Khejarli Kalan
Khejarli Kalan (खेजड़ली कलां) is a village in Luni Tahsil of Jodhpur district in Rajasthan.
Jat Gotras
History
Amrita Devi (Beniwal) sacrificed her life along with her three daughters viz. Asu, Ratni and Bhagu in year 1730 to save green trees being felled by the Maharaja of Jodhpur at a place known as Khejarli in Marwar, Rajasthan. Along with her more than 363 other Bishnois, died saving the Khejri trees.
खेजड़ली स्मारक
सन् 1730 में जोधपुर के महाराजा ने अपने सैनिकों को राजकार्य हेतु वृक्ष काट कर लाने के लिए कहा। खेजड़ली गाँव में खेजड़ी के वृक्षों की अधिकता थी, इसलिए सैनिकों ने इसी गाँव में जाकर वृक्ष काटने का निर्णय लिया। उस दिन खेजड़ली गाँव में लगभग 383 लोगों का बलिदान हुआ। ये सभी बलिदानी जम्भेश्वर के अनुयायी थे।
सन 1730 में राजस्थान के मारवाड़ में खेजड़ली नामक स्थान पर जोधपुर के महाराजा द्वारा हरे पेड़ों को काटने से बचाने के लिए, अमृता देवी बेनीवाल ने अपनी तीन बेटियों आसू , रत्नी और भागू के साथ अपने प्राण त्याग दिए। उसके साथ 363 से अधिक अन्य बिश्नोई , खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए मर गए।
खेजड़ली गाँव जिला जोधपुर: खेझरली या खेजड़ली भारत के राजस्थान के जोधपुर जिले का एक गाँव है। कस्बे का नाम खेड़ी (प्रोसोपिस सिनारिया) पेड़ों से लिया गया है, जो गाँव में बहुतायत में थे। इस गाँव में 363 बिश्नोईयों को 1730 ई. में हरे पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी थी।
चिपको की शुरुआत – पेड़ बचाओ आंदोलन: यह वह स्थान है जहाँ चिपको आंदोलन की उत्पत्ति भारत में हुई थी। वह मंगलवार का दिन था, काला मंगलवार खेजड़ली गाँव के लिए। 1730 ईसवी में भद्रा महीने (भारतीय चंद्र कैलेंडर) के 10 वें उज्ज्वल पखवाड़े के दिन अमृता देवी अपनी तीन बेटियों आसू, रत्नी और भागू बाई के साथ घर पर थीं। तभी अचानक उन्हें पता चला की मारवाड़ जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के सैनिक उनके गांव खेजड़ी के पेड़ों को काटने आयें है।
खेजड़ी के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल महाराजा अभय सिंह अपने नए महल के निर्माण में करना चाहते थे। थार रेगिस्तान में होने के बाद भी बिश्नोई गांवों में बहुत हरियाली थी और खेजड़ी के पेेेड़ बहुतायत में थे। इसलिए महाराजा अभय सिंह ने अपने आदमियों को खेजड़ी के पेड़ों से लकड़ियाँ प्राप्त करने का आदेश दिया था।
अमृता देवी ने राजा के सैनिकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि बिश्नोई धर्म में हरे पेड़ों को काटना मना है। इसलिए अमृता देवी ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान भी देनो को तैयार थीं। उन्होंने कहा कि–
- सिर साटे, रूंख रहे, तो भी सस्तो जांण।अम्रता देवी पेड़ों को बचाने के लिए
जिसका अर्थ है कि – “यदि किसी व्यक्ति की जान की कीमत पर भी एक पेड़ बचाया जाता है, तो वह सही है।”
Notable persons
External links
References
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