Narsi Badiasar
Narsi Badiasar (d.1348) was a Badiasar clan ruler of Khinyala in Jayal tehsil of Nagaur district in Rajasthan. He was grandson of Kanwsi Badiasar.
History
The Badiasars obtained Khinyala from Kala Jats. There was a war with Kala Jats in which Kanwsi Badiasar died in 1348 AD. His statue is established in the forests of Khinyala village and a temple is there known as Dadosa Ka Mandir.
इतिहास
बिडियासर: खींयाला में बिडियासर गोत्र के जाटों का शासन था और वहां के सरदार के अधीन आस-पास के 27 गाँव थे. बाद में दिल्ली सुलतान की अधीनता में यह इलाका आ गया तब ये इनके अधीन हो गए थे और गाँवों से लगान वसूल कर दिल्ली जमा कराते थे. (डॉ पेमाराम, राजस्थान के जाटों का इतिहास पृ.23)
बडियासर और काला लोगों की लड़ाई
इतिहासकार डॉ पेमाराम[1] ने इस घटना का विस्तार से वर्णन किया है:
कहते हैं, पहले बडियासर रताऊ में रहते थे और खिंयाला गाँव को धसूंडा कहते थे, जहाँ काला गोत्र के जाट रहते थे. यहाँ सात काला भाईयों के बीच एक बहिन थी, जिसका विवाह रताऊ के बडियासर के साथ हुआ था. कुछ दिनों बाद वह बडियासर अपनी ससुराल धसूंडा आकर रहने लग गया था. काला भाई इस बडियासर बहनोई को बेगार में सुल्तान की रकम जमा कराने दिल्ली भेज देते थे. बार-बार जाने से दिल्ली सुल्तान के यहाँ चौधरी के रूप में बडियासर का नाम अंकित हो गया था और चौधरी की पाग उसको मिलने लग गयी थी. काला लोगों को जब पता चला कि गाँव की चौधर बडियासर बहनोई के हाथ चली गयी है तो उन सात काला भाईयों ने बहिन को रातिजका में बुलाकर पीछे से बहनोई की हत्या कर दी.
उस समय बडियासर की पत्नी गर्भवती थी. अपने पति की हत्या सुनकर वह विलाप करने लगी, तब गोठ मांगलोद की दधिमती माताजी ने उसे परचा दिया कि बिलोने में से छाछ उछाल दे, जितने छींटे उछलेंगे, उतने ही बडियासर पैदा हो जायेंगे और तुम्हारे गर्भ से जो पुत्र पैदा होगा, वह कालों से वैर लेगा. बाद में गर्भ से कांवसी नामक लड़का पैदा हुआ. बड़ा होने पर अपने पिता की मौत का वृत्तांत जानकर वह अपने चाचा के साथ दिल्ली सुल्तान के पास गया और वहां से मदद के लिए दिल्ली सुल्तान की फ़ौज ले आया . कालों पर बडियासर लोगों ने चढ़ाई कर दी. खिंयाला के तालाब के पास लडाई हुई जिसमें बहुत से बडियासर मारे गए, परन्तु लड़ाई में कालों से पूरा वैर लिया गया और उस इलाके में एक भी काला को नहीं छोड़ा. सारे काला या तो मारे गए या इलाका छोड़कर भाग गये. कालों से सारा इलाका खाली हो गया. इसके बाद बडियासर लोगों ने यह तय किया कि भविष्य में कोई भी बडियासर काला जाटों के यहाँ न तो पानी पिएगा, न खाना खायेगा और न उनसे शादी-विवाह का व्यवहार करेगा. इस बात की जानकारी होने पर बडियासर गोत्र के जाट अभी तक इन बातों का पालन करते हैं. फ़ौज के हमले के दौरान घोड़ों के खुरों से जो 'खंग' उडी थी इससे इस गाँव का नाम बदलकर धसुंडा से खिंयाला हो गया था.
कालों से लड़ाई में बहुत से बडियासर मारे गए थे, उन सब की देवलियां खींयाला गाँव के तालाब के किनारे बनी हुई है. इसमे काँवसी का लड़ाई के दौरान सर कट जाने के बाद भी धड से लड़ते हुए वह खिंयाला के जंगल में गिरे थे. उनका स्थान आज भी खिंयाला के जंगल में बना हुआ है, जहाँ उनकी मूर्ती लगी हुई है और उस पर मंदिर बना हुआ है. बडियासर गोत्र के लोग उस स्थान को 'दादोसा का मंदिर' कहकर पुकारते हैं. खींयाला के कांवसी की देवली पर वि. 1383 संवत (1326 ई.) मीती मिंगसर सुदी 4 की तिथि अंकित है और उसके पौत्र नरसी की देवली पर वि. संवत 1405 (1348 ई.) की तिथि अंकित है जो इस बात को दर्शाता है कि बडियासर और काला लोगों के बीच कई वर्षों तक झगडा चला था.
बदला लेते समय ढाढी ने बडियासरों के पक्ष में ढोल बजाने से इंकार कर दिया था, इस पर बडियसरों ने तय किया था कि भविष्य में ढाढी उनका ढोल नहीं बजयेगा. इसके बाद बडियसरों के शुभ अवसरों पर ढोली ही ढोल बजाता है.
External links
References
- ↑ (डॉ पेमाराम, राजस्थान के जाटों का इतिहास पृ.24-25)
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