Parasauli
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Parasauli (पारासौली) is a village near Vrindavana in Mathura district. It lies about one-and-a-quarter miles south-east of Govardhana Town in the lowlands of Govardhana.
Variants
- Paramarasasthali/Parama Rasasthali परमरासस्थली, दे. Parasauli पारासोली, (AS, p.531)
- Parasauli पारासौली, जिला मथुरा, उ.प्र., (AS, p.552)
- Mahmadpur (महमदपुर)
History
This is the place of the spring Raas Leela of Krishna and His beloved gopis. This raas continued for an entire night of Brahma. Because this raas leela took place in the light of a brilliant full moon, this place is also called Chandra Sarovar. “the lake of the moon”. In the south-western corner of the Sarovar is the Shringar Temple where Krishna decorated Shri Radharani.
Near the Sarovar under a chakora tree is the sitting-place of Shri Vallabhacharya. The Kunda and samadhi of Surdas or Soordas, known simply as Sur-kund and Sur-samädhi, are also in this area.
Surdas was a natural poet. His collection of poems is famous as Sur-sagar or Sur-padavali. Although he was blind, he would compose poems that beautifully described the different outfits and decorations of Shri Nath Ji. One day, the priest did not dress Shri Nath Ji and left Him completely naked. He opened the doors of the altar and asked Surdas to describe Shri Nath’s decorations. Surdas remained silent for a few moments, but the priest insisted. Surdas laughed loudly and proceeded to sing, “Aj bhaye hari nangam nanga – today, Hari is undressed and naked.” All present were stunned to hear this.
Surdas spent his last days in Parasauli. One day, Shri Vitthalachaya, the son of Shri Vallabhacharya, asked him, “Sur, what are you thinking about?” Surdas then composed his last song: “Khanjan nain roop ras mate, atishay charu chapal aniyare pal pinjara na samate" – Krishna’s beautiful eyes are like Khanjan birds. They are full of rasa, very restless, and slightly reddened due to intoxication. My life can no longer remain encaged in this body.” Saying this, he left his body. With tear-filled eyes, Shri Vitthalachaya said, “The boat of pushti-marga has departed today.”
In the south-eastern part of Parasauli is Sankarshan-Kunda, on whose bank is a temple of Shri Baladeva.
Mahmadpur
Mahmadpur is a Village in Govardhan Block in Mathura District of Uttar Pradesh State, India. It belongs to Agra Division . It is located 23 KM towards west from District head quarters Mathura. 3 KM from Govardhan. 410 KM from State capital Lucknow. Mahmadpur Pin code is 281502 and postal head office is Goverdhan . Govardhan ( 2 KM ) , Anore ( 3 KM ) , Pentha ( 3 KM ) , Pali Brahmnan ( 3 KM ) , Jatipura ( 3 KM ) are the nearby Villages to Mahmadpur. Mahmadpur is surrounded by Mathura Block towards East , Deeg Block towards west , Chaumuha Block towards North , Kumher Block towards South . Mathura , Vrindavan , Bharatpur , Nagar are the near by Cities to Mahmadpur. This Place is in the border of the Mathura District and Bharatpur District. Bharatpur District Deeg is west towards this place . It is near to the Rajasthan State Border. [1]
पारसौली
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ... पारासौली, जिला मथुरा, उ.प्र., (AS, p.552): गोवर्धन की तलहटी में गोवर्धन ग्राम से लगभग एक सवा मील अग्निकोण में परासौली ग्राम है। मथुरा के निकट महाकवि सूरदास का निवासस्थान है। इनका जन्म रूनकता ग्राम में हुआ था किंतु कहा जाता है कि ये प्राय: पारासौली ही में रहते थे और यहीं इन्होंने अपनी अधिकांश अमृतमयी रचनाएं की थी। श्री वल्लभाचार्य के मत में पारासौली ही मूल वृन्दावन है। कहा जाता है कि पारासौली शब्द परम रासस्थली से बिगड़कर बना है।
पारसौली परिचय
मुग़ल काल में मुसलमानों ने गाँव का नाम बदलकर महम्मदपुर रख दिया था। यह कृष्ण एवं उनकी प्रियतमा गोपियों की वासन्ती रासलीला का स्थल है । यहाँ पर ब्रह्माजी की एक रात तक रास हुआ, परन्तु ऐसा प्रतीत हुआ मानो ब्रह्माजी की वह रात भी कुछ क्षणों में ही बीत गई । आकाश में चन्द्र भी रासलीला को देखकर स्तम्भित हो गये तथा सारी रात टस से मस नहीं हुए। उनकी पूर्ण ज्योत्स्नामयी किरणों के प्रकाश में रास होता रहा। इसलिए इसे चन्द्रसरोवर भी कहते हैं । सरोवर के नैऋत्यकोण में श्रृंगार मन्दिर है, जहाँ कृष्ण ने स्वयं श्रीमती का श्रृंगार किया था ।
सरोवर के पास ही छोंकर वृक्ष के नीचे श्रीवल्लभाचार्य जी की बैठक है । उसी के समीप सूरकुटी और सूर–समाधि श्रीवल्लभाचार्यजी की बैठक में ही स्थित है । सूरदास जन्मजात कवि थे, इनकी पदावलियों का संग्रह सूरसागर या सूरपदावली के नाम से प्रसिद्ध है । सूरदास जी अन्धे होते हुए भी श्रीनाथजी का जैसा श्रृंगार होता, ठीक वैसे ही पद की रचना कर उसका सरस वर्णन करते थे, एक दिन पुजारीजी ने श्रीनाथजी को बिल्कुल नंगे रखकर मन्दिर के पट खोल दिये एवं सूरदास को उनके श्रृंगार का वर्णन करने को कहा। सूरदास कुछ क्षण तक मौन खड़े रहे। किन्तु पुजारी जी के बार–बार पूछने पर सूरदास जी बड़े ज़ोर से हँसे, और यह गाना आरम्भ किया – आज भये हरि नंगम नंगा। सूरदास का यह पद सुनकर सभी लोग स्तब्ध हो गये।
अपने अन्तिम दिनों में वे पारसौली में ही थे। श्रीगोसांईजी ने पूछा– सूर ! तुम क्या चिन्ता कर रहे हो ? सूरदास जी ने अन्तिम पदावली के रूप में गाते–गाते अपने प्राणों को छोड़ दिया– खंजन नैन रूप रस माते, अतिशय चारू चपल अनियारे पल पिंजरा न समाते गोसाई जी ने अश्रुपूरित नेत्रों से कहा– आज पुष्टिमार्ग का जहाज़ चला गया । पारसौली के अग्निकोण में संकर्षण–कुण्ड है, उसके तट के ऊपर श्रीबलदेवजी का मन्दिर है ।
संदर्भ: भारतकोश-पारसौली