Purkha Ram Mirdha

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Purkha Ram Mirdha

Purkha Ram Mirdha (1941 - 07.10.2017) was a teacher and social worker of repute from village Kuchera in Nagaur tahsil of Nagaur district in Rajasthan.

पुरखारामजी मिर्धा का जीवन परिचय

एक आदर्श शिक्षक स्व.श्री पुरखारामजी मिर्धा

श्री पुरखाराम मिर्धा का जन्म सन 1941 में गांव कुचेरा, नागौर के एक साधारण परिवार में हुआ था। आपके पिताजी श्री रामनाथजी मिर्धा एक साधारण किसान थे और आपकी माताजी श्रीमती गंगा देवीजी नागौर के सबसे मजबूत पंचायती गांव ईनाणा की बेटी थी। अतः आपका बाल्यकाल रूपासर ढाणी ईनाणा में बीता था।

शिक्षा

आपकी प्रारंभिक शिक्षा कुचेरा जिला नागौर मैं हुई, यह आजादी के दौर की बात थी जिसमे किसानों के परिवार में शिक्षा की अलख जगाने वाले किसान मसीहा श्री बलदेवरामजी मिर्धा से प्रेरणा पाकर आपका परिवार शिक्षा के प्रति पहले से ही जागरूक हो चुका था।आपके पिताजी हालांकि सामान्य किसान थे और आपने बचपन से ही खेती किसानी में उनका हाथ बंटाया लेकिन आपके ताऊजी/बड़े पिताजी उस समय राजस्थान पुलिस में उप निरीक्षक के पद पर कार्यरत थे जो बेहद ईमानदार और आध्यात्मिक इंसान थे। उनका जीवन बाला सत्तीजी रूपकंवर,रामस्नेही संप्रदाय के संत गुलाबदासजी महाराज (नोखा चांदावता) और मूर्तिरामजी महाराज (भादवासी) जैसे संतो के सानिध्य में बीता था। परिणामस्वरूप ईमानदारी, अध्यात्मिक और अनुशासन की प्रेरणा आपको अपने ताऊजी श्री हरदीनरामजी मिर्धा और दादाजी श्री जगन्नाथजी मिर्धा दोनो से मिली थी।

आपने दसवीं कक्षा में अंग्रेजी विषय मे grace marks से पास होने के बावजूद अंग्रेजी विषय को चुनौती के रूप में लिया और स्व.रामनिवासजी मिर्धा जो जिनेवा से एलएलएम करके आए उनसे प्रभावित होकर आपने अंग्रेजी सीखने का प्रण लिया। आप आगे की शिक्षा के लिए 1958 में डीडवाना, नागौर चले गए और वहाँ से आपने 1962 में अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की।आपने अंग्रेजी सीखने के लिए 2 नियम बनाए..

1. रोजाना दस नए शब्द(words) सीखना

2. रेडियो पर अंग्रेजी में न्यूज सुनना(बीबीसी हिंदी सेवा)

शुरुआत में रेडियो गांव के एक सेठजी के पास हुआ करता था तो आप उनकी दुकान पर जाकर उनसे निवेदन करते थे की वो आपके लिए BBC लंदन कार्यक्रम चला दे।

1964 में आप आगे की शिक्षा के लिए जोधपुर गए और वहां से आपने अपनी MA (English Literature) में अपनी डिग्री पूरी की।

सरकारी सेवक

1967 में आपने पहली बार सरकारी सेवक के रूप में उस समय सुपरवाइजर (Sheep and Wool Department) के रूप में नियुक्ति पाई। नियुक्ति मिलते ही आपने सबसे पहले अपना खुद का एक रेडियो खरीदा और रोज सुबह बीबीसी की हिंदी सेवा जिसमे पहले अंग्रेजी और बाद में वही समाचार हिंदी में सुनाए जाते थे, उसको अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाया। लेकिन आपका झुकाव हमेशा पढ़ने पढ़ाने यानी शिक्षा के प्रति था और इसके लिए ईश्वर ने आपको मौका दिया। 1970 के आसपास Sheep and Wool Department में सरप्लस कर्मचारियों को अन्य विभागों में नियुक्ति दी जाने लगी तो जहाँ आपके कुछ अन्य साथियों ने कर विभाग और अन्य विभागों को चुन लिया। लेकिन आपने शिक्षा विभाग को चुना और पहली नियुक्ति आपको अंग्रेजी शिक्षक (IInd ग्रेड) जायल, नागौर में मिली।

शिक्षा विभाग में नियुक्ति

हालांकि परिवारिक परिस्थितियों की वजह से आपने अपनी B.ED.काफी बाद में की लेकिन बीएड करते ही आपने सीधे प्रधानाध्यापक की परीक्षा पास करके नियुक्ति पा ली और आप अपने गांव कुचेरा में प्रधानाध्यापक रहे। आपने उस समय कुचेरा स्कूल की काया पलटने की शुरुआत की। उस समय के शिक्षकों और आपकी मेहनत ने उस स्कूल को जिले का अग्रणी स्कूल बना दिया। उस समय के आपके विधार्थी अभी भी बहुत उच्च पदों पर आसीन हैं। ग्रामीण विधार्थियों के लिए किसान छात्रावास और कुचेरा स्कूल छात्र और गर्ल्स स्कूल के लिए तत्कालीन राजस्व मंत्री श्री परसरामजी मदेरणा से 75 बीघा जमीन आवंटन करवाना उस वक्त की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है।

आपके अंग्रेजी पढ़ाने का मारवाड़ी तरीका आज भी उस समय के आपके विधार्थी याद करते हैं जिसमे सबसे रोचक सवाल - "धापुड़ी थेपड़िया थापे" की अंग्रेजी बनवाना जैसे सवाल होते थे। उस वक्त भी आपका ग्रामीण क्षेत्र के विधार्थियो के लिए अतिरिक्त क्लास स्कूल में लगवाने का आपका मॉडल अनूठा रहा है।

इसके बाद आपने मेड़ता, नागौर में उप जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर कार्य किया जिसमें आप हमेशा किसान छात्रावास जाकर अंग्रेजी विषय की क्लास बिना कोई शुल्क के लेते थे। मेड़ता क्षेत्र के उस समय के शिक्षक और छात्र आज भी आपके शिक्षा क्षेत्र में किए गए अनूठे प्रयोग एवं योगदान को याद करते हैं।

मेड़ता के बाद आपने जिला परिषद नागौर में कुछ समय के लिए नियुक्ति ली और 1991 में पुनः अपनी जन्मभूमि कुचेरा में सीनियर स्कूल के प्रिंसिपल बनकर आए। उस समय कुचेरा स्कूल में कला, विज्ञान,गणित,एग्रीकल्चर,कॉमर्स संकाय जैसे सभी शिक्षकों की अपनी रुचि लेकर नियुक्ति करवाना और उनको चलाने की वजह से कुचेरा स्कूल जिले का सरकारी शिक्षा का हब माना जाने लगा। उस समय नागौर जिले की शिक्षा में प्राइवेट प्लेयर्स नही थे। इसी वजह से दूर-दूर से विधार्थियों ने आकर स्कूल में प्रवेश लिया और आज भी वह कई डॉक्टर और अन्य बड़े अधिकारी पदों को सुशोभित कर रहे है।

आप जब प्रिंसिपल पद पर थे तो अनुशासन इस कद्र था की समय पर सारे कालांश चलते थे और अगर कोई शिक्षक क्लास में नही जाकर बातचीत में मशगूल होता तो आप उस कक्षा में जाकर पढ़ाने लगते थे। इससे उस शिक्षक को खुद ही महसूस होता और वो आगे से नियमित कक्षाएं लेने लगते थे।

शिक्षक सम्मान

1994 में आपको आपकी शैक्षिक योग्यता और असाधारण योगदान के लिए राज्यस्तर पर राजस्थान के महामहिम राज्यपाल महोदय द्वारा शिक्षक सम्मान से सुशोभित किया गया था।

1994 में ही आपका प्रमोशन जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर हुआ और आपको राजस्थान के सीमावर्ती जिले बाड़मेर का भार सौंपा गया। आप बाड़मेर जिले में सन् 1994 से 1999 में सेवानिवृत्ति तक वहीं पदस्थ रहे। उस समय के साक्षरता अभियान के अहम हिस्सा रह कर आपने जिले के हर गांव और ढाणी में दौरा किया। सतत् साक्षरता समिति, जिसके अध्यक्ष जिला कलेक्टर होते थे, आप उसके सचिव के रूप में अहम किरदार निभाते हुवे जिले में जन जागरण और अन्य माध्यमों से जिले को साक्षरता अभियान में अग्रणी बनाया।

सामाजिक सेवा

1999 में सेवानिवृत्त होने से पूर्व ही तत्कालीन गृह राज्यमंत्री राजस्थान सरकार श्री भंवरसिंहजी डांगावास ने आपको अपने बालिका शिक्षा के ऐतिहासिक प्रोजेक्ट तेजास्थली के साथ जुड़ने के लिए मना लिया था हालांकि आपने सेवानिवृत्ति के बाद भी तत्कालीन बाड़मेर कलेक्टर श्री आरएन अरविंदजी के आग्रह पर राजस्थान सरकार को एक महीने बिना वेतन के सेवा दी जो अपने आप में एक अलग किस्म का उदाहरण था।

आप बाड़मेर से आते ही वीर तेजा महिला शिक्षण और शोध संस्थान, मुण्डवा के प्रथम निदेशक बने और आजीवन अवैतनिक सेवाए प्रदान की। ग्रामीण और महिला शिक्षा को समर्पित नागौर जिला मुख्यालय पर स्थित ग्रामोत्थान विद्यापीठ के भी आप निदेशक भी रहे जहाँ पर वेतन में मिली राशि को हर महीने वही संस्थान में दान कर दी जाती थी। वीर तेजास्थली संस्थान, मूण्डवा में तो आप अपनी आखिरी सांस 2017 तक अवैतनिक रूप से विभिन्न जिम्मेदारियों निदेशक, प्रशासक और परामर्शदात्री समिति के अध्यक्ष के रूप सेवाए देते रहे हैं।

इसके अलावा माडीबाई मिर्धा महिला महाविद्यालय व छात्रावास, नागौर में श्री रामनिवासजी मिर्धा ने आपको भवन निर्माण समिति में सदस्य की जिम्मेदारी सौंपी। बाद में राज्य सरकार से लंबे समय तक बलदेवराम मिर्धा महाविद्यालय नागौर से मैनेजमेंट में सदस्य के रूप में नामित रहे थे।

कुचेरा गांव में स्थित सरकारी बालिका स्कूल में जहां अंग्रेजी के शिक्षक नियुक्त नही थे वहाँ आपने नियमित रूप से 4 कालांश बिना किसी वेतन से लिया करते थे। इससे स्कूल जहाँ गरीब और मध्यम परिवार की बच्चियां पढ़ाई करती थी वहाँ का माहौल ही बदल गया। आपके जिला शिक्षा अधिकारी जैसे पद से सेवानिवृत होकर भी बिना वेतन के 4 नियमित कालांश लेने से दूसरे पदस्थ अध्यापक भी पूरे मनोयोग से कार्य करने लगे थे।

उनके आदर्श जीवन काल से यह लगता है कि चाहे वो किसी भी पद या कार्यालय में रहे लेकिन वो हमेशा एक शिक्षक बने रहे और उनके अंदर का शिक्षक उनसे किसी भी भूमिका में अलग नही हो पाया।

"टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार" प्रतिदिन उनके लिए अजमेर से रोडवेज की बस में आता था और उसको पूरा पढ़े बगैर उनकी दिनचर्या अधूरी थी।

उनके सामाजिक योगदान के लिए 2009 में अखिल भारतीय जाट सभा ने पुष्कर में सम्मानित किया गया।

बहुत ही स्वस्थ व्यक्तित्व के धनी 6.2' फीट लम्बाई और मजबूत कद काठी के ऐसे शिक्षक जिसकी जरूरत जिले की 4 शिक्षण संस्थानों में मार्गदर्शन के अलावा अन्य सामाजिक मंचो को थी वो आखिरकार 7 सितंबर 2017 को गांव के ही प्राचीन शिवालय, जहाँ वो नियमित रूप से पिछले 55 सालो से जाते थे, की सीढ़ियों पर चक्कर आने से गिर गए और ऐसी चोट लगी कि उनका सर्वाइकल कार्ड डैमेज हो गया और एम्स जोधपुर में एक महीने तक पूरे प्रयासों के बावजूद 7 अक्टूबर 2017 को इस दुनिया को अलविदा कह कर चले गए। यह पूरे शिक्षा जगत की इतनी बड़ी क्षति है कि इसकी पूर्ति कर पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन है।

हमारी मनोकामना है कि ईश्वर ऐसी महान आत्मा को अपनी शरण प्रदान करे। अंत में बाड़मेर के किसान संघ और छात्रावास में उनको दिए गए सम्मान पत्र में उनके बारे में अंकित वाक्यों को यहां दोहराना संदर्भित होगा.......

"बाड़मेर के शिक्षा जगत में,छाया रहा बस एक ही नाम।
साक्षरता के अग्रदूत व आखरमित्र,
वह शख्स है श्रीमान पुरखाराम मिर्धा।
मरुधरा की गांव गली में याद रहेंगे आपके काम।
किसान सपूत, है कर्मयोगी आपको पुन नमन. करते कोटिश प्रणाम||

लेखक - बलवीर खोजा (सांख्यिकी अधिकारी), पालड़ी जोधा, मूण्डवा, मो.9414538581

संदर्भ