Mera Anubhaw Part-2/Mahapurush

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रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो॰ 9460389546

महापुरूष/स्वतंत्रता सेनानी ...भजन क्रमांक:88-90

88. महापुरूष हमेशा करते हैं

।। भजन-88।।

महापुरूष हमेशा, करते हैं शुभ काम।। टेक ।।


महापुरूषों के जीवन में, होता आराम हराम।

परमार्थ ही परम-धर्म, ये लगन रहे सुबह शाम ।। 1 ।।

महापुरूषों का रहे हमेशा, जन हित का प्रोग्राम।

उनके मन में देश सेवा की, योजना रहे तमाम ।। 2 ।।

महापुरूषों ने पौधा लगाया, दीख रहा सरे आम।

पचगामा में कन्या गुरूकुल, है शिक्षा का धाम ।। 3 ।।

जहाँ पढ़-पढ़ के बनें कौशल्या, मिले देश को राम।

कोई बनेगी देवकी माता, हमको दें घनश्याम ।। 4 ।।

कोई बनेगी रानी किशोरी, जिसका होडल गाम।

चढ़ घोड़े पर लड़ी लडाई, मुँह में पकड़ लगाम ।। 5 ।।

एक लड़की पढ़ले होज्या, दो परिवारों का नाम।

आम के फिर आम बनेंगे, और गुठली के दाम ।। 6 ।।

जंगे आजादी का बहादुर, महाशय मनसाराम।

भालोठिया कहे महापुरूषों की, गिनती में ये नाम ।। 7 ।।

89. महर्षि दयानन्द सरस्वती

।। भजन-89।। (स्वामी दयानन्द)
महर्षि दयानन्द सरस्वती (1824-1883)

तर्ज - तूने अजब बनाया भगवान, खिलौना माटी का..........


जागे भारत के भाग, दयानन्द आया हे।। टेक ।।


विरजानन्द से ज्ञान लिया, देश को जीवन दान दिया।

सांसारिक सुख त्याग, दयानन्द आया हे ।। 1 ।।

नहीं चेली नहीं चेला था, स्वामी बेधड़क अकेला था।

खेला था धर्म का फाग, दयानन्द आया हे ।। 2 ।।

अज्ञान की आँधी आई थी, रात अंधेरी छाई थी।

दिया ज्ञान का जला चिराग, दयानन्द आया हे ।। 3 ।।

जुल्म रात-दिन होवें थे, जो तान के चद्दर सोवें थे।

जगा दिए काले नाग, दयानन्द आया हे ।। 4 ।।

जहाँ पाखंडियों का डेरा था, वहाँ जाकर उनको घेरा था।

काशी मथुरा प्रयाग, दयानन्द आया हे ।। 5 ।।

हजारों विधवा रोवें थी, रो-रो के जिन्दगी खोवें थी।

उनको दिया सुहाग, दयानन्द आया हे ।। 6 ।।

वेद का बजा दिया डंका, पाखण्ड की फूँक दई लंका।

लगादी उसके आग, दयानन्द आया हे ।। 7 ।।

सत्य का मार्ग दिखा दिया, भालोठिया को बता गया।

गाओ धर्म के राग, दयानन्द आया हे ।। 8 ।।

90. स्वामी केशवानन्द

।। भजन-90।। (स्वामी केशवानन्द)
स्वामी केशवानन्द

तर्ज - एजी एजी जगत में आयेगा तूफान .........


एजी-एजी है जब तक, भूमि और आकाश।

स्वामी केशवानन्द का जग में, अमर रहे इतिहास।। टेक ।।


सदियों की कहावत है ये, आज की नहीं है बात।

होनहार बिरवान के होते हैं, चिकने पात ।

इसी तरह स्वामी जी के, जीवन की शुरूआत।

बचपन में गऊओं की, सेवा करी दिन-रात।

इसके बाद स्वामी जी एक, गद्दी के महन्त बने।

फाजिलका बंगला में एक, माने हुए संत बने।

अच्छे ठाठ-बाठ और सेवक भी अनन्त बने।

लेकिन स्वयं स्वामीजी की, सेवाओं के अन्त बने।

रहने लगे उदास ।। 1 ।।

देश के हालात देख, स्वामी जी अधीर बना।

देश को जरूरत मेरी, लेकिन मैं अमीर बना।

गद्दी के मारकर ठोकर, त्यागी फकीर बना।

जवानी का जोश आया, साधु कर्मवीर बना ।

कर्मयोगी बनके अपना, आराम हराम किया।

अबोहर में हिन्दी साहित्य-सदन का काम किया।

दिन और रात किया, सुबह और शाम किया।

देश के हवाले अपना, जीवन तमाम किया।

ले सच्चा सन्यास ।। 2 ।।

विक्रमी संवत उन्नीस सौ नब्बे का बयान सुनो।

जिस दिन से पहुँचे स्वामी, संगरिया में आन सुनो।

मिडिल स्कूल, कच्चा कोठा, एक मकान सुनो।

आर्य कुमार आश्रम, इतना था स्थान सुनो।

थोड़े दिन में स्वामी जी ने, कर दिया कमाल देखो।

मील भर के एरिया में, मकानों का जाल देखो।

सरस्वती भवन वहाँ पर, बना है विशाल देखो।

ग्रामोत्थान विद्यापीठ, संगरिया में चाल देखो।

चमत्कार सै खास ।। 3 ।।

छोटे से स्कूल से बड़ी, संस्था बनाई देखो।

स्नात्कोत्तर तक यहाँ, होती है पढ़ाई देखो।

व्यायाम शाला में जाती, राइफल सिखाई देखो।

दस्तकारी भी यहाँ जाती है बताई देखो।

लकड़ी का काम और सिखाते सिलाई देखो।

लोहे की दस्तकारी, साथ में रंगाई देखो।

आयुर्वेद औषधालय, बनती हैं दवाई देखो।

तीन प्रेस जिनमें होती, कागज की छपाई देखो।

करते बारह मास ।। 4।।

रत्न-भूषण प्रभाकर का, होता है इम्तहान यहाँ।

कन्या विद्यालय का भी, भवन आलीशान यहाँ।

टीचर ट्रेनिंग, एस.टी.सी., बी.एड. का स्थान यहाँ।

बाइस सौ बीघा भूमि भी, मिल गई अब दान यहाँ।

म्यूजियम अजायबघर को, देख कर हैरान यहाँ।

कहाँ से इतनी वस्तुओं को, लाया गया श्रीमान।

प्राचीन अर्वाचीन, आधुनिक समय का ज्ञान।

यहाँ की तारीफ नहीं, कर सके मेरी जबान।

म्यूजियम है या रणवास ।। 5 ।।

पुस्तकालय देखो जिसकी, बनी है सजावट भारी।

भाँति-भाँति की पुस्तकों की, भरी हुई अलमारी।

हिन्दी उर्दू फारसी, अंग्रेजी की पुस्तक न्यारी।

बंगाली गुजराती अरबी, रसिया की आई बारी।

तेलगू कन्नड़ उड़िया, गुरूमुखी की पोथी सारी।

अनेक भाषाओं की पुस्तकों की जुम्मेवारी।

मलयालम जर्मन फ्रेंच, पढ़ो कोई नरनारी।

छापे में छप्योड़ी कोई, हाथों की दस्तकारी।

भालोठिया करी तलाश ।। 6।।



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