Lumbini
Author: Laxman Burdak लक्ष्मण बुरड़क |
Lumbinī (लुम्बिनी), meaning "the lovely", is a Buddhist pilgrimage site in the Rupandehi district of Nepal, near the Indian border. It is the place where Queen Mayadevi is said to have given birth to Siddhartha Gautama, who as the Gautama Buddha founded the Buddhist tradition. The Buddha lived between roughly 563 and 483 BCE. Lumbini is one of four magnets for pilgrimage that sprang up in places pivotal to the life of the Buddha, the others being at Kushinagar, Bodh Gaya, and Sarnath.
Variants
- Lumbinigrama लुंबिनीग्राम, नेपाल, (AS, p.819)
Location
Lumbini is in the foothills of the Himalaya, 25 km east of the municipality of Kapilavastu, where the Buddha is said to have lived till the age of 29. Kapilvastu is the name of the place in question as well as of the neighbouring district.
Monuments
Lumbini has a number of temples, including the Mayadevi temple, and others under construction. Also here is the Puskarini or Holy Pond - where the Buddha's mother took the ritual dip prior to his birth and where he, too, had his first bath - as well as the remains of Kapilvastu palace. At other sites near Lumbini, earlier Buddhas were, according to tradition, born, achieved ultimate awakening and finally relinquished earthly form.
A pillar now marks the spot of Asoka's visit to Lumbiní. According to an inscription on the pillar, it was placed there by the people then in charge of the park to commemorate Asoka's visit and gifts.
World Heritage Site
Lumbini, as of 1997, is an UNESCO World Heritage Site specifically nominated for the international World Heritage program.
लुंबिनीग्राम
विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ... लुंबिनीग्राम, नेपाल, (AS, p.819): शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट उत्तर प्रदेश के 'ककराहा' नामक ग्राम से 14 मील और नेपाल-भारत सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अन्दर रुमिनीदेई नामक ग्राम ही लुम्बनीग्राम है, जो गौतम बुद्ध के जन्म स्थान के रूप में जगत प्रसिद्ध है। नौतनवां स्टेशन से यह स्थान दस मील दूर है।
बुद्ध का जन्म: बुद्ध की माता मायादेवी कपिलवस्तु से [p.820]: कोलियगणराज्य की राजधानी देवदह जाते समय लुम्बनीग्राम में एक शालवृक्ष के नीचे ठहरी थीं (देवदह में माया का पितृगृह था), उसी समय बुद्ध का जन्म हुआ था।
जिस स्थान पर बुद्ध का जन्म हुआ था, वहाँ पर बाद में मौर्य सम्राट अशोक ने एक प्रस्तरस्तम्भ का निर्माण करवाया। स्तम्भ के पास ही एक सरोवर है जिसमें बौद्ध कथाओं के अनुसार नवजात शिशु को देवताओं ने स्नान करवाया था। यह स्थान अनेक शतियों तक वन्यपशुओं से भरे हुए घने जंगलों के बीच छिपा पड़ा रहा। 19वीं शती में इस स्थान का पता चला और यहाँ स्थित अशोक स्तम्भ के निम्न अभिलेख से ही इसका लुम्बनी से अभिज्ञान निश्चित हो सका- 'देवानं पियेन पियदशिना लाजिना वीसतिवसाभिसितेन अतन आगाच महीयते हिदबुधेजाते साक्यमुनीति सिलाविगड़भी चाकालापित सिलाथ-भेच उसपापिते-हिद भगवं जातेति लुम्मनिगामे उबलिके कटे अठभागिए च'
अर्थात् देवानांमप्रिय प्रियदर्शी राजा (अशोक) ने राज्यभिषेक के बीसवें वर्ष यहाँ पर आकर बुद्ध की पूजा की। यहाँ शाक्यमुनि का जन्म हुआ था, अतः उसने यहाँ शिलाभित्त बनवाई और शिला स्तम्भ स्थापित किया। क्योंकि भगवान बुद्ध का लुम्बिनी ग्राम में जन्म हुआ था, इसलिए इस ग्राम को बलि-कर से रहित कर दिया गया और उस पर भूमिकर का केवल अष्टम भाग (षष्ठांश के बजाए) नियत किया गया। इस स्तम्भ क शीर्ष पर पहले एक अश्व-मूर्ति प्रतिष्ठित थी जो अब नष्ट हो गई है। स्तम्भ पर अनेक वर्ष पूर्व बिजली के गिरने से नीचे से ऊपर की ओर एक दरार पड़ गई है।
युवानच्वांग की यात्रा: चीनी पर्यटक युवानच्वांग ने भारत भ्रमण के दौरान (630-645 ई.) में लुम्बनी की यात्री की थी। उसने यहाँ का वर्णन इस प्रकार किया है- 'इस उद्यान में सुन्दर तड़ांग है, जहाँ पर शाक्य स्नान करते थे। इसमें 400 पग की दूरी पर एक प्राचीन साल का पेड़ है। जिसके नीचे भगवान बुद्ध अवत्तीर्ण हुए थे। पूर्व की ओर अशोक का स्तूप था। इस स्थान पर दो नागों ने कुमार सिद्धार्थ को गर्म और ठंडे पानी से स्नान करवाया था। इसके दक्षिण में एक स्तूप है, जहाँ पर इन्द्र ने नवजात शिशु को स्नान करवाया था। इसके पास ही स्वर्ग के उन चार राजाओं के स्तूप हैं जिन्होंने शिशु की देखभाल की थी। इस स्तूपों के पास एक शिला-स्तूप था, जिसे अशोक ने बनवाया था। इसके शीर्ष पर एक अश्व की मूर्ति निर्मित थी।'
स्तूपों के अब कोई चिह्न नहीं मिलते। अश्वघोष ने बुद्धचरित 1,6 में लुम्बनी वन में बुद्ध के जन्म का उल्लेख किया है।(यह मूलश्लोक विलुप्त हो गया) बुद्धचरित 1,8 में इस वन का पुनः उल्लेख किया गया है- 'तस्मिन् वने श्रीमतिराजपत्नी प्रसूतिकालं समवेक्षमाणा, शय्यां वितानोपहितां प्रपदे नारी सहस्रै रभिनंद्यमाना।'
लुंबिनीग्राम का परिचय
बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. के आस-पास कपिलवस्तु के शाक्य क्षत्रिय कुल में हुआ था। रुमिनीदेई कपिलवस्तु से लगभग 15 किलोमीटर पूर्व में है। रुम्मिनदेई से प्राप्त अभिलेख से ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद यहाँ आया था। उसने यहाँ अर्चना की क्योंकि यह शाक्यमुनि की पावन जन्म स्थली है। उसने रुम्मिनदेई में एक बड़ी दीवार बनवायी और एक प्रस्तर स्तम्भ स्थापित कराया। इस अभिलेख में यह भी उल्लेख है कि उसने लुम्बिनी गाँव के धार्मिक कर माफ कर दिये और मालगुजारी के रूप में आठवाँ हिस्सा तय कर दिया।
लुम्बिनी का वर्णन चीनी यात्री फाहियान और युवानच्वांग ने भी किया है। फाहियान के अनुसार कपिलवस्तु से 50 ली (लगभग 14 किलोमीटर) पूर्व में लुम्बिनी वन था. युवानच्वांग ने इस स्थान पर उस स्तूप को देखा था, जिसे अशोक ने बनवाया था। सम्भवतः हूणों के आक्रमणों के पश्चात् यह स्थान गुमनामी के अँधेरे गर्त में समा गया। डॉ. फूहरर ने 1866 ई. में इस स्थान को खोज निकाला। तब से इस स्थान को बौद्ध जगत में पूजनीय स्थल के रूप में मान्यता मिली।
ग्रंथों में उल्लेख: पालि ग्रन्थों में बुद्ध के जन्मस्थान के तौर पर लुम्बनी के दो उल्लेख मिलते हैं, पहला नलक सुत्त में समाहित एक वर्णनात्मक कविता में और दूसरा कथावस्तु में। लेकिन जन्म के आरम्भिक विवरण संस्कृत ग्रन्थों, महावस्तु और ललितविस्तर (अध्याय सात) में हैं, दोनों को ही पहली या दसरी शताब्दी से पहले का नहीं माना जा सकता। एक अभिलेख की खोज से इस बात का पता चलता है कि इस स्थान पर तीसरी शताब्दी ई. पू. में भारत के मौर्य सम्राट अशोक आए थे और उन्होंने इसे बुद्ध का जन्मस्थान माना, लेकिन इससे यह सम्भावना बनती है कि यह दन्तकथा तीसरी शताब्दी ई. पू. से ही प्रचलित थी।
यह स्थान, जो नेपाल की राष्ट्रीय सीमा के भीतर है, एक बार फिर से बौद्ध तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
संदर्भ: भारतकोश-लुंबिनी