Uttesar
Uttesar (उत्तेसर) is a village in Luni Tahsil of Jodhpur district in Rajasthan.
Location
Jat Gotras
Population
History
उत्तेसर के धतरवालों का इतिहास
झुंझार श्री जीवण दादा जी उत्तेसर (जोधपुर):
मरुस्थल के तपते धोरों में लोग आदिकाल से ही प्रकृति के साथ संघर्ष करते आ रहे हैं. विषम परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना यहां का जन-जन अपना शौक मानता है. ऐसे ही एक संघर्षी, वचनबद्ध, तेजमयी व्यक्तित्व के धनी थे दादा जीवन जी. इनका जन्म जोधपुर की लूणी तहसील के उत्तेसर गांव में धतरवाल कुल में पिता बागोजी के घर मां श्रीमती हरकू की कोख से हुआ. वह बाल्यावस्था में नागणेची माता की उपासना करते थे.
वर्तमान उत्तेसर के धतरवाल सर्वप्रथम कूकस में रहते थे. वहां से संवत 1402 में कुड़छी आ गए. संवत 1545 में कुड़छी से धनारी आ गये. धनारी से संवत 1545 में जीवोणा आए. यहां आगे चलकर विक्रम संवत 1585 में तेजाबाबा जी ने झींझणीयाला खेड़ा बसाया जो वर्तमान में उत्तेसर से तीन-चार किलोमीटर दक्षिण में स्थित था तथा कालांतर में जनशुन्य हो गया. यहां से आगे चलकर संवत 1620 में उत्तेसर आ गये.
एक भाई मालोजी जोगासर, सोमेसरा (बागोणी धतरवाल) बायतु चला गया जो आज बायतु में रहते हैं.
धतरवालों व सारणों के बीच संघर्ष: इसी दौरान धतरवालों व सारणों के बीच में संघर्ष हो गया. इस संघर्ष में हुई जनहानि के बाद जीवण दादा ने सारणों को उत्तेसर छोड़कर चले जाने का आदेश दे दिया. सारण दाखा धनवा चले गए. इस आपसी संघर्ष को कम करने के लिए सारणों की एक बहू ने जीवन बाबा को राखी बांध अपना भाई बना दिया. लेकिन यह लड़ाई यहीं खत्म नहीं हुई. सारणों ने जीवन दादा से बदला लेने हेतु मीणाओं को अनुबंधित किया. मीणा लोग उस समय लूटमार करते थे. लुटेरों ने इनकी गायों को लूटने का प्रयास किया. इस दरमियान मीनाओं व जीवन दादा में संघर्ष हुआ तथा मीणों को भागने को मजबूर कर दिया.
इस युद्ध में दादा ने गायें तो ले जाने नहीं दी लेकिन वह स्वयं घायल हो गए. घायल अवस्था में घर लौटते समय इनका धड़ तालाब की पाल के पास गिर गया तथा संवत 1635 भादवा बड़ी तेरस को वीरगति को प्राप्त हो गए. बाद में इस जगह जीव दादा की पूजा की जाने लगीन. वर्तमान में यहां भव्य मंदिर है जिसका जीर्णोद्धार 7 सितंबर 2018 (भादवा बदी तेरस संवत 2075) को किया गया. मंदिर वीर तेजाजी की मूर्ति के सामने तालाब की पाल पर स्थित है. हर वर्ष भादवा बदी तेरस को यहां मेला लगता है जिसमें आसपास के सैंकड़ों लोग भाग लेते हैं तथा ग्रामीण मिलकर कार्यक्रम संपन्न करते हैं.
बायतू परिवार का विवरण: बायतु में मालोजी उत्तेसर जोधपुर से यहां लगभग संवत 1825 में आए. मालो जी के सूरता जी एक पुत्र थे, जिनके तीन पुत्र जेठाजी, दानाजी, बागाजी थे. आर्थिक रूप से साधन संपन्न थे, बायतु में संवत 1974 भादवा सुदी नवमी को 1051/- रुपए में गोगाजी मंदिर पर इंडा चढ़ाया जो पश्चिमी राजस्थान बाड़मेर में हर समाज में प्रसिद्ध हो गए. जो लोगों को बैल जोड़ियों द्वारा खेती करवाते थे.
दोहा: धतरवालों में धुंन कहिजे, सुरताणी है बागो । देवल इंडो चाडियो, थाने न्यायत बुलावे आगे ॥
अत: बागोजी समाजसेवी दानदाता थे.
Notable persons
- Jiwan Dhatarwal: झुंझार श्री जीवण दादा जी उत्तेसर (जोधपुर) - इनका जन्म जोधपुर की लूणी तहसील के उत्तेसर गांव में धतरवाल कुल में पिता बागोजी के घर मां श्रीमती हरकू की कोख से हुआ. उत्तेसर गांव में धतरवालों व सारणों के बीच संघर्ष हुआ. इस संघर्ष में हुई जनहानि के बाद जीवण दादा ने सारणों को उत्तेसर छोड़कर चले जाने का आदेश दे दिया. सारण दाखा धनवा चले गए. सारणों ने जीवन दादा से बदला लेने हेतु मीणाओं को अनुबंधित किया. मीणा लोग उस समय लूटमार करते थे. लुटेरों ने इनकी गायों को लूटने का प्रयास किया. इस दरमियान मीनाओं व जीवन दादा में संघर्ष हुआ तथा मीणों को भागने को मजबूर कर दिया.
- इस युद्ध में दादा ने गायें तो ले जाने नहीं दी लेकिन वह स्वयं घायल हो गए. घायल अवस्था में घर लौटते समय इनका धड़ तालाब की पाल के पास गिर गया तथा संवत 1635 भादवा बड़ी तेरस को वीरगति को प्राप्त हो गए. बाद में इस जगह जीव दादा की पूजा की जाने लगीन. वर्तमान में यहां भव्य मंदिर है जिसका जीर्णोद्धार 7 सितंबर 2018 (भादवा बदी तेरस संवत 2075) को किया गया. मंदिर वीर तेजाजी की मूर्ति के सामने तालाब की पाल पर स्थित है. हर वर्ष भादवा बदी तेरस को यहां मेला लगता है जिसमें आसपास के सैंकड़ों लोग भाग लेते हैं तथा ग्रामीण मिलकर कार्यक्रम संपन्न करते हैं.
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