Preet

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बेधङक का हवाई जहाज
लेखक
पृथ्वीसिंह बेधङक



करो आपस मे प्रीत


करो आपस मे प्रीत

आपस में लङने का अब तो जमाना गया बीत


जिस जाति ओर मुल्क में आपस में प्यार रहे

इस के साथ साथ अगर धार्मिक विचार रहे

फ़िर तो उसके पैरों नीचे सारा ही संसार रहे

अमरीका जापान रहे तिब्बत ओर तातार रहे

जर्मन ओर ईरान रहे काबुल ओर गन्धार रहे

आबो जमजम काबा रहे पेरिस का बाजार रहे

सारी दुनियाँ भर में उसके नाम का दरबार रहे


गावे जमाना गीत


जिस जाति ओर मुल्क में आपस में लङाई रहे

सारी दुनियाँ भर में उनका कोई ना सहाई रहे

सबसे पहले उनके घर में लक्ष्मीं की सफ़ाई रहे

चबूतरे पे उनकी बिछी अकेली ही चारपाई रहे

बात चीत कर ने वाला उस के पास नाई रहे

नाई के अलावा उसकी घर वाली लुगाई रहे


बाकी सब विपरीत


झाङू की ना एक सीक छ्टंकी धकेल सके

बनकर के बुहारी उन की धङे बगेल सके

सारी हिन्दुस्तान की जातियों को मेल सके

कोई मुल्क ताकत भारत की ना झेल सके

अकलमंद खिलाङी चौपङ मिल के खेल सके

मुर्खता में आके अगर इकली सार पेल सके


कभी ना होगी जीत


वेद के अनुकूल चलो आपस में मेल करो

वेद के विरोधियों को जमाने में फ़ेल करो

कहें पृथ्वीसिंह अपने मनों को दलेल करो


मत रहना भयभीत



Digital text (Wiki version) of the printed book prepared by - Vijay Singh विजय सिंह

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