii]: श्री दौलतराम सारण राजस्थान की उन गणमान्य नेताओं में अग्रगण्य हैं जिन्होंने लंबे समय तक निस्वार्थ भाव से देश की सेवा की है। उन्होंने अपनी दीर्घकालीन जीवन अवधि में राजशाही एवं सामंतशाही के क्रूर अत्याचारों को अपनी आंखों से देखा है। इन सामंती अत्याचारों के कारण एक बड़ा जनवर्ग पशुतुल्य जीवन बिताने को विवश हो गया था। मानवीय गरिमा की बात उसकी जानी-पहचानी नहीं रह गई थी। इन अत्याचारों के अतिरिक्त अशिक्षा, कुशिक्षा, अंधविश्वास और कुरीतियों के चक्र में फंसा हुआ जनवर्ग विशेषकर किसान, एक नारकीय जीवन लंबी अवधि से बिता रहा था। किसान बहुसंख्यक था पर विश्रंखलित फलित होने से वह जागीरदारी अत्याचार का प्रतिरोध करने में समर्थ नहीं था।

आगे के काल में जन-जागृति के नए दौर में कृषक की विराट आत्मा एवं एक अंगड़ाई ले कर उठ खड़ी हुई। तो उसकी हुंकार से गढ़-किलों की नीवें हिलने लगी और अत्याचार के प्रतीक ये भवन निदान एक दिन भूमिसात हो गए।

श्री सारण 'सादा जीवन और उच्च विचार' के प्रतीक रहे हैं। किसानों के ये सदैव बड़े हिमायती एवं हितेषी रहे हैं। इनकी सदैव मान्यता रही है कि कृषकों की दशा सुधारे बिना देश में वांछित प्रगति का सूत्रपात संभव नहीं है। इसी कृषक हितेशिता की भावना के कारण इन्होंने जीवन भर सामंती तत्वों से संघर्ष किया। आगे चलकर जब वह सत्ता से समाहित हो गए तो उन्होंने किसानों के हित में अनेक कानून बनवाने में अपना पूरा सहयोग दिया।

श्री सारण की एक बड़ी उपलब्धि यह भी है कि इन्होंने जीवन में सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। जब कभी सिद्धांतों के विपरीत कार्य करने की नौबत आई, उन्होंने सत्ता का


मोह त्याग दिया और अपने स्कृषक उत्थान के कार्य में संलग्न हो गए। राजलोभ इन्हें छू तक नहीं गया। वे 'कीर के कगार' की तरह उसे अनेक बात छोड़ चुके थे। श्री सारण राजनीति के स्थान पर लोकनीति को जीवन भर अपनाते रहे। लोक-चेतना को उद्वेलित कर उसे आगे बढ़ाना उनके जीवन का लक्ष्य रहा है।

श्री सारण की ईमानदारी, निष्ठा एवं लगन सदैव स्वीकार की जाती रही है। काजल की कोठरी में रहकर भी काजल का एक भी दाग उन्होंने अपने पर नहीं लगने दिया। यह उनकी विशेषता रही है।


प्रस्तुत अभिनंदन ग्रंथ में उनके परिचितों, जानकारों, सहकर्मियों के उनके प्रति विचार एवं अभिमत सन्निहित हैं। उनके कार्यों के लेखे-जोखे के रूप में कुछ गणमान्य व्यक्तियों के संदेश भी सम्मिलित हैं। इनके अलावा श्री सारण की जीवन गाथा के साथ-साथ उनके द्वारा संग्रहित थली प्रदेश की कहावतें भी दी गई है जो उनके साहित्यिक प्रेम की परिचायक हैं।

जीवन की इस अवस्था में प्रस्तुत श्री सारण का अभिनंदन ग्रंथ उनके महान योगदान की स्वीकृति का प्रतीक है। व्यक्ति आता है और अपना करणीय कर चला जाता है पर उसका महान कृतित्व सदैव उसे स्मरण कराता रहता है। प्रस्तुत ग्रंथ प्रशस्ति नहीं है अपितु उनके द्वारा की गई महान सेवाओं की एक झलक मात्र है।

डॉक्टर रतनलाल मिश्र

नोट - नीचे पाठकों के सुलभ संदर्भ हेतु 'अभिनंदन ग्रंथ - विषय अनुक्रमणिका' तथा कुछ चुनिन्दा लेखों का सार पृष्ठवार दिया गया है।

अभिनंदन ग्रंथ - विषय अनुक्रमणिका

दौलतराम सारण पर अभिनंदन ग्रंथ - विषय अनुक्रमणिका

थार के गांधी

संदर्भ - 'जननायक श्री दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ' (2008), 'थार के गांधी', लेखक:बद्रीप्रसाद ढाका, पृ.45-59 से साभार।


[पृ.45]: श्री दौलतराम सा राजस्थान के उन गणमान्य नेताओं में हैं जिन्होंने सुदीर्घकाल तक विविध क्षेत्रों में सक्रिय रहकर राजस्थान प्रदेश की निस्वार्थ सेवा की है। आत्म-प्रशंसा एवं आत्म-प्रशस्तियों से सर्वथा दूर रहते हुये श्री सारणी इस प्रदेश के राजनैतिक, सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र में जो उपलब्धियां प्राप्त की हैं वे वस्तुतः गौरवपूर्ण एवं महान हैं। कृषकवर्ग में जन चेतना का विकास कर उनमें अन्याय के प्रति असहनशीलता एवं प्रतिकार की भावना जागृत कर उन्होंने एक स्तुत्य प्रयत्न किया है। उनका दीर्घकालीन सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन वेदाग और निष्कलंक है।


[पृ.46]:श्री दौलतराम सारण का जन्म 13 जनवरी 1924 को एक छोटे से गाँव ढाणी पाँचेरा में हुआ जो तत्कालीन बीकानेर राज्य की सरदार शहर तहसील में स्थित है। किसी समय में फोगां गांव से आकर चौधरी पांचीराम जी सारण ने इस गांव को बसाया था। गाँव छोटा ही था जिसमें प्राय सभी घर सारण गोत्र के जाटों के थे। गांव में कृषि एवं पशुपालन आजीविका के मुख्य साधन थे।

इस छोटे से गाँव में चौधरी दूलाराम अपने परिवार के साथ निवास करते थे। श्री दूलाराम सारण के घर द्वितीय पुत्र श्री दौलतराम सारण का जन्म हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमति भूरी देवी था। प्रथम पुत्र की मृत्यु के पश्चात जब श्री दौलतराम का जन्म हुआ तो सारा परिवार खुशी से भर उठा। यह प्रसन्नता और बढ़ चली जब एक तपस्वी साधु ने यह भविष्यवाणी की कि चौधरी तेरा पुत्र बड़ा यशस्वी होगा, परिवार का ही नहीं, अपितु सारे क्षेत्र का नाम रोशन करेगा।

उस जमाने में गांवों की कौन कहे नगरों तथा कस्बों में भी शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। राजा महाराजा एवं जागीरदार शिक्षा के घोर विरोधी थे। श्री सारण का विवाह श्रीमति जड़ाव देवी के साथ हुआ। आगे चलकर उनके 3 पुत्र और 4 पुत्रियाँ हुये। श्री सारण का परिवार आर्थिक दृष्टि से अच्छा था। सामाजिक प्रतिष्ठा भी परिवार की अन्य परिवारों की तुलना में बढी-चढी थी। थोड़े बड़े होने पर 12-13 वर्ष की अवस्था में उन्हें पास के कस्बे सरदार शहर में विद्या प्राप्ति के लिए भेजा गया। बचपन से ही श्री सारण का शिक्षा के प्रति लगाव था।


[पृ.47]:बीकानेर राज्य एक निरंकुश सामंती शासन पद्धति वाला राज्य था, जहां शासक का शब्द ही कानून था। लोगों को किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं थी। इस राज्य में तिहरी गुलामी के नीचे दवा हुआ किसान, मजदूर एवं सामान्य जन अपने दुख दर्द की कहानी जब शासक के पास ले जाता तो इसे राजद्रोह माना जाता था। प्रार्थना पत्र देना एक जुर्म हो गया था। राज्य के पट्टेदारों, सरदारों और राजवियों के लिए कोई क़ानूनी बाध्यता नहीं थी।

इस शासन का वर्णन श्री नाथूराम खड्गावत ने इस प्रकार किया है, "बीकानेर राज्य में महाराजा गंगासिंह का शासनकाल निरंकुश सत्ता और दमन का प्रतीक कहा जाता है। उनके लंबे शासनकाल में सार्वजनिक संस्थाएं पनप नहीं पाई। राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना तो दूर, सांस्कृतिक, सामाजिक संस्थाओं तक को पनपने का अवसर नहीं दिया गया। निरंकुश शासन के उस कठोर नियंत्रण की छाया में सार्वजनिक संस्थाएं अपने ही आंसुओं में डूब गई। " (स्वामी गोपालदास व्यक्तित्व एवं कृतित्व, भूमिका, पृ 29)

सरदार शहर के हाई स्कूल के अनेक विद्यार्थी जिनमें श्री सारण अग्रगण्य थे, पंडित गौरीशंकर से प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय भावना से भावित हुये। इस समय एक साहित्य समिति की स्थापना हुई जिसमें श्री सारण ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। इस संस्थान में विद्यार्थियों में सांस्कृतिक चेतना के साथ-साथ राजनीतिक चेतना का विकास किया। विद्वानों के विचारों से अवगत होकर छात्र अन्याय के प्रति धीरे-धीरे असहिष्णुता का रुख कर रहे थे एवं राष्ट्रीय भावना भावित हो रहे थे।

पहली छात्र हड़ताल: सरदार शहर में जन जागरण का प्रारंभिक काल उस हड़ताल से शुरू होता है जो इस नगर के विद्यार्थी वर्ग ने की। इसे बीकानेर रियासत की पहली हड़ताल बताया गया है। इस हड़ताल के कारण प्रशासन में बड़ी खलबली मच गई थी। यह हड़ताल विद्यार्थी वर्ग द्वारा सन् 1940-41 में की गई थी जब श्री सारण प्राय: 16 वर्ष के थे। इस हड़ताल का कारण संक्षेप में इस प्रकार था:-

उन दिनों हाई स्कूल के हेडमास्टर श्री सीपी कपूर थे। शहर के एक शौकीन तबीयत एवं संदिग्ध चरित्र वाले श्री राय कपूर साहब के व्यक्तिगत मित्र थे और विशेष कृपापात्र थे। इस व्यक्ति ने स्कूल के एक अध्यापक श्री कांतिलाल की पिटाई कर दी। इस पर छात्रों का रोष फूट पड़ा और उन्होंने स्कूल में हड़ताल कर दी। इसमें श्री सारण ने बढ़-चढ़कर अग्रगण्य


[पृ.48]: भूमिका निभाई। हड़ताल पूरे दिन जोर शोर से चली। इसका व्यापक प्रभाव छात्रों पर पड़ा। श्री दौलतराम सारण ने, जो विद्यार्थी थे, इस हड़ताल में सक्रिय सहयोग दिया। उस समय तहकीकात करने के लिए दो बड़े अफसर बीकानेर से आए। उन्होंने विद्यार्थियों के बयान लिए पर किसी का अपराध साबित नहीं हो सका। निदान वे निराश होकर वापस चले गए। सरदार शहर के विद्यार्थी वर्ग द्वारा किया गया विरोध प्रदर्शन एवं आक्रोश विद्यालय प्रशासन के विरुद्ध था।

गांधी जयंती नहीं मनाने दी : हाई स्कूल के विद्यार्थियों ने 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाने का निश्चय किया। स्कूल प्रशासन ने राज्य के दबाव के कारण यह जयंती मनाने की स्वीकृति नहीं दी। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में विद्यार्थियों ने महाराजा की वर्षगांठ का उत्सव जो स्कूल में मनाया जा रहा था, का बहिष्कार किया। इस घटना को गंभीर माना गया पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने की अपनी असमर्थता देखकर प्रशासन चुप रहा। हड़ताल में भाग लेने वाले छात्रों पर विभागीय कार्यवाही कर उन्हें दंडित किया गया। इस हड़ताल में श्री सारण ने आगे होकर भाग लिया पर उनके खिलाफ गवाही नहीं होने से वे दंड से बच गए। 4 विद्यार्थियों को स्कूल से निकाल दिया गया।

इस प्रकार विद्यार्थी जीवन में अन्याय और अत्याचार असहिष्णुता एवं प्रतिकार की भावना प्रकट कर उन्होंने अपनी भावी योजनाओं का स्वरूप प्रकट कर दिया था। इसी समय श्री सारण ने साहित्य सम्मेलन की प्रथम परीक्षा पास की एवं मध्यमा के लिए फार्म भर दिए। श्री सारण मेधावी छात्र थे। अपने से ऊपर की कक्षाओं के छात्रों को वे अनेक विषय पढ़ाते थे। लोगों ने उन्हें सलाह दी कि दो-तीन वर्ष का समय नष्ट करने की अपेक्षा उन्हें सीधे मैट्रिक परीक्षा देनी चाहिए जिस में सफल होने की उनमें योग्यता विद्यमान है। इस कल्याणकारी अभिमत को मानकर उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय की मैट्रिक परीक्षा हिसार केंद्र से दी जिसमें उन्होंने सफलता हासिल की। इस समय उनकी तबीयत खराब हो गई अतः वे अपने गांव चले आए और देशी चिकित्सा करने लगे।

बाँड़ी-सांप ने डसा: इस समय बीमारी से वे क्षीणप्राय और शक्तिहीन हो गए थे। अतः कृषि का काम करने में भी असमर्थ थे। इसी समय के आसपास परिवार ने एक नया खेत लेकर कृषि की। इस खेत पर परिवार के लोग काम कर रहे थे तो श्री सारण भी वहां उपस्थित थे। अचानक एक बाँड़ी-सांप ने उन्हें दस लिया। पास के गांव शिमला में झाड़ा दिलाने ले गए। सारे शरीर में जहर के कारण मंजू फूट आए। लंबे समय तक उपचार करने से उनकी जीवन रक्षा हो सकी पर शरीर अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सका।

रोजगार के प्रयास: स्वास्थ्य ठीक होने सरदारशहर आए। वे ओसवाल विद्यालय में अध्यापक बन कर विद्यार्थियों को शिक्षित करने लगे। उनके कुछ सहयोगी भी इस काम में लगे हुए थे। कुछ समय तक अध्यापन करने के पश्चात उन्होंने स्कूल को छोड़ दिया और अपने तीन साथियों के साथ बाजार में एक दुकान खोली। दुकान खोलने का उन का मूल उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को, जो घी बेचने शहर में आते थे, उन्हें दुकानदारों की लूट से बचाना था। आडत के आधार पर यह दुकान चलती थी। इससे वांछित फल नहीं होता देखकर उन्होंने आगे चलकर दुकान बंद कर दी। इस समय सारा देश एक आंदोलन के दौर से गुजर रहा था।


[पृ.49]: श्री दौलतराम सारण बीकानेर राज्य प्रजा परिषद की प्रतिनिधि सभा के सदस्य अपनी कर्मशीलता एवं आंदोलन में सक्रिय सहयोग के कारण बन चुके थे। सन् 1945 से 1948 तक बीकानेर राज्य प्रजापरिषद से सक्रिय रूप से जुड़े रहे।

प्रजापरिषद ने महाराजा बीकानेर के एकतंत्रीय सामंतवादी शासन के विरुद्ध समय-समय पर आंदोलन किए और अन्याय एवं अत्याचार का प्रतिरोध किया। इन कार्यों में श्री सारण द्वारा भी भरपूर सहयोग दिया गया तथा उनकी बड़ी भूमिका रही।


[पृ.50]: प्रथम राजस्थान विधानसभा का गठन सन् 1952 में हुआ। इसके सदस्यों की संख्या 160 थी। चुनाव 4 जनवरी से 24 जनवरी 1952 तक वयस्क मताधिकार के आधार पर संपन्न हुये। क्योंकि श्री सारण जिले के गणमान्य नेता थे और राजनीतिक रुप से अग्रगण्य थे, उनको चुनाव लड़ने के लिए कहा गया परंतु उन्होंने नम्रतापूर्वक इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।


[पृ.51]: राज्य में द्वितीय आम चुनाव राजस्थान विधानसभा के लिए 25 फरवरी 12 मार्च 1957 तक की अवधि में संपन्न हुये। श्री सारण को समझा-बुझाकर लोगों ने इस बार चुनाव लड़ने को तैयार कर लिया। श्रीडूंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में खड़े हुए और अच्छे मतों से सरलतापूर्वक विजई होकर विधानसभा के सदस्य बने। कांग्रेस के 176 में से 114 उम्मीदवार इस चुनाव में विजई हुए। श्री सुखाड़िया ने 11 अप्रैल 1957 को अपने मंत्रिमंडल का गठन किया तो कांग्रेस के प्रति की गई सेवाओं के कारण श्री सारण को उप-मंत्री के रुप में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया। यह उनके दीर्घकालीन सेवा कार्य की स्वीकृति के फलस्वरुप था। उन्हें कृषि, पशुपालन, सहकारिता, पंचायती राज, स्थानीय निकाय सिंचाई विभाग सौंपे गए। इन विभागों की कार्यप्रणाली में उन्होने कई सुधार किए और इन्हें लोक कल्याण का एक महत्वपूर्ण साधन बनाया।

श्री सारण ने हरिजन उद्धार के कार्यक्रम के अंतर्गत सन् 1953 में हरिजन को तहसील सरपंच बनवाया। सन् 1959-60 में हरिजन को राजस्थान में प्रथम जिला प्रमुख बनवाया। जिले में एक प्रधान व एक हरिजन सरपंच तथा पिछड़ी जातियों के प्रधान व सरपंच बनाए। श्री सारण के जनहित के कार्यों के कारण लोगों पर उनका अतुलनीय प्रभाव था। एक बड़ा जनवर्ग उनके पीछे था। राजनीति में व्यक्ति की महानता तभी तक सुरक्षित रहती है जब तक उसके पीछे एक जनबल होता है।

12 मार्च 1962 को फिर श्री सुखाड़िया के नेतृत्व में राजस्थान मंत्रिमंडल का गठन हुआ। श्री सारण ने इस चुनाव में श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र से पहले की तरह विजय प्राप्त की। उन्हें पुनः अपने मंत्रिमंडल में उप-मंत्री के रूप में सम्मिलित किया गया।

सन् 1957 की तुलना में कांग्रेस को इस चुनाव में पारस्परिक विरोध के कारण बड़े स्तर पर भीतरघात हुआ है। हाईकमान ने इसकी जांच कराने का निश्चय किया।


[पृ.52]: श्री कुंभाराम चौधरी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करने पर विचार किया गया। राजस्थान में इसका प्रबल विरोध हुआ। आगे चलकर समझौता हुआ और श्री आर्य को चुने हुए पदों से त्यागपत्र देना पड़ा।

यह ऊपरी समझौता अधिक स्थायित्व ग्रहण नहीं कर सका। मतभेद उभरकर सामने आए और 26 दिसंबर 1966 को कुंभाराम आर्य ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। श्री हरिश्चंद्र, श्री दौलतराम सारण, श्रीमती कमला बेनीवाल ने संयुक्त त्याग पत्र भेजा जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया पर प्रशासन में अनुचित हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार, कुनबा-परस्ती व कांग्रेस की नीतियों के विरुद्ध आचरण के आरोप लगाए।

नए युग का प्रारंभ : चतुर्थ आम चुनाव 15,18, 20 फरवरी 1967 में आयोजित हुये जिसमें किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। 184 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 88 सीट मिली थी। डॉक्टर संपूर्णानंद राज्य के राज्यपाल थे। विपक्षी दलों ने मिलकर एक संयुक्त विरोधी दल बना लिया था और राज्य में सरकार बनाने के लिए अपना दावा पेश कर दिया था। राज्यपाल में सबसे बड़े दल के नेता के तौर पर 4 मार्च 1967 को मोहनलाल सुखाड़िया को मंत्रिमंडल बनाने को आमंत्रित किया। इस पर उग्र आंदोलन हुए। जयपुर में विशाल उग्र भीड़ पर गोलियां चलाई गई जिसमें कुछ लोग मारे गए। ऐसी स्थिति में केंद्र ने 13 मार्च 1967 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया।

26 अप्रैल 1967 को श्री सुखाडिया को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। श्री सारण ने चुनाव के पूर्व कांग्रेस संगठन से श्री कुंभाराम आर्य एवं अन्य कुछ मंत्रियों के साथ त्यागपत्र दे दिया था। कांग्रेस छोड़ कर बाहर आने वालों में महाराजा हरिश्चंद्र झालावाड़, श्री दौलतराम सारण, जुझार सिंह, श्रीमती कमला बेनीवाल और ठाकुर भीमसिंह आदि थे। कांग्रेस से अलग होकर इन लोगों ने राजस्थान में सन् 1967 में जनता पार्टी नाम की एक राजनीतिक पार्टी की स्थापना जनता को सुख, शांति और समृद्धि दिलाने के लिए हुई जो राजस्थान की राजनीति में एक नए युग का प्रारंभ है क्योंकि लंबे समय से राजस्थान के कुछ कांग्रेसजन ईमानदारी से अनुभव कर रहे थे कि कांग्रेस का वर्तमान स्वरूप जनभावनाओं के प्रतिकूल आचरण कर रहा है। जनता को भाय, संकट और चिंता का मुकाबला करना पड़ रहा है।

14 से 16 मई 1967 को इंदौर में उन सब पार्टियों के प्रतिनिधियों की ओर से एक बैठक बुलाई गई जिन्होंने आम चुनाव के अवसर पर कांग्रेस छोड़कर भिन्न-भिन्न नामों से प्रांतीय स्तर पर प्रथक-प्रथक राजनीतिक दल स्थापित करके चुनाव लड़े। इस बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि सभी संगठन भारतीय क्रांति दल में विलीन हो जावें। इस प्रकार सभी आवश्यक साधन जुटाकर जनता पार्टी को एक राजनैतिक स्वरूप प्रदान किया गया। कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं ने भारतीय क्रांति दल का गठन कर लिया। इस दल के अध्यक्ष बिहार के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद बने। इस दल के महासचिव श्री दौलतराम सारण थे। 26 दिसंबर को एक वर्ष पुरानी राजस्थान जनता पार्टी को औपचारिक रूप से भारत क्रांति दल में विलीन कर दिया गया। यह जनता पार्टी क्रांति दल की एक इकाई के रूप में राज्य में काम करने लगी।

श्री आर्य और उनके सहयोगियों के त्यागपत्र देने के बाद 5 सितंबर को 1967 को श्री सुखाडिया ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर लिया। 5 नए कैबिनेट मंत्री बनाए गए। मार्च 1971 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव के बाद 8 जुलाई 1971 को सुखाड़िया को पद छोड़ना पड़ा। वे चाहते हुए भी आगे के काल में सत्ता से संयुक्त नहीं रह सके। उनके पश्चात बरकतुल्ला खां मुख्यमंत्री बने। 1973 में उनकी मृत्यु पर श्री हरिदेव जोशी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

श्री सारणी इस समय नए दल की रीति-नीति जनवर्ग को समझाने में जूते हुये थे। जब 1977 में चुनाव हुए तो श्री सारण


[पृ.53]: भारतीय लोकदल के चिन्ह हलधर पर चुनाव लड़ कर चुरू क्षेत्र से लोकसभा के लिए विजयी हुए। राजस्थान में वे सर्वाधिक मतों से विजई हुए थे। चौधरी चरणसिंह की पार्टी का नाम प्रारंभ में जनता पार्टी (स) रहा था। आगे चलकर यही दल लोकदल के रूप में परिवर्तित हुआ। चौधरी चरणसिंह इसके अध्यक्ष बने। राजस्थान में लोक दल का प्रदेशाध्यक्ष श्री दौलतराम सारण को बनाया गया। राजस्थान में आठवीं विधानसभा के चुनाव हुए इस चुनाव में कांग्रेस को 113 स्थानों पर मिली। लोकदल 27 सीटों पर विजयी रहा। उधर 1977 के लोकसभा के चुनाव में बड़ी जीत दर्ज करने वाले श्री सारण ने 1980 में 7वीं लोकसभा और 1989 में 9वीं लोकसभा के चुनाव में जीत हासिल की एवं लोकसभा पहुंचे। वह हर बार संसदीय क्षेत्र चुरू से विजयी बने।

उधर केंद्र में वी पी सिंह के बाद श्री चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। इस सरकार में दौलतराम सारण को मंत्री बनाया गया और शहरी विकास का विभाग उन्हें सौंपा गया। श्री चंद्रशेखर की सरकार अधिक दिनों तक नहीं चल पाई और गिर गई। सन् 1991 में लोकसभा के नए चुनाव करवाए गए। चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। कांग्रेस फिर राजगद्दी पर स्थापित हुई।

सन् 1993 में नेताओं के अनुनय और आश्वासनों के पश्चात श्री सारण पुनः कांग्रेस में सम्मिलित हुए। उनसे चुनाव लड़ने का आग्रह किया गया। इस समय उन्होंने श्रीडूंगरगढ़ विधानसभा से चुनाव लड़ा। अपने साथियों के कुचक्रों, षड्यंत्रों और भीतरघात के कारण उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। यह उनका अंतिम चुनाव था।

किसानों पर 1974 में लेवी लगाई गई। उसका विरोध करते हुए किसानों को जाति धर्म और संप्रदाय को छोड़कर किसान की भावना से किसानों को संगठित करने के उद्देश्य से राजस्थान किसान यूनियन का गठन किया गया। श्री सारण राजस्थान किसान यूनियन के संस्थापक अध्यक्ष हुये।

श्री सारण महाराजा बीकानेर के विरुद्ध सन् 1972 में संसद का चुनाव लड़कर अपनी दृढ़ता, निडरता एवं साहस का परिचय दे चुके थे। उनको इस चुनाव में यद्यपि सफलता नहीं मिली तथापि जनवर्ग को राजशाही के विरुद्ध खड़ा करने में उनको सफलता मिली।

श्री दौलत राम सारण एक कुशल संगठक और दृढ़ निश्चयी नेता रहे। किसानों के हित के लिए उन्होंने लंबे समय तक कार्य किया। गांव-गांव जाकर अलख जगाई एवं जन चेतना फैलाई। कांग्रेस छोडकर वे और भी सक्रिय हो उठे। उन्होंने सन् 1974 में राजस्थान किसान यूनियन का संस्थापन किया। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य वर्ग चेतना, एकता, संगठन, सत्याग्रह, वर्ग सशक्तिकरण, शोषण मुक्ति, आर्थिक समृद्धि और जन शक्ति का विकास था।

श्री सारण राजस्थान विधानसभा एवं लोकसभा की अनेक समितियों के सदस्य रहे विधानसभा की लोक लेखा समिति के सदस्य का कार्य करते हुए दो अन्य साथी विधायकों के साथ मिलकर संबंधित विभागों में हुए भ्रष्टाचार में कई जिलाधीशों को नोटिस दिला कर प्रशासन को पारदर्शी बनाया। आप लोकसभा की निम्नलिखित समितियों के भी सदस्य रहे-

1. प्राक्कलन समिति

2. हाउसिंग समिति

3. लोक लेखा समिति

4. कार्य सलाहकार समिति

5. नियम समिति

राजस्थान किसान यूनियन : राजस्थान किसान यूनियन की स्थापना वर्ष 1974 में श्री दौलतराम सारण, पूर्व केंद्रीय मंत्री, प्रदेश के अग्रणी किसान नेता द्वारा राजस्थान में किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए की गई। किसान यूनियन की गतिविधियों से सक्रिय रुप से दबंग किसान नेता कुंभाराम आर्य, गोपालसिंह खंडेला आदि महत्वपूर्ण किसान नेता जुड़े। किसान यूनियन का धीरे-धीरे पूरे राजस्थान में प्रभाव हो गया तथा यूनियन की इकाइयां ग्राम, तहसील और जिला स्तर पर कार्य करने लगी।


[पृ.54]: यूनियन द्वारा किसान हितों के लिए 70 और 80 के दशक में अनेक संघर्ष किए।किसान यूनियन ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की:

1 रचनात्मक कार्य: सामाजिक बुराइयों जैसे नशा मुक्ति, मृत्युभोज, दहेज प्रथा, घूंघट प्रथा समाप्त करना, शिक्षा प्रचार, पेड़ लगाओ व सफाई अभियान आदि चलाए गए।

2 बिजली की फ्लेट रेट लागू करवाई गई तथा इसके लिए यूनियन द्वारा बड़ा आंदोलन किया गया। इस आंदोलन में झुंझुनू के किसान रामदेव चौधरी को कुर्बानी देनी पड़ी थी।

3 ट्रैक्टर ट्रॉली पर लगने वाले टैक्स को लंबे समय तक संघर्ष कर समाप्त करवाया गया।

4 नहरी क्षेत्रों में किसानों के खेतों में नहर का पानी लाने हेतु बनाए गए पक्के खालों की कीमत वसूली माफ करवाई गई।

5 किसानों की उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने, खाद, बीज पर सब्सिडी दिलाने आदि में यूनियन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

सामाजिक क्षेत्र में श्री सारण की उपलब्धियां महान रही हैं इनका विवरण निम्नानुसार है:

गांधीवादी : श्री सारण का स्कूल के दिनों से ही गांधीवादी विचारधारा में विश्वास रहा है। स्वतंत्रता से पूर्व उस काल में राजस्थान में राजा-महाराजाओं एवं जागीरदारों का शासन था जो अपने अत्याचार व शोषण के लिए कुख्यात थे। ग्रामीण समाज में किसानों का अपमान आम बात थी। जागीरदारों ने जबरन लाग, बाग, बैठ, बेगार लागू कर रखी थी। श्री सारण द्वारा उन वर्षों में बीकानेर राज्य में जागृति पैदा करने हेतु गांव-गांव घूमकर अलख जगाया। उन दिनों में जागीरदारों एवं उनके छुटभैया सरदारों द्वारा किसानों से मुफ्त में पानी लेने, पशु चराने आदि का रिवाज गांवों में पनपा रखा था। किसानों में जागृति पैदा कर श्री सहारण ने इस प्रकार की शोषण व सामाजिक अपमान की कुप्रथाओं को बंद करवाने में विशेष योगदान दिया।

छुआछूत विरोधी अभियान: ग्रामीण वर्गों में छुआछूत को मिटाने हेतु श्री सारण द्वारा ग्रामीण वर्गों में जागृति पैदा करने के कार्यक्रम बनाए। इसके लिए महत्वपूर्ण पदों पर दलितों को चुना गया, जैसे 1953 में हरिजन को सरदारशहर तहसील सरपंच बनाया, 1959-60 में हरिजन को राजस्थान में प्रथम जिला प्रमुख जिताया, जिले में एक प्रधान व एक हरिजन सरपंच तथा पिछड़ी जातियों के प्रधान व सरपंच बनाए गए। हरिजनों व पिछड़ों को को समाज में


[पृ.55]: मान सम्मान उनके द्वारा दिलाया गया। वह हरिजनों को हमेशा अपने साथ लेकर चले।

सफाई अभियान: गांव में सफाई के प्रति चेतना जागृत करने हेतु श्री सारण द्वारा एक अभिनव कार्यक्रम शुरू किया। गांव में गोबर व कूड़े के ढेरों को सुव्यवस्थित ढंग से लगाने व ग्रामीणों द्वारा खुले में शौच जाने से गंदगी फैलने की समस्या के निदान हेतु लगातार प्रयास किए। शुरू में ग्रामीणों द्वारा उनका मजाक उड़ाया गया लेकिन धीरे-धीरे उनको महत्व समझ में आया तथा सफाई की व्यवस्था सुचारु रुप से रहने लगी । सरदारशहर तहसील के सारे गांवों में डेढ़ माह तक लगातार यह सफाई अभियान चलाया गया।

पेड़ लगाओ अभियान: रेगिस्तान में वृक्ष का महत्व अधिक है। इसके महत्व को ध्यान में रखकर श्री सारण द्वारा हर वर्ष वर्षा के मौसम में वृक्ष लगाने का कार्यक्रम चलाया गया। वृक्ष लगाने व इन्हें नष्ट नहीं करने के संबंध में अनेकों बार उनके द्वारा जागृति अभियान आयोजित किए गए। वृक्ष लगाने का कार्यक्रम उनके जीवन का अंग बना हुआ था।

सामाजिक कुरीतियों के विरोधी: श्री सारण ग्रामीण समाज में फैली हुई कुरीतियों जैसे नशाखोरी, मोसर, दहेज, बारातियों की खर्चीली मनवार, पर्दा प्रथा, महिलाओं में अशिक्षा आदि के विरुद्ध लगातार कार्य करते रहे हैं। उन दिनों बारातें कई दिनों तक लड़की वालों के यहां रुका करती थी। इस प्रथा को बंद करवा कर एक दिन बारात रुकने की प्रथा शुरू की गई। उनके द्वारा नारी चेतना लाने हेतु अंगूठा मिटाओ घूंघटा हटाओ का नारा दिया।

प्रौढ़ शिक्षा प्रसार : 50 के दशक में श्री सारण स्वामी केशवानंद के संपर्क में आए। उन्होंने गांवों में अनेक स्कूलेन खुलवाई। उन दिनों में गांवों में राजकीय स्कूल नहीं थे। श्री सारण द्वारा प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम गांव में शुरु किए। सन् 1944 में सरदारशहर के तात्कालिक प्रौढ़ शिक्षा समिति के सचिव बने एवं सरदारशहर साहित्य समिति सार्वजनिक पुस्तकालय से वर्षों जुड़े रहे। गांवों में घूम-घूमकर शिक्षा का अलख जगाया एवं स्कूल व पुस्तकालय स्थापित किए। श्री सारण 'मरुभूमि सेवा कार्य शिक्षा योजना' संगरिया, जो स्वामी केशवानंद जी द्वारा संचालित थी, में कार्य किया।

किसान संगठन: श्री सारण जाति, समुदाय व दलबंदी से ऊपर उठकर किसानों व ग्रामीणों के हित में जीवनभर कार्य किया। किसान वर्ग में चेतना जागृत व संगठित करने हेतु उन्होंने अनेक नारे दिए जैसे चेतो: "चेतो, एको, खडको", "मेहनत हमार, लूट तुम्हारी, नहीं चलेगी, नहीं चलेगी"


[पृ.56]: "शोषण, अन्याय, अत्याचार नहीं सहेंगे, नहीं सहेंगे"।

संस्थाओं/संगठनों से संबंध: श्री सारण अनेक संस्थानों और संगठनों से जुड़े हुए थे जिनमें मुख्य हैं:

1 राजस्थान किसान यूनियन (अध्यक्ष)

2 गांधी विद्या मंदिर, सरदारशहर

3 ग्रामोत्थान विद्यापीठ संगरिया

4 कस्तूरबा कन्या विद्यालय महाजन

5 प्राकृतिक चिकित्सालय, बापू नगर, जयपुर

6 राजस्थान अकाल राहत समिति (अध्यक्ष)

7 चौधरी चरण सिंह जन्म शताब्दी समारोह समिति (अध्यक्ष)

8 आदर्श किसान छात्रावास एवं ग्रामीण बालिका छात्रावास सरदारशहर

9 ग्रामसेवक प्रन्यास, सरदारशहर

10 हनुमान नगर विकास समिति

गांधी विद्या मंदिर, सरदारशहर राजस्थान की एक गणमान्य संस्था है जो शिक्षा एवं समाज सुधार के कार्य में संलग्न है। श्री सारण संस्थापन काल से ही इस महान संस्था से जुड़े हुए थे। इसकी कार्यकारिणी के स्थापना से ही सदस्य रहे हैं और इसकी गतिविधियों में भाग लेते रहे हैं। श्री सारण ने पैदल घूम-घूम कर ग्राम्य क्षेत्र में पाठशालाओं को व्यवस्थित किया। इस प्रकार वे शिक्षा के पुनीत कार्य से भी सघनता से जुड़े रहे।

कस्तूरबा कन्या विद्यालय की गतिविधियों को आगे बढ़ाने में आपका अनन्य योगदान रहा। श्री सारण प्राकृतिक चिकित्सालय बापू नगर के सहयोगी रहे। अप्रैल 1997 से 10 मई 2003 तक इसके अध्यक्ष रहे। सरदार शहर में बालिकाओं के लिए कोई छात्रावास नहीं था। सरकार ने छात्रावास के लिए जो जमीन दी थी उसमें झगड़े होने लगे। आपने प्रयत्न कर एक स्थान में ग्रामीण बालिका छात्रावास की व्यवस्था की।

श्री सारण द्वारा राजस्थान नहर के निर्माण की योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई तथा इस क्षेत्र को पानी उपलब्ध कराने के लिए निरंतर प्रयत्नशील ।

इन्होंने विधानसभा में अणुव्रत प्रस्ताव पारित करवाने में भी प्रमुख भूमिका का निर्वहन किया।

'आपनी योजना' में भी आपका बराबर सहयोग एवं प्रमुख भाग रहा।

डूंगरगढ़ तहसील के झंझेऊ गांव में गांव के कुएं पर पानी भरने का अधिकार मांगने पर गांव के राजपूतों ने गोली चलाकर हरिजन कार्यकर्ता कालूराम की हत्या कर दी। हरिजनों को गांव से बाहर निकाल दिया। श्री सारण ने हरिजनों की पूरी मदद की। हरिजनों ने झंझेऊ गांव में रहने बसने से इंकार कर दिया। सब प्रकार से संरक्षण देने के लिए भरोसा दिलाने पर भी नहीं माने तब उन उजड़े हुए गरीब हरिजनों को धीरदेसर पुरोहितान गांव में सरकारी भूमि काश्त के लिए और आवास के लिए दिलाई और उन्हें बसाया।

सरदारशहर के बंधनाऊ गांव में कुए पर ढाणे में पानी भरने की मांग करने पर हरिजनों के विरोध में पूरे गांव के सवर्णों ने ढाणे में पानी भरने का विरोध किया। यह विवाद बहुत बढ़ गया। आसपास के गांवों और कस्बों से काफी लोग हरिजनों के विरोध में इकट्ठा हो गए। औरतें कुएं पर


[पृ.57]: गंडासी, कुल्हाड़ा, फरसी और नंगी तलवार लेकर पहरा देने लगे। विवाह ने उग्र रूप धारण कर लिया। जिले के कलेक्टर एसपी पर उग्र भीड़ ने पत्थरों और धूल की वर्षा कर दी। इस पर गोली चलने की स्थिति बन गई पर अधिकारियों ने संयम बरता। कलेक्टर रामसिंह चौहान से श्री सारण से संपर्क कर स्थिति की गंभीरता बताई और कहा कि आप आकर समझाएं तो गांव के लोग मान सकते हैं। ऐसा विश्वास है कि कलेक्टर और एसपी श्री सारण को जीप से सरदारशहर लाये। बंधनाऊ गांव में तनाव का वातावरण होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से गांव जाना ठीक नहीं बताया। वे राजकीय कोठी में ठहरे और सारण ने 5-7 मुख्य लोगों को बुलाया और उनको समझाया तो वह गांव चलने का आग्रह करने लगे। श्री सारण ने कहा कि आप ढाणे से पानी भरने के काम में मदद करें तो गांव चलें। उन्होंने मदद का वादा कर आपको रात को ही गांव ले गए। SP कलेक्टर ने मना किया लेकिन सारण गांव चले गए। कुए पर लोग पहरा दे रहे थे। श्री सारण ने गांव के लोगों को समझाया तो उन्होंने बात मान ली।

चौधरी चरण सिंह जन्म शताब्दी: राजस्थान प्रदेश में चौधरी चरणसिंह जन्म शताब्दी समारोह 23 दिसंबर 2001 से 23 दिसंबर 2002 तक मनाया, जिसके तहत श्री सारण जन चेतना जागृत करने का लक्ष्य देकर प्रदेश भर में जन चेतना यात्रायेँ एवं सभाएन व सेमीनार विभिन्न स्थानों पर आयोजित किए। जन चेतना कार्यक्रमों से वे किसान, मजदूर, पीड़ित एवं शोषित लोगों में जन चेतना जागृत करके उनको अपने अधिकारों के प्रति सचेत करने तथा सभी जाति, धर्म एवं विभिन्न संप्रदाय के लोगों को साथ लेकर उन्हें संगठित करने का प्रशंसनीय कार्य किया।


[पृ.59]: जनचेतना जागृत करने के लिए श्री सारण ने निम्नलिखित नारे दिए: "अंगूठा मिटाओ, घुंघट हटाओ", सामाजिक चेतना जगाओ, वृक्ष लगाओ, हरियाली बढाओ, पर्यावरण सुधारो। जागो और जगाओ, बेईमानी भ्रष्टाचार मिटाओ।

विविध उद्धरण (पृ.71,79,80)

कन्हैयालाल सेठिया - आप श्री सारण के प्रमुख मित्रों में से हैं। इनके कारण आपका गांधीवादी दर्शन की ओर झुकाव हुआ। (पृ.71)


लेखक सत्यप्रकाश मालवीय: पूर्व केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री और मंत्री उत्तर प्रदेश. सत्य प्रकाश मालवीय ने लिखा है कि [पृ.79]: सन् 1970 से 1980 तक मैं संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से इलाहाबाद नगर निगम का सभासद तथा मेयर था. 1974 से 1980 तक में इलाहाबाद दक्षिण विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा में भारतीय लोकदल, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी तथा जनता पार्टी से विधायक था. ये राजनीतिक दल संघर्ष की राजनीति करते थे तथा जनता के हितों के लिए सड़क से संसद तक आवाज उठाते थे.

इसी दौरान समाचार पत्रों के माध्यम से चौधरी कुंभाराम आर्य तथा श्री दौलतराम सारण की जानकारी मुझे हुई और ज्ञात हुआ कि दोनों राजस्थान के अग्रणी नेता हैं. 1984 में लोकदल से, जिस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी चरणसिंह थे, से मैं उत्तर प्रदेश से चुनकर राज्यसभा में आ गया. चौधरी साहब ने मुझे लोकदल का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर दिया. अगस्त 1984 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (लोकदल-भाजपा गठबंधन) की ओर से पंजाब समस्या के समाधान के लिए दोनों दलों के नेताओं ने दिल्ली में गिरफ्तारी दी और तभी से मेरी सारण जी से व्यक्तिगत जान पहचान हुई. उनके प्रथम दर्शन तथा उनके साथ अपने प्रथम साक्षात्कार ने मुझे प्रभावित और आकर्षित किया और उन्होंने मेरे ऊपर अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी. वह एक विचारवान, समर्पित और त्यागी पुरुष हैं. उनका जीवन सादगी और संयम का ज्वलंत उदाहरण है.

व्यक्तित्व: गौरवर्ण के उनके शरीर पर कुर्ता, धोती, सदरी या जैकेट, सर्दियों में लंबा कोट और चेहरे पर चश्मा तथा सिर पर गांधी टोपी यह था उनका पहनावा। उनका व्यक्तित्व सरल, सहृदयापूर्ण, निष्कपट लेकिन जुझारू था। उनका रहन-सहन, पहनावा, स्वभाव, शैली, संस्कार सभी पूरी तरह स्वदेशी थे। वे पूरे गांधीवादी थे।


[पृ.80]: लोकदल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक, जिनकी अध्यक्षता चौधरी चरणसिंह किया करते थे, वह निर्भीकता, स्पष्टवादिता और बेबाकी से तर्कपूर्ण तरीके से अपने विचार रखते थे. चौधरी साहब ध्यान से उनकी बातें सुनते थे. एक बार कार्यकारिणी की बैठक विट्ठल भाई पटेल हाउस में हो रही थी. किसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा हो रही थी. सर्वश्री कर्पूरी ठाकुर, चिमन भाई पटेल, चौधरी कुंभाराम आर्य, हेमवती नंदन बहुगुणा, नाथूराम मिर्धा, मुलायम सिंह यादव, राजेंद्र सिंह, शरद यादव, सुब्रमण्यम स्वामी, रामविलास पासवान, रशीद मसूद, मोहम्मद यूनुस सलीम, केसी त्यागी आदि उस बैठक में उपस्थित थे. श्री सारण जी अपने विचार रख रहे थे. उनकी आवाज कड़क थी और वह वह तेज आवाज में बोल रहे थे. विचारणीय विषय पर उनकी राय चौधरी साहब की राय से भिन्न थी. बड़ा गर्म वातावरण हो गया था. इतने में चौधरी साहब जो धीमी आवाज में बोलते थे, ने सारण साहब से कहा आप इतनी तेज आवाज में क्यों बोलते हो? श्री सारण जी तपाक से बोले, आप इतनी धीमी आवाज में क्यों बोलते हैं? चौधरी साहब सहित सभी ने खूब जोर से कहकहा लगाया, गर्म वातावरण शांत वातावरण में बादल गया.

चौधरी चरणसिंह का निधन 29 मई 1987 को हो गया. बड़ी जद्दोजहद और आना-कानी के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार उनका दाह संस्कार करने की अनुमति उस स्थान पर देने को राजी हो गई जहां आज किसानघाट है. इसमें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और मेरे मित्र श्री ब्रह्मदत्त जो पहले भारतीय क्रांति दल में थे, ने काफी सहायता की. किसान घाट बापू की समाधि से बहुत कम फासले पर है और राजघाट परिसर के अंदर है. यहीं चौधरी साहब का दाह संस्कार 31 मई 1987 की शाम को हुआ. समाधि स्थल का 4 वर्षों तक नाम मात्र भी विकास नहीं हुआ और यह उपेक्षित पड़ा रहा. हालांकि केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार भी बन गई थी. आज समाधि स्थल विकसित हालत में है और इसका पूरा श्रेय श्री सारण जी को है. सन् 1990 में जब श्री चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने, उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में सारण जी को शहरी विकास मंत्री नियुक्त किया. समाधि स्थल इसी मंत्रालय के अंतर्गत आता है. मैं एक दिन सारण जी से मिला और उन्हें अपनी व्यथा बतलाई और समाधि स्थल की उपेक्षा की और उनका ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने अधिकारियों को बुलाया, निर्देश दिया, योजना और नक्शा बनवाया. पूरी योजना को स्वीकृत किया और सरकारी धन उपलब्ध करवाया. इसमें चंद्रशेखर जी का भी पूरा सहयोग था. श्री सारण जी ने जिस लगन, तन्मयता और प्रतिबद्धता के साथ इस समाधि स्थल के विकास में रुचि ली, उसको मैं कभी भूल नहीं सकता. प्रतिवर्ष चौधरी साहब के जन्मदिन 23 दिसंबर तथा पुण्यतिथि 29 मई को उनके अनुयाई समाधि स्थल किसान घाट पर एकत्रित होते हैं, वहां सर्वधर्म प्रार्थना सभा होती है. भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री शहरी विकास मंत्री, दिल्ली की मुख्यमंत्री तथा अन्य विशिष्ट हस्तियाँ समाधि स्थल पर श्रद्धा सुमन तथा पुष्पांजलि अर्पित करते हैं.

छोटे कदमों से बड़ी यात्रा

संदर्भ - यह लेख दैनिक नवज्योति समाचार पत्र के सम्पादकीय से साभार लिया गया है। [1] 'जननायक श्री दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ' (2008), लेखक: वेद व्यास, पृ.92-93 से साभार लिया गया है।


[पृ.92]: महात्मा गांधी कहा कहते थे कि सादा जीवन और उच्च विचार ही मनुष्य को सार्थक तथा अनुकरणीय बनाते हैं। यह दोनों गुण मैंने दौलतराम सारण में लगातार देखे हैं, क्योंकि मैं उन्हें कोई 30-35 वर्षों से जानता हूं और मैंने शून्य से शिखर की ओर बढ़ते हुए कुछ समझा है। एक छोटे से किसान परिवार में जन्म से लेकर भारत सरकार के मंत्री बनने तक की उनकी जीवन यात्रा तो उनकी सफलता का एक चरण है लेकिन मेरे अनुभव से उनके भीतर एक रचनात्मक किसान की व्यापक संघर्ष यात्रा भी कदम-कदम पर इससे आगे बढ़कर भी मिलती है। जिस तरह हम लोकतंत्र की सफलता को जनता के द्वारा और जनता के लिए ही पहचानते हैं, उसी तरह दौलतराम सारण किसान के रूप में किसान के लिए ही समर्पित व्यक्ति हैं। शायद इसके लिए ही संत कबीर ने कभी कहा था कि- ‘जात न पूछे साधो की, पूछ लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ी रहने द्यो म्यान।’ मैं सामान्यत: व्यक्ति परक आलेखन नहीं करता लेकिन दौलतराम सारण के प्रति मेरे मन में उनकी सादगी और सहजता के प्रति आदर है। इसी कारण उन पर केन्द्रीय इस टिप्पणी द्वारा मुझे यह कहते हुए अच्छा लग रहा है कि वह जहां गांधी जी से प्रेरित हैं, वहां किसानों की दशा, दिशा और संभावनाओं के लिए प्रतिबद्ध भी हैं। उनका जन्मकाल मुझे राजस्थान में किसानों की उन विकट चुनौतियों की याद दिलाता है जब किसान अन्नदाता होकर भी राजशाही के दमन और शोषण से मुट्ठीभर आजादी और सम्मान के लिए लड़ता था। सुप्रसिद्ध कथा सम्राट प्रेमचंद जब भारतीय किसानों पर दोहरी और तिहरी गुलामी का अमर साहित्य लिख रहे थे, उसी समय राजस्थान का किसान भी राजा-रजवाड़ों से और अंग्रेजों के साम्राज्यवाद से भी लड़ रहा था। प्रेमचंद का उपन्यास ‘गोदान’ जिस किसान को अपना नायक बना रहा था और महाजनी सभ्यता जैसे लेख लिख रहा था, उस समय दौलतराम सारण अपने किसान पुत्र होने के अर्थ को भी जान रहे थे।

जब दौलतराम सारण 13 जनवरी 1924 को बीकानेर रियासत के ढाणी पांचेरा गांव में सरदार शहर तहसील, चूरु जिले में जन्मे थे, तब खेती और पशुपालन ही किसानों की आजीविका का आधार था और पूरे प्रदेश राजपूताना में राजा और प्रजा के बीच भारत के स्वतंत्रता संग्राम की चिनगारियां फूट रही थी। मैं नहीं जानता कि इनका नाम दौलतराम क्यों रखा गया और उनके पास कौन सी दौलत थी? एक किसान जब अपने बेटे का नाम दौलत और राम को जोड़कर रखता है तब इतना तो समझा ही जा सकता है कि राम की कृपा और दौलत का स्वप्न ही एक किसान की अभिलाषा हो सकती है। ऐसे में मझे राज से न्याय मांगने वाले और राम से शक्ति चाहने वाले दौलतराम सारण शायद इसीलिए एक होनहार किसान पुत्र लगते हैं, क्योंकि गलत को गलत कहने की साहसिकता उनमें है।

दौलतराम सारण मुझे इस मायने में भी धुन के पक्के लगते हैं कि वह प्रारंभ से ही शिक्षा अनुरागी, लोकतंत्र के पक्षधर और जातीय कट्टरताओं से मुक्त रहे हैं। मैने कुंभाराम आर्य, बलदेव मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, परसराम मदेरणा आदि को भी देखा-समझा है और स्वामी केशवानंद, सर छोटूराम और चौधरी चरण सिंह के योगदान को भी पढ़ा तथा जाना है। इसलिए राजस्थान के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक


[पृ.93]: जीवन में दौलतराम सारण की भूमिका को मैं इनसे कुछ अलग ही मानता हूं। मेरी दृष्टि से यहां दौलतराम सारण एक किसान नेता के रूप में स्थापित हैं जबकि इनके समकालीन सभी किसान पुत्र केवल जाट नेता के रूप में ही अपने आपको धन्य करते रहे हैं। दौलतराम सारण मुझे दूसरों से इसलिए भी भिन्न लगते हैं क्योंकि उन्होंने जाट जाति से पहले अपने को एक किसान माना है और जातीय राजनीति और संकीर्णताओं से अपने को बचाया है।

मुझे याद है कि 1986 से अन्य पिछड़ा वर्ग में आरक्षण की जो कहानी शुरु हुई थी और 1999 में जिस तरह उसकी राजस्थान में स्थापना हुई थी-इस पूरे संदर्भ में दौलतराम सारण ने कभी अपने को जाट जाति के अतिवादी आंदोलनों से नहीं जोड़ा और जातीय सभाओं और जातीय सेवाओं के राजनैतिक रथ पर बैठकर कोई अवसरपरस्ती तथा सौदेबाजी नहीं की। यही कारण है कि दौलतराम सारण मुझे दूसरों से अलग एक तर्कवादी और उदारवादी राजनेता लगते हैं जो समग्र किसान उत्थान की बात करते हैं तथा किसान का अर्थ केवल जाट होना नहीं मानते हैं। राजस्थान के किसान आंदोलन में दौलतराम सारण शायद इसलिए एक आदर्शवादी और गांधीवादी छवि के कद्दावर नेता हैं- जिनको समाज के सभी वर्गों और जातीयों का आदर और विश्वास प्राप्त रहा है।

मैं दौलतराम सारण की किसान यूनियन का साक्षी भी रहा हूं और इसलिए कुछ विश्वास से कह सकता हूं कि राजस्थान की राजनीति में उन्होंने वंशवाद को कभी स्वीकार नहीं किया और सारी उम्र कुछ मूल्यों को लेकर ही चुनाव दर चुनाव भी लड़ते रहे और कभी हारते तो कभी जीतते रहे। मैंने दौलतराम सारण को सदैव पैदल चलते ही पाया है तथा सरकारी हाथी, घोड़ा, पालकी से अलग देखा है। धोती, कुर्त्ता, गांधी टोपी और जूतियां पहने उनकी पहचान सदैव मुझे याद रहती है। यहां तक कि गांधी विचार और दर्शन के, खादी ग्रामोद्योग के और धर्मनिरपेक्षता के कार्यक्रमों में उनकी अलमबरदारी ने मुझे उनसे जोड़ा है, जबकि इसके विपरीत आज की किसान राजनीति सम्पूर्णत: एक जातिवादी-मारधाड़ बन गई है। दौलतराम सारण इसलिए चौधरी चरण सिंह की तरह ही मानते हैं कि ग्रामीण भारत ही असली भारत है। जब राष्ट्रीय एकता का सूरज उगेगा तो जातिवाद का अंधकार मिट जाएगा। भारत का समृद्धि का रास्ता गांवों और खेतों से होकर गुजरता है। मुझे तो यही लगता है कि दौलतराम सारण जन्मजात कांग्रेसी हैं तथा उनकी आत्मा घूम-फिर कर कांग्रेस में ही निवास करती है। क्या यह कम बड़ी बात है कि राजनीति रूपी काजल की कोठरी में जीवनभर रहकर भी आज तक उन पर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद का कोई आरोप नहीं है तथा उनके यह नारे ‘चेतो, एको, खडको तथा मेहनत हमारी लूट तुम्हारी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी अथवा शोषण, अन्याय, अत्याचार नहीं सहेंगे, नहीं सहेंगे’, राजस्थान के किसान भाइयों को आज भी याद है।

दौलतराम सारण जहां एक अध्ययनशील सामाजिक नेता रहे हैं, वहां जात-पांत और साम्प्रदायिकता की राजनीति से उनकी नफरत भी जग जाहिर है। आपात काल में भी उन्नीस माह जेल में रहे दौलतराम सारण अधिनायकवाद के प्रबल विरोधी हैं तथा सबसे दुर्लभ बात तो उनकी यह है कि उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में एक ईमानदार और मेहनतकश किसान का चरित्र झलकता है। वह एक स्व-स्फूर्त और स्व-प्रेरित व्यक्ति हैं तथा आज भी गांधी जी के ग्राम स्वराज्य में आस्था रखते हैं। शायद इन जैसे किसान सेनानी के लिए ही महात्मा गांधी ने कभी कहा था कि अन्याय, असमानता, हिंसा के विरुद्ध खड़े रहने के लिए घमंडी या तुच्छ बनने की आवश्यकता नहीं होती। अत: सभी जाति के नाम पर किसानों की राजनीति कर रहे लोगोंं को उनसे कुछ सार्वजनिक सदाचार सीखना चाहिए।

ऐसे किसान पुत्र का 2 जुलाई 2011 को देहान्त राजस्थान में रचनात्मक राजनीति की गहरी क्षति है।

विविध उद्धरण (पृ.96-99,104,106,108,117,118,120,121,123,127,128)

[पृ.96]: लेखक: प्रो. छगनलाल शास्त्री सरदारशहर, आठवीं तक की शिक्षा: श्री सूबेदार जी (स्वर्गीय चौधरी श्री शिवजीसिंह द्वारा निर्माणित) कुएं के चारों ओर बसे मोहल्ले में मेरा मकान है। उसी में श्री भीखाराम, नेमाराम सैन का मकान है। यद्यपि श्री सारण का निवास स्थान ढाणी पांचेरा गाँव है, किन्तु श्री सारण पढ़ाई के लिए सरदार शहर में श्री सैन के धर्म भाई थे। आपस में बड़ा प्रेम था।

उस समय सरदारशहर में बीकानेर राज्य की ओर से आठवीं कक्षा तक विद्यालय चलता था तथा पढ़ाई बहुत अच्छी होती थी। देश में अंग्रेजों की हुकूमत के कारण हिंदी के साथ पहली कक्षा में ही अंग्रेजी चलती थी। आठवीं कक्षा की परीक्षा डिपार्टमेंटल एग्जामिनेशन के रूप में बीकानेर से संचालित होती थी। श्री दौलतरामने सरकारी स्कूल में आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त की। उससे आगे की शिक्षा की व्यवस्था यहां नहीं थी। इसलिए यहां के छात्र, जो उच्च पढ़ाई के लिए बीकानेर नहीं जा सकते थे, वे पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर की मैट्रिक परीक्षा स्वयंपाठी छात्रों के रूप में देते थे। श्री सारण ने भी ऐसा ही किया। क्योंकि बाहर पढ़ने की सुविधाएं उन्हें प्राप्त नहीं थी। पढ़ने की रुचि के कारण वे प्राय: पब्लिक लाइब्रेरी जाते रहते, वहां भिन्न-भिन्न विषयों की पुस्तकें पढ़ते और दैनिक, साप्ताहिक अखबार भी पढ़ते थे। इस प्रकार उनका सामान्य ज्ञान काफी अच्छा होता गया।


[पृ.97]: श्री चंदनमल वैद बंगाल हिंदू विश्वविद्यालय से M.A. LLB पास करके आए थे। उन्होंने सोचा तो यह था कि यहां पर व्यापारिक एवं औद्योगिक जीवन में कीर्तिमान कायम करेंगे किंतु उनके युवा मानस को यह मंजूर नहीं था।

श्री सारण प्रारम्भ से ही बड़े ईमानदार, सत्यनिष्ठ व्यक्ति रहे हैं। आर्थिक लोभ कभी उनके मन को छू तक नहीं पाया। 'सादा जीवन उच्च विचार' का आदर्श श्री सारण के जीवन में भली-भांति घठित है। रहन-सहन, वाणी, व्यवहार, लेन-देन और उनके जीवन के सभी पहलु सदा सादगीपूर्ण रहे हैं। बनावे-दिखावे से सदा दूर रहते आ रहे हैं। वे मानवीय आदर्शो के पुरोधा हैं।


[पृ.98]: लेखक- मिलाप दुग्गड़ - कुलपति आईएएसई विश्व विद्यालय गांधी विद्यामन्दिर, सरदार शहर...आप लिखते हैं कि श्रीयुत दौलत राम सारण हमारे क्षेत्र के एक ऐसे पुरुष हैं, जो सामान्य कृषिजीवी परिवार में उत्पन्न होकर अपनी बुद्धि, लगन, श्रम, कार्यक्षमता एवं सेवा भावना के बल पर जीवन में उत्तरोत्तर आगे बढ़ते गए. उनके पिता चौधरी श्री दुलाराम जी गांव के प्रमुख लोगों में थे, बड़े सेवा भावी थे. हमारे यहाँ समय-समय पर पिता-पुत्र दोनों का ही आना-जाना रहता था. दोनों परिवारों में परस्पर अच्छा स्नेह संबंध था. इन्हें अध्यात्म और योग में बचपन से ही रुचि रही है. वे मेरे पिताश्री कन्हैयालाल दुगड़ के लगभग समवयस्क हैं. पिताश्री से विधिवत अभ्यास द्वारा योग में उच्चता प्राप्त की थी. अतः श्री सारण समय-समय पर उनके पास योग आदि के संबंध में चर्चा हेतु आते रहते थे. वे बड़े ही गुणग्राही व्यक्ति थे. समाजसेवियों एवं विचारकों के सानिध्य में बैठने, उन्हें सुनने और उनसे सीखने की इन्हें सदा से अभिरुचि रही है.

हमारा मरुस्थलीय क्षेत्र शिक्षा में आगे बढ़े, यह श्री सारण की सदा से भावना रही है. इसलिए वे गांधी विद्या मंदिर के साथ स्थापनाकाल से ही सक्रिय रूप से जुड़े रहे और कार्यकारिणी के सदस्य भी आरंभ से रहे हैं. उन्होंने संस्था के विकास में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से जो सहयोग किया है, वह अभिनंदनीय है.


[पृ.98]: अत्यंत व्यस्तता के बावजूद भी श्री सारण गांधी विद्या मंदिर के कार्यों में सदा रुचि लेते रहे। गांधी विद्या मंदिर में जब-जब विशेष प्रसंग बने, कठिनाइयां भी आई, उन सब में ये सदा साथ रहे। गांधी विद्या मंदिर के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना में श्री सारण का बड़ा योगदान रहा है। यह कार्य उन्होंने चौधरी देवीलाल के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री के पद पर रहते करवाया था।

इन्होंने लोगों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए गांव में श्री बालाजी का एक मंदिर भी बनवाया है।

गत 13 जनवरी 2008 को सरदारशहर स्थित गांधी चौक में श्री सारण का विराट नागरिक अभिनंदन समारोह आयोजित हुआ। राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र के सैकड़ों गणमान्य महानुभाव, राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर सुमित्रा सिंह एवं केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के अलावा दूर-दूर के गांवों से आए हजारों लोगों ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया। जिससे स्पष्ट था कि धरती के कण-कण में इनके प्रति अगाध श्रद्धा है। क्षेत्र के लोगों ने थार के गांधी के रूप में अत्यधिक सम्मान पूर्वक संबोधित किया, वास्तव में यह यथार्थ ही है।


[पृ.104]: लेखक - गुलाम नबी गौरी एडवोकेट, श्री दौलत राम सारण का 85वां जन्मदिवस सरदारशहर तहसील की आम जनता ने उनके नागरिक अभिनंदन के रूप में मनाया। ....

स्पष्टवादिता: उन दिनों चुनाव के दिन थे और श्री दौलतराम सारण अपनी चुनावी सभा को संबोधित करने चूरू शहर में आने वाले थे। उन दिनों राम मंदिर निर्माण के लिए देशभर में ईंटों का पूजन और चंदा जोर-शोर से चल रहा था। माहौल काफी 'राममाय' में बना हुआ था। श्री दौलतराम सारण को राम भक्तों की भीड़ ने चूरू के मुख्य बाजार गढ़ चौराहे पर रोक लिया और उनको तिलक लगाकर चंदा मांगने लगे। श्री दौलतराम ने न सिर्फ चंदा देने से मना कर दिया बल्कि तिलक लगाने से भी मना कर दिया और कहा कि तुम लोग चंद चालबाज और स्वार्थी लोगों के बहकावे में आए हुए हो और जो तुम्हारी भावनाओं को राम के नाम पर भड़का कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। यद्यपि उस समय उनको विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन बेबाक सत्य उन्होंने भीड़ की नाराजगी की परवाह किए बिना व्यक्त कर दिया और रामभक्त आज तक अपनी ईंटों को तलाश कर रहे हैं। प्रजातंत्र में इस तरह की स्पष्टवादिता शायद ही किसी नेता में देखने को मिले।


[पृ.106]: लेखक-डूंगर सिंह कसवां, बीकानेर स्टेट में पुरुष और नारी शिक्षा का अभाव मानते हुए नारी शिक्षा को बढ़ाने के लिए स्वामी केशवानंद जी महाराज का सहयोग लेकर ग्राम: महाजन, तहसील लूणकरणसर, जिला बीकानेर में "कस्तूरबा गांधी महिला विद्यापीठ" की स्थापना सन् 1953 में की। महिला विद्यापीठ का भवन निर्माण व उसके संचालन में होने वाले व्यय की पूर्ति के लिए राजा रघुवीरसिंह जी को इस पावन कार्य में सहयोग के लिए भूमि देने के लिए प्रेरित किया। राजा साहब ने उनकी बात मानते हुए कन्या महाविद्यालय के नाम से करीब 2000 बीघा भूमि दान दी थी। राजा साहब द्वारा दान की गई भूमि पर कन्या विद्यालय का निर्माण किया गया। इस विद्यालय के संचालन हेतु श्री चंद्रनाथ जी योगी को नियुक्त किया गया। इसमें बीकानेर संभाग की विशेष लूणकरणसर तहसील की लड़कियों ने शिक्षा ग्रहण की। परिणाम स्वरुप उन पढ़ी-लिखी लड़कियों की संताने आगे चलकर आज उच्च शिक्षा प्राप्त कर डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।


[पृ.108]: लेखक - केशरदेव कस्वां,.... आपके भीतर शोषण, अन्याय, अत्याचार के विरोध में शोषण विहीन समाज की संरचना के राष्ट्र-नावनिर्माण के क्रांतिकारी विचारों ने शोषणविहीन व्यापार व्यवस्था की सुव्यवस्था के लिए बाजार में एक दुकान खोलने की प्रेरणा दी। बाजार में दुकान खोली गई, परंतु स्वतंत्रता आंदोलन आपको पुकार रहा था। इस ओर कदम बढ़ाने के कारण इससे आपको अलग होना पड़ा।

शिक्षा संपन्न व्यक्ति ही शिल्प सिद्ध कर सकता है जिसके द्वारा गुण, कर्म एवं स्वभाव को वांछित रूप से गढ़ सकना संभव हो सकता है। इस कारण आपने रेगिस्तानी भूखी-प्यासी अनपढ़ ग्रामीण जनता में शिक्षा संत स्वामी केशवानंद के नेतृत्व में "मरुभूमि सेवा कार्य शिक्षा योजना" संगरिया, राजस्थान से जुड़कर सक्रिय भूमिका निभाते हुए 278 ग्रामीण पाठशालाओं का संचालन में योगदान कर बीकानेर संभाग की शिक्षा व्यवस्था का श्रीगणेश किया। आपने निरक्षरता दूर करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम गांवों और शहरों में शुरु किए।


[पृ.117]: लेखक - डालचंद सारण, प्रारम्भिक शिक्षा: तीन वर्ष की आयु में गांव के मंदिर के पुजारी द्वारा बच्चों को लय के साथ पढ़ाई जाने वाली भारनी (पहाड़ा पाठ) से आकर्षित होकर पढ़ाई की तरफ श्री दौलतराम सारण का रुझान पैदा हुआ। आपने आरंभिक शिक्षा गांव के पुजारी से ग्रहण की। उसके बाद आपके पिताजी ने हरियाणा से प्राइवेट शिक्षक गांव बुलाकर श्री सारण को पढ़ाया।

श्री दौलतराम जी सारण के मन में बड़ी कसक थी कि गांव के बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है अतः आप ने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए मात्र 17 वर्ष की आयु में हरियाणा, उत्तर प्रदेश से निजी तौर पर शिक्षक बुलाकर गांव में स्कूल चलवाने शुरू किया।

उस समय बीकानेर रियासत में विरोध के स्वर मुखर हो रहे थे। वहां राज्य प्रजा परिषद की स्थापना हो चुकी थी। श्री सारण उस समय सरदारशहर में थे और अपने छात्र दल के साथ प्रजा परिषद में शामिल हो गए। वे उसकी प्रतिनिधि सभा के सदस्य रहे। प्रजापरिषद की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए महाराजा ने बीकानेर रियासत में निषेधाज्ञा लागू कर प्रजा परिषद पर पाबंदी लगा दी। अधिकांश वरिष्ठ नेताओं को कैद कर लिया गया।

उसी समय स्वामी केशवानंद जी का आगमन हुआ। उन्होंने श्री सारण से हालचाल पूछा। आपने स्वामी जी को बताया कि हमारी गतिविधियों पर महाराजा ने रोक लगा रखी है। अतः स्वामी जी आपको अपने साथ संगरिया ले गए। स्वामी केशवानंद जी आपके सामाजिक कार्यकलापों से बड़े प्रभावित हुए और उन्हें स्कूलों की देखरेख का कार्य सौंपा। सन् 1948 में ग्रामोत्थान विद्यापीठ संगरिया की ओर से आपने शिक्षा शिविर का आयोजन किया जिसमें 63 महिला पुरुषों ने भाग लिया। दूसरा शिविर महाजन स्टेशन, जो उस समय बड़ा ठिकाना हुआ करता था, में रेत केढोरों के ऊपर लगाया। बाद में आप से प्रभावित होकर ठिकानेदार ने करीब 2000 बीघा भूमि दान दी जिस पर कन्या विद्यालय की स्थापना हुई। बाद में आपने वह विद्यालय हंसराज आर्य को सौंप दिया। इस तरह आपने विद्या पीठ के सानिध्य में अनेक गांवो में स्कूल खुलवाए।


[पृ.118]: श्री सारण ने उस समय वन महोत्सव मनाना शुरू किया जब सरकार का कोई कार्यक्रम नहीं चला करता था। आपने 'पेड़ लगाओ' अभियान शुरू किया। साथ ही आपको गांवों में बढ़ती जा रही गंदगी के ढेरों की भी चिंता थी। आपने गांव-गाँव में संपर्क अभियान शुरू किया जो करीब सवा महीना चला। इसमें रोजाना चार-पांच कोस पैदा चलने और गंदगी के कारण आपको कई सारी बीमारियां भी पड़ गई लेकिन धुन के पक्के श्री सारण ने अपने सर्वांगिण कार्यक्रम को जारी रखा।


[पृ.120]: लेखक - उदाराम सहारण,

सहारनपुर : राजा सारण द्वारा पुराना नाम वरबुड़ियावास था, सहारनपुर के नाम राज्य की स्थापना वर्ष संवत 1122 (1065 ई.) में हुई।

भाड़ंग - राजस्थान में चुरू जिले की तारानगर तहसील में चुरू में बसा ऐतिहासिक एक गाँव है. संवत 1320 (1263 ई.) में सारण राजा के वंशजों द्वारा भाड़ंग को राजधानी बनाया गया था।

पूलासर: सारण वंश के राजा पूला ने लगभग संवत 1421 के आसपास अपने मंत्री श्री गंगरेड पांडियों को दान में दिया व अपने भाई-बंधुओं व कुटुम्बियों को इस गाँव को खाली करके अन्य स्थानों पर बसने की सलाह दी और इस प्रकार सारण परिवार सरदारशहर तहसील व चुरू और अन्य जिलों में फ़ैल गए। उसी परिवार के श्री दुलाराम सारण ढाणी पांचेरा के परिवार में श्री दौलत राम सारण का जन्म हुआ।


[पृ.121]: लेखक - श्री दीपेंद्र सिंह शेखावत, भूतपूर्व मंत्री: लिखते हैं कि छात्र जीवन में ही श्री दौलत राम जी सारण का नाम सुनते आया हूं किंतु जब तक में उनके संपर्क में नहीं आया मेरे मन में उनकी छवि एक घोर जातिवादी जाट नेता के रूप में थी. निकट जाने के पश्चात भ्रांति दूर हुई कि वह जाट नेता नहीं बल्कि किसान और गरीब के दर्द से व्यथित होकर, देहात के पिछड़ेपन से रूबरू होकर, महात्मा गांधी और ज्योतिबा फुले से प्रभावित होकर उन्हें कुछ मूल्यों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. श्री दौलतराम जी को महिला शिक्षा, घूंघट उठाने और शराबबंदी के लिए संघर्ष करते हुए अलख जगानी पड़ी. यदि उनकी समीक्षा की गई होती तथा आज की मीडिया-जगत ने उसे पकड़ा होता तो शायद उन्हें राजस्थान की ज्योतिबा फुले के समान सम्मान मिला होता.


[पृ.123]: लेखक - नवरंग सिंह जाखड़, वर्ष 1985-86 में कुछ नेताओं की भूल की वजह से किसान आंदोलन का श्रेय हमारे व सारण साहब के हाथों से अन्य नेताओं के हाथ चला गया जो अब भी अखरता है।


[पृ.127]:लेखक-शेर सिंह, राजस्थान प्रदेश की सुप्रसिद्ध शिक्षा संस्थान ग्रामोत्थान विद्यापीठ संगरिया (जिला हनुमानगढ़) के उन्नायक-संचालक, शिक्षा संत स्वामी केशवानंद ने जब 1947 में अपनी मरुभूमि सेवा कार्य योजना द्वारा बीकानेर राज्य के मरूक्षेत्रीय गांवों में शिक्षा प्रचार का कार्य आरंभ किया तब चौधरी दौलतराम सारण उनके प्रथम सहयोगियों में से एक थे। 20-21 वर्षीय श्री सारण स्वामी जी के साथ पैदल यात्रा करते हुए उन दुर्गम गांवों में जाते, वहां लोगों को शिक्षा प्राप्ति के लिए लाभ बताते, उन्हें स्वयं शिक्षित होने और बालक-बालिकाओं के लिए गाँव में स्कूल खुलवाकर उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए प्रेरित करते थे।

श्री सारण ने जवानी के महत्वपूर्ण आरंभिक वर्ष स्वामीजी के निर्देशन में उस दुस्साध्य ज्ञान-दान यज्ञ में, मूक मरुस्थल को जबान देने में लगाए। उन्होंने केवल प्रचार कार्य में ही योगदान नहीं किया, अपितु प्रौढ़-शिक्षा, समाज-सुधार, पाठशाला-निरीक्षण, उन ग्राम्य शालाओं के लिए सुयोग्य शिक्षक तैयार करने के लिए ग्रामोत्थान विद्यापीठ में प्रशिक्षण शिविर लगाने में भी सहयोग करके शिक्षा प्रसार कार्य को आगे बढ़ाया। उनकी सहभागिता के फलस्वरूप ही मारूक्षेत्र में स्वामी जी का मरुभूमि सेवा कार्य - शिक्षा प्रचार, समाज सुधार, रूढि उन्मूलन, अस्पृश्यता निवारण आदि के रूप में गतिशील हो पाया था। श्री सारण के लोक सेवा क्षेत्र में पदार्पण का भी यह प्रथम कदम था जिसे उठाने के बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।


[पृ.128]: लेखक-ओमप्रकाश चौटाला, उनकी दूरदर्शिता का परिचय इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय में भी उन्होने वृक्षों के महत्व को समझा और वर्षा के मौसम में हरे पेड़ लगाने का अभियान चलाया। यह ग्लोबल वार्मिंग जैसे भयंकर अभिशाप के खिलाफ समय रहते लड़ाई थी।

नारी चेतना के लिए भी आपके 'अंगूठा मिटाओ, घूँघट हटाओ' के नारे ने ही नारी समाज के उत्थान में अहम भूमिका निभाई।

श्री सारण को वित्तीय संसाधनों का हमेशा ही अभाव रहा। आपने 'एक वोट एक नोट' के नारे के साथ हमेशा चुनाव लड़े।

जनतांत्रिक व्यवस्था के प्रबल समर्थक

संदर्भ - 'जननायक श्री दौलतराम सारण अभिनंदन ग्रंथ' (2008), 'जनतांत्रिक व्यवस्था के प्रबल समर्थक श्री दौलतराम सारण', लेखक:डॉ. बेगराज सारण, पृ.129-131 से साभार।


[पृ.129]: श्री दौलतराम सारण का जन्म 13 जनवरी 1924 को एक छोटे से गाँव ढाणी पाँचेरा में हुआ जो तत्कालीन बीकानेर राज्य की सरदार शहर तहसील में स्थित है। किसी समय में फोगां गांव से आकर चौधरी पांचीराम जी सारण ने इस गांव को बसाया था जिसमें प्राय सभी घर सारण गोत्र के जाटों के हैं। गांव में कृषि एवं पशुपालन आजीविका के मुख्य साधन हैं। इसी गांव के कृषक श्री दुलाराम सहारण के घर द्वितीय पुत्र श्री दौलतराम सारण का जन्म हुआ। सारा परिवार खुशी से झूम उठा। यह प्रसन्नता और बढ़ चली जब एक तपस्वी साधु ने यह भविष्यवाणी की, "तेरा पुत्र बड़ा यशस्वी होगा, परिवार का ही नहीं, पूरे बीकानेर संभाग का नाम रोशन करेगा।" साधु की भविष्यवाणी से प्रेरित होकर श्री दुलाराम सारण ने अपने पुत्र को सरदार शहर में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेज दिया। अपनी निष्ठा और लगन एवं कड़ी मेहनत के बल पर श्री सारण एक मेधावी छात्र के रूप में विद्यालय में उभर कर आए। सारे स्कूल में सर्वाधिक योग्य छात्र बने और अपने सहपाठियों में जनप्रियता हासिल की। यह एक सुखद संयोग था


कि उसी समय पंडित गौरीशंकर आचार्य योग्यता का सम्मान करते हुए सरकार ने उनकी नियुक्ति भी सरदारशहर हाई स्कूल में एक संस्कृत अध्यापक के रूप में कर दी। श्री आचार्य बड़े कर्मठ और लगनशील व्यक्ति थे। श्री सारण मेधावी छात्र थे इसलिए उन्होंने विद्यालय में 2-3 वर्ष का समय नष्ट करने की अपेक्षा पंजाब विश्वविद्यालय की सीधी मैट्रिक परीक्षा हिसार केंद्र से देकर सफलता हासिल की। श्री सारण श्री गौरी शंकराचार्य की प्रेरणा से राष्ट्रीय भावना से प्रेरित हुए। श्री आचार्य ने विद्यार्थियों को सांस्कृतिक चेतना के साथ-साथ राजनीतिक चेतना का पाठ भी पढ़ाया।....

सन् 1945 में अंग्रेजों व जागीरदारों के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अन्याय व अत्याचार से लड़ने के लिए बीकानेर राज्य में प्रजा परिषद के रूप में एक राजनीतिक संगठन स्थापित किया। उसका विधान बनाने में चौधरी कुंभाराम आर्य का प्रमुख हाथ रहा। श्री रघुवर दयाल गोयल प्रजा परिषद के अध्यक्ष व श्री दौलतराम सारण, श्री हरदत्त बेनीवाल, श्री मनीराम आर्य पूर्व विधायक तारानगर, प्रोफेसर केदार शर्मा, पूर्व विधायक श्री गंगानगर, हंसराज आर्य, पूर्व विधायक भादरा, प्रजा परिषद के सक्रिय सदस्य बने। श्री सारण सन्


[पृ.130]: 1945-1948 तक प्रजा परिषद की गतिविधियों से सक्रिय रूप से जुड़ें रहे।

श्री सारण सन् 1948 से 1950 तक चूरू जिला कांग्रेस समिति के महासचिव एवं आगे चलकर सन् 1950 से 1957 तक इसके अध्यक्ष रहे। लोग उनकी नेतृत्व क्षमता से पूरी तरह वाकिफ हो चुके थे। वे इस क्षेत्र में प्रथम श्रेणी के नेता के रूप में उभरकर सामने आए।

सन् 1952 में राज्य विधानसभा के चुनाव के समय श्री सारण चुरू जिले के गणमान्य नेता थे और राजनीतिक रूप से अग्रिम पंक्ति में थे। कांग्रेस कमेटी ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए आग्रह किया। उन्होंने नम्रतापूर्वक इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उस समय श्री चंदनमल बैद को कांग्रेस पार्टी का सरदार शहर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया। चुनाव में श्री सारण ने उनकी भरपूर मदद की। इस सहयोग के कारण श्री वैद अच्छे बहुमत से विजई हुए।

सन् 1957 के विधानसभा चुनाव में श्री सारण को कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने व कार्य-समिति ने समझा-बुझाकर श्रीडूंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने को तैयार कर लिया। वे इस चुनाव में अच्छे मतों से विजई हुए।

11 अप्रैल 1957 को श्री मोहन लाल सुखड़िया ने अपने मंत्रिमंडल का गठन किया तो कांग्रेस के प्रति की गई सेवाओं के कारण श्री सारण को उपमंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में सम्मिलित कर लिया। उन्हें कृषि, पशुपालन, सहकारिता, पंचायती राज, स्थानीय निकाय एवं सिंचाई विभाग सौंपे गए। इन विभागों की कार्यप्रणाली में उन्होंने कई सुधार किए और श्री सारण ने इन विभागों में लोक कल्याण के महत्वपूर्ण कार्य किए। श्री चरण पंचायती राज प्रणाली के बहुत ही हिमायती थे। 2 अक्टूबर 1959 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश में सबसे पहले पंचायत राज की स्थापना राजस्थान में शुरू की।

सन् 1962 के विधानसभा चुनाव में श्री सारण डूंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से अच्छे मतों से विजय हुए। श्री सुखाडिया के नेतृत्व में राजस्थान मंत्रिमंडल का गठन हुआ। श्री सारण को मंत्रिमंडल में उपमंत्री के रुप में सम्मिलित किया गया।

उसी दौरान मुख्यमंत्री श्री सुखाडिया से चौधरी कुंभाराम आर्य का राजस्थान के विकास के कुछ मुद्दों पर मतभेद हो गया। कांग्रेस हाईकमान ने कुंभाराम के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्य करने का विचार किया। 20 दिसंबर 1966 को कुंभाराम आर्य ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। राजा हरिश्चंद्र, दौलतराम सारण वह कमला बेनीवाल ने संयुक्त रुप से मुख्यमंत्री को त्याग-पत्र भेज दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री पर प्रशासन में अनुचित हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार, कुनबा-परस्ती व कांग्रेस की नीतियों के विरुद्ध आचरण के आरोप लगाए।

कांग्रेस से अलग होकर इन लोगों ने सन् 1967 में जनता पार्टी नामक एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया। राजस्थान में इस पार्टी के अध्यक्ष चौधरी कुंभाराम आर्य और दौलतराम सारण इसके महासचिव बने।

1977 में देश में आपातकाल के बाद जनसंघ, भारतीय क्रांति दल, समाजवादी पार्टी इत्यादि ने विलय कर राष्ट्रव्यापी जनता पार्टी का गठन किया जिसके मोरारजी देसाई अध्यक्ष बने। 1977 के लोकसभा के चुनाव में श्री सारण चुरू लोकसभा क्षेत्र से भारी मतों से विजई होकर सांसद चुने गए।

श्री सारण ने 1980 में 7 वीं लोकसभा और 1989 में नवमी लोकसभा में जीत हासिल की एवं लोकसभा में पहुंचे। श्री चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में केंद्र में शहरी विकास मंत्री के पद पर रहे एवं दिल्ली की जनता को भूखंडों पर लगने वाली लीज डीड से मुक्त करवाया। वह संसदीय क्षेत्र चुरू से 3 बार सांसद बने। सन् 1993 में श्री सारण पुनः कांग्रेस में सम्मिलित हो गए।

विविध उद्धरण (पृ.133,144,153,154,165,166,178,179, 195,204,211,)

[पृ.133]: लेखक-जयप्रकाश चंद्र, दौलतराम सारण जयपुर में हनुमान नगर में निवास करते हैं। उनके रहनुमाई में वरिष्ठ नागरिकों का एक संगठन बनाया गया। श्री केएस कंग ने हनुमान नगर व हनुमान वाटिका की समितियों के अध्यक्ष के रूप में अपने उत्साहपूर्वक प्रबंधन से सक्रिय योगदान दिया। लोगों ने अनुदान दिए। धीरे-धीरे सदस्यों की संख्या बढ़ी। सभी लोग अपने-अपने अनुभव, लेखन, कविताएं, चुटकुले, समाज और राजनीति पर चर्चा आदि शेयर करते। अंतिम समापन श्री दौलतराम सारण करते थे। आपने अपने एक पुत्र की स्मृति में, जिसका एक दुर्घटना में निधन हो गया था, पुस्तकालय की स्थापना हेतु ₹2 लाख दिए। इसमें मुंबई के एक सेठ केजरीवाल जी ने भी, जो अपने पुत्र के पास जयपुर आते रहते थे, धन इत्यादि से बहुत योगदान दिया। इमारत बनी, पुस्तकें दान में आने लगी और नई पुस्तकें खरीदी जाने लगी। श्री सारण जी ने मुख्य रूप से विनोबा भावे का पूरा साहित्य, गांधीजी विषयक पूरा साहित्य, व एक मासिक पत्रिका 'सत्याग्रह' का दान किया। आज भारत पुस्तकालय के नाम से चल रहा है।


[पृ.144]: लेखक-ख्यालीराम गिठाला, सुखाडिया मंत्रिमंडल में चौधरी साहब उप सिंचाई मंत्री थे। जब एक वे गंगानगर दौरे पर गए तो गांव सुरावाली, तहसील पीलीबंगा, जिला गंगानगर, के लोग मंत्री महोदय से गंगानगर सिंचाई विश्रामगृह पर मिले। गांव के लोगों ने अपनी समस्या चौधरी साहब के समक्ष रखी कि हमारे गांव का जोहड़ सूखा पड़ा है जिससे गांव के लोगों को बहुत बड़ी समस्या है। गांव वालों ने सलाह दी कि इस समस्या के निदान के लिए लीलावती वितरिका नहर में मोधा (आउटलेट) लगने से यह समस्या हल हो सकती है। चौधरी साहब ने अपने विभाग के इंजीनियरों से पूछा तो उन्होंने सीधा कहा कि यह मोधा लगाना असंभव है। गांव वालों के प्रस्ताव के अनुसार यदि मौधा लगाया जाएगा तो नहर को क्षति पहुंचेगी। तब चौधरी साहब ने कहा कि मेरे मंत्री होते हुए किसान मजदूर के समस्या के लिए कोई असंभव नहीं है। आप लोग आज ही सर्वे करवाकर 15 दिन में पानी की समस्या हल कर मुझे रिपोर्ट करो। 15 दिन में सुरावाली के जोहड़ में मंत्री महोदय के आदेश से जहां लोग चाते थे, वहाँ पर मोधा लगा दिया गया और गांव के लोगों की समस्या का हल कर दिया। यह उनके कार्य करने का तरीका था।


राजनीति रै बीच में थे हा कमल समान

लेखक

कन्हैयालाल सेठिया


चि. दौलतराम सारण

मिनख पणू साख्यात

सारण दोलत राम

जनता री सेवा करी

तन मन स्यूं निष्काम

राजनीति रै बीच में

थे हा कमल समान

थारी म्हारी प्रीत रो

काँई करूं बखाण

सौ बरसां तक रवै

जीवन दीप अमंद

गुण थारा कै लिख सकै

म्हारा वामन छन्द

घणी-घणी बधाई-शुभकामना

आशीष

थारो

राजनीति रै बीच में थे हा कमाल समान[2]

[पृ.153]: लेखक - भूपसिंह राहड़, ....आपने किसानों को उनकी उपज, देसी घी, जो सरदारशहर के किसान अनाज के साथ-साथ बाजार में बिक्री के लिए लाते थे, की बिक्री के लिए किसानों को शोषण से मुक्ति दिलाने वास्ते बीच बाजार में गढ़ के पाले की एक दुकान किराए पर लेकर क्रय-विक्रय सहकारी समिति का गठन करवाकर एक ईमानदार और किसानों की सहकारी भावना से सेवा करने वाले श्री जसराज निवासी ग्राम दूधवाखारा को उक्त समिति का व्यवस्था पर बनाया और सहकारी भावना से किसानों को "एक सबके लिए और सब एक के लिए" के उद्देश्यों की भावना से सेवा से क्षेत्र में किसानों की सेवा की।


[पृ.154]: लेखक- यशवंत सिंह, ....सरदारशहर की स्कूल में विद्या ग्रहण करते समय इनकी अंतर्चेतना में महात्मा गांधी के सत्संस्कार अंकुरित होने से उन्होंने सन् 1942 में गांधी टोपी धारण की, जो लगातार अब तक इनके ललाट को सुशोभित कर रही है।

श्री दौलतराम जी ने सन् 1944 में मरूप्रदेश के शिक्षा संत स्वामी केशवानंद जी का सानिध्य लाभ प्राप्त कर स्वामी जी के साथ सुदूर रेगिस्तान के गांवों की कठिन परिस्थितियों में यात्राएं करके बियाबान टीबों में 287 पाठशालाएं खोलकर भागीरथ की गंगा की भांति भूखे, शोषित, पीड़ित व नीयतन उपेक्षित ग्राम समाज में प्रेरणादायक शिक्षा-ज्योति प्रज्वलित करने में अपना पसीना बहाया। इसके साथ-साथ स्वामी जी द्वारा संचालित तत्कालीन जाट स्कूल संगरिया (वर्तमान ग्रामोत्थान विद्यापीठ संगरिया) में स्वामी जी द्वारा प्रारंभ में अनेक ग्रामोपयोगी शिविरों भिन्न-भिन्न योजनाओं के संचालन में उन्होंने सक्रिय भागीदारी निभाई। श्री दौलतराम जी द्वारा स्वामी केशवानंद जी के संरक्षण में संचालित महाजन कन्या शिक्षा संस्थान से भी जुड़े रहे हैं। ये गांधी विद्या मंदिर, सरदारशहर के संस्थापक सदस्यों में से हैं।


[पृ.165]: लेखक - अशोक माथुर, संपादक दैनिक लोकमत बीकानेर. मेरे पिता स्वतंत्रता सेनानी अंबालाल माथुर तथा मेरे ताऊजी स्वतंत्रता सेनानी जगदीश प्रसाद माथुर 'दीपक' को राष्ट्रीय आजादी के आंदोलन के दौरान बीकानेर संभाग में किसानों को संगठित करने तथा आम आवाम को व्यवस्था परिवर्तन करने के लिए लामबंद करने का जिम्मा दिया गया था. उसी वक्त चौधरी हरदत्त सिंह, चौधरी कुंभाराम आर्य, प्रोफ़ेसर केदार, चौधरी मोतीराम, चौधरी रामचंद्र आर्य, चौधरी हंसराज तथा चूरू के हनुमानसिंह बुडानिया, राजगढ़ के कामरेड मोहर सिंह, चौटाला के चौधरी देवीलाल, वैद्य माधाराम, बाबू रघुवर दयाल गोयल, गंगादास जी कौशिक, हीरालाल जी शर्मा, सुरेंद्र शर्मा इत्यादि अनेक अनेक जुझारू लोगों का जो जत्था बीकानेर की रियासत में बना, उसमें श्री दौलतराम सारण बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे.


[पृ.166]: बीकानेर में रानी बाजार स्थित किसान छात्रावास के स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर जब बीकानेर आए तब उनसे निकटता से चर्चा करने का अवसर मिला. वे हमारे निवास स्थान पर आए और उन्होंने शिक्षा व सामाजिक स्थितियों पर अपने अनुभवपूर्ण विचार प्रकट किए.

उनके विचार सुनकर मुझे लगा कि केंद्र और राज्य में मंत्री रहे जाट नेता मेरे सम्मुख नहीं है, अपितु एक समाज का अग्रदूत मेरे सामने है. उसी वक्त मुझे लगा की शिक्षा के क्षेत्र में गांव-गांव पैदल घूम कर आटा और अनाज मांग-मांग कर कैसे बिना किसी सहायता के किसानों के बच्चों को पढ़ने के लिए आकर्षित किया. दौलतराम सारण ने उसी वक्त औरतों के लिए कहा था- घुंघट वी अंगूठा छोड़ दो. उनका यह प्रेरक आज जब ग्रामीण नेतृत्व हिलोरे खा रहा है तो बहुत याद आता है. विशेषकर जाट समुदाय ने बालिका व बालकों की शिक्षा व स्वास्थ्य पर जो वाक्य ध्यान दिया उसी का कारण है कि वह अन्य समुदायों के मुकाबले में आज शीर्ष पर हैं.

श्री दौलतराम सारण मेरे पिता के ऐसे भ्राता थे जो लाभ हानि के संबंधों से अलग हमेशा राजस्थान और वहाँ के किसानों की विभूति का ताना-बाना बुनते रहते. हमारे घर में दौलतराम सारण वी तत्कालीन किसान नेताओं के प्रति बड़ा आदरणीय पारिवारिक स्थान रहा है. श्री सारण के व्यक्तित्व का लाभ आज बीकानेर संभाग ले रहा है. भाखड़ा वी इंदिरा गांधी नहर विशेषकर बीकानेर के लिए आने वाली कंवरसेन लिफ्ट योजना और कृषि विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज जैसे सपने जो श्री सारण वह अंबालाल माथुर ने देखे थे,वो आज साकार हो गए हैं.


[पृ.178]: लेखक रामनारायण ज्याणी - सन् 1949 में ग्रामोत्थान विद्यापीठ संगरिया में स्वामी केशवानंद जी ने गर्मी की छुट्टियों में प्रौढ़ पुरुषों और महिलाओं को शिक्षित करने के लिए लगभग एक महीने के लिए दो अलग-अलग शिविर लगाए थे. ये शिविर स्वामी जी महाराज की आशाओं से अधिक सफल रहे थे. पुरुषों के शिविर के लिए स्वामी जी अध्यापक के रूप में एक लंबे और पतले व्यक्ति को लाए थे. वह व्यक्ति बातें करने और समझाने में बड़े चुस्त और होशियार तथा शिविरार्थियों से खूब घुले-मिले रहते थे तथा प्राय: शिविरार्थियों से घिरे रहते थे. पता चला कि वह दौलतराम जी हैं जिन्हें स्वामीजी सरदारशहर से लाए थे. इनकी सादगी और सरलता की एक अलग पहचान थी. प्राय सभी उनसे बहुत प्रभावित थे, मैं भी इनकी सरलता, सादगी और किसी भी बात या कार्य में दिखावा नहीं करने के स्वभाव से प्रभावित हुआ था.


[पृ.179]: चौधरी बहादुर सिंह समाज जागृति परमार्थ ट्रस्ट में आप संस्थापक ट्रस्टी रहे हैं तथा ट्रस्ट के प्राय: सभी उत्सवों में सहजभाव से पधारते रहे हैं. आयु की दृष्टि से गतिविधियां कम होने पर स्वतः ही ट्रस्ट मंडल से इस्तीफा दे दिया. चौधरी दौलतराम जी ने अपना समस्त राजनीतिक जीवन किसानों को अपनी विशिष्ट वाक शैली में संगठित करने में लगा दिया. सही अर्थों में चौधरी दौलत राम जी राजस्थान के किसानों के विनोबा और गांधी थे.


[पृ.182]: लेखक- रामनारायण विशनोई, लेखन कार्य: श्री दौलतराम सारण की लेखन कार्य में भी रुचि रही है। सामाजिक राजनीतिक विषयों पर आपके अनेक लेख प्रकाशित हुये हैं।


[पृ.195]: लेखक-डॉ ज्ञानप्रकाश पिलानिया, ....श्री दौलतराम सारण ने विनोबा भावे एवं श्री कृष्णदासजी जाजू के साथ काम किया एवं उनका योगदान रहा। नि:संदेह श्री सारण पद लोलुपता से दूर निष्कलंक राजनीतिज्ञ, प्रदेश से लेकर देश की राजनीति में अग्रणी, नैतिक शिक्षा, गांव और गरीब के हितैषी, सामाजिक कुरीतियों के प्रबल विरोधी, ओजस्वी वक्ता, स्पष्टवादी, गांव-गांव, ढाणी-ढाणी में स्कूल खोल कर समाज को समर्पित करने वाले, लगन के पक्के, अलौकिक व्यक्तित्व के धनी रहे हैं।

एक मंत्र दृष्टा के रूप में, श्री सारण ने पंच-सूत्री कार्यक्रम का आगाज किया, जिसके मुख्य बिंदु थे:

1. पेड़ लगाओ

2. घूंघट हटाओ, नारी चेतना लाओ

3. अंगूठा हटाओ, शिक्षा लाओ

4. दहेज प्रथा का विरोध

5. मृत्यु भोज का विरोध

उन्होने जनचेतना के लिए लोकहितकारी-जन उपकारी नारे दिए:

"चेतो, एको, खड़को"

"मेहनत हमारी लूट तुम्हारी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी"

"अंगूठा मिटाओ, घुंघट हटाओ, सामाजिक चेतना जगाओ"

"वृक्ष लगाओ, हरियाली बढ़ाओ, पर्यावरण सुधारो"

"जागो और जगाओ, बेईमानी भ्रष्टाचार मिटाओ"

सामाजिक समरसता का उद्घोष करते हुए, श्री सारण ने कहा:

'एक सब के लिए और सब एक के लिए"


भंवरलाल सहपाठी: [पृ.204]: लेखक- कन्हैयालाल शर्मा, मैं आयु में तो श्री सारण से लगभग 7 साल छोटा हूं लेकिन उनको अपने विद्यार्थी जीवन से ही कुछ दूरी से जानता रहा हूं। क्योंकि श्री नेमजी नाई और उन की बगीची हमारे मोहल्ले के अत्यधिक नजदीकी है। यहां एक छरहरे बदन के पतले से गोरे युवक का बराबर आना-जाना रहता था। लोग कहा करते थे कि यह गोरा सा खातिरदारी, खादी की गांधी टोपी पहनने वाला युवक ढाणी पांचेरा का श्री दुलाराम जी सारण का बेटा है, जो नेम जी के बेटे श्री भंवरलाल का सहपाठी है। कई वर्षों बाद हमने यह भी देखा कि श्री दौलतराम सारण राजस्थान सरकार में उपमंत्री थे, तब श्री भंवरलाल नाई सुजानगढ़ में पोस्टमास्टर थे। उनकी अकाल मृत्यु हो गई थी। आज हम देख रहे हैं श्री दौलतराम जी सारण द्वारा संचालित संस्थान तथा किसान छात्रावास श्री नेमजी नाई की उसी पुरानी बगीची का परिष्कृत और विकसित रूप है। जिसे श्री सारण ने इतना विशाल रूप प्रदान किया है और ग्रामीण क्षेत्र के छात्र समुदाय की विकास सुरसुरी बन गई है। इस छात्रावास के विकास और संचालन का श्रेय श्री दौलतराम जी के साथ साथ डॉक्टर कन्हैयालाल जी सिंवर, सेवानिवृत्त प्राचार्य को भी समान रूप से जाता है।

श्री बैजनाथ जी पंवार उन दिनों ग्राम शिक्षा और ग्राम विकास संबंधी सेवा कार्यों में उनके प्रभावशाली साथी थे। गांधी विद्या मंदिर के सेवाकाल में मुझे 6 साल के लिए राज्य सरकार की पंचायत राज प्रशिक्षण केंद्र संचालन की जिम्मेदारी निभानी पढ़ी थी। उस समय इस प्रशिक्षण केंद्र के प्राचार्य पद पर रहते हुए श्री चौधरी साहब से मेरा बराबर संपर्क रहा। उस समय वे राज्य सरकार के उपमंत्री थे।


[पृ.205]: उस प्रशिक्षण केंद्र में हमारे पास चूरू, सीकर तथा झुंझुनू इन तीनों जिलों के ग्राम पंचायत सदस्य, सरपंच, उपसरपंच, न्याय पंचायतों के अध्यक्ष एवं सदस्यगण तथा ग्राम पंचायतों के सचिव, संबंधित जिलाधीश प्रशिक्षण हेतु मनोनीत होकर आते थे। ग्राम जनप्रतिनिधियों को पंचायती राज व्यवस्था संबंधी प्रशिक्षण प्रदान करने का यह अत्यंत प्रभावशाली कार्यक्रम था।


[पृ.209]: लेखक- रावतराम आर्य, पूर्व विधायक, श्री सारण के पिताजी श्री दुलाराम बड़े सज्जन वृति एवं ईमानदार तथा चरित्रवान पुरुष थे, ऐसे बिरले लोग होते हैं। इन कठोर परिस्थितियों में भी श्री सारण के पिताजी ने इन्हें पढ़ने का निश्चय किया। उस समय गांवों में शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी अतः इन्हें सरदारशहर स्थित नेमचंद नाई के घर स्कूल में भर्ती करवाया। जहां इन्होने बड़ी मेहनत से विद्याध्ययन किया। श्री सारण बहुत कुशाग्र बुद्धि थे। यहीं पर मेरा संयोगवास श्री सारण से परिचय हुआ।

मेरे परिवार के लोग उन दिनों सरदारशहर में रहकर कपड़ा बुनाई का कार्य करते थे। मेरे पिताजी ने मुझे हरिजन पाठशाला में भर्ती करवाया। वहाँ प्रायमरी शिक्षा के बाद सरकारी स्कूल में मुझे इसलिए भर्ती नहीं किया कि मैं मेघवाल जाति से था। उस समय श्री गौरी शंकर आचार्य, श्री सारण, बुद्धमल, हीरा लाल बरडिया, पूर्णचन्द्र आदि एक संस्था चलाते थे। उस संस्था में हमें परीक्षाओं की तैयारी कराया करते थे।


[पृ.210]: एक बार सरदारशहर तहसील के बंधनाऊ गांव में जाटों और मेघवालों को आपस में लड़ा दिया- गांव में एक कुआं था, मेघवालों ने कहा कि कुंवों पर बराबर पानी भरेंगे। फिर क्या था, धर्म की रक्षा के लिए गांव के लोग हजारों की तादाद में इकट्ठा हो गए और कुवों को घेर लिया। बड़ी समस्या पैदा होगी। हम तो घबरा गए। यदि झगड़ा हो गया तो बड़ा खून खराबा हो जाएगा। पर श्री सारण अपने निश्चय पर दृढ़ रहे। उन्होंने साफ कह दिया कि मेघवाल कुवों पर पानी भरेंगे और अंत में ऐसा ही हुआ। मेघवालों को कुवों पर चढ़ाया। गांव में सभी सारण जाट थे परंतु सारण अपनी नीति से दूर नहीं हटे।

लोगों में चर्चा होती थी कि श्री सारण के गांव में छुआछूत बहुत मानते हैं। एक बार श्री सारण जब डिप्टी मिनिस्टर थे और मैं चूरु से MLA था तब इनके साथ गांव जाने का अवसर मिला। सुबह खाने के लिए मुझे घर में बुलाया। जहां एक चारपाई पर बैठकर एक साथ खाना खाने लगे। उस समय सारण की माता जी व अन्य महिलाएं भी आंगन में बैठी थी। एक साथ खाना खाते देखकर आश्चर्यचकित हो गई। हमने सोचा मामला आप बिगड़ेगा पर सारण की माताजी ने कहा कि कुछ भी कहो फुट रातो मोल लागै है, राम मिलाई है जोड़ी।

छुआछूत को मिटाने के लिए गांव के किसानों मजदूरों एवं गरीबों को सारण ने एक नारा दिया जो काफी प्रचलित है। "एक, चेतो, खुड़को"। यही नारा गरीबों को डॉक्टर साहब अंबेडकर ने दिया। इसका 'किसान संगठित रहो, शिक्षित बनो, संघर्ष करो' कोई फर्क नजर नहीं आता।


[पृ.211]: लेखक - बैजनाथ पँवार, जब मैं 1942 में पब्लिक लाईब्रेरी सरदारशहर में पुस्तकालयाध्यक्ष था, तब श्री सारण तत्कालीन हाई स्कूल के छात्र थे। लगभग 7 दशकों के हमारे परिचय में अनेक ऐसे प्रसंग उपस्थित हुये जहां आपसी सहयोग लिया गया, यथा - 1943 में तत्कालीन बीकानेर स्टेट की राजकीय स्कूल पूलासर में अध्यापक था तो बीकानेर राज्य प्रजा परिषद की गतिविधियों के क्रम में श्री सारण का इधर आना आरंभ हुआ था।


विस्ताराधीन