Satya Prakash Malaviya

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Satya Prakash Malaviya

Satya Prakash Malaviya (born:25.6.1934-) is an Indian Politician and he was elected to the Upper House of Indian Parliament the Rajya Sabha in 1984 and 1990 from Uttar Pradesh as a member of the Janata Dal but rebelled and joined the Samajwadi Janata Party to become the Minister of Parliamentary Affairs in November 1990 till June 1991. [1]

जीवन परिचय

पूर्व केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री और मंत्री उत्तर प्रदेश सत्यप्रकाश मालवीय ने लिखा है कि सन् 1970 से 1980 तक मैं संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से इलाहाबाद नगर निगम का सभासद तथा मेयर था. 1974 से 1980 तक में इलाहाबाद दक्षिण विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा में भारतीय लोकदल, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी तथा जनता पार्टी से विधायक था. ये राजनीतिक दल संघर्ष की राजनीति करते थे तथा जनता के हितों के लिए सड़क से संसद तक आवाज उठाते थे. इसी दौरान समाचार पत्रों के माध्यम से चौधरी कुंभाराम आर्य तथा श्री दौलतराम सारण की जानकारी मुझे हुई और ज्ञात हुआ कि दोनों राजस्थान के अग्रणी नेता हैं. 1984 में लोकदल से, जिस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी चरणसिंह थे, से मैं उत्तर प्रदेश से चुनकर राज्यसभा में आ गया. चौधरी साहब ने मुझे लोकदल का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर दिया. अगस्त 1984 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (लोकदल-भाजपा गठबंधन) की ओर से पंजाब समस्या के समाधान के लिए दोनों दलों के नेताओं ने दिल्ली में गिरफ्तारी दी और तभी से मेरी सारण जी से व्यक्तिगत जान पहचान हुई. उनके प्रथम दर्शन तथा उनके साथ अपने प्रथम साक्षात्कार ने मुझे प्रभावित और आकर्षित किया और उन्होंने मेरे ऊपर अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी. वह एक विचारवान, समर्पित और त्यागी पुरुष हैं. उनका जीवन सादगी और संयम का ज्वलंत उदाहरण है.[2]

किसानघाट निर्माण

दौलतराम सारण के साथ किसानघाट पर प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर और पेट्रोलियम मंत्री सत्यप्रकाश मालवीय 23.12.1990

सत्यप्रकाश मालवीय ने लिखा है कि चौधरी चरणसिंह का निधन 29 मई 1987 को हो गया. बड़ी जद्दोजहद और आना-कानी के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार उनका दाह संस्कार करने की अनुमति उस स्थान पर देने को राजी हो गई जहां आज किसानघाट है. इसमें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और मेरे मित्र श्री ब्रह्मदत्त जो पहले भारतीय क्रांति दल में थे, ने काफी सहायता की. किसान घाट बापू की समाधि से बहुत कम फासले पर है और राजघाट परिसर के अंदर है. यहीं चौधरी साहब का दाह संस्कार 31 मई 1987 की शाम को हुआ. समाधि स्थल का 4 वर्षों तक नाम मात्र भी विकास नहीं हुआ और यह उपेक्षित पड़ा रहा. हालांकि केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार भी बन गई थी. आज समाधि स्थल विकसित हालत में है और इसका पूरा श्रेय श्री सारण जी को है. सन् 1990 में जब श्री चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने, उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में दौलतराम सारण जी को शहरी विकास मंत्री नियुक्त किया. समाधि स्थल इसी मंत्रालय के अंतर्गत आता है. मैं एक दिन दौलतराम सारण जी से मिला और उन्हें अपनी व्यथा बतलाई और समाधि स्थल की उपेक्षा की और उनका ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने अधिकारियों को बुलाया, निर्देश दिया, योजना और नक्शा बनवाया. पूरी योजना को स्वीकृत किया और सरकारी धन उपलब्ध करवाया. इसमें चंद्रशेखर जी का भी पूरा सहयोग था. श्री सारण जी ने जिस लगन, तन्मयता और प्रतिबद्धता के साथ इस समाधि स्थल के विकास में रुचि ली, उसको मैं कभी भूल नहीं सकता. प्रतिवर्ष चौधरी साहब के जन्मदिन 23 दिसंबर तथा पुण्यतिथि 29 मई को उनके अनुयाई समाधि स्थल किसान घाट पर एकत्रित होते हैं, वहां सर्वधर्म प्रार्थना सभा होती है. भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री शहरी विकास मंत्री, दिल्ली की मुख्यमंत्री तथा अन्य विशिष्ट हस्तियाँ समाधि स्थल पर श्रद्धा सुमन तथा पुष्पांजलि अर्पित करते हैं.[3]

जागरण समाचार

सत्यप्रकाश मालवीय[4] ने लिखा है कि....हमारे समय में महापौर जनता नहीं बल्कि सभासद चुनते थे। सभासद जिसे चाहते थे वही महापौर की कुर्सी पर बैठता था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है चुनाव आसान था, बल्कि तब महापौर बनना काफी कठिन था। तरह-तरह की गुणा-गणित करने के साथ प्रचार-प्रसार पूरे जोर-शोर से होता था। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं पहला ऐसा व्यक्ति हूं जो सभासद रहते हुए महापौर बना। महापौर के चुनाव में मैंने भी वोटिंग की थी। चुनाव में जीत हासिल करने के लिए मैंने दिन-रात संपर्क किया। महीनों चले चुनाव में प्रचार में मेरा सिर्फ 250 रुपये ही खर्च हुआ, वह भी पेट्रोल में। जहां जाता वहीं चाय-नाश्ता भी हो जाता था, इसलिए खाने-पीने में कुछ नहीं खर्च हुआ।

मैं सन 1970 में महामना मालवीयनगर वार्ड का सभासद चुना गया। इसके बाद 1972 में महापौर का चुनाव था। मैं संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का प्रत्याशी बना। मेरे खिलाफ जनसंघ से डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेता थे। उनके अलावा कांग्रेस से अमरेश कुमार बनर्जी मैदान में थे। उस समय शहर में 60 वार्ड थे। मेरी पार्टी के सात सभासद थे, मुस्लिम मजलिस पार्टी के दस व हिंदू महासभा के छह सभासदों ने मुझे समर्थन दिया था जबकि 12 सभासद निर्दलीय थे। सभासद होने के नाते मेरा सबसे अच्छा संबंध था। लेकिन चुनाव के समय सबसे संपर्क तो करना ही पड़ता था। इसलिए भागदौड़ काफी बढ़ गई थी। संपर्क के दौरान ही मेरा कई बार डॉ. जोशी से आमना-सामना हुआ, उस समय हम एक-दूसरे के चुनाव की तैयारी के बारे में पूंछते थे। फिर अपने-अपने मिशन में आगे बढ़ जाते। वोटिंग के दिन राजनारायण जी मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आए थे। जब मैं विजयी हुआ तो उन्होंने सभा को संबोधित भी किया था। महापौर बनने के बाद मैंने साइकिल में लग रहे तीन रुपये कर को सबसे पहले समाप्त किया था, क्योंकि वह आम आदमी का साधन थी। इसके अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा और सफाई के लिए काफी काम किया था। एक साल के कार्यकाल के दौरान मैंने वह सब करने की कोशिश की जो आम जनता की जरूरत थी, इसका सिलसिला जब मंत्री बना तब भी जारी रहा।

-सत्यप्रकाश मालवीय

पिक्चर गैलरी

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

  1. Madhu Limaye (1994). Janata Party Experiment: An insider's account of opposition politics, 1977-80. B.R. Pub. Corp. p. 97. ISBN 978-81-7018-797-4.
  2. Jananayak Shri Daulat Ram Saran Abhinandan Granth , 2008, p.79
  3. Jananayak Shri Daulat Ram Saran Abhinandan Granth , 2008, p.80
  4. jagran.com, 14 June 2012