Narayan Singh Bhati
Narayan Singh Bhati (सरदार नारायणसिंह भाटी) from Mandi Dabwali, Sirsa, Haryana, was a Social worker at Sangaria in Hanumangarh, Rajasthan and Sirsa, Haryana. [1] He belonged to Pohad clan of Bhati Jats.[2]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....सरदार नारायण सिंह: [पृ.509]: भाटी कुल की पोहड़ नख में उत्पन्न हुए हैं। अब इनकी आयु लगभग 50 वर्ष की है। उनके पूर्वज जैसलमेर राज्य से आए थे और पंजाब प्रांत में आकर जाट संघ में मिल गए। इनके शेरसिंह, समलसिंह और मालू सिंह नामी 3 पुत्र हुए। इन्होंने दो गांव बसाये। एक पंजाब प्रांत के जिला हिसार में सरदार शेरसिंह के नाम पर शेरगढ़ और दूसरा जिला फिरोजपुर में किलियां वाली जो एक दूसरे से 2 कोस के अंतर पर स्थित हैं और सरदार भगतसिंह जी के प्रपोत्रों की संपत्ति है। इनके उत्तर में पटियाला राज्य और दक्षिण में बीकानेर राज्य की सीमाएं लगती हैं। सरदार नारायण सिंह जी की संक्षिप्त वंशावली निम्नलिखित है:
सरदार भगतसिंह जी के 3 पुत्र 1. शेरसिंह, 2. सालमसिंह, 3. मालूसिंह
शेरसिंह के दो पुत्र 1. राऊसिंह और 2. भाऊसिंह।
भाऊसिंह के नारायणसिंह और गजेंद्रसिंह।
नारायणसिंह जी के भोजदत्त सिंह।
सरदार सालमसिंह के पुत्र 1. टेकसिंह, 2. डी आर उद्योग पाल, 3. वजीरसिंह, 4. केहरसिंह 5. भूदेव सिंह।
सरदार मालूसिंह के पांच पुत्र 1. जीता, 2. गोधा, 3. दाना, 4. माना, और 5. सेमां
अब आगे इनके बस के लगभग 100 आदमी हो गए हैं। जो इन्हीं दो गांव में बसते हैं। परंतु इनमें से विशेष उल्लेखनीय तीन ही पुरुष हैं जो जाट जाति की सेवा में प्रत्येक समय तैयार रहते हैं। इनमें से भी सरदार नारायण सिंह जी भाटी विशेष करके अपने जाति हित पर तुले हुए हैं। इनकी
[पृ.510]: अवस्था केवल 19 या 20 वर्ष की थी जब इनको अपने जाट जाति की सेवा की धुन लग गई थी। प्रथम इन्होंने गीता के प्रथम अध्याय का पंजाबी छंदों में उल्था करके बिना मूल्य वितरण किया। फिर पंजाब के जाटों में प्रचार करने के लिए पंजाबी भाषा में अपने ही खर्च से एक मासिक पत्र संपादन करना आरंभ किया जिसका नाम जाट सुधार है। जो अन्य जातियों के घोर विरोध के कारण आर्थिक हानि सहन कर बंद करना पड़ा क्योंकि उस समय इस और के जाट भी अपने आप को जाट न कहलाकर सिख कहलाना पसंद करते थे।
फिर इन्होंने पंजाबी भाषा में कविता लिख लिख कर और छपवाकर बिना मूल्य के ही लोगों में वितरण करने के द्वारा प्रचार आरंभ कर दिया जो अब तक लगातार कर रहे हैं।
यह पंजाबी भाषा के अच्छे कवि हैं और इधर कवि मंडली में बड़ा मान रखते हैं। कवि महा मंडल के प्रधान के पद पर नियुक्त हैं। इसके पश्चात उन्होंने एक कवि सम्मेलन किया जिसमें बड़े बड़े कवि और दूसरे लोग भी बुलाए गए। इस का सब व्यय स्वयं सहन किया। इससे लोगों में बड़ा प्रचार हुआ। इस सम्मेलन की समस्या ‘जटछत्रीवर्णदे’ पंजाबी भाषा में रखी। इसके पश्चात लोगों में जागृति आ गई और समझने लगे कि सिख और बात है जाट और। फलस्वरुप एक सभा बनाई गई जिसका नाम ‘जाट क्षत्री मालवा सभा’ रखा गया। इसके प्रधान सरदार नारायण सिंह भाटी बनाए गए। इस सभा के कार्यकर्ता सरदार नारायण सिंह भाटी, संत ज्वालादास B.A. “हंस”, सरदार अजीतसिंह “कृती” व संत अमरदास "दरदी" आदि है और टिरेकटादि छपवा कर और बिनामूल्य लोगों में बांट कर सभा का बडा भारी प्रचार कर रहे हैं।
[पृ.511]: इस सभा के लगभग 2000 मेंबर बन चुके हैं जो इसके कार्य में बड़ी दिलचस्पी लेते हैं। सरदार नारायण सिंह जी के पुरुषार्थ से इधर की जाट जाति सुसंगठित हो रही है। इन्होंने जाट जाति की दृष्टि व्यापारिक कार्य की ओर आकर्षित करने के लिए मंडी डबवाली में एक दुकान खुलवा रखी है। जिसके ऊपर अपने जातीय चिन्ह हल और तलवार वाला झंडा लगाया हुआ है। यह जाट स्कूल संगरिया राज्य बीकानेर की भी यथोचित सहायता करते रहते हैं। इनके पास अच्छी भूमि है जिसकी आए थे जाट जाति की सेवा करना ही अपना मुख्य कर्तव्य समझा हुआ है।
सरदार नारायण सिंह ने अपने प्रयत्न से एक पुस्तकालय मंडी डबवाली में खुलवा रखा है जिसकी कमेटी के यह प्रधान पद पर हैं और बड़े प्रयत्न से इसका काम चला रहे हैं।
इनके दूसरे भाई पंडित डीआर उद्योगपाल वर्मा है जो अब गैस के धंधे छोडकर सन्यासी हो गए हैं। इनका नाम अब स्वामी रुद्रानंद जी है। यह संस्कृत भाषा के बड़े पंडित हैं और पंजाब यूनिवर्सिटी की शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण हैं। आर्य समाज के प्रसिद्ध मुनाजिर हैं। इन्होंने जाट हाई स्कूल रोहतक के खोलने में बड़ी सहायता की थी और फिर जाट स्कूल संगरिया राज्य बीकानेर कई भद्र पुरुषों की सहायता से स्थापित किया जो भली प्रकार चल रहा है।
तीसरे इनके भाई सरदार भूदेवसिंह जी हैं। यह इंग्लैंड की प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी कैंब्रिज की सीनियर परीक्षा पास हैं और 8 भाषाएं जानते हैं। यह जाट स्कूल संगरिया के अवैतनिक मास्टर रहे हैं और कॉपरेटिव सोसायटी के ऑनरेरी सब इंस्पेक्टर भी रह चुके हैं।
[पृ.512]: आपकी जाट महासभा के क्षेत्र में काफी मान है। आपने सदा चौधरी सर छोटूराम के कार्यों में मदद दी। बड़े उत्साह और दृढ़ निश्चय पुरुष है।
References
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.144-145
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.509
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.509-512
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