Rupandehi
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Rupandehi (रुपन्देही) is one of the seventy-seven districts of Nepal. The district headquarter is Siddharthanagar.
Origin
Rupandehi is named after Rupadevi, the queen of King Suddhodana,[1] the father of Siddhartha Gautama, who later became known as Buddha.
Variants
- Ruminidi (रुमिनीदी) दे. Lumbinigrama लुम्बिनिग्राम, (AS, p.798)
History
Lumbini, birthplace of Lord Buddha, lies in Rupandehi district. Devdaha, the birthplace of Mayadevi (mother of Lord Buddha) also lies in Rupandehi district.
Major Rivers in Rupandehi district
Rupandehi has many rivers all of which flow from Northern mountains towards south into India.
- Bagela River
- Danav River
- Danda River
- Ghodaha
- Kacharar River
- Kanchan River
- Khadawa
- Koili River
- Kothi River
- Rohini River
- Sukhaira River
- Tinau River
रुपन्देही - रुमिनीदी
राजा शुद्धोधन की रानी कोलिय वंश की राजकन्या रूपादेवी थी. शाक्य तथा कोलिय लोगों के लिए आने-जाने हेतु विश्राम स्थल का नाम रुपमा रानी रुपादेवी के नाम पर रखा. कालान्तर में उक्त शब्द अपभ्रंश होकर रुम्विनीदेई, रुमिनीदेई, रुमिनीदी हो गया. रानी रुपन्देही के नाम पर जिले का नाम रुपन्देही रखा गया है.[2]
लुंबिनीग्राम
विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ... लुंबिनीग्राम, नेपाल, (AS, p.819): शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट उत्तर प्रदेश के 'ककराहा' नामक ग्राम से 14 मील और नेपाल-भारत सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अन्दर रुमिनोदेई नामक ग्राम ही लुम्बनीग्राम है, जो गौतम बुद्ध के जन्म स्थान के रूप में जगत प्रसिद्ध है। नौतनवां स्टेशन से यह स्थान दस मील दूर है।
बुद्ध का जन्म: बुद्ध की माता मायादेवी कपिलवस्तु से [p.820]: कोलियगणराज्य की राजधानी देवदह जाते समय लुम्बनीग्राम में एक शालवृक्ष के नीचे ठहरी थीं (देवदह में माया का पितृगृह था), उसी समय बुद्ध का जन्म हुआ था।
जिस स्थान पर बुद्ध का जन्म हुआ था, वहाँ पर बाद में मौर्य सम्राट अशोक ने एक प्रस्तरस्तम्भ का निर्माण करवाया। स्तम्भ के पास ही एक सरोवर है जिसमें बौद्ध कथाओं के अनुसार नवजात शिशु को देवताओं ने स्नान करवाया था। यह स्थान अनेक शतियों तक वन्यपशुओं से भरे हुए घने जंगलों के बीच छिपा पड़ा रहा। 19वीं शती में इस स्थान का पता चला और यहाँ स्थित अशोक स्तम्भ के निम्न अभिलेख से ही इसका लुम्बनी से अभिज्ञान निश्चित हो सका- 'देवानं पियेन पियदशिना लाजिना वीसतिवसाभिसितेन अतन आगाच महीयते हिदबुधेजाते साक्यमुनीति सिलाविगड़भी चाकालापित सिलाथ-भेच उसपापिते-हिद भगवं जातेति लुम्मनिगामे उबलिके कटे अठभागिए च'
अर्थात् देवानांमप्रिय प्रियदर्शी राजा (अशोक) ने राज्यभिषेक के बीसवें वर्ष यहाँ पर आकर बुद्ध की पूजा की। यहाँ शाक्यमुनि का जन्म हुआ था, अतः उसने यहाँ शिलाभित्त बनवाई और शिला स्तम्भ स्थापित किया। क्योंकि भगवान बुद्ध का लुम्बिनी ग्राम में जन्म हुआ था, इसलिए इस ग्राम को बलि-कर से रहित कर दिया गया और उस पर भूमिकर का केवल अष्टम भाग (षष्ठांश के बजाए) नियत किया गया। इस स्तम्भ क शीर्ष पर पहले एक अश्व-मूर्ति प्रतिष्ठित थी जो अब नष्ट हो गई है। स्तम्भ पर अनेक वर्ष पूर्व बिजली के गिरने से नीचे से ऊपर की ओर एक दरार पड़ गई है।
युवानच्वांग की यात्रा: चीनी पर्यटक युवानच्वांग ने भारत भ्रमण के दौरान (630-645 ई.) में लुम्बनी की यात्री की थी। उसने यहाँ का वर्णन इस प्रकार किया है- 'इस उद्यान में सुन्दर तड़ांग है, जहाँ पर शाक्य स्नान करते थे। इसमें 400 पग की दूरी पर एक प्राचीन साल का पेड़ है। जिसके नीचे भगवान बुद्ध अवत्तीर्ण हुए थे। पूर्व की ओर अशोक का स्तूप था। इस स्थान पर दो नागों ने कुमार सिद्धार्थ को गर्म और ठंडे पानी से स्नान करवाया था। इसके दक्षिण में एक स्तूप है, जहाँ पर इन्द्र ने नवजात शिशु को स्नान करवाया था। इसके पास ही स्वर्ग के उन चार राजाओं के स्तूप हैं जिन्होंने शिशु की देखभाल की थी। इस स्तूपों के पास एक शिला-स्तूप था, जिसे अशोक ने बनवाया था। इसके शीर्ष पर एक अश्व की मूर्ति निर्मित थी।'
स्तूपों के अब कोई चिह्न नहीं मिलते। अश्वघोष ने बुद्धचरित 1,6 में लुम्बनी वन में बुद्ध के जन्म का उल्लेख किया है।(यह मूलश्लोक विलुप्त हो गया) बुद्धचरित 1,8 में इस वन का पुनः उल्लेख किया गया है- 'तस्मिन् वने श्रीमतिराजपत्नी प्रसूतिकालं समवेक्षमाणा, शय्यां वितानोपहितां प्रपदे नारी सहस्रै रभिनंद्यमाना।'