Viney Choudhary

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Maj Viney Choudhary

Maj Viney Choudhary (Lora) (18.1.1968 - 29.4.1999) became martyr on 29 Apr 1999 during a counter-insurgency operation at Takia village of Pulwama District in Jammu and Kashmir. He was from village Mangalpur in Jind district of Haryana.

Introduction of Maj Viney Choudhary

Maj Viney Choudhary hailed from Jind district of Haryana and belonged to the Punjab Regiment of Indian Army. Displaying commendable gallantry and resoluteness, he made the supreme sacrifice on 29 Apr 1999 during a counter-insurgency operation in J&K.

Maj Viney Choudhary’s battalion 13th Punjab was inducted into the Pulwama District of J &K in 1998 for anti-militancy operations. On April 29, 1999, 13 Punjab which had developed an intricate intelligence network in and around Pulwama district in Kashmir Valley, received a reliable input from the intelligence sources about the presence of militants in Takia village. As per the information the Police had cornered a dreaded terrorist, Iqbal Gujjar who was allegedly involved in an operation wherein Lt Atul Katarya from the unit was martyred in Oct 1998. Based on the inputs it was decided to launch an operation to neutralize the terrorists under the leadership of Maj Viney Choudhary. As planned Maj Choudhary reached the suspected area along with his comrades and established a tight cordon around the clusters of houses by 3 pm.

By excellent marksmanship, Maj Chaudhary shot down one militant who was firing at the cordon. In the ensuing firefight, Maj Chaudhary crawled to a position of advantage under covering fire from his men and shot down the second militant. However Maj Chaudhary while inching forward for the third militant, received a gunshot wound in his right thigh. But undeterred Maj Chaudhary charged towards the house and shot the third militant at point-blank range. But in the firefight, he too was fatally injured and later succumbed to his injuries before he could be given any medical aid.

मेजर विनय चौधरी का जीवन परिचय

मेजर विनय चौधरी (18 जनवरी, 1968 - 29 अप्रैल, 1999)

शौर्य चक्र (मरणोपरांत),

वीरांगना - श्रीमती प्रतिमा देवी

यूनिट - 13 पंजाब रेजिमेंट

ऑपरेशन - रक्षक 1999

मेजर विनय चौधरी का जन्म 18 जनवरी, 1968 को हरियाणा के जिंद जिले के मंगलपुर गाँव में पिता श्री जिले सिंह चौधरी और माता श्रीमती संतोष देवी के परिवार में हुआ था। 15 दिसंबर, 1990 को उन्हें भारतीय सेना की 13 पंजाब रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त हुआ था।

वर्ष 1998 में मेजर चौधरी की बटालियन को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकवाद विरोधी अभियानों में तैनात किया गया। 13 पंजाब ने कश्मीर घाटी के पुलवामा जिले में और आसपास एक जटिल सूचना तंत्र विकसित कर लिया था। 29 अप्रैल, 1999 को गोपनीय सूत्रों से बटालियन को टाकिया गांव में आतंकवादियों के होने के बारे में विश्वसनीय जानकारी मिली। जानकारी के अनुसार, पुलिस ने खूंखार आतंकवादी इकबाल गुर्जर व अन्य को घेर लिया था।

आतंकी इकबाल गुर्जर अक्टूबर 1998 में यूनिट के लेफ्टिनेंट अतुल कटारिया की हत्या में कथित रुप से शामिल था। जानकारी के आधार पर आतंकवादियों को ढेर करने के लिए मेजर विनय चौधरी के नेतृत्व में एक ऑपरेशन चलाने का निर्णय लिया गया। मेजर चौधरी अपने जवानों के साथ संदिग्ध इलाके में पहुँचे और दोपहर 3 बजे तक घरो की कड़ी घेराबंदी कर दी।

अपनी सटीक निशानेबाजी से मेजर चौधरी ने CORDON पर गोलीबारी कर रहे एक आतंकवादी को मार गिराया। आगामी गोलाबारी में वे अपने जवानों द्वारा की जा रही फायरिंग का कवर लेते हुए रेंग कर एक अनुकूल जगह पहुंचे और दूसरे आतंकवादी को भी मार गिराया। हालांकि, सावधानी से तीसरे आतंकवादी की ओर सरकते हुए मेजर चौधरी को दाहिनी जांघ में एक गोली लगी। फिर भी, मेजर चौधरी ने घर पर हमला किया और तीसरे आतंकवादी को अत्यंत समीप से ढ़ेर कर दिया। लेकिन, इस गोलाबारी में वह भी बुरी तरह घायल हो गए और किसी भी तरह की चिकित्सा सहायता दिए जाने से पहले ही वीरगति को प्राप्त हुए।

मेजर विनय चौधरी को उनके असाधारण साहस, लड़ाई की अटल भावना और सर्वोच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

शहीद के नाम पर मजाक, फाइल तक हुई गुम

जागरण संवाददाता, जींद : 29 अप्रैल 1999 में कश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए जींद के वीर सपूत शहीद मेजर विनय चौधरी के नाम पर राजकीय स्नातकोत्तर कॉलेज का नाम रखने की सरकार ने घोषणा की थी। इसके लिए बाकायदा पत्र भी जारी कर दिया गया, लेकिन सालों बीतने के बाद भी यह मामला सिरे नहीं चढ़ सका और नाम बदलने की प्रक्रिया की फाइल भी गुम कर दी गई। शहीद के परिवार को आज भी इस बात का मलाल है कि कॉलेज को उनके बेटे का नाम नहीं दिया जा सका है जबकि इसके लिए प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई थी। शहीद के पिता प्रो. जिले सिंह कई बार प्रशासन व सरकार के नुमाइंदों से मिल चुके हैं, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।

स्टेच्यू पर भी ध्यान नहीं सरकार की ओर से शहीदी स्मारक के पीछे शहीद विनय चौधरी का स्टेच्यू लगाया गया है. शरारती तत्वों द्वारा बार-बार ग्रिल व ईटें आदि तोड़ दी हैं, जिसे आज तक ठीक नहीं किया गया। प्रो. जिले सिंह ने बताया कि वह कई बार इस जगह को ठीक करवा चुके हैं, लेकिन सरकार इसकी सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे रही है।

रोड का नाम बदला पर लिखा नहीं: जिले सिंह ने बताया कि सरकार व प्रशासन ने गोहाना रोड का नाम बदलकर शहीद विनय सिंह चौधरी के नाम पर रख दिया है, लेकिन कहीं भी यह नहीं लिखा गया है। पहले उन्होंने खुद पत्थर यहां लगवाया था, लेकिन वह टूट गया और अब बड़ा बोर्ड रानी तालाब के पास लगवाया गया है। इस तरफ भी प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है।

बचपन में रखा था सुभाष नाम: विनय का जन्म मंगलपुर गांव में 18 जनवरी 1968 को किसान परिवार में संतोष पत्नी जिले सिंह के घर हुआ। उसके दादा पूर्णमल और दादी महिला ने उसका नाम सुभाष रखा। उनकी सोच थी कि वह सुभाषचंद्र बोस की तरह बहादुर, निडर बनेगा। विनय की शिक्षा जींद में हुई। आठवीं की परीक्षा हैप्पी स्कूल, मैट्रिक की परीक्षा एसडी हाई स्कूल से उत्तीर्ण की। स्कूल में ही उन्होंने एनसीसी ए सर्टीफिकेट पास किया। राजकीय महाविद्यालय में प्री-इंजिनिय¨रग करने के बाद अर्थशास्त्र एवं गणित के साथ स्नातक की डिग्री हासिल की। एमए अंग्रेजी में दाखिला लेने के बाद भी विनय ने भारतीय सेना में अफसर बनने की ठानी और जुलाई 1988 में प्रथम प्रयास में ही भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रशिक्षण शुरू किया। भारतीय सेना अकादमी में वरीयता सूची में उसने 34वां स्थान पाया। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में 15 दिसंबर 1990 को भारतीय सेना में 13 पंजाब में कमीशन प्रदान किया गया।

वीरता प्रमाण पत्र

-शौर्य चक्र 26 जनवरी 2000

-उल्फा उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ों में दिखाई गई वीरता पर भारतीय सेना प्रमुख द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर प्रशंसा पत्र 14 जनवरी 1993 को दिया गया।

-बंगाल एवं आसाम सेवा पदक 14 मार्च 1993 को दिया गया।

-अरुणाचल प्रदेश में ऊंची चढ़ाई के लिए पदक 14 जनवरी 1994 को मिला।

-आपरेशन रहिनो में वशिष्ठ सुरक्षा सेवा के लिए पदक 12 जनवरी 1996 को मिला।

संदर्भ: जागरण, 24 Jul 2016

External links

References

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