Saubhanagara
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Saubhanagara (सौभनगर) is a City mentioned in Mahabharata (III.13.29).
Origin
Variants
- Saubha सौभ = Saubhanagara सौभनगर, दे. Shalva शाल्व, Shalvapura शाल्वपुर (p.996)
- Saubhapuri (सौभपुरी) (City) Mahabharata (III.13.29)
History
In Mahabharata
Saubhapuri (सौभपुरी) City is mentioned in Mahabharata (III.13.29).[1]....Thou didst in fury slay Indradyumna and the Yavana called Kaseruman! And slaying Salwa the lord of Saubha, thou didst destroy that city of Saubha itself.
सौभ = सौभनगर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है .....सौभ = सौभनगर (AS, p.996): महाभारत में कृष्ण के शत्रु शाल्व के नगर को सौभ कहा गया है. शाल्व ने शिशुपाल के वध के उपरांत उसका बदला लेने के लिए द्वारका पर आक्रमण किया था. सौभ को श्रीकृष्ण ने घोर युद्ध के पश्चात नष्ट कर दिया था-- 'शाल्वस्य नगरं सौभं गतोऽहं भरतर्षभ, निहन्तुं कौरवश्रेष्ठ तत्र मे शृणु कारणम्'. वनपर्व 14,2.
शाल्व को सौभराट् कहा गया है-- 'मया किल रणे युद्धं काङ्क्षमाणः स सौभराट्' वन पर्व 14,11. किंतु महाभारत के वर्णन से यह भी जान पड़ता है कि सौभ वास्तव में एक विशालकाय विमान था जो नगर की भांति ही जान पड़ता था. इसी में स्थित रहकर उसने द्वारकापुरी पर आकाश [p.997]: से ही आक्रमण किया था, 'अरुंधत्तां सुदुष्टात्मा सर्वत: पांडुनंदन, शाल्वो वैहायसं चापि तत् पुरं व्युह्य विष्ठित:' अर्थात उस दुष्ट आत्मा शाल्व ने द्वारका को चारों तरफ से घेर लिया. वह स्वयं उस आकाशचारी नगर (सौभविमान) पर व्यूह रचना करके स्थित था. सौभ को सुदर्शनचक्र से कृष्ण ने नष्ट कर दिया था, 'तत् समासाद्य नगरं सौभं व्यपगतत्विषम्, मध्येन पाटयामास क्रकचो दार्विवोच्छ्रतम्'. कुछ विद्वानों के मत में सौभनगर में मार्तिकावतक देश की राजधानी थी किंतु उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि यह नगर वास्तव में एक विशाल गगनविहारी विमान था जिसकी विशेषता यह थी कि यह आकाश में एक स्थान पर ठहरा रह सकता था और कामगामी (इच्छाचारी) था. 'सौभं कामगमं वीर मोहयन्मम चक्षुषी' वनपर्व 22,9; 'एवमादि महाराज विलप्य दिवमास्थित: कामगेन स सौभेन क्षिप्तवा मां कुरुनंदन' वनपर्व 14,15. (दे. शाल्व, शाल्वपुर)
External links
References
- ↑ इन्द्र दयुम्नॊ हतः कॊपाद यवनश च कशेरुमान, हतः सौभपतिः शाल्वस तवया सौभं च पातितम (III.13.29)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.996-997