Rishi

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बेधङक का हवाई जहाज
लेखक
पृथ्वीसिंह बेधङक



ऋषि दयानन्द


ऋषि से पहले कितना था अन्धकार


साढे पॉंच हजार साल से आर्य जाति सोती थी

बच्चों की ओर बुढ्ढों की भारत में शादी होती थी

आठ पहर घर के अन्दर जो ऑंसू से मुँह धोती थी

बहू बेचारी रंडी बनकर करम धरम सब खोती थी

कितनी उठकर आधी रात जा कुऑं झेरा टोहती थी

किसी गैर की नहीं खास वह राम कृष्ण की पोती थी


स्त्री जाति के ऊपर होता अतुलित अत्याचार


वेद कि विद्या छूट गै सब अठारह पुराण मानते थे

पुराण के ज्ञाता अपने को ब्राह्मण विद्वान मानते थे

उन्हीं ब्राह्मणों को दुनियाँ में सब यजमान मानते थे

मोक्ष का द्वार गंगा यमुना का स्नान मानते थे

आर्यावर्त देश अपने को हिन्दुस्तान मानते थे

मन्दिर ओर शिवालय के अन्दर भगवान मानते थे

पोप ने जो कुछ कह डाली सब इन्सान मानते थे


मुसलमान ईसाईयों का जब बैठ गया था तार


रोज़ विधर्मियों के द्वारा हिन्दूओं की चोटी कटती थी

शुद्धी करने की खातिर यह हिन्दू जाति नटती थी

हर मरदमशुमारी में यहाँ कृष्ण की जाते घटती थी

मुर्दा था न जिन्दा अध बिच में रोज लटकती थी

काशी मथुरा प्रयाग में जाकर के विधवा डटती थी

रेत के गर्भ में दबके नित पोप की माला रटती थी


फ़िर भी पोप बने रहते थे धर्म के ठेकेदार


बीस साल के जवान डरते भूत ओर प्रेत मसानी से

भंगी ओर चमार तरसते खङे कुऎ पर पानी से

अपने को ना दूर करते ना परहेज था मुसलमानी से

रामदास प्यासा रौवे पर कुछ ना कही रमजानी से

अल्लादेई पानी भरती लङें थी रोज़ खजानी से

हिन्दू जाति तुझे छुङाया आकर तेरी नादानी से


पृथ्वीसिंह बेधङक ऋषि का हुआ महान उपकार



Digital text (Wiki version) of the printed book prepared by - Vijay Singh विजय सिंह

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