Mitha Neem

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Mitha Neem (मीठा नीम) or The curry tree or , is a tropical and sub-tropical tree in the family Rutaceae (the rue family, which includes rue, citrus, and satinwood), native to Asia.[4] The plant is also sometimes called sweet neem, though M. koenigii is in a different family to neem, Azadirachta indica, which is in the related family Meliaceae. Its leaves, known as curry leaves, are used in many dishes in the Indian subcontinent.

Variants

Description

It is a small tree, growing 4–6 metres (13–20 ft)) tall, with a trunk up to 40 cm (16 in) in diameter. The aromatic leaves are pinnate, with 11–21 leaflets, each leaflet 2–4 cm (3⁄4–1+1⁄2 in) long and 1–2 cm (1⁄2–3⁄4 in) broad. The plant produces small white flowers which can self-pollinate to produce small shiny-black drupes containing a single, large viable seed. The berry pulp is edible, with a sweet flavor.[1]

मीठा नीम

लेखक : स्वामी ओमानन्द सरस्वती, भारत की प्रसिद्ध जड़ी बूटी ग्रन्थमाला-२

धन्वन्तरीय निघन्टु में लिखा है –


कैडर्योऽन्यो महानिम्बो रामणो रमणस्तथा ।

गिरिनिम्बो माहारिष्टः शुक्लशालः कफाह्वयः ॥४८॥


मीठे नीम के कैडर्य, महानिम्बः, रामणः, रमणः, महारिष्ट, शुक्लसार, शुक्लशालः, कफाह्वयः, प्रियसार और वरतिक्तादि संस्कृत में नाम हैं । हिन्दी में मीठा नीम । बंगाली में घोड़ा नीम । मराठी कलयनिम्ब, पंजाबी गंधनिम्ब, गुजराती - मीठो लीमड़ो, तमिल करुणपिल्ले, तेलगू करिवेपमू, फारसी सजदे करखी कुनाह, लेटिन murraya koenigie नाम भिन्न-भिन्न भाषाओं में मीठे नीम के हैं ।


मीठे नीम के गुण

कैडर्यः कटुकस्तिक्तः कपायः शीतलो मधुः ।

संतापशोष कुष्ठास्रकृमि भूतविषापहः ॥४९॥

धन्वन्तरीय निघन्टु में मीठा नीम कड़वा, तिक्त, कषैला, शीतल, हल्का और संताप, शोथ, कुष्ट, रुधिरविकार, कृमि भूत-बाधा और विष को नष्ट करता है ।


वर्णन


मीठे नीम के पेड़ प्रायः भारतवर्ष के सभी भागों में पाये जाते हैं । इसके पेड़ की ऊंचाई १२ से लेकर १५ फुट तक की होती है । इसके पत्ते देखने में नीम के पत्तों के समान ही होते हैं किन्तु ये कटे किनारों के नहीं होते। चैत्र और वैशाख में इसके पेड़ पर सफेद रंग के फूल आते हैं । इसके फल झूमदार होते हैं । पकने पर इस के पत्तों का रंग लाल हो जाता है । इसके पत्तों में से भी एक प्रकार का सुगंधित तैल निकलता है । यूनानी मत में यह पाचक, क्षुधाकारक, धातु उत्पन्न करने वाला, कृमिनाशक, कफ को छांटने वाला और मुख की दुर्गन्ध को मिटाने वाला होता है । यह दूसरे दर्जे में गर्म और खुश्क होता है । इसकी जड़ को घिसकर विषैले कीड़ों के काटने के स्थान पर लगाने से लाभ होता है ।


दस्त और वमन


जिन दस्तों में आंव आता है उनकी चिकित्सार्थ मीठे नीम के कच्चे फल खिलाते हैं । इसके पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर शर्बत के समान पिलाने से वमन दूर होता है ।


सर्पदंश


राबर्ट के मतानुसार लंका में इसके पत्तों का काढ़ा सर्पदंश में विष दूर करने के लिए पिलाया जाता है और इसकी जड़ सांप के काटे हुए स्थान पर लगाने से लाभ करती है ।

कर्नल चोपड़ा के अनुसार यह सर्पदंश में उपयोगी है तथा यह पौष्टिक और अग्निवर्धक है । इसमें इन्सेशियल, ग्लूकोसाइड और कोइनिगिन नामक तत्त्व पाये जाते हैं ।

ज्वर को दूर करने के लिए पत्तों को दूसरी कड़वी औषध के साथ पिलाने से लाभ होता है ।

छोटी-छोटी फुन्सियां इसके पत्तों के चूर्ण के लेप से मिट जाती हैं । खुजली में भी लाभ होता है । इसकी जड़ के चूर्ण को शहद और जल के साथ चढ़ाने से पित्तज गर्मी के सब उपद्रव मिट जाते हैं

इसकी जड़ के काढ़े पर सोंठ का चूर्ण भुरभुराकर पिलाने से उदरशूल दूर होता है ।


भोजन के रूप में


इसके सूखे पत्ते कढी में छोंक लगाने तथा दाल को स्वादिष्ट बनाने के कार्य में आते हैं । इनको चने के बेसन में मिलाकर पकौड़ी भी बनाई जाती है । मूत्राशय के रोगों में इसकी जड़ों का रस सेवन लखीमपुर आसाम में अच्छा उपयोगी माना जाता है।

इंडोचाइना में इसका फल संकोचक माना जाता है और इसके पत्ते रक्तातिसार और आमातिसार को दूर करने के लिए अच्छे माने जाते हैं ।

सारांश यह है कि मीठे नीम के वही गुण हैं जो प्राय: करके कड़वे नीम में हैं तथा जो धनवन्तरीय निघन्टु में लिखे हैं वही प्रयोग करने पर यथार्थ रूप में पाये गए हैं ।


विशेष वार्ता - नीम के काढे की मात्रा ४ तोले से ८ तोले तक है । पत्तों के चूर्ण की मात्रा १ माशे से ४ माशे तक है । पंचांग के चूर्ण की मात्रा १ माशे से ४ माशे तक है । पत्तों के स्वरस की मात्रा १ तोला से १॥ तोले तक है । नीम की छाल के चूर्ण की मात्रा १ माशे से ३ माशे तक है ।


कड़वे निम्ब, मीठे निम्ब तथा बकायण के गुण मिलते हैं । इस प्रकार नीम व नीमवृक्ष में इतने गुण हैं कि उसकी प्रशंसा जितनी की जाये उतनी थोड़ी है । सचमुच त्रिवेणी में स्नान करना तो मूर्खता है किन्तु नीम, पीपल और बड़ की त्रिवेणी का सेवन सब दुखों को दूर करके प्राणिमात्र के कष्ट दूर करके सुखी बनाता है । उस त्रिवेणी के एक अंग नीम पर ही कुछ प्रकाश डाला है । इसी प्रकार समय मिला तो पीपल और वट (बड़) इन दोनों पर लिखकर सच्ची त्रिवेणी में पाठकों को स्नान कराना है । आशा है पाठक इस पुस्तिका को ध्यानपूर्वक पढ़कर लाभ उठायेंगे तथा ऋषियों के गुण गायेंगे जिनकी महती कृपा से मैंने यह छोटी पुस्तिका निम्ब (नीम) के गुणों पर लिखी है ।

See also

References

  1. "Murraya koenigii (L.) Spreng". From: Parmar, C. and M. K. Kaushal. 1982. Murraya koenigii. pages 45–48. In: Wild Fruits. Kalyani Publishers, New Delhi, India. In: NewCROP, New Crop Resource Online Program, Center for New Crops and Plant Products, Purdue University. 1982.

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