Maharaja Rajinder Singh

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Photograph of Sir Rajinder Singh, the Maharaja of Patiala c.1898

Maharaja Rajinder Singh, (b.25 May 1872,r.1876 -8 November 1900) was Maharaja of the princely state of Patiala from 1876 to 1900, when he died following a riding accident. For his bravery in 1897, he was awarded the Grand Cross of the Star of India (GCSI) by the colonial government.[1] Described as "the first reigning Prince to blend the elements of the English gentleman and Indian potentate", he implemented reforms, including endowments for a woman's hospital, orphanages, and training of troops.

He was the first Indian to own a car in 1892, a French De Dion-Bouton as well as being the first man in India to own an aircraft.[2]

Singh was celebrated at the time of his death as "the best polo player in India", as well as one of the finest cricketers, field hockey players and billiards players of his day. The maharaja had a total of 365 wives,and defied his subjects and the British government when he married the Irish-born daughter of his horse master, persuading her to embrace the Sikh faith. He was a close friend of William Beresford and of Frederick Roberts.[3]

One of his sons was Maharaja Sir Maharaja Bhupinder Singh.[4][5]

One of his sons was Rao Raja Birinder Singh of Patiala.

महाराज राजेन्द्रसिंह

महाराज राजेन्द्रसिंह का सन c.1898 का चित्र

महाराज महेन्द्रसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजेन्द्रसिंह (25 May 1872-8 November 1900) की उम्र केवल करीब चार बरस की थी, इसलिए सन् 1859 की सनद के मुताबिक कौंसिल मुकर्रिर होकर राज्य-प्रबन्ध करना जाइज था। कुछ दिन पंजाब सरकार के सैक्रेटरी ने एक तजवीज कर दी थी, उसके अनुसार रियासत का काम होता रहा और फिर मि० ग्रेफन सैक्रेटरी गवर्नर-जनरल पटियाला तशरीफ लाए और महाराज जींद, नाभा के परामर्श से एक कौंसिल रियासत के इन्तजाम के लिए बनाई और उनके लिए रियासत के प्रबन्ध को भली प्रकार करने की ताकीद की और एक रिपोर्टर इस के लिए पटियाले में छोड़ दिया कि वह कौंसिल की कार्रवाही और अन्य राज्य-सम्बन्धी हालात गवर्नमेण्ट को दिया करे।

सन् 1877 ई० में गवर्नर स्वयं पटियाला आए और खास दरबार हुआ जिसमें नाभा, फरीदकोट, जींद आदि के शासक भी मौजूद थे। महाराज राजेन्द्रसिंह को गद्दी-नशीन किया, परन्तु कुल अधिकार आपको 1890 ई० में प्राप्त हुए।

पटियाला राज्य में निज की टकसाल भी थी। उसमें जो सिक्के ढ़ाले जाते थे, उनकी कीमत सन् 1825 के लगभग गवर्नमेंट ने पन्द्रह आने रखी थी और अब भारतवर्ष के चारों तरफ गिनती के लिए पौंड, शिलिंग और पेन्स आदि के ब्रिटिश सिक्कों का चलन हो चुका था। इसलिए अन्य स्थानों की तरह पटियाला से भी उनका चलन बन्द होने लग गया।

पहले की अपेक्षा इन महाराज के आगे खेती का प्रबन्ध कुछ सुव्यवस्थित


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-435


रूप में आ गया था। अंग्रेजी ढ़ंग पर बन्दोबस्त हो जाने के कारण लगान उगाही बटाई की अपेक्षा नकद रुपयों में लिया जाने लगा था। पहले लोग नकद रुपया देने में दिक्कतें समझते थे। लेकिन इनके समय में नकद रुपया देने में सुविधा समझने लगे।

1887 ई० में पटियाला की सेना ने उत्तरी-पश्चिमी युद्ध में शामिल होकर अंग्रेजों की मदद की थी। चीन के युद्ध में भी महाराज ने अपनी सेना में जाकर अंग्रेज सरकार से मित्रता का सम्बन्ध निभाया। जिस समय अंग्रेजों का दक्षिण अफ्रीका में युद्ध हुआ, महाराज ने भी कुछ घोड़े सहायता को भेजे। भटिण्डा, राजापुरा के बीच इनके समय में ही 100 मील लम्बी लाइन तैयार हुई। सार्वजनिक संस्थाओं को दान देने में आप बड़े उदार थे। आपने पंजाब विश्विद्यालय को 55000 रुपये, अमृत खालसा कॉलेज को 162000 रुपये, इम्पीरियल इन्स्टीट्यूट लन्दन को 30000 रुपये प्रदान किए थे।

1907 ई० में जब तक आपके पुत्र भूपेन्द्रसिंह बिलकुल नाबालिग थे, इस संसार से कूच कर गए। इनके बाद महाराज भूपेन्द्रसिंह जी गद्दी पर बैठे। इनका जन्म 1891 ई० में हुआ है। नाबालिगी के समय राज-कार्य एजेंसी-कौंसिल द्वारा होता रहा।

External links

References


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