Saifpur Karamchandpur
Saifpur Karamchandpur(सैफपुर करमचंदपुर) is a village in Mawana tahsil of Meerut district in U.P.
Location
Gotras
History
सिखों के अंतिम व दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने 13 अप्रैल सन् 1699 ई. में बैसाखी पर्व के अवसर पर की थी। आनंदपुर साहिब के विशाल मैदान में हजारों सिखों की मौजूदगी में मंच लगाया गया था, जिसके पीछे तंबू लगाया गया था । गुरु गोविंद सिंह जी नंगी तलवार लेकर मंच पर आकर कहने लगे कि मुझे एक आदमी का सिर चाहिए। उसी समय लाहौर के दयासिंह गुरु के पास आए और अपना शीश देने की पेशकश की। गुरुजी उसको तंबू में अंदर लेकर गए और कुछ देर बाद खून से सनी तलवार को लेकर सभा के बीच मंच पर आए जिसे देखते ही सभा में सन्नाटा छा गया। सभा सन्न थी, तभी गुरु ने फिर से घोषणा की कि मुझे एक और आदमी का सिर चाहिए, कोई है जो मुझे अपना शीश दे सकता है। उसी समय हस्तिनापुर के धर्म सिंह दलाल आगे आए और अपना शीश गुरु को देने का आह्वान किया। गुरु इनको पकड़कर तंबू में ले गए इसी तरह सिलसिलेवार हिम्मत सिंह, मोक्कम सिंह और साहब सिंह ने एक के बाद एक ने आकर गुरु को पांच नौजवानों ने शीश दिए।
कुछ समय बाद गुरु गोविंद सिंह जी केसरिया परिधान में पांचों नौजवानों के साथ बाहर मंच पर आए। यह पांचों नौजवान वही थे, जिनके शीश काटने के लिए गुरु गोविंद सिंह जी उनको अंदर तंबू में लेकर गए थे। उन्होंने हजारों लोगों के समुह संबोधित करते हुए बताया कि यह सब कुछ जन भावनाओं को परखने के लिए किया गया था। आज से यह पांचों बहादुर नौजवान पंज प्यारे कहलाएंगे । सिखों में चली आ रही एक के बाद एक गुरु परंपरा का यह सिलसिला आज से बंद होगा और दस गुरुओं के बाद यही पंज प्यारे गुरु का स्थान लेंगे। इस प्रकार सिख धर्म को पंज प्यारे मिल गए जिनकी निष्ठा और समर्पण से खालसा पंथ की नींव पड़ी। वो अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष के प्रेरणास्रोत बने। गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करके नारा दिया था,"वाहे गुरु की खालसा वाहे गुरु की फतेह "। इन्हीं पंज प्यारों में दूसरे नंबर पर अपना नाम लिखवा कर धर्म सिंह जी अमर हो गए।
धर्म सिंह जी का जन्म 13 नवंबर सन् 1666 ई. में उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में हस्तिनापुर के पास गांव सैफपुर करमचंद में जाट दलाल परिवार में हुआ था। इनके पिता चौधरी संतराम और माता श्रीमती साबो देवी थी। इनका बचपन का नाम धर्मदास था जो सिख धर्म में भाई धर्मसिंह के नाम से विख्यात हुए जाने गए । उन्होंने सिक्खी को उस समय अपना लिया था जब वे मात्र 13 वर्ष की आयु में थे , उन्होंने अपने जीवन का अधिकतम समय शिक्षा अर्जित कर ज्ञान प्राप्त करने में लगा दिया था। वो भरी सभा में त्याग और बलिदान की मिसाल पेश कर वह अपने गुरु के प्यारे बन गए । उन्होंने गुरु गोविंद सिंह जी के दाहिने हाथ बनकर सेनापति के रूप में आनंदपुर की लड़ाई में हिस्सा लिया । उसने गुरु जी के साथ रहकर लगभग सभी लड़ाइयां लड़ी और भाई दया सिंह के साथ गुरु गोविंद सिंह जी का पत्र " जफरनामा " लेकर सम्राट औरंगजेब को देने के लिए दक्षिण भी गए थे।
सन् 1708 ई. में नांदेड़ ( महाराष्ट्र ) की लड़ाई में गुरु गोविंद सिंह के साथ युद्ध भूमि में बलिदान हो गए थे। इनके दिवंगत होने के बाद उनके पुश्तैनी घर हस्तिनापुर के गांव सैफपुर करमचंद में गुरुद्वारा स्थापित कर दिया था । सिख धर्म के लोगों के लिए एक धार्मिक स्थल है पूजनीय स्थल है । अब यहां 24 घंटे लंगर चलता है और ठहरने का भी उचित प्रबंध है। धर्मसिंह दलाल खालसा पंथ की स्थापना के साक्षी बनकर पंज प्यारे कहलाए , विख्यात हुए। उन्होंने जीवन में निष्ठा त्याग व समर्पण को सर्वोपरि समझा जिससे सिक्खों के इतिहास में उनका सर्वोच्च स्थान है । उन्होंने दलाल वंश का मस्तक ऊंचा किया निश्चित रूप से वो दलाल वंश का गौरव है उनका इतिहास गौरवशाली है। सिख धर्म के इतिहास में उनको हमेशा याद रखा जाएगा।
- संदर्भ - ज्ञानसिंह दलाल गांव [[Masudpur Hansi|मसूदपुर (हिसार)
Phone: 9812700537 (Text copied from one of his posts on a WhatsApp Group)
Population
According to Census-2011, the total population of the village was 4038, with 625 hoouseholds.
Notable Persons
Dharam Singh Dalal - One of five disciples (पंज प्यारे)of Guru Gobind Singh
External Links
References
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