Kherka Gujjar

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Kherka Gujjar (खेड़का गूजर) is a medium-size village inBadli tahsil of Jhajjar district of Haryana. Earlier, it was part ofBahadurgarh tahsil.

Jat gotras

Location

छत्रपति शिवाजी द्वारा निर्मित अस्तल का मुख्य प्रवेश द्वार

यह चित्र छत्रपति शिवाजी द्वारा निर्मित स्थल का है जिसे स्थानीय लोग अस्तल के नाम से जानते हैं - चित्र में केवल इसका प्रवेश द्वार दिखाई दे रहा है । यह दुल्हेड़ा और खेड़का गूजर के मध्य स्थित है । The village Kherka Gujjar is located slightly away from main Bahadurgarh-Jhajjar road, near village - 'Dulehra' [ दुल्हेड़ा] which is located on the main road. From village Dulehra, Kherka Gujjar can be accessed via an approach road which further connects village Goela Kalan (गोयला कलां) and Khedi-Jatt (खेड़ी जट). Some people confuse when they hear 'Kherka Gujjar' - it is clarified that there are no families of Gujjars community in this village, it is just the name of village. It is a medium-sized village and the only Jat gotra is Deswal . Two more neighbouring villages - Dulehra (दुल्हेड़ा) and Bhadaani भदाणी - also have the same Jat gotra – Deswal .

History

Though Kherka Gujjar is stated to be more than a thousand-year old, the present-day Jats inhabitants settled here in around 1385 AD when Choudhary Khema of Ladhaut came here after purchasing a 4000-bigha plot by paying Rs. 500 to Chanchal Gujjar, the then owner of the land. Chanchal Gujjar moved away and since then, the descendants of Choudhary Khema are occupying the present land. That is why, the name “Kherka Gujjar” is still being used.

One monument of historical importance is situated just outside this village - a huge one-acre complex called ‘Asthal’ which also has its land property in neighbouring 12 villages. This ‘Asthal’ is now managed by one Swamiji. The complex has an old monastry which looks like a fort, built in small bricks and limestone apart from one Shiva temple and a pond nearly. It also has an underground storage hall ( तहखाना) which is believed to have some old weapons contained therein but people hesitate to visit that dark place. From the neighbouring Shiva temple, ancient stairs go down the holy pond. The complex was built by Chhatrapati Shivaji for the purpose of keeping some of his soldiers/spies who could keep an eye on the activities of Aurangzeb’s then capital, Delhi (which is just 40 kilometres from this place).


People of this village believe in a local imaginary deity ‘Dada Jasram Devta’. Many of them believe that this god has given a special protection to the villagers – though the village has traditionally sent many youngmen into armed forces, till today none of them has so far lost life in wars or while serving in army - perhaps, as the belief persists, due to blessings of ‘Dada Jasram Devta’ !


संक्षिप्त इतिहास

Deshwal Gotra ka Itihas.jpg

कप्तान सिंह देशवाल लिखते हैं -

चौ. बलवन्त सिंह सचिव देशवाल खाप ने बताया कि हमारे पूर्वज गाँव लाढोत से चलकर गाँव कबलाना में सन् 1385 में आये थे। इसके बाद दादा खीमचन्द ने यह गाँव चंचल गुजर से 500 रुपये में मोल ले लिया। यह गाँव पहले गुजर जाति का गाँव था और इसका नाम खेड़का गुजर था। यह गाँव पहले से आबाद था और इसको गुजरों ने बसाया था।

चौ. खीमचन्द की चौदहवीं पीढी में चौ. मलक पैदा हुआ। मलक के दो पुत्र कृपाराम और कामराज हुये। कृपाराम के दो पुत्रों से कृपा से किरताण और उमेदसिंह का पाना मेदयाण कहलाया। कामराज के दो पानों के बारे में बताया जाता है कि कमराजीया और जसराणीया हैं। गाँव में चार पाने हैं।

जसराणीया पाने के बारे में बताया गया है कि चौ. खुशीराम सुपुत्र भुरेसा अपने परिवार के साथ अपनी ससुराल गाँव जसराणा (सोनीपत) में जा बसा। यह बात गाँव खेड़का में भाईचारे के लिए चिन्ता का विषय बन गया। अतः गाँव खेड़कावासी इस बात को अच्छी नहीं मानकर चौ. खुशीराम को वापिस गाँव में लेकर आ गये, क्योंकि दूसरे भाई उसे अपने पास गाँव में ही बसाना चाहते थे। चौ. खुशीराम जिस समय गाँव खेड़का में आये उस समय इस परिवार में 51 तागड़ी (पुरुष) थी। गाँव वासियों ने इस परिवार को उसका हिस्सा देकर बसा दिया और इसी परिवार का पाना जसराणिया कहा जाता है।

चौ. बलवन्त सिंह ने बताया कि एक बार गाँव में आपस में भाईचारे का झगड़ा हो गया। इस झगड़े के बीच-बचाव करने के लिए दोनों पक्षों को छुटवाने के लिए दादा जोखी सुपुत्र कवरसिंह बीच में चला गया। धोखे से किसी की लाठी के प्रहार से जोखी सिंह की मौत हो गई। पुलिस रिपोर्ट हुई लेकिन गाँव वालों ने इस झगड़े को खुद अपनी पंचायती परंपरा के तरीके से सुलझाने की कौशिश की। पंचायत का फैसला हुआ कि दोषी को गधे पर बिठाकर इसका काला मुँह करके गाँव से निकाल दिया जाये। लेकिन यह फैसला लागू करने से पहले पंचायत ने यह भी निर्णय लिया था कि दादी सुन्दरकौर से भी पूछ लिया जाये क्या वह इस फैसले को उचित मानती है या नहीं।

गाँव के मुख्य (मौजूद) आदमी दादी सुन्दरकौर के पास पहुँचे और दोषी के बारे में कहा कि दोषी पक्ष अपनी गलती मानकर गाँव के फैसले को भी मानता है। दादी जी ने पंचायत की सारी बात ध्यान से सुनकर कहा कि अपराधी पक्ष से हमारी कोई दुश्मनी नहीं थी। यह घटना धोखे से हो गई। उसे मारा नहीं गया, वह धोखे से मर गया। मेरी कोख भरी हुई (पेट में बच्चा) है। अगर भगवान ने चाहा तो यह घर फिर से आबाद हो जाएगा। लेकिन आप दोषी को इतनी सजा मत दो कि उसका परिवार उजड़ जाये। उसे गाँव में आदर के साथ बसने दो, मैं उस परिवार को माफ करती हूँ। गाँव की पंचायत से भी अनुरोध करती हूँ कि उसे माफ कर दिया जाये। गाँव की तरफ से भेजे गये मौजूद आदमियों ने पंचायत के बीच में दादी सुन्दरकौर का प्रस्ताव सुनाया। दादी जी की बात सुनकर सारी पंचायत ने दादी जी के फैसले की खूब सराहना की और पंचायत ने एक अन्य अहम फैसला लेने का निर्णय किया। इस फैसले के मुताबिक इस परिवार में जो आदमी होगा वह गाँव का चौधरी (मुखिया) आदमी माना जाएगा। अतः यह परम्परा आज तक गाँव में चली आ रही है। चौ. बलवन्त सिंह देशवाल खाप के सचिव हैं और इसी परिवार से हैं।

विशेषताऐं -

  1. इस गाँव में शिवाजी मराठा ने पानीपत की लड़ाई के समय अपनी फौज रोकने के लिए और लड़ाई का सामान, खाने का सामान रखने के लिए सन् 1754 में एक तहखाना बनवाया था। आज यहाँ पर शिव मन्दिर है।
  2. काला पहलवान प्रसिद्ध हुआ है।
  3. इस गाँव का क्षेत्रफल 4000 पक्का बीघा है।
  4. यह गाँव झज्जर से बहादुरगढ रोड पर 15 किलोमीटर दुलहेड़ा के पास में दक्षिण दिशा में आबाद है। दोनों गाँव आपस में मिले हुए हैं।
  5. इस गाँव में जसरामदास महन्त और चौ. चन्दगीराम नाड़िया वैद्य प्रसिद्ध हुए हैं।
  6. चौ. जागेराम और चौ. सूरतसिंह नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की फौज में स्वतन्त्रता सेनानी थे।[2]

दुल्हेड़ा बाराह संगठन

यह गाँव दुल्हेड़ा बाराह का सदस्य है। यह 12 गांवों का संगठन है जिसे दुल्हेड़ा बाराह खाप भी कहते हैं। आजकल प्रो० उमेदसिंह देशवाल (दुल्हेड़ा निवासी) इसके प्रधान हैं। यह संगठन समय-समय पर सामाजिक हित में फैसले करता आ रहा है जिनका इसके आधीन आने वाले सभी गाँव पालन करते हैं। इन गाँवों के नाम इस प्रकार हैं -

1. दुल्हेड़ा, 2. खेड़का गुज्जर, 3. गोयला कलाँ, 4. छुडाणी, 5. भदाणी, 6. भदाणा, 7. कबलाणा, 8. गंगड़वा, 9. गुभाणा, 10.माजरी, 11. जरगदपुर 12. अस्थल धाम - यह एक धार्मिक एवं ऐतिहासिक मठ/मंदिर है जिसे छत्रपति शिवाजी ने बनवाया था। यह दुल्हेड़ा और खेड़का गुज्जर के बीच में बसा है।

इन गाँवों का आपस में भाईचारा है और इनमें आपसी रिश्ते (ब्याह-शादी) नहीं होते।

विशेषतायें[3] -

  1. इस गाँव में शिवाजी मराठा ने पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय अपनी फौज रोकने के लिए और लड़ाई का सामान, खाने का रखने के लिए सन् 1754 में एक तहखाना बनवाया था। आज यहाँ पर शिव मन्दिर है।
  2. काला पहलवान प्रसिद्ध हुआ है।
  3. इस गाँव का क्षेत्रफल 4000 पक्का बीघा है।
  4. यह गाँव जिला झज्जार से बहादुरगढ़ रोड पर 15 किलोमीटर दुल्हेड़ा के पास में दक्षिण दिशा में आबाद है। दोनों गाँव आपस में मिले हुए हैं।
  5. इस गाँव में जयराम दास महन्त और चौ. चन्दगीराम नाड़िया वैद्य प्रसिद्ध हुए हैं।
  6. चौ. जागेराम व चौ. सूरतसिंह जी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की फौज में स्वतन्त्रता सेनानी थे।

Photo Gallery

Notable Persons

External Links

References


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