Tosala
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Tosala (तोसल) was an ancient Janapada at Dhauli near Bhuvaneshvara in Orissa.
Origin
Variants
- Tosala (तोसल) (AS, p.33)
- Toshala (तोशल) (AS, p.33)
- Tosala तोसल = Tosali तोसलि = Dhaula धौला (उड़ीसा) (AS, p.412)
- Amit Tosala (अमित तोसल) (AS, p.33)
- Toslei (तोसली) (by Ptolmy)
Jat clans
- Toshniwal (तोष्णीवाल)
History
तोसल = तोसलि = धौला (उड़ीसा)
विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...तोसल = तोसलि = धौला (उड़ीसा) (AS, p.412): भुवनेश्वर के निकट शिशुपालगढ़ के खंडहरों से तीन मील दूर धौली नामक प्राचीन स्थान है, जहाँ अशोक की कलिंग धर्मलिपि चट्टान पर अंकित है। इस अभिलेख में इस स्थान का नाम 'तोसलि' है और इसे नवविजित कलिंग देश की राजधानी बताया गया है। यहाँ का शासन एक 'कुमारामात्य' के हाथ में था। अशोक ने इस अभिलेख के द्वारा 'तोसलि' और समापा के नगर व्यावहारिकों को [p.413]: कड़ी चेतावनी दी है, क्योंकि उन्होंने इन नगरों के कुछ व्यक्तियों को अकारण ही कारागार में डाल दिया था।
सिलवनलेवी के अनुसार 'गंडव्यूह' नामक ग्रंथ में 'अमित तोसल' नामक जनपद का उल्लेख है, जिसे दक्षिणापथ मे स्थित बताया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि इस जनपद में तोसल नामक एक नगर है। कुछ मध्यकालीन अभिलेखों में दक्षिण तोसल व उत्तर तोसल का उल्लेख है (एपिग्राफ़िका इंडिया, 9, 586,15, 3) जिससे जान पड़ता है कि तोसल एक जनपद का नाम भी था। प्राचीन साहित्य में तोसलि के दक्षिणकोसल के साथ संबंध का उल्लेख मिलता है। टॉलमी के भूगोल में भी तोसली (Toslei) का नाम है। कुछ विद्वानों (सिलवनलेवी आदि) के मत में कोसल, तोसल, कलिंग आदि नाम ऑस्ट्रिक भाषा के हैं। ऑस्टिक लोग भारत में द्रविड़ों से भी पूर्व आकर बसे थे। धौली या तोसलि 'दया नदी' के तट पर स्थित हैं।
अमित तोसल
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...अमित तोसल (AS, p.33) जनपद का उल्लेख गंडव्यूह नामक ग्रन्थ में है। यह संभवत: तोसल या तोसलि का प्रदेश था जो उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट स्थित वर्तमान धौली नामक स्थान है।
अशोक की कलिंग विजय
भारत के अन्दर अशोक एक विजेता रहा। अपने राज्याभिषेक के नवें वर्ष में अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त की। ऐसा प्रतीत होता है कि नंद वंश के पतन के बाद कलिंग स्वतंत्र हो गया था। प्लिनी की पुस्तक में उद्धत मेगस्थनीज़ के विवरण के अनुसार चंद्रगुप्त के समय में कलिंग एक स्वतंत्र राज्य था। अशोक के शिलालेख के अनुसार युद्ध में मारे गए तथा क़ैद किए हुए सिपाहियों की संख्या ढाई लाख थी और इससे भी कई गुने सिपाही युद्ध में घायल हुए थे। मगध की सीमाओं से जुड़े हुए ऐसे शक्तिशाली राज्य की स्थिति के प्रति मगध शासक उदासीन नहीं रह सकता था। खारवेल के समय मगध को कलिंग की शक्ति का कटु अनुभव था।
व्यापार: सुरक्षा की दृष्टि से कलिंग का जीतना आवश्यक था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार कलिंग को जीतने का दूसरा कारण भी था। दक्षिण के साथ सीधे सम्पर्क के लिए समुद्री और स्थल मार्ग पर मौर्यों का नियंत्रण आवश्यक था। कलिंग यदि स्वतंत्र देश रहता तो समुद्री और स्थल मार्ग से होने वाले व्यापार में रुकावट पड़ सकती थी। अतः कलिंग को मगध साम्राज्य में मिलाना आवश्यक था। किन्तु यह कोई प्रबल कारण प्रतीत नहीं होता क्योंकि इस दृष्टि से तो चंद्रगुप्त के समय से ही कलिंग को मगध साम्राज्य में मिला लेना चाहिए था। कौटिल्य के विवरण से स्पष्ट है कि वह दक्षिण के साथ व्यापार का महत्त्व देता था। विजित कलिंग राज्य मगध साम्राज्य का एक अंग हो गया। राजवंश का कोई राजकुमार वहाँ वाइसराय (उपराजा) नियुक्त कर दिया गया। तोसली इस प्रान्त की राजधानी बनाई गई।
संदर्भ: भारतकोश-तोसली