Kala
Kala (काला)[1] Kalo (कालो) Kalia (कालिया)[2] Kalu (कालू) is Gotra of Jats found in Haryana, Rajasthan[3], Punjab, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Maharashtra. Kalu Jat clan is found in Afghanistan.[4] Dilip Singh Ahlawat has mentioned it as one of the ruling Jat clans in Central Asia. [5] Kala is a Gotra of the Anjana Jats in Gujarat.
Origin
They have originated from Kaliya (कालिय), who was a Nagavanshi Kshatriya King in Ramanaka Dwipa area near Mathura. [6]
Kalas are descendants of Kalashoka (कालाशोक), son of Shishunaga.[7]
Kala Jat gotra originated from Nagavanshi named Asita (असित) and inhabited Parbatsar area of Nagaur District.[8]
Jat Gotras Namesake
- Kala (काला) → Kalkot (कालकोट). Kalkot (कालकोट) is a village in Mohkhed tahsil in Chhindwara district of Madhya Pradesh.
- Kala (काला) → Kalapatha (कालापाठा). Kalapatha (कालापाठा) is a village in Pandhurna tahsil in Chhindwara district of Madhya Pradesh.
Villages founded by Kala clan
- Kaliya Bas (कालिया बास) - village in Nawa tehsil of Nagaur district in Rajasthan.
- Kala ki Dhani (काला की ढाणी) - village in Malpura tahsil in Tonk district in Rajasthan.
- Kalanada (कालानाड़ा) - village in Todaraisingh tahsil in Tonk district in Rajasthan.
Mention by Panini
Kala (काल) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [9]
History
Dalip Singh Ahlawat has mentioned Kala as a branch of Nagavansha who ruled in Central Asia. Branches of Nagavansha are - 1. Vasati/Bains 2. Taxak 3. Aulak 4. Kalkal 5. Kala/ Kalidhaman/ Kalkhande 6. Meetha 7. Bharshiv 8. Bharaich[10]
Udayaraja Dhaulya, ancestor of Tejaji, defeated Kala Jats of Jayal and occupied Kharnal in 964 AD and made his capital.[11]
Kalu Khap
Kalu (कालू) Khap has 50 villages in Punjab, Gurdaspur district. Jat gotra is Kalu. 20 villages of this khap are in Mathura district in UP around Goverdhan, of which Hakimpur is main village.This khap has 4 villages in Bulandshahr (UP), 10 villages in Hisar (Haryana), 6 in Muzaffarnagar and Lodipur village in Moradabad (UP).[12]
इतिहास
डॉ पेमाराम[13]लिखते हैं कि सिंध और पंजाब से समय-समय पर ज्यों-ज्यों जाट राजस्थान में आते गये, मरूस्थलीय प्रदेशों में बसने के साथ ही उन्होने प्रजातन्त्रीय तरीके से अपने छोटे-छोटे गणराज्य बना लिये थे जो अपनी सुरक्षा की व्यवस्था स्वयं करते थे तथा मिल-बैठकर अपने आपसी विवाद सुलझा लेते थे । ऐसे गणराज्य तीसरी सदी से लेकर सोलहवीं सदी तक चलते रहे । जैसे ईसा की तीसरी शताब्दी तक यौधेयों का जांगल प्रदेश पर अधिकार था । उसके बाद नागों ने उन्हें हरा कर जांगल प्रदेश (वर्तमान बिकानेर एवं नागौर जिला) पर अधिकार कर लिया । यौधेयों को हराने वाले पद्मावती के भारशिव नाग थे, जिन्होने चौथी शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी तक बिकानेर, नागौर, जोधपुर तथा जालोर के जसवन्तपुरा तक शासन किया । जांगल प्रदेश में नागों के अधीन जो क्षेत्र था, उसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर (नागौर) थी । यही वजह है कि नागौर के आस-पास चारों ओर अनेक नागवंशी मिसलों के नाम पर अनेक गांव बसे हुये हैं जैसे काला मिसल के नाम पर काल्यास, फ़िरड़ोदा का फिड़ोद, इनाणियां का इनाणा, भाकल का भाखरोद, बानों का भदाणा, भरणा का भरणगांव / भरनांवा / भरनाई, गोरा का डेह तथा धोला का खड़नाल आदि ।
छठी शताब्दी बाद नागौर पर दौसौ साल तक गूजरों ने राज किया परन्तु आठवीं शताब्दी बाद पुनः काला नागों ने गूजरों को हराकर अपना आधिपत्य कायम किया ।
दसवीं सदी के अन्त में प्रतिहारों ने नागों से नागौर छीन लिया । इस समय प्रतिहारों ने काला नागों का पूर्णतया सफ़ाया कर दिया । थोड़े से नाग बचे वे बलाया गांव में बसे और फिर वहां से अन्यत्र गये ।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत
दलीप सिंह अहलावत[14] लिखते हैं -
काला-कालीधामन-कालखण्डे-कालीरामण (नागवंशी) गोत्र नागवंश की एक प्रसिद्ध शाखा है। मथुरा के समीप यमुना के किनारे इस वंश का राजा राज्य करता था। कालीदेह नाम का इनका किला था जो खण्डहर की शक्ल में आज भी मौजूद है। श्रीकृष्ण महाराज द्वारा किया गया कालीयदमन इसी वंश के प्रचण्ड पुरुषों का ही दमन था1। उन्होंने बृज से इस वंश का शासन समाप्त कर दिया था। पंजाब में इस वंश की छोटी रियासतें सिंहपुरा एवम भग्गोवाल थीं। इस वंश को भाषा-स्थानभेद से उक्त नामों के अतिरिक्त कालीरावण, कालीरावत, कालू भी कहते हैं। वास्तव में गोत्र एक ही है।
इस वंश के जाटों के गांव निम्न प्रकार से हैं - गोवर्द्धन के पास हकीमपुर आदि 20 गांव, बुलन्दशहर में 4 गांव, मेरठ में 2 गांव, मुजफ्फरनगर में 6 गांव, मुरादाबाद में लोदीपुर, रोहतक में जसराना (आधा), डहरमुहाना, महावड़, अहेरी, अछेज आदि 10 गांव, हिसार में सबसे बड़ी सिसाय गांव (आधा), पंजाब में जि० गुरदासपुर में कालू जाटों के 50 गांव हैं।
बडियासर और काला लोगों की लड़ाई
इतिहासकार डॉ पेमाराम[15] ने इस घटना का विस्तार से वर्णन किया है:
कहते हैं, पहले बडियासर रताऊ में रहते थे और खिंयाला गाँव को धसूंडा कहते थे, जहाँ काला गोत्र के जाट रहते थे. यहाँ सात काला भाईयों के बीच एक बहिन थी, जिसका विवाह रताऊ के बडियासर के साथ हुआ था. कुछ दिनों बाद वह बडियासर अपनी ससुराल धसूंडा आकर रहने लग गया था. काला भाई इस बडियासर बहनोई को बेगार में सुल्तान की रकम जमा कराने दिल्ली भेज देते थे. बार-बार जाने से दिल्ली सुल्तान के यहाँ चौधरी के रूप में बडियासर का नाम अंकित हो गया था और चौधरी की पाग उसको मिलने लग गयी थी. काला लोगों को जब पता चला कि गाँव की चौधर बडियासर बहनोई के हाथ चली गयी है तो उन सात काला भाईयों ने बहिन को रातिजका में बुलाकर पीछे से बहनोई की हत्या कर दी.
उस समय बडियासर की पत्नी गर्भवती थी. अपने पति की हत्या सुनकर वह विलाप करने लगी, तब गोठ मांगलोद की दधिमती माताजी ने उसे परचा दिया कि बिलोने में से छाछ उछाल दे, जितने छींटे उछलेंगे, उतने ही बडियासर पैदा हो जायेंगे और तुम्हारे गर्भ से जो पुत्र पैदा होगा, वह कालों से वैर लेगा. बाद में गर्भ से कांवसी नामक लड़का पैदा हुआ. बड़ा होने पर अपने पिता की मौत का वृत्तांत जानकर वह अपने चाचा के साथ दिल्ली सुल्तान के पास गया और वहां से मदद के लिए दिल्ली सुल्तान की फ़ौज ले आया . कालों पर बडियासर लोगों ने चढ़ाई कर दी. खिंयाला के तालाब के पास लडाई हुई जिसमें बहुत से बडियासर मारे गए, परन्तु लड़ाई में कालों से पूरा वैर लिया गया और उस इलाके में एक भी काला को नहीं छोड़ा. सारे काला या तो मारे गए या इलाका छोड़कर भाग गये. कालों से सारा इलाका खाली हो गया. इसके बाद बडियासर लोगों ने यह तय किया कि भविष्य में कोई भी बडियासर काला जाटों के यहाँ न तो पानी पिएगा, न खाना खायेगा और न उनसे शादी-विवाह का व्यवहार करेगा. इस बात की जानकारी होने पर बडियासर गोत्र के जाट अभी तक इन बातों का पालन करते हैं. फ़ौज के हमले के दौरान घोड़ों के खुरों से जो 'खंग' उडी थी इससे इस गाँव का नाम बदलकर धसुंडा से खिंयाला हो गया था.
कालों से लड़ाई में बहुत से बडियासर मारे गए थे, उन सब की देवलियां खींयाला गाँव के तालाब के किनारे बनी हुई है. इसमे काँवसी का लड़ाई के दौरान सर कट जाने के बाद भी धड से लड़ते हुए वह खिंयाला के जंगल में गिरे थे. उनका स्थान आज भी खिंयाला के जंगल में बना हुआ है, जहाँ उनकी मूर्ती लगी हुई है और उस पर मंदिर बना हुआ है. बडियासर गोत्र के लोग उस स्थान को 'दादोसा का मंदिर' कहकर पुकारते हैं. खींयाला के कांवसी की देवली पर वि. 1383 संवत (1326 ई.) मीती मिंगसर सुदी 4 की तिथि अंकित है और उसके पौत्र नरसी की देवली पर वि. संवत 1405 (1348 ई.) की तिथि अंकित है जो इस बात को दर्शाता है कि बडियासर और काला लोगों के बीच कई वर्षों तक झगडा चला था.
बदला लेते समय ढाढी ने बडियासरों के पक्ष में ढोल बजाने से इंकार कर दिया था, इस पर बडियसरों ने तय किया था कि भविष्य में ढाढी उनका ढोल नहीं बजयेगा. इसके बाद बडियसरों के शुभ अवसरों पर ढोली ही ढोल बजाता है.
तेजाजी के पूर्वज और जायल के कालों में लड़ाई
संत श्री कान्हाराम[16] ने लिखा है कि.... जायल खींचियों का मूल केंद्र है। उन्होने यहाँ 1000 वर्ष तक राज किया। नाडोल के चौहान शासक आसराज (1110-1122 ई.) के पुत्र माणक राव (खींचवाल) खींची शाखा के प्रवर्तक माने जाते हैं। तेजाजी के विषय में जिस गून्दल राव एवं खाटू की सोहबदे जोहियानी की कहानी नैणसी री ख्यात के हवाले से तकरीबन 200 वर्ष बाद में पैदा हुआ था।
[पृष्ठ-158]: जायल के रामसिंह खींची के पास उपलब्ध खींचियों की वंशावली के अनुसार उनकी पीढ़ियों का क्रम इस प्रकार है- 1. माणकराव, 2. अजयराव, 3. चन्द्र राव, 4. लाखणराव, 5. गोविंदराव, 6. रामदेव राव, 7. मानराव 8. गून्दलराव, 9. सोमेश्वर राव, 10. लाखन राव, 11. लालसिंह राव, 12. लक्ष्मी चंद राव 13. भोम चंद राव, 14. बेंण राव, 15. जोधराज
गून्दल राव पृथ्वी राज के समकालीन थे।
यहाँ जायल क्षेत्र में काला गोत्री जाटों के 27 खेड़ा (गाँव) थे। यह कालानाग वंश के असित नाग के वंशज थे। यह काला जायलों के नाम से भी पुकारे जाते थे। यह प्राचीन काल से यहाँ बसे हुये थे।
तेजाजी के पूर्वज राजनैतिक कारणों से मध्य भारत (मालवा) के खिलचिपुर से आकर यहाँ जायल के थली इलाके के खारिया खाबड़ के पास बस गए थे। तेजाजी के पूर्वज भी नागवंश की श्वेतनाग शाखा के वंशज थे। मध्य भारत में इनके कुल पाँच राज्य थे- 1. खिलचिपुर, 2. राघौगढ़, 3. धरणावद, 4. गढ़किला और 5. खेरागढ़
राजनैतिक कारणों से इन धौलियों से पहले बसे कालाओं के एक कबीले के साथ तेजाजी के पूर्वजों का झगड़ा हो गया। इसमें जीत धौलिया जाटों की हुई। किन्तु यहाँ के मूल निवासी काला (जायलों) से खटपट जारी रही। इस कारण तेजाजी के पूर्वजों ने जायल क्षेत्र छोड़ दिया और दक्षिण पश्चिम ओसियां क्षेत्र व नागौर की सीमा क्षेत्र के धोली डेह (करनू) में आ बसे। यह क्षेत्र भी इनको रास नहीं आया। अतः तेजाजी के पूर्वज उदय राज (विक्रम संवत 1021) ने खरनाल के खोजा तथा खोखर से यह इलाका छीनकर अपना गणराज्य कायम किया तथा खरनाल को अपनी राजधानी बनाया। पहले इस जगह का नाम करनाल था। यह तेजाजी के वंशजों के बही भाट भैरू राम डेगाना की बही में लिखा है।
तेजाजी के पूर्वजों की लड़ाई में काला लोगों की बड़ी संख्या में हानि हुई थी। इस कारण इन दोनों गोत्रों में पीढ़ी दर पीढ़ी दुश्मनी कायम हो गई। इस दुश्मनी के परिणाम स्वरूप जायलों (कालों) ने तेजाजी के इतिहास को बिगाड़ने के लिए जायल के खींची से संबन्धित ऊल-जलूल कहानियाँ गढ़कर प्रचारित करा दी । जिस गून्दल राव खींची के संबंध में यह कहानी गढ़ी गई उनसे संबन्धित तथ्य तथा समय तेजाजी के समय एवं तथ्यों का ऐतिहासिक दृष्टि से ऊपर बताए अनुसार मेल नहीं बैठता है।
बाद में 1350 ई. एवं 1450 ई. में बिड़ियासर जाटों के साथ भी कालों का युद्ध हुआ था। जिसमें कालों के 27 खेड़ा (गाँव) उजाड़ गए। यह युद्ध खियाला गाँव के पास हुआ था।
[पृष्ठ-159]: यहाँ पर इस युद्ध में शहीद हुये बीड़ियासारों के भी देवले मौजूद हैं। कंवरसीजी के तालाब के पास कंवरसीजी बीड़ियासर का देवला मौजूद है। इस देवले पर विक्रम संवत 1350 खुदा हुआ है। अब यहाँ मंदिर बना दिया है। तेजाजी के एक पूर्वज का नाम भी कंवरसी (कामराज) था।
Distribution in Rajasthan
In Rajasthan they are known as Kalirawna or Kalirawan and found in Sikar district of Rajasthan. Kala gotra people live in Jawahar Nagar (Jaipur).
Villages in Sikar district
Basdi, Beri, Chachiwad Bara, Dhani Jodhawali, Hamirpura, Khandela Mod,
Villages in Nagaur district
Kala Jats live in:
Badoo, Balaya, Bansra Nagaur, Deediya Kalan, Gotan, Kaliya Bas, Kharda, Kharnal (1), Mundiyar, Nimbari Kalan, Rol (1), Sheelgaon, Thirod,
Villages in Jodhpur district
Villages in Pali district
Villages in Tonk district
Kala Jats live in villages:
Bhairupura (3), Jhirana (5), Kachaulya (1), Kala ki Dhani (10), Tordi
Kaliramna Jats live in villages:
Villages in Jaipur district
Kala Jats live in villages:
Kishanpura Dudu, Kudiyon Ka Bas, Madhorajpura (5), Mandap (1),
Locations in Jaipur city
Chandi ki Taksal,
Distribution in Maharashtra
Villages in Jalgaon district
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Khargone district
Villages in Indore district
Pardeshipura (a locality in Indore city)
Villages in Ujjain district
Villages in Rajgarh district
Notable persons
- Jetha Ram Kala (चौधरी जेठाराम काला), from Balaya (बलाया), Nagaur, was a social worker in Nagaur, Rajasthan.[17]
- Karma Ram Kala - DCF Rajasthan, VPO.- Sheelgaon, Teh.-Nagaur, 2.Tara Nagar, Near Khirani Phatak, Jaipur. Phone: 01582-242049, Mob: 9414444587
- Sukh Ram Kala - Assistant Conservator of Forests in Rajasthan. From village Balaya, Nagaur. Mob - 7014340354, 9414223131.[18]
External links
References
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-278.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-278.
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX,p.695
- ↑ An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan By H. W. Bellew, 1891, p.17,25,28,116
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV, p.341
- ↑ Dilip Singh Ahlawat: Jat Viron Ka Itihas
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya etc, : Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998, p. 229
- ↑ डॉ पेमाराम: राजस्थान के जाटों का इतिहास, 2010, पृ.19
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.170
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III,p.242
- ↑ Sant Kanha Ram:Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.62-63
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania, Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, Agra, 2004, p. 14
- ↑ राजस्थान के जाटों का इतिहास, 2010, पृ.19
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-248
- ↑ डॉ पेमाराम: राजस्थान के जाटों का इतिहास, 2010, पृ.24-25
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.157-159
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.187
- ↑ Jat Samaj, Nov 2009,p.35
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