Sonabhandara

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Sonabhandara (सोनभंडार) Caves are historic caves in Bihar near Rajagriha. They are rock-cut caves found in Rajgir region of the state. These caves were created between 3rd and 4th century for the Jain ascetics. The caves have a serene ambiance and beautiful surroundings. They are carved in the Mauryan style and carry the beautiful inscriptions from Buddhism.

Variants

  • Sonabhandara सोनभण्डार, बिहार, (AS, p.987)

History

सोनभण्डार (बिहार)

सोनभण्डार (AS, p.987): बिहार में राजगृह के निकट वैभार पहाड़ी के दक्षिणी क्रोड में उत्खनित दो गुफाएं [p.988] तीसरी-चौथी शती ई. में एक जैन साधू द्वारा बनवाई गई थी जैसा कि एक अभिलेख से ज्ञात होता है, 'निर्वाण लाभाय तपस्वी योग्येशुभे गुहे....र्हत प्रतिमा प्रतिष्ठे आचार्यरत्न मुनि वैरदेव: विमुक्तये-कारयद्-दीर्घतेजा:' (?). यह अभिलेख, लिपि के आधार पर, तीसरी या चौथी सदी ई. का जान पड़ता है. कुछ विद्वानों का मत है कि वह वैभार पर्वत की सप्तपर्णि-गुहा सोनभंडार का ही दूसरा नाम है (देखें कनिंघम- आर्कियोलॉजिकल सर्वे रिपोर्ट जिल्द 3, पृ.140). साप्तपर्णि-गुहा में प्रथम धर्म-संगीति का अधिवेशन बुध की मृत्यु के पश्चात हुआ था जिसमें 500 भिक्षुओं ने भाग लिया था. किंतु उपर्युक्त अभिलेख से यह उपकल्पना गलत प्रमाणित हो गई है. (देखें गाइड टू राजगीर, पृ. 17) (देखें वैभार)[1]

वैभार

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...वैभार (AS, p.880) राजगृह (=राजगीर), बिहार के निकट स्थित एक पर्वत है, जिसका नामोल्लेख महाभारत सभापर्व 21,2 में है- 'वैभारो विपलो शैलो वराहो वृषभस्तथा।' इसका पाठांतर 'वैहार' है। पाली ग्रंथों में इसे 'वेभार' कहा गया है। (दे.महावंश 3,19) 'सप्तपर्णि' (सोनभंडार) नामक गुहा इसी पहाड़ी में स्थित थी। यहाँ गौतम बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् प्रथम 'बौद्ध धर्म संगति' का अधिवेशन हुआ था, जिसमें 500 भिक्षुओं ने भाग लिया था। जैन ग्रंथ ‘विविधतीर्थकल्प’ में राजगृह की इस पहाड़ी के 'त्रिकुट' एवं 'खंडिक' नाम के दो शिखरों का उल्लेख है। पहाड़ी पर होने वाली अनेक औषधियों का भी वर्णन है। इस ग्रंथ के अनुसार सरस्वती नदी यहाँ प्रवाहित होती थी और 'मगध', 'लोचन' आदि नाम के जैन देवालय स्थित थे, जिनमें जैन अर्हतों की मूर्तियां थीं। कहा जाता है कि यहाँ देवालयों के निकट सिंह आदि हिंसक पशु भी सौम्यतापूर्वक रहते थे। प्राचीन समय में वैभार में 'रौहिणेय' नामक महात्मा का निवास था।

External links

References