Kanhaiya Lal Sethia

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Author: Prof. H. R. Isran

Kanhaiya Lal Sethia

Kanhaiyalal Sethia (11 September 1919 – 11 November 2008) was a well-known Rajasthani and Hindi poet. He was born in Sujangarh, Churu District in the Indian state of Rajasthan. He was a passionate supporter of making Rajasthani, the mother tongue of the people of Rajasthan, at the union level. He was a government-recognized freedom fighter, social worker, reformer, philanthropist and environmentalist. He was also a nationalist and a social activist.[1]

His family

Kanhaiyalal's parents were Chhagan Mal Sethia and Manohari Devi. He graduated from the Scottish Church College at the University of Calcutta. He has two sons and a daughter. [2]

His Works

His first collection, Ramaniyai ra soratha, was written in the traditional style of didactic poetry rich in images and similes.[3]

His other books of Rajasthani poems are Minjhara, Kum kum, Lilatamsa, Dhara kuncham dhara majalam, Mayada Ro Helo, Sabada, Satavani, Aghori kala, Leek Lakodia, Hemani, Kakko Kod Ro, and Deeth.

His book of poetic prose is Gala-gachiya.

Kanhaiyalal wrote 18 books in Hindi: Vanphool (1941), Agniveena (1942), Mera Yug (1948), Deepkiran (1954), Pratibimb (3rd edition), (1996), Aaj Himalaya Bola (1962), Khuli Krirkiyan Chaure Raaste (1967), Pranam (1970), Marm (1973), Anam (1974), Nirgranth (1976), Swagat (1986), Deh Videh (1986), Akask Ganga (1990), Vaaman - Viraat (1991), Nishpatti (1993), Shreyas (1997), Trayee (1998), 14 books in Rajasthani, and two books in Urdu: Taj Mahal (1975) and Gulchi (2001).

Two of his Rajasthani poems are world famous and have attained cult status. "Dharti Dhoran Ri" is recognized as the anthem song of Rajasthan throughout the world. Internationally acclaimed film maker Gautam Ghosh has made a documentary based on this poem titled Land of the Sand Dunes which was awarded the Swarna Kamal (Golden Lotus) by the Government of India.

His other poems that are extremely well known are "Pathal 'R' Pithal" and "Kun Jameen Ro Dhani".

Kanhaiyalal's works have been translated in the following languages:

  • Pratibimb - Reflections In A Mirror - 1973 - English
  • Nirgranth - Nirgranth - 1984 - Bengali
  • Nirgranth - Nirgranth - 2007 - English
  • Selected Rajasthani Poems - Anuvartan - 1994 - Hindi
  • Leeltans - The Blue Jay - 1995 - English,
  • Leeltans - Leeltans - 1995 - Hindi
  • Khuli Khirkiyan Chaure Raaste - Khuli Khirkiyan Chaure Raaste - Marathi

Awards

Kanhaiyalal Sethia was awarded the Sahitya Akademi Award for his work Lilatamsa. He received the Jnanapitha Moortidevi Award in 1986 and Surajmal Misrana Sekhar Award in 1987.

He was conferred Padma Shri award in 2004. He was awarded the prestigious Sahithya Vascahpati by the Hindi Sahitya Sammelan, Prayag and the prestigious Sahitya Manishi by the Sahitya Academy, Udaipur.


जीवन परिचय

राजस्थान के नामी स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार और राजस्थानी के अब तक के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में सम्मानित कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितम्बर, 1919 को चूरू जिले के सुजानगढ़ कस्बे में हुआ।

सेठिया जी ने शिक्षा सुजानगढ़ और कोलकाता में प्राप्त की। वणिक परिवार में जन्म हुआ पर व्यापारिक क्रियाकलापों से दूर रहकर ख़ुद को जीवनपर्यंत साहित्यिक एवं लोक कल्याणकारी प्रवृत्तियों से जोड़े रखा। वजह ये थी कि वे स्वभाव से बहुत संवेदनशील और भाव-प्रवण इंसान थे।

राजस्थान के सुमधुर प्रेदश-गीत: राजस्थान प्रदेश की स्तुति में राजस्थानी भाषा के प्रख्यात कवि कन्हैयालाल सेठिया की दो रचनाएँ "जलम भोम" (जन्म-भूमि) एवं "धरती धोरां री !" उत्कृष्ट श्रेणी के वंदना गीत हैं। समूचे राजस्थान की समुचित स्तुति करने वाले मधुर गीत।


'पातल’र पीथल': सेठिया जी की सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य रचना 'पातल’र पीथल' है। कवि ने महाराणा प्रताप के संघर्ष और जंगल में बिताए कष्टपूर्ण जीवन को अपनी रचना में उकेरा है। उपमा देने हेतु घास की रोटियां खाकर जिंदा रहने की जुगत करना और राजकुमार के हाथ से बन बिलाव द्वारा घास की रोटी छीनकर भाग जाने का ज़िक्र किया है। साहित्यिक रचना पढ़ते समय सुधि पाठक को हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि साहित्य में हमें इतिहास की किसी घटना का संकेत तो मिल सकता है पर साहित्य में प्रयुक्त कथा की हर बात और हर कड़ी हर दृष्टि से इतिहास सम्मत हो ये जरुरी नहीं होता।

विषयांतर तो है पर यह जान लेना जरूरी है कि साहित्य में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ सिर्फ शाब्दिक अर्थ तक सीमित नहीं रहते। शब्द के जितने प्रकार के अर्थ होते हैं, उतने ही प्रकार की शब्द शक्तियां होती हैं। इस अर्थों के आधार पर तीन प्रकार की शब्द शक्तियां मानी गई हैं:

  • अभिधा (Literal Sense Of a Word)
  • लक्षणा (Figurative Sense Of a Word)
  • व्यंजना (Suggestive Sense Of a Word)
  • तात्पर्यार्थ ( Inner Meaning of a Word ) के आधार पर तात्पर्य नामक चौथी शब्द शक्ति भी होती है, जिसका सम्बन्ध वाक्य से होता है।

किसी रचना को बेहद रोचक बनाने और लोकमन को लुभाने के लिए कवि अपनी कवि- स्वातंत्र्य (Poetic licence ) का उपयोग करते हुए कल्पना शक्ति के बल पर कुछ कथाएं और उनके मुफ़ीद क़िरदार रच/ गढ़ लेता है, जो इतिहास में कहीं दर्ज़ नहीं हैं। ऐसा करके वह जनमन को तृप्त करने की कोशिश करता है। कवि अतिश्योक्ति अलंकार का भी भरपूर उपयोग करने के लिए स्वतंत्र होता है, जबकि तथ्यपरक इतिहास को अतिश्योक्तिपूर्ण बखान से चिढ़ होती है। कल्पना के रॉकेट पर सवार होकर कवि कहीं भी, यहाँ तक की रवि पर पहुंचने में नहीं झिझकता है। कण का मण और तिल का ताड़ बनाने की क़ुव्वत कवि रखता है।

साहित्यकार fact की बज़ाय fancy के साथ रास लीला रचाने वाला रसिया होता है। सच और झूठ या यों कहें हक़ीक़त और फ़साना का ऐसा तानाबाना इस चतुराई से बुनता है कि पता ही नहीं चलता कि ताना कहाँ खत्म होता है और बाना कहाँ से शुरू होता है। कवि जानता है कि सच और झूठ का घालमेल लोकमन को ख़ूब रुचता है, जचता है, उसे आनंदित भी करता है क्योंकि हक़ीक़त की दुनिया में कोरी हक़ीक़त कड़वी होती है।

सेठिया जी की “अरे घास री रोटी ही, जद बन बिलाव ले भाग्यो...” कविता में दी गई उपमाओं को इतिहास मान लेना निरी मूढ़ता है। इतिहास साक्षी है कि राजकुमार अमरसिंह की आयु हल्दीघाटी के युद्ध के समय 17 वर्ष थी। उस काल में 17 वर्षीय युद्ध -कला में प्रशिक्षित राजकुमार के हाथों से कोई बन बिलाव रोटी छीनकर ले जाए, बात कुछ हज़म नहीं होती।

बता दें, हल्दीघाटी की लड़ाई 18 / 21 जून 1576 को लड़ी गई थी, जो महज़ चार घण्टे चली। राजकुमार अमरसिंह का जन्म 16 मार्च 1559 को हुआ था। इस तिथि से गणना करने पर हल्दीघाटी की लड़ाई के समय महाराणा प्रताप के पुत्र कुंवर अमरसिंह की आयु 17 वर्ष ही बैठती है। इतिहास यह भी बताता है कि राणा ने राजकुमार अमरसिंह को हल्दीघाटी के युद्ध से दूर रखा था।

किसी साहित्यिक कृति का मूल्यांकन उसकी साहित्यिक विशिष्टताओं एवं उसके ज़रिए दिए जाने वाले संदेश के आधार पर किया जाना चाहिए, ना कि उसमें प्रयुक्त शब्दों के शाब्दिक अर्थों के आधार पर। काव्य-रचना में प्रयुक्त वृत्तान्त/ कथा ( narrative ) का ऐतिहासिकता ( historicity ) से कोई सीधा सरोकार नहीं होता। इसलिए यह याद रखना चाहिए कि सेठिया जी की रचना “अरे घास री रोटी ही...” एक सरस और प्रेरणादायक साहित्यिक रचना है। इसका मक़सद महाराणा के संघर्ष को उपमाएं देकर उनके यशोगान में सुर सजाना है, ना कि इतिहास के तथ्यों की शुचिता को बरक़रार रखना।

साहित्यिक कृतियों व जनश्रुतियों का इस्तेमाल समाज में जीवनमूल्यों को संचारित करने, मोटिवेशनल मैटर के रूप में या फिर एंटरटेनमेंट हेतु किया जाना जायज़ है। लेकिन उन्हें इतिहास की पोशाक पहनाकर जनसामान्य के सामने सजा धजाकर पेश किया जाना इतिहास के साथ खिलवाड़ के सिवाय कुछ नहीं होता।

'कुण जमीन रो धणी': सेठिया जी ने समकालीन समाज की जर्जर रूढ़ियों से बगावत करके क्रांतिकारी माहौल का निर्माण करने में भी योगदान दिया। साम्राज्यवाद, राजशाही, सामंतवाद और सामन्ती सोच, धर्मांधता, संकीर्णता एवं कुरीतियों पर पुरजोर प्रहार करने से वे कभी नहीं चूकते थे।

सेठिया जी का काव्यसंग्रह ‘अग्निवीणा’ देश प्रेम से ओतप्रोत है। 1942 में इसके प्रकाशित होने पर बीकानेर रियासत बौखला गई और सेठिया जी के खिलाफ़ राजद्रोह का मुकदमा दायर कर दिया।

राजस्थान में सामंतवाद और जागीरदारी प्रथा के ख़िलाफ़ सेठिया जी ने अपनी कलम के ज़रिए जबरदस्त मुहिम चलायी थी। किसानों के उत्पीड़न, शोषण, उपेक्षा और अनादर को उज़ागर करने वाली उनकी जनप्रिय रचना 'कुण जमीन रो धणी' ख़ूब चर्चित हुई और उसे खूब सराहना मिली। एक बार पढ़कर तो देखिए।

सेठिया जी ने अपने कवित्व से राजस्थानी साहित्य को न सिर्फ प्रकाशमान किया है वरन गौरवान्वित भी किया है। उनके उर्ध्वमुखी चिंतन में जीवन को समझने का विशेष दृष्टिकोण है। सेठिया जी के चिंतन की गहराई, विचारों का खुलापन, भाषा की प्रांजलता, वर्णन शैली की स्पष्टता प्रभावित करने वाली है।

सेठिया को जीवनकाल में अनेक सम्मान, पुरस्कार एवं अलंकरण प्राप्त हुए। राजस्थानी काव्यकृति 'लीलटांस' को 1976 में साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा राजस्थानी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में पुरस्कृत किया गया। भारत सरकार ने साहित्य के क्षेत्र में उनके अवदानों का मूल्यांकन करते हुए उन्हें 'पद्मश्री' सम्मान से नवाजा। राजस्थान के सर्वोच्च सम्मान 'राजस्थान रत्न' से भी सेठिया जी को सन 2012 में अलंकृत किया गया।

लब्ध प्रतिष्ठित कवि कन्हैयालाल सेठिया का 11 नवम्बर, 2008 को कोलकाता में 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएँ

यहाँ देखें - कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएँ

External links

References