Rai Gwalior
(Redirected from Raee)
Rai (रई) (Raee) is a village in Gwalior tahsil of Gwalior District in Madhya Pradesh.
Location
Village - Rai (Ratwai) राई (रतवाई), Block Morar Tehsil/District Gwalior MP. Rai Pin code is 474006 and postal head office is Morar. Nearby village: Ratwai, Soni, Sunarpura Udaypura, Dhaneli, Banarpura, Bijoli , Mugalpura ,Berja are the nearby Localities to Rai. Gwalior , Dabra , Morena , Porsa are the nearby Cities to Morar.[1]
Jat Gotras
- Singholiya (सिंघोलिया)
- Bamaroliya (बमरोलिया)
- Banswan (बांसवान)
- Dhadhariya (ढढारिया)
- Kheinwar (खैनवार)
History
Notable persons
- ठाकुर मजबूतसिंह - आप रई गांव के रईस हैं। आप का गोत्र खेनवार है। आप दो भाई हैं। छोटे भाई मनुलाल जी हैं। आप एक अनुभवी पुरुष हैं और शिक्षित भी हैं। छोटे भाई की प्रतिभाएं लोग मानते हैं। आप की अवस्था इस समय 44-45 साल के लगभग होगी। आप ग्वालियर राज्य जाट कांफ्रेंस के कोषा अध्यक्ष और सदस्य हैं। आपके भाई के पुत्र नरेंद्रसिंह ने मैट्रिक पास कर लिया है। आपके पुत्र देवेंद्रसिंह जी ने हिंदी की मध्यम श्रेणी तक शिक्षा प्राप्त की है। सभा के कामों में आप काफी दिलचस्पी लेते हैं और नरेंद्रसिंह इस समय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं। [2]
- ठाकुर पोषनसिंह - [पृ.573]: आप भी रई के रहने वाले हैं। गोत्र आपका खेनवार है। आप दो भाई हैं। बड़े भाई प्रीतमसिंह जी हैं। आज से लगभग 25 वर्ष पहले रई के ठाकुर जुझारसिंह जी के घर आपका जन्म हुआ। पिताजी के असामयिक देहावसान के कारण आपने मेट्रिक से पढ़ना छोड़ दिया। इस समय आप ग्वालियर राज्य जाट सभा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। इससे पहले आप उपमंत्री भी रह चुके हैं। आप एक उत्साही नौजवान हैं। भाई आप तीन हैं। यहीं के रहने वाले एक दूसरे जाट सज्जन ठाकुर मुन्नालाल जी हैं जो कोमी कामों में पूरी दिलचस्पी लेते हैं।[3]
- Devendra Singh Sarpanch
- Mahendra Singh
- Chandan Singh
- Mangal Singh
- Birendra Singh
- Govind Singh
- Javahar Singh
- Mahendra Singh
- Gandharv Singh
- Uday Bhan Singh
- Govind Singh S/O- Babu Singh Banswan
External links
Author
Source - Ranvir Singh from Gwalior via WhatsApp Mob.94251 37463
References
- ↑ http://www.onefivenine.com/india/villages/Gwalior/Morar/Rai
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.570
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.573
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