Jujhar Singh Nehra

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Jujhar Singh Nehra founder of Jhunjhunu town
Statue of Jujhar Singh Nehra, founder of Jhunjhunu town

Jujhar Singh Nehra (1664 – 1730) was a Jat chieftain of Rajasthan in India who gave name to the Jhunjhunu town situated in Rajasthan. He was born in a Hindu Jat family of Nehra gotra in samvat 1721 (1664 AD). His father was a faujdar of Nawabs.

Variants

Origin of name Jhunjhunu

Statue of Jujhar Singh Nehra, founder of Jhunjhunu town
Statue of Jujhar Singh Nehra, founder of Jhunjhunu town

Thakur Deshraj[1] writes that Jhunjhunu gets name after Jujhar Singh Nehra (1664 – 1730) or Jhunjha, a Jat chieftain of Rajasthan. The Jats through Jujhar Singh and Rajputs through Sardul Singh agreed upon a proposal to fight united against Muslim rulers and if the Nawab were defeated Jujhar Singh would be appointed the Chieftain. Jujhar Singh one day found the right opportunity and attacked Nawabs at Jhunjhunu and Narhar. He defeated the army of Nawab Sadulla Khan on Saturday, aghan sudi 8 samvat 1787 (1730 AD). According Kunwar Panne Singh[2], Jujhar Singh was appointed as Chieftain after holding a darbar. After the ‘tilak’ ceremony of appointment as a sardar or chieftain, the Rajputs through conspiracy killed Jujhar Singh in 1730 AD at a lonely place. Jujhar Singh thus became a martyr and the town Jhunjhunu in Rajasthan was named so after the memory of Jujhar Singh or Jhunjha.

Jujhar Singh when became young was made the general of the army of Nawabs. He had a dream to establish Jat rule in India. He was planning to have a joint rebellion against the Muslim rule in India. He had heard the stories of rebellion by Jats of Bharatpur such as Gokula and Raja Ram. Meanwhile he came in contact with one Rajput Shardul Singh, who was an employee of the Nawabs. The Jats through Jujhar Singh and Rajputs through Sardul Singh agreed upon a proposal to fight united against Muslim rulers and if the Nawab were defeated Jujhar Singh would be appointed the Chieftain.

Jujhar Singh one day found the right opportunity and attacked Nawabs at Jhunjhunu and Narhar. He defeated the army of Nawab Sadulla Khan on Saturday, aghan sudi 8 samvat 1787 (1730 AD).

According to the book ‘Rankeshari Jujhar Singh’, written by Kunwar Panne Singh, Jujhar Singh was appointed as Chieftain after holding a darbar. After the ‘tilak’ ceremony of appointment as a sardar or chieftain, the Rajputs could not digest it and with conspiracy killed Jujhar Singh in 1730 AD at a lonely place. Jujhar Singh thus became a martyr for his community. The town Jhunjhunu in Rajasthan was named so after the memory of Jujhar Singh or Jhunjha.

नेहरा नेहरा राजवंश और जुझारसिंह का इतिहास

नेहरा पहाड़ पर लिखित राजेंद्र कसवा के उपन्यास का आवरण चित्र

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है .... नेहरा भारत और पाकिस्तान में जाटों का एक गोत्र है. ये राजस्थान, दिल्ली, हरयाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पाकिस्तान में पाए जाते है. नेहरा की उत्पत्ति वैवस्वत मनु के पुत्र नरिष्यंत (नरहरी) से मानी जाती है. पहले ये पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में नेहरा पर्वत पर निवास करते थे. मैगस्थनीज़ (350BC- 290BC) और प्लिनी (23–79 AD) ने इनको नरेई लिखा है, जो कि नेहरा के नाम से प्रसिद्ध हैं, कैपटेलिया नाम से घिरी हुई जगह में उनका स्थान बताया गया है.[4] वहां से चल कर राजस्थान के जांगलदेश भू-भाग में बसे और झुंझुनू में नेहरा पहाड़ पर आकर निवास करने लगे.

राजस्थान में नेहरा जाटों का तकरीबन 200 वर्ग मील भूमि पर किसी समय शासन रहा था. उनके ही नाम पर झुंझुनू के निकट पर्वत आज भी नेहरा पहाड़ कहलाता है. दूसरा पहाड़ जो मौरा (मौड़ा) है, मौर्य लोगों के नाम से मशहूर है.नेहरा लोगों में सरदार झुन्झा अथवा जुझार सिंह बड़े मशहूर योद्धा हुए हैं. उनके नाम से झूंझनूं जैसा प्रसिद्ध नगर विख्यात है. कुंवर पन्नेंसिंह ने ‘रण-केसरी सरदार जुझारसिंह’ नाम की पुस्तक लिखी थी. उसी में से नेहरा और सरदार जुझारसिंह का थोड़ा-सा वर्णन यहां पर हम देते हैं.

पंद्रहवीं सदी में नेहरा लोगों का नरहड़ में शासन था. वहां पर उनका एक किला भी था. उससे 16 मील पश्चिम में नेहरा पहाड़ के नीचे नाहरपुर में उनके दूसरे दल का राज्य था. सोलहवीं सदी के अंतिम भाग में और सत्रहवीं सदी के प्रारंभ में नेहरा लोगों का मुसलमान शासकों से युद्ध हुआ. अंत में नेहरा लोगों ने मुसलमानों से संधि करली. वे खास वक्त पर बादशाहों को भेंट देते थे. शाहों को भेंट देने के कारण उनको ‘शाही भेटवाल’ के नाम से पुकारा जाने लगा। आज तक वे ‘शाही भेटवाल’ कहलाते हैं.

नेहरा लोगों के प्रसिद्ध सरदार जुझार सिंह का जन्म संवत 1721 (=1664 ई.) विक्रमी श्रावण महीने में हुआ था. उनके पिता नवाब के यहाँ फौज के सरदार यानि फौजदार थे. युवा होने पर सरदार जुझार सिंह नवाब की सेना में जनरल बन गए. उनके दिल में यह बात पैदा हो गयी कि भारत में जाट साम्राज्य स्थापित हो. जुझार सिंह ने पंजाब, भरतपुर, ब्रज के जाट राजाओं और गोकुला के बलिदान की चर्चा सुन रखी थी. उनकी हार्दिक इच्छा थी कि नवाबशाही के खिलाफ जाट लोग मिल कर बगावत करें.

उन्हीं दिनों सरदार जुझार सिंह की मुलाकात एक राजपूत से हुई. वह किसी रिश्ते के जरिये नवाब के यहाँ नौकर हो गया. उसका नाम शार्दुल सिंह था. दोनों का सौदा तय हो गया. शार्दुल सिंह ने वचन दिया कि इधर से नवाबशाही के नष्ट करने पर हम तुम्हें (सरदार जुझार सिंह को) अपना सरदार मान लेंगे. अवसर पाकर सरदार जुझार सिंह ने झुंझुनू और नरहड़ के नवाबों को परास्त कर दिया और बाकि मुसलमानों को भगा दिया.

कुंवर पन्ने सिंह द्वारा लिखित 'रणकेसरी जुझार सिंह' नमक पुस्तक में अंकित है कि सरदार जुझार सिंह को दरबार करके सरदार बनाया गया. सरदार जुझार सिंह का तिलक करने के बाद एकांत में पाकर विश्वास घात कर शेखावतों ने सरदार जुझार सिंह को धोखे से मार डाला. इस घृणित कृत्य का समाचार ज्यों ही नगर में फैला हाहाकार मच गया. जाट सेनाएं बिगड़ गयी. फिर भी कुछ लोग विपक्षियों द्वारा मिला लिए गए. कहा जाता है कि उस समय चारण ने शार्दुल सिंह के पास आकर कहा था -

सादे लीन्हो झूंझणूं, लीनो अमर पटै
बेटे पोते पड़ौते, पीढी सात लटै

अर्थात - सादुल्लेखान से इस राज्य को झून्झा (जुझार सिंह) ने लिया था, वह तो अमर हो गया. अब इसमें तेरे वंशज सात पीढी तक राज करेंगे.

जुझार अपनी जाती के लिए शहीद हो गया. वह संसार में नहीं रहे , किन्तु उनकी कीर्ति आज तक गाई जाती है. झुंझुनू शहर का नाम जुझार सिंह के नाम पर झुन्झुनू पड़ा है.

शेखावतों का जाटों के साथ समझोता

शेखावतों ने जाट-क्षत्रियों के विद्रोह को दबाने के लिए तथा उन्हें प्रसन्न रखने के लिए निम्नलिखित आज्ञायें जारी की गयी -

  1. लगान की रकम उस गाँव के जाट मुखिया की राय से ली जाया करेगी.
  2. जमीन की पैमायश गाँव के लम्बरदार किया करेंगे.
  3. गोचर भूमि के ऊपर कोई कर नहीं होगा.
  4. जितनी भूमि पर चारे के लिए गुवार बोई जावेगी उस पर कोई कर नहीं होगा.
  5. गाँव में चोरी की हुई खोज का खर्चा तथा राज के अधिकारियों के गाँव में आने पर उन पर किया गया खर्च गाँव के लगान में से काट दिया जावेगा. जो नजर राज के ठाकुरों को दी जायेगी वह लगान में वाजिब होगी.
  6. जो जमीन गाँव के बच्चों को पढ़ाने वाले ब्राहमणों को दो जायेगी उसका कोई लगान नहीं होगा. जमीन दान करने का हक़ गाँव के मुखिया को होगा.
  7. किसी कारण से कोई लड़की अपने मायके (पीहर) में रहेगी तो उस जमीन पर कोई लगान न होगा, जिसे लड़की अपने लिए जोतेगी.
  8. गाँव का मुखिया किसी काम से बुलाया जायेगा तो उसका खर्च राज देगा.
  9. गाँव के मुखिया को जोतने के लिए जमीन फुफ्त दी जायेगी. सारे गाँव का जो लगान होगा उसका दसवां भाग दिया जायेगा.
  10. मुखिया वही माना जायेगा जिसे गाँव के लोग चाहेंगे. यदि सरदार गाँव में पधारेंगे तो उन के खान=पान व स्वागत का कुल खर्च लगान में से काट दिया जायेगा.
  11. गाँव के टहलकर (कमीण) लोगों को जमीन मुफ्त दी जायेगी.
  12. जितनी भूमि पर आबादी होगी, उसका कोई लगान न होगा.
  13. इस खानदान में पैदा होने वाले सभी उत्तराधिकारी इन नियमों का पालन करेंगे.

कुछ दिनों तक इनमें से कुछ नियम आंशिक रूप से अनेक ठिकानों द्वारा ज्यों-के-त्यों अथवा कुछ हेर-फेर के साथ माने जाते रहे. कुछ ने एक प्रकार से कतई इन नियमों को मेट दिया.

एक चित्र में सरदार जुझारसिंह घायल अवस्था में टूटी हुई सांग को कंधे पर रखे हुए और घोड़े पर सवार दिखाए गए हैं.

हमें बताया गया है कि सरदार जुझारसिंह के जीवन पर किसी जाटेतर भाई ने प्रकाश डाला है, कुछ अपशब्द भी जुझारसिंह के लिए लिखे हैं, इसीलिए वह उस पुस्तक को सर्व साधारण में नहीं बेचता. झुंझुनू का मुसलमान सरदार जिसे कि सरदार जुझार सिंह ने परास्त किया था, सादुल्ला नाम से मशहूर था. झुंझुनू किस समय सादुल्लाखान से जुझार सिंह ने छीना इस बात का वर्णन निम्न काव्य में मिलता है.

सत्रह सौ सत्यासी, आगण मास उदार
सादे लीन्हो झूंझणूं, सुदी आठें शनिवार

अर्थात - संवत 1787 (=1730 ई.) में अघन मास के सुदी पक्ष में शनिवार के दिन झुंझुनू को सादुल्लाखान से जुझार सिंह ने छीना.

समझोते का उल्लंघन: सरदार जुझार सिंह के बाद ज्यों-ज्यों समय बीतता गया उनकी जाट जाति के लोग पराधीन होते गए. यहाँ तक कि वह अपनी नागरिक स्वाधीनता को भी खो बैठे. एक दिन जो राजा और सरदार थे उनको भी बादमें पक्के मकान बनाने के लिए जमीन खरीदनी पड़ती थी. उन पर बाईजी का लाग लगा और भेंट, न्यौता-कांसा अदि अनेक तरह की बेहूदी लाग और लगा दी गई.

नोट - यह वृतांत ठाकुर देशराज द्वारा लिखित जाट इतिहास, महाराजा सूरज मल स्मारक शिक्षा संसथान, दिल्ली, 1992 पेज 614 -617 पर अंकित है. ऑनलाइन देखने के लिए क्लिक करें - Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX

झुंझा नेहरा की वंशावली

राजस्थान के सीकर जिले में फतेहपुर के समीप हरसावा गाँव में नेहरा गोत्र के लोग काफी संख्या में हैं. लेखक (लक्ष्मण बुरडक) की हरसावा में स्वर्गीय हरदेव सिंह नेहरा की पुत्री गोमती से सन 1970 में शादी हुई. दिनांक 19.07.2015 को लेखक के हरसावा प्रवास के दौरान हरसावा निवासी श्री सुलतान खां मिरासी (Mob: 9929263766) से मुलाक़ात हुई. श्री सुलतान खां मिरासी का परिवार प्रारंभ से नेहरा लोगों के साथ रहा है. श्री सुलतान खां मिरासी ने हरसावा के नेहरा गोत्र की वंशावली जबानी इस प्रकार बताई.

नरहड़ के राजा नरपाल नेहरा थे और उसके भाई हरपाल थे. हरपाल का क्षेत्र काटली नदी के उस पार था. हरपाल के पुत्र झुंझा ने झुञ्झुणु बसाया. किन्हीं कारणों से हरपाल का नरपाल से मतभेद हो गया इसलिए हरपाल फतेहपुर के समीप हरसावा की तरफ प्रस्थान कर गए. हरसा नेहरा ने सन 1287 में हरसावा बसाया. झुंझा के पुत्र पाल का ससुराल बांठोद गाँव में भड़िया जाटों में था. पाल के पुत्र देवा हुये जिनके नाम से बांठोद में देवलाणु जोहड़ छोड़ा. देवा के पुत्र माना हुये जिनके नाम से हरसावा में मानाणु जोहड़ छोड़ा, जहां आज स्कूल बनी है. माना के पुत्र खेता हुये और उनके पुत्र गांगा हुये. गांगा के 12 पुत्र थे जिनमें से बीरमा सरदार बने. बीरमा के पुत्र धर्मा और उनके पुत्र मगा हुये. मगा के चंदरा और उनके पुत्र हरदेव सिंह हुये.

नरपाल नेहरा + हरपाल (नरहड़) → हरपाल → झुंझा (1664 – 1730) (झुञ्झुणु बसाया) → पाल → देवा → माना → खेता → गांगा (12 पुत्र) → बीरमा → धर्मा → मगा → चंदरा → हरदेव सिंह नेहरा (1925 – 1998)

झुंझा का जन्म ठाकुर देशराज द्वारा 1664 ई. में बताया गया है. झुंझा वास्तव में हरदेव सिंह से 10 पीढ़ी पहले हुए हैं. एक पीढ़ी का औसत काल 26 वर्ष मानें तो 1925 - 260 = 1665 में झुंझा का जन्म होना चाहिए जो सही बैठता है. इस प्रकार झुंझा के काल की पुष्टि होती है.

सुल्तान खां मीरासी ने हरसावा के सम्बन्ध में एक दोहा सुनाया जो इसके इतिहास के बारे में प्रकाश डालती है -

सदा हरयो हरसावो, गांगावत को गाँव,
बारां को ओ बीरमों, नेहरो खाट्यो नाँव।

जुझार सिंह का सम्मान

झुंझुनू शहर के संस्थापक जुझार सिंह नेहरा की याद में झुंझुनू शहर में दिनांक 22 फरवरी 2009 के दिन पद्मश्री श्री शीशराम ओला, खान मंत्री भारत सरकार, के कर कमलों से समारोह पूर्वक जुझार सिंह नेहरा की प्रतिमा का अनावरण किया गया. यह चित्र प्रतिमा पर लगाये गए शिला लेख का है.

पुस्तक का प्रकाशन

See also

References

  1. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, pp.614-616
  2. Kunwar Panne Singh:‘Rankeshari Jujhar Singh’
  3. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, pp.614-616
  4. Jat History Thakur Deshraj/Chapter V, p.143

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