Tilhu
Tilhu (तिलहू) or Nagla Tilhu (नगला तिलहू) is a village in Tehsil - Sadabad district Hathras of Uttar Pradesh.
Location
Village- Tilhu (तिलहू)/Nagla Tilhu (नगला तिलहू) Block and Tehsil - Sadabad, District - हाथरस, Uttar Pradesh. Pincode - 281302.Post office - Bisawar आसपास के गांव - छह्तर , नगला बेरु, बिसावर, नगला छत्ती, रदोई, रदोई का बुर्ज, नगला नन्दा, गुमानी गढी, झरौठा, गोथा, हसनपुर, पिप्रामई। गांव तिलहू सादाबाद से 15 किमी तथा हाथरस से 33 किमी की दूरी पर स्थित है।
History
- Proud village of Gokula Jat, a chieftain who fought with Aurangzeb's & his Mughal regime here in last week of December 1669 which lasts for 4 days. Tilhu was then known as Tilpaṭ Gaṛhī (Devanagari; तिलपट गढ़ी).
Jat gotras
- Haga Chaudhary (हगा चौधरी)/Agre (अग्रे)
गोकुल सिंह के बारे में नए तथ्य - डॉक्टर भानु प्रताप सिंह
17 वीं शताब्दी में मुगलों के घमंड को चूर चूर करने वाले गोकुल सिंह उर्फ गोकुला जाट हरियाणा के गांव तिलपत के रहने वाले नहीं थे जैसा कि कुछ इतिहासकारों ने उल्लेख किया है । वह वास्तव में मौजूदा हाथरस जिले की सादाबाद तहसील के गांव तिलहू - छहत्तर (Tilhu - Chihattar) (जिसे पहले तिलपट कहते थे) के रहने वाले थे। यह गांव बिसावर के पास है । कुछ साल पहले यह मथुरा जिले का हिस्सा हुआ करता था । हाथरस जिला बनने के कारण उसकी सादाबाद तहसील हाथरस में शामिल कर दी गई है ।
इस गांव में अधिकांश लोग जाटों के हगा चौधरी (अगहा) जिन्हें अग्रे अथवा हगा अथवा चौधरी कहते हैं गोत्र के हैं । मथुरा जिले का सिहोरा गांव यहां से ज्यादा दूर नहीं है। गोकुला ने पहली लड़ाई यहीं पर लड़ी थी। उन्होंने औरंगजेब के फौजदार को यहीं पर मारा था। कारण यह था कि राजस्व वसूली नहीं होने के कारण वह ग्रामीणों पर अत्याचार कर रहा था। सेना के साथ यहीं पर मुकाबला हुआ था। इसके बाद गोकुला ने मुगलों की सादाबाद छावनी को जला दिया था। यह सादाबाद भी इस गांव से ज्यादा दूर नहीं है। आखिरी लड़ाई जिसमें गोकुला को उसके चाचा के साथ बंदी बना लिया गया था । गोकुला जाट के गांव में लड़ी गई 3 दिन लड़ाई चली थी। इसमें तमाम लोग मारे गए मुगलों के लोग ज्यादा मरे। गोकुला पक्ष के लोग ही मरे थे। इस गांव के आसपास जाटों के चौधरी गोत्र के दर्जनों गांव हैं। उन सब ने गोकुला का साथ दिया था। लड़ाई किसानों के उत्पीड़न के खिलाफ थी । मनमानी राजस्व वसूली को गोकुला ने रोक दिया था । पुराने जमाने में कच्चे मकान थे। गोकुला बेशक जमीदार था। लेकिन उसका भी घर कच्चा ही था। इसलिए कोई अवशेष उस समय का गांव में मौजूद नहीं है। लेकिन गांव के लोगों को विश्वास है उनके पूर्वज उन्हें इसके बारे में बताते आए हैं कि गोकुला जाट इसी गांव के थे । गांव में गोकुला जाट के वंशज रहते हैं। उन लोगों सेआगरा के जाने-माने पत्रकार डॉक्टर भानु प्रताप सिंह ने एक इंटरव्यू किया है। वह इंटरव्यू वीडियो के रूप में है कि गांव में आने वाले जगा उन्हें बताते हैं कि गोकुला उनके पूर्वज थे। यह वीडियो यहाँ संलग्न है. [1]
हरियाणा का तिलपत गांव दिल्ली के निकट है वहां से आकर मथुरा में बार-बार लड़ाई लड़ने की किसी जमीदार के लिए संभव नहीं था। इसलिए गोकुला जाट के हरियाणा के गांव तिलपत के होने की बात प्रमाणित नहीं होती है। इसके अलावा प्रदेश सरकार मैं मथुरा के मंत्री और पूर्व विधायक प्रताप सिंह इस संबंध में लिखा पढ़ी करते रहते हैं । सरकारी पैसे से गोकुला के नाम का एक द्वार भी बना है। लेकिन आधा अधूरा है। गांव के लोगों की मांग रहती है कि गोकुला की गांव में विशाल मूर्ति लगवाई जाए और स्मारक बनाया जाए। गांव के लोग इस मामले में एकजुट है।
पुस्तक पढ़ने की रूचि ने अन्य पुस्तक जाटवीर गोकुला से सम्बंधित सम्बन्धित पढ़ीं - जिनसे मुख्य संक्षिप्त जानकारी यह मिलती है -
प्राय: हल्दीघाटी युद्ध (18 जून 1576) और पानीपत की तीन लड़ाईयों (21 अप्रैल 1526, 5 नवम्बर 1556, और 14 जनवरी 1761) की चर्चा सुनने पढ़ने को मिलती हैं, लेकिन समरवीर गोकुला के विषय में कितने जानते हैं, चर्चा होती है, नहीं मालूम । हल्दी घाटी पर श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा हल्दी घाटी खण्ड काव्य लिखा गया है । उसी प्रकार समरवीर गोकुला पर प्रबन्ध काव्य श्री बलवीर सिंह “करुण” द्वारा लिखा जा चुका है । कवि के संक्षेप विचार -
हल्दी घाटी का समर विकट
कुछ ही घंटों में गया निपट ।
ये तीन दिवस बाहर जूझे
तिलपट में जूझे तीन दिवस ।।
(सन्दर्भ - समरवीर गोकुला - प्रबंध काव्य – पृष्ठ 103, षष्ठ सर्ग – संग्राम अनूठा तिलपत का)
अब लगे हाथ बतला ही दें
पानीपत के तीनों रण भी ।
एकेक दिवस में निपट गये
देखा न दूसरा तो दिन भी ।।
(सन्दर्भ - समरवीर गोकुला - प्रबंध काव्य – पृष्ठ 104, षष्ठ सर्ग – संग्राम अनूठा तिलपत का)
एक महत्वपूर्ण विवेचना यह भी हैं कि हल्दी घाटी और पानीपत की लड़ाई दो शासकों के मध्य थी, दोनों तरफ अपनी - अपनी सेनाएं थी । फिर भी ये युद्ध एक – एक दिन के थे । जबकि तिलपत का युद्ध एक तरफ एक शासक था, जिसके पास अपनी सैन्य शक्ति थी और दूसरी तरफ एक किसानों का प्रतिनिधि समूह, जो अन्याय के विरुद्ध था । अपने सादा हथियार लाठी, बल्लम, फरसे, कुल्हाड़ी, तलवार आदि ही थे, कोई प्रशिक्षित सेना नहीं थी । तब ऐसी परिस्थितियों में उनका युद्ध 6 दिन तक चला ।
गोकुल सिंह जिन्हें ‘गोकुलराम‘ और ‘गोकुला जाट‘ के नाम से भी जाना जाता है । भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध व्यक्तियों में से एक हैं । वह सिनसिनी गांव का सरदार था । 10 मई, 1666 ईसवीं को जाटों और मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना के मध्य तिलपत में लड़ाई हुई ।
लड़ाई में जाटों की विजय हुई । पराजय के पश्चात मुगल शासक ने इस्लाम धर्म को बढ़ावा दिया और किसानों पर कर बढ़ा दिया । जाट गोकुल सिंह ने किसानों को संगठित किया और कर जमा करने से मना कर दिया । इस बार औरंगजेब ने पहले से अधिक शक्तिशाली सेना भेजी और गोकुल सिंह को बंदी बना लिया गया । 1 जनवरी, 1670 ईसवीं को आगरा के किले पर गोकुल सिंह को मौत के घाट उतार दिया गया । गोकुल सिंह के बलिदान ने मुगल साम्राज्य के खात्मे की शुरुआत कर दी ।
वीरवर गोकुल सिंह के जीवन के बारे में बस यही पता चलता है कि सन 1660 - 1670 के दशक में वह तिलपत नामक इलाके का प्रभावशाली जमींदार था । तिलपत के जमींदार ने मुगल सत्ता को इस समय चुनौती दी । गोकुलराम (गोकुल सिंह) में संगठन क्षमता थी और वह बहुत साहसी और दृढ़प्रतिज्ञ था । जिसे इतिहास के पन्नों पर लेना अति आवश्यक है ।
इस बात की चेतना कम ही लोगों को होगी कि वीरवर गोकुल सिंह का बलिदान, गुरु तेगबहादुर से 6 वर्ष पूर्व हुआ था । दिसम्बर 1675 में गुरु तेगबहादुर का वध कराया गया था – दिल्ली की मुगल कोतवाली के चबूतरे पर जहां आज गुरुद्वारा शीशगंज शान से मस्तक उठाए खड़ा है । गुरु के द्वारा शीश देने के कारण ही वह गुरुद्वारा शीशगंज कहलाता है । दूसरी ओर, जब हम उस महापुरुष गोकुल सिंह की ओर दृष्टि डालते हैं जो गुरु तेगबहादुर से 6 वर्ष पूर्व शहीद हुआ था और उन्हीं मूल्यों की रक्षार्थ शहीद हुआ था और जिसको दिल्ली की कोतवाली पर नही, आगरे की कोतवाली के लम्बे - चौड़े चबूतरे पर, हजारों लोगों की हाहाकार करती भीड़ के सामने, लोहे की जंजीरों में जकड़कर लाया गया था और जिसको जनता का मनोबल तोड़ने के इरादे से बड़ी पैशाचिकता के साथ एक - एक जोड़ कुल्हाड़ियों से काटकर मार डाला गया था, तो हमें कुछ नहीं आता ।
गोकुल सिंह सिर्फ जाटों के लिए शहीद हुए थे, न उनका राज्य ही किसी ने छीन लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी ।, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुगल सत्ता, दीनतापूर्वक, संधि करने की तमन्ना लेकर गिड़ - गिड़ाई थी ।
आज मथुरा, वृंदावन के मंदिर और भारतीय संस्कृति की रक्षा का तथा तात्कालिक शोषण, अत्याचार और राजकीय मनमानी की दिशा मोड़ने का यदि किसी को श्रेय है तो वह केवल ‘गोकुल सिंह‘ को है ।
Population
Notable persons
- Gokula Jat - Fierce rebel, who shook the roots of Aurangzeb's empire in the late 1670s.[2]
- चौधरी तुलसीराम (मुखिया जी) पुत्र राजेंद्र सिंह पुत्र रामलाल; गोकुला जाट के वंशज; गोत्र - हगा/अग्रे चौधरी[3]
- शिशुपाल सिंह (हगा चौधरी)
External links
References
- ↑ हिन्दू धर्म रक्षक गोकुला जाट की कहानी-7 डॉ. भानु प्रताप सिंह के साथ गोकुला के वंशजों से मिलिए
- ↑ पुस्तक, "हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट" लेखक- ठा. भानु प्रताप सिंह जी (परिहार)
- ↑ See.
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