Multana Ram Jani
दुनिया मे लोग जन्म लेते है और चले जाते है.. लेकिन कुछ लोग होते हैं जो अपना जीवन कौम के लिए जीते हैं..अपना पूरा जीवन ही समाज को समर्पित कर देते हैं अपनी एक अमिट पहचान छोड़ जाते हैं जो युगों युगों का यादगार रहती हैं... एक ऐसा ही नाम हैं.. बाबा मुल्तानाराम जाणी ।
प्रारम्भिक जीवन
बोर्डिंग वाले बाबा नाम से लोकप्रिय श्री मुल्तानराम का जन्म ओसियां के निकट जाणी परिवार में सन् 1934 मे पिता प्रभुराम जाणी व माता का नाम साहिबी देवी के घर हुआ था । शुरू से ही उनके मन में कुछ करने का जूनून था । अपने शुरुआती जीवन में उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया तब उन्हें पढाई का महत्व समझ आया और उन्होंने ठाना कि वो पढाई भले ही न कर पाएं हो पर समाज मे शिक्षा की अलख जगाएंगे ।
समाज में योगदान
बाबा ने अपने जीवन का पल-पल समाज सेवा को समर्पित किया । वो खुद पढे लिखे नहीं थे लेकिन उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों को समझते हुए समाज में शिक्षा की अलख जगाने का बीड़ा उठाया लेकिन ये उन विषम परिस्थितियों मे कोई आसान काम नहीं था.. सामन्ती उत्पीड़न के खिलाफ बाबा ने आवाज उठाई.. युवाओं को स्वाभिमान से चलना सिखाया..सदियों से जिस समाज ने शिक्षा को महत्व नहीं दिया वहाँ घर घर जागृति लाना कतई आसान नहीं था ।
गांवों मे उस समय लोगों में शिक्षा को लेकर बिल्कुल भी जागरूकता नहीं थी । युवावस्था में ही जाणी ने क्षेत्र मे घूम घूमकर लोगों को प्रेरित किया कि वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाएं.. लोगों के सामने समस्या थी कि वो ओसियां में अपने बच्चों को इतना दूर पढने कैसे भेजें.. उस समय साधन भी कम थे ..तब बाबा ने ठाना कि दूर दराज गांव ढाणी से आने वाले छात्रों के लिए ओसियां में समाज की जगह होनी चाहिए और छात्रावास हो ताकि छात्र यहां रहकर अपनी पढाई कर सकें.. " दिल में जाट छात्रावास बनाने का अरमान ले निकले..
पीठ पर लाठी व सीने मे गोली खाने का मन लेकर निकले: उन्होंने 70 के शुरुआती दशक में जमीन तलाशने के प्रयास शुरू किए. धीरे धीरे उन्होंने प्रयास करते हुए 1979 मे 2.5 बीघा जमीन खरीदकर किसान जाट छात्रावास की नीँव ओसियाँ में रेल्वे स्टेशन के सामने कम संसाधन व धन की कमी होने के बावजुद अपनी प्रचण्ड इच्छा शाक्ति के बलबुते पर रखी। छात्रावास की नींव रखने में बाबा को बहुत सारी समस्याओं से जूझना पड़ा ..अनेक लोगों का विरोध सहना पड़ा.. लेकिन बाबा झूके नहीं कड़ी मेहनत , दृढ हौसले , और स्वाभिमान के साथ डटे रहे । समाज के प्रमुख लोगों की एक कार्यकारिणी समिति का गठन किया । रामूराम हुड्डा भैसेर कार्यकारिणी के अध्यक्ष व बाबा मुल्तानाराम जाणी कोषाध्यक्ष बने ।
माघ-पौष की कड़कड़ाती सर्दी हो या ज्येष्ठ-आषाढ के तपते तावड़े हों..बाबा ने अपनी मजबूत दृढ़ शक्ति से आस-पास की पहाङियों से पत्थरों को इकट्ठा कर शुरुआत में 7 कमरे और एक हॉल का निर्माण करवाया.. बाबा स्वयं पत्थर ऊपर चढाते पूरे दिन काम मे हाथ बंटाते ..।
अभिभावक के रूप में
बोर्डिंग मे रहने वाले छात्रों के अभिभावक बाबा ही थे । स्कूल मे बच्चों के अभिभावक के रूप मे बाबा ही बच्चों के साथ जाते । बच्चे स्कूल से कोई गलती करते और उन्हें नोटिस मिलता तो भी बाबा ही बच्चों के साथ जाकर उसका समाधान कराते और बच्चों को कभी गलती नहीं करने की हिदायत देते । छात्रावास मे रहने वाले बच्चों पर बाबा बहुत कड़ाई से निगरानी रखते थे, कोई भी छात्र बाबा की नजरों से बच नहीं सकता.. बाबा छात्रों की किसी भी गलती को तुरंत पकड़ लेते थे और फिर उन्हें समझाते कि ये उम्र पढने की है, इतना पढो कि जिंदगी मे कभी पीछे देखने की नौबत नहीं आए..हमेशा आगे ही बढो । बोर्डिंग मे पढने वाले छात्र जब भी सरकारी सेवा मे चयनित होकर बाबा के पास आते तो बाबा बहुत खुश होते और उनकी आंखों मे अक्सर खुशी के आंसू छलक जाते..वे पीठ थपथपाते और शाबाशी देते और आगे बढने के लिए आशीर्वाद देते ।
छात्रावास मे रहकर गये छात्र आज भी बाबा का अहसान नहीं भूलते । बाबा ने जो 6 दशक पहले शिक्षा का दीप जलाया आज उसकी रोशनी से हजारों चिराग प्रज्वलित हैं । ओसियां क्षेत्र मे आज अगर समाज के इतने युवा सरकारी सेवाओं मे हो रहे है उसकी बुनियाद बाबा ने ही रखी थी ।
राजनीतिक क्षेत्र
हालांकि बाबाजी की राजनीति मे कोई विशेष सक्रिय रूचि नहीं थी .. फिर भी वो उस समय मे दिग्गज किसान नेता रहे स्व. परसराम मदेरणा साब स्व. नाथूराम मिर्धा व जसवंत सिंह बिश्नोई उनके पंसदीदा नेता रहे । बाबाजी भी सिद्धान्तवादी थे इसलिए उन्हें सिद्धांतों पर चलने वाले नेता ही पंसद आते । राजनीति के जरिये सामाजिक कार्य करवाने का बाबाजी का विशेष प्रयास रहता । बाबा का सभी दलों के राजनेता सम्मान करते थे बाबा कभी भी राजनेताओं से मिलने भी नहीं जाते थे और न ही किसी का प्रचार करते । बाबा के अपने सिद्धांत थे वो उन पर अटल रहते ...
बाबा के प्रमुख सहयोगी
लादूराम जाणी पूर्व सरपंच थोब, शेराराम ढेम्बा पंडित की ढाणी , रामूराम हुड्डा भैंसेर, चूनाराम जाखड़ पूर्व सरपंच नेवरा , केसूराम डोगीयाल , केसूराम सियाग कपूरिया, पेमाराम हरड़ू खेतासर. इन सबके सहयोग से शुरूआती दौर में बाबा ने छात्रावास निर्माण कार्य शुरू किया था ।
धार्मिक जीवन
बाबाजी अंधविश्वास और पाखंड के घोर विरोधी थे । वे मूर्तिपूजा के भी विरोधी थे । जसनाथी सम्प्रदाय व कबीर पंथ मे उनकी आस्था थी । बाहरी दिखावा आडम्बर उन्हें बिल्कुल पंसद नहीं थे । वो माता पिता की सेवा को ही तीर्थ मानते थे और कर्म को ही पूजा मानते थे ।
सामाजिक जीवन
बाबा जी आजीवन समाजहितों को ही समर्पित रहे । समाज ही उनका परिवार बन गया । जब से उन्होंने छात्रावास का निर्माण करवाया तब से छात्रावास ही उनका घर था. शायद ही कभी वो बाहर कहीं रूके होगें । अपने जीवन के अंतिम दौर तक वो छात्रावास के छात्रों के बीच हर शाम मिटिंग लेते थे । उनका शरीर बुढा जरूर हो गया था लेकिन उनमें जूनून अंतिम समय तक था वो छात्रों के बीच बोलते हुए अक्सर भावुक हो जाया करते ।
ये जिंदगी कौम की हैं कौम पे लुटाता चलूं..आजीवन बाबा इन्हीं पंक्तियों पर चलते रहे । 15 जून की सुबह चार बजे बाबाजी हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गये । उनके द्वारा दिए योगदान उनके महान कार्यों को हमेशा याद किया जाता रहेगा.. समाज के लिए बाबा का जाना एक युग का अंत होने जैसा हैं । संघर्ष की बुनियाद पर उन्होंने जो इतिहास रचा वो अविस्मरणीय रहेगा । उनका प्रखर व्यक्तित्व , कालजयी कृतित्त्व , दिव्य स्मरण युगों युगों तक जनमानस मे मुखरित रहेगा , जीवित रहेगा ।
- "लाऊं कहाँ से ढूंढकर उस रहनुमा को
- मंजिल पर हमको लाकर, जो आज खो गया ।"
लेखक
✍️अमेश बैरड़ पत्रकार ओसियां, डी आर लेगा खेतासर
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