Tarapith
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Tarapitha (तारापीठ) is a Hindu temple town in Rampurhat II CD block in Rampurhat subdivision of Birbhum district of the Indian state of West Bengal, known for its Tantric temple and its adjoining cremation (Maha Shashan) grounds where sādhanā (tantric rituals) are performed.
Variants
History
Tantric Hindu temple Tarapitha
The Tantric Hindu temple is dedicated to the goddess Tara, a fearsome Tantric aspect of the Devi, the chief temples of Shaktism. Tarapith derives its name from its association as the most important centre of Tara worship and her cult.[1][2]
Tarapith is also famous for Sadhak Bamakhepa, known as the avadhuta or "mad saint", who worshipped in the temple and resided in the cremation grounds as a mendicant and practised and perfected yoga and the tantric arts under the tutelage of another famous saint, Kailashpathi Baba. Bamakhepa dedicated his entire life to the worship of Tara Maa. His ashram is also located in bank of Dwaraka River and close to the Tara temple.[3]
तारापीठ
विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ... तारापीठ (AS, p.397) द्वारका नदी के तट पर स्थित प्राचीन सिद्धपीठ जो तंत्रिकोण का केंद्र था.
तारापीठ
तारापीठ पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध पर्यटन और धार्मिक स्थलों में से एक है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िला में स्थित है। यह स्थल हिन्दू धर्म के पवित्रतम तीर्थ स्थानों में गिना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि यहाँ पर देवी सती के नेत्र गिरे थे, जबकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि महर्षि वसिष्ठ ने तारा के रूप में यहाँ देवी सती की पूजा की थी। इस स्थान को "नयन तारा" भी कहा जाता है। माना जाता है कि देवी तारा की आराधना से हर रोग से मुक्ति मिलती है। हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में तारापीठ का सबसे अधिक महत्व है। यह पीठ असम स्थित 'कामाख्या मंदिर' की तरह ही तंत्र साधना में विश्वास रखने वालों के लिए परम पूज्य स्थल है। यहाँ भी साधु-संत अतिविश्वास और श्रद्धा के साथ साधना करते हैं।
पौराणिक कथा: कथा के अनुसार जब सती के पिता दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ का आयोजन किया तो उसने भगवान शिव को यज्ञ में आने का निमंत्रण नहीं दिया। शिव के मना करने और समझाने पर भी सती बिना निमंत्रण के ही पिता के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आ गईं। इस समय दक्ष ने सती के समक्ष अनुपस्थित भगवान शिव को बड़ा बुरा-भला कहा और उन्हें कठोर अपशब्द कहे। अपने पति का अपमान सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञ की अग्निकुंड में कूद कर स्वयं को भस्म कर लिया। उनके बलिदान करने के बाद शिव विचलित हो उठे और सती के शव को अपने कंधे पर लेकर आकाश मार्ग से चल दिए तथा तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे। उनके क्रोध से सृष्टि के समाप्त होने का भय देवी-देवताओं को सताने लगा। सभी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को खंडित कर दिया। सती के शरीर के टुकड़े जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। माना जाता है कि तारापीठ वह स्थान है, जहाँ सती के तीसरे नेत्र का निपात हुआ था।
महिमा: प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। उन्होंने इस स्थान पर एक मंदिर भी बनवाया था, जो अब धरती में समा गया है। वर्तमान में तारापीठ का निर्माण 'जयव्रत' नामक एक व्यापारी ने करवाया था। एक बार यह व्यापारी व्यापार के सिलसिले में तारापीठ के पास स्थित एक गाँव पहुँचा और वहीं रात गुजारी। रात में देवी तारा उसके सपने में आईं और उससे कहा कि- "पास ही एक श्मशान घाट है। उस घाट के बीच में एक शिला है, उसे उखाड़कर विधिवत स्थापना करो। जयव्रत व्यापारी ने भी माता के आदेशानुसार उस स्थान की खुदाई करवाकर शिला को स्थापित करवा दिया। इसके बाद व्यापारी ने देवी तारा का एक भव्य मंदिर बनवाया, और उसमें देवी की मूर्ति की स्थापना करवाई। इस मूर्ति में देवी तारा की गोद में बाल रूप में भगवान शिव हैं, जिसे माँ स्तनपान करा रही हैं।
सदैव प्रज्वलित अग्नि: तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, इसे 'महाश्मशान घाट' के नाम से जाना जाता है। इस महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। यहाँ आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। मंदिर के चारों ओर द्वारका नदी बहती है। तारापीठ मंदिर में 'वामाखेपा' नामक एक साधक ने देवी तारा की साधना करके उनसे अनेक सिद्धियाँ हासिल की थीं। यह भी रामकृष्ण परमहंस के समान ही देवी माता के परम भक्तों में से एक थे।
संदर्भ भारतकोश-तारापीठ
External links
References
- ↑ "Tarapith". Birbhum District: Government of West Bengal.
- ↑ "Bakreshwar, Tarapith". National Informatics Centre: Government of India.
- ↑ Harding, Elizabeth U. (1998). Kali: the black goddess of Dakshineswar. Motilal Banarsidass Publ. pp. 275–279. ISBN 81-208-1450-9.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.397