Lohra
Loh (लौह) Lohra (लोहरा) Laur (लौर) Laur (लऊर) Laura (लौरा) Lora (लोरा)/ Lor (लोर)[1][2] Laure (लौरे) [3] Lohkana (लोहखाना /लोहकाना) Loor (लूर) /Lauron (लौरों) /Lalhar (लालर)Lalar (लालर) Laller (लालर)Lalad (लालड़)[4] Laurak (लौरक)/Lavaurak (लवौरक)[5] Lawar (लवर) Lavar (लवर) are various names of a gotra of Jats found in Rajasthan, Haryana, Uttar Pradesh and Madhya Pradesh. Lori/Lari clan is found in Afghanistan.[6]
Origin
- Lohara dynasty may be the origin of the clan.
- Lohar - According to Bhim Singh Dahiya the Lohar jats are the descendants of the Lohar kings of Kashmir.[7]
- Lora River is in Pakistan which may be the origin of the clan.
- A Jat warrior named Lauh (लौह) formed a federation of Jats which was called Laur (लौर) or Lauh(लौह). [8]
- Some scholars believe that they derive their name from Lava son of lord Rama. But Lava was also a king mentioned in Rajatarangini.[10]
- Lori is used for Lari, native of Laristan, and they are considered representative of the ancient Assyrian tribe. [11]
- Loha (लोह) is name of a people mentioned by Panini in Ashtadhyayi and in Mahabharata.
- Lauriya (लोरिया) or Lauria Nandangarh (लोरिया नन्दनगढ़) is a city and historical site in West Champaran district of Bihar state in northern India.[12]
History
Rajatarangini[13] mentions ....The next king whose name is mentioned was Lava, a renowned prince. He had a vast and powerful army under him, and probably carried on many wars with his neighbours. It is said of him that the noise of his army made his people sleepless, but lulled his enemies to long sleep (death). He built the town of Lolora which, it is said, contained no less than eighty-four lacs of stone-built houses. Nothing more is said of him than that he bestowed the village of Lovara in Ledari on Brahmanas before his death.
First Lohara dynasty
The Lohara dynasty was founded by a Nara of Darvabhisara (IV.712). He along with others owned villages and had set up little kingdoms during the last days of Karkotas. The Loharas ruled for many generations. The author Kalhana was a son of a minister of Harsha of this family.
For detailed description see - Lohara dynasty
Genealogy of Nara of Darvabhisara
Rajatarangini[14] provides us following Genealogy of Nara:
Formerly at Darvvabhisara there lived a king named Nara of the Gotra of Bharadvaja, who had a son named Naravahana, and Naravahana had a son named Phulla. Phulla had a son named Sarthavahana, his son was Chandana, and Chandana had two sons, Gopala and Sinharaja, Sinharaja had several children, his daughter Didda was married to Kshemagupta. Didda made Sanggramaraja (son of her brother Udayaraja) king. She had another brother, Kantiraja, and he had a son named Jassaraja, Sanggramaraja had a son named Ananta, while of Jassaraja were born Tanvangga and Gungga. Ananta's son was Kalasharaja, and of Gungga was born Malla. Kalasha's son is king Harshadeva, and Malla's sons were Uchchala and Sussala.
Villages founded by Lohra clan
- Lauriya or Lauria Nandangarh - a town in West Champaran district of Bihar.
- Balsamand Nagaur - Lohra Jats founded Balsamand Nagaur
- Balsamand Hisar - Lohra Jats founded Balsamand Hisar in 1063 AD
- Lohrana (लोहराणा) - village near Jabdinagar in Nawa tehsil of Nagaur district in Rajasthan.
- Lora Ka Bas (लोरा का बास) - village near Nalot in Nawa tehsil of Nagaur district in Rajasthan.
- Loroli (लोरोली) - village in Didwana tehsil of Nagaur district in Rajasthan.
- Loroli Kalan (लौरोली कलां) - village in Didwana tehsil of Nagaur district in Rajasthan.
- Loroli Khurd (लोरोली खुर्द) - village in Didwana tehsil of Nagaur district in Rajasthan.
- Lorpura (लोरपुरा) - village in Nawa tehsil of Nagaur district in Rajasthan.
- Lora Ki Dhani (लोरा की ढाणी) - village in Danta Ramgarh tehsil of Sikar district in Rajasthan.
Villages after Lor
- लोरहाई (जाट गोत्र - लोर) : लोरहाई नाम का गाँव झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले की गुदरी विकास-खंड में है।
- लोरपोन्डा (जाट गोत्र - लोर) : लोहरटोला नाम का गाँव झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले की मनोहरपुर विकास-खंड में है।
Jat Gotras Namesake
- Lodike = Laodicea (Pliny.vi.29)
- Lor = Laodicea (Pliny.vi.29)
- Laodicea was a Hellenistic city in Mesopotamia. It translates the "city of Lor."
- Laur (Jat clan) = Laur Kalan, Laur Khurd, Laurkatan, are villages in Mauganj tahsil in Rewa district in Madhya Pradesh.
Mention by Pliny
Pliny[15] mentions....A narrow passage which leads to Persepolis12, the former capital of the kingdom, destroyed by Alexander. It has also, at its extreme frontier, Laodicea13, founded by Antiochus. To the east of this place is the fortress of Passagarda14, held by the Magi, at which spot is the tomb of Cyrus; also Ecbatana15, a city of theirs, the inhabitants of which were removed by Darius to the mountains.
12 Which was rebuilt after it was burnt by Alexander, and in the middle ages had the name of Istakhar; it is now called Takhti Jemsheed, the throne of Jemsheed, or Chil-Minar, the Forty Pillars. Its foundation is sometimes ascribed to Cyrus the Great, but more generally to his son, Cambyses. The ruins of this place are very extensive.
13 Its site is unknown; but Dupinet translates it the "city of Lor."
14 The older of the two capitals of Persia, Persepolis being the later one. It was said to have been founded by Cyrus the Great, on the spot where he gained his victory over Astyages. Its exact site is doubtful, but most modern geographers identify it with Murghab, to the north-east of Persepolis, where there are the remains of a great sepulchral monument of the ancient Persians, probably the tomb of Cyrus. Others place it at Farsa or at Dorab-Gherd, both to the south-east of Persepolis, the direction mentioned by Strabo, but not in other respects answering his description so well as Murghab.
15 It is most probable that he does not allude here to the Ecbatana, mentioned in c. 17 of this Book.
लोहर
ठाकुर देशराज[16] ने लिखा है.... लोहर - यह वंश 1004 ई. में कश्मीर में राज्य करता था। इससे पहले दाबर या दिबिर वंश का यहां राज्य था। लोहर वंश के शासनकाल में कश्मीर की हालत सुधर गई थी। संग्रामदेव, अनंतदेव और हर्ष, उत्कर्ष इस वंश के प्रसिद्ध राजा हुए हैं। सन् 1018 ई में इस वंश से यह राज्य छिन गया। इस खानदान के लोग उत्तर प्रदेश में लऊर और लाहर नाम से मशहूर हैं।
लौरा गोत्र का इतिहास
दलीप सिंह अहलावत लिखते हैं कि लौरा एक प्रसिद्ध जाट गोत्र है जो वत्स या बत्स जाट गोत्र की शाखा चौहान जाटों का शाखा गोत्र है। वत्स जाट गोत्र के योद्धा महाभारत युद्ध में पाण्डवों की ओर होकर लड़े थे। महाभारत युद्ध के बाद वत्स जाटों का राज्य पंजाब में भटिण्डा क्षेत्र पर रहा जिनका राजा उदयन था। फिर इनका शासन उज्जैन में रहा। इसी गोत्र के प्रसिद्ध वीर योद्धा आल्हा, उद्दल और मलखान थे। (देखो तृतीय अध्याय वत्स/बत्स प्रकरण)। इसी वत्स वंश का शाखा गोत्र चौहान है। इन चौहान जाटों में लौह नामक वीर योद्धा हुआ जिसके नाम पर इन चौहान जाटों का एक संघ लौरा या लौरे कहलाया।(जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-1030)
वत्स गोत्र का इतिहास
महिपाल आर्य[17] लिखते हैं कि महाभारत भीष्म पर्व में वत्स क्षत्रियों का वर्णन मिलता है। बौद्ध ग्रंथों में भी वत्सों को गणतंत्र के शासक "बच्छ" नाम से उद्धरत किया गया है। वासवदत्ता संस्कृत नाटक वत्स वंश पर ही लिखा गया है। पाणिनि ने अष्टाध्यायी 4.1.174-1/6 तदेव 5.3.91 वत्सोक्षाश्वर्ष- भेम्यश्च तनुत्वे सूत्रांक अनुसार 2040 अनुसार वत्स देश की स्थिति उक्ष (कृष्णा सागर) तथा श्ववर्ष तथा ऋषभ (समे, सीरिया) तक थी। इस राज्य की राजधानी कोशाम्बी उत्तर-पश्चिमी टर्की में थी।
काशिका 4.2.97 में पाणिनीय गणपाठ के गणों में एक शब्द नवकौशाम्बी पढ़ा गया है। कया पुरातन कौशाम्बी नष्ट हुई थी और उसके स्थान पर पाणिनि से पहले कोई नई कौशाम्बी बन गयी थी। यह अन्वेषण का विषय है। इतना निश्चित है कि कौशाम्बी वत्स गणराज्य की राजधानी थी। वत्सों के साथ भर्ग जनपद था।
इसकी पुष्टि ऐतरेय ब्राह्मण 8128 और अष्टाध्यायी 4-1-111,177 में उल्लेखित सूत्रांकों से होती है। अथापत्याधिकार: (तद्धित प्रकरण) में "वत्सा:"1006 सूत्र में वत्स गोत्र वाले जन भाषित हैं। वत्सांसाभ्यां कामबले 5.2/1905 के अनुसार काम और बल अर्थ में वत्स गोत्रीय जन की विद्यमानता है। इसके साथ ही पाणिनि ने लोहित नामों का संकेत किया है। अष्टाध्यायी में लोहितादिडाज्म्य: 3/3/13 सूत्रांक 2668, लोहितान्मणौ 5/4/30 सूत्रांक 2098, लोहिताल्लिन्ग्बाधानं वा इत्यादि सूत्रों में लौह संघ का निर्देश मिलता है।
महाभारत युद्ध काल में वत्स देश अधिक प्रसिद्ध नहीं था। वत्सों की प्रसिद्धि गौतम बुद्ध के काल में महाराज उदयन के कारण अधिक हुई। वर्तमान प्रयाग के समीप ही वत्स जनपद था। 'वत्स्भूमिं च कौन्तेयो विजिम्ये बल्वान्बलात' महाभारत सभा पर्व में वर्णित श्लोकानुसार भीम ने अपनी विजय यात्रा में वत्सों को जीता था।
And the long-armed hero then, coming from that land, conquered Madahara, Mahidara, and the Somadheyas, and turned his steps towards the north. And the mighty son of Kunti then subjugated, by sheer force, the country called Vatsabhumi, and the king of the Bhargas, as also the ruler of the Nishadas and Manimat and numerous other kings.
- निवृत्य च महाबाहुर मथर्वीकं महीधरम
- सॊपथेशं विनिर्जित्य परययाव उत्तरा मुखः
- वत्सभूमिं च कौन्तेयॊ विजिग्ये बलवान बलात (II.27.9)
- भर्गाणाम अधिपं चैव निषाथाधिपतिं तदा
- विजिग्ये भूमिपालांश च मणिमत परमुखान बहून (II.27.10)
यही कारण था कि वत्स क्षेत्रीय महाभारत युद्ध में पांडवों के पक्ष में होकर कौरवों के विरुद्ध लड़े थे। महाभारत युद्ध के बाद ये कोसंबी छोड़कर पंजाब में आ गएथे . इरान में लूर क्षेत्र पंजाब पाकिस्तान में आज भी वत्सों की गाथा समेटे हुए हैं।
बुद्ध के समय यहाँ भारतवंशी शातानीक परन्तम का पुत्र उदयन (उदेन ) शासक था। शातानीक का उल्लेख मिस्री फराह (1200-1198 ई. पू. ) रूप में मिलता है। जिसने मिस्र के छोटे-बड़े सामंतों पर अधिकार कर शासन व्यवस्था कायम की। जिसका उत्तराधिकारी मारण भट्ट हुआ। शातानीक को प्रवास कर उत्तर में जाना पड़ा। पुराण अनुसार शातानीक जनमेजय के पुत्र थे, जिन्होंने पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा दृषद्वती में बड़े-बड़े यज्ञ किये यहे। भारतीय स्रोतों में उदयन के पारिवारिक सम्बन्ध अवंती [ P.16] के प्रद्योत, मगध के दर्शक तथा अंग नरेश दृढवर्मन से थे।
इस वंश के राजा उदयन का शासन 'बातिभय नगर' जिसे आज भटिंडा कहा जाता है, पर भी था। इस राजा का उज्जैन के राजा प्रद्योत से युद्ध हुआ था। इसका मंत्री योगंधरायण बड़ा योग्य पुरुष था। वासवदत्ता संस्कृत नाटक इसी राजा उदयन की रानी के नाम पर बना था। उसने वीरता पूर्वक सुदूर कलिंग की विजय की थी। उसका पुत्र बोधिकुमार युवराज की हैसियत से सुमसुगगिरी तथा कृष्ण सागर के दक्षिणी क्षेत्रों का शासक भी बना। इसी खानदान में कई पीढ़ियों के बाद वत्सराज के घर मल्खान, वत्सराज के भी जसराज के घर आल्हा-उदल आदि वीरों ने जन्म लिया जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया था। आगे चलकर इसी वंश में लौहसी नामक वीर योद्धा ने जन्म लिया, जिसके नाम पर वत्स वंश का शाखा गोत्र लौरा हो गया। समभवता: यह गोत्र ईरान, पाकिस्तान, सीरिया, टर्की आदि में अपनी उपस्थिति बनाये है। जो भिन्न-भिन्न नाम से विख्यात है।
कथासरित्सागर , बृहत्कथा मंजरी, स्वप्नवासवदत्ता में कोसंबी नरेश का जीवन-वृत्त विस्तार पूर्वक पढ़ा जा सकता है। इससे वत्स गोत्रीय जन के बारे में बहुत सी जानकारी उपलब्ध हो सकती है।
यजुर्वेद 21/18 में काम्पील (काम्पिल्य) , ब्राहमणग्रंथों में कौषीतकि ब्राहमण26/5 मन्त्र में , "नैमिषीय" छान्दोम्य उपनिषद् मन्त्र में नैमिषाराण्य का वर्णन है। प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने जहाँ अनेक आश्रम बनाये हुए थे। वर्तमान में यह नीमसर कहलाता है और एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। शतपथ ब्राहमण 12/2/2/13 अनुसार "प्रीतिर्ह कौशाम्बेय:" शब्द से स्पस्ट है कि उत्तर वैदिक युग में कौशाम्बी नगरी की स्थापना हो चुकी थी। बाद में यह नगरी वत्स महाजनपद की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध हुई। इसे वर्तमान समय का कोसम सूचित करता है जो प्रयाग के समीप यमुना के तट पर स्थित है।
कौषीतकी उपनिषद् में मत्स्य महाजनपद के साथ ही "वश" का भी उल्लेख किया गया है। वश की राजधानी कौशाम्बी नगरी थी और यही जनपद बाद में वत्स कहलाया।
हमारे मंतव्य अनुसार वत्स संघ बभ्रुगण कहलाता था। इस संघ में कीकान, अर्थवाल, आर्तक्षेत्र इत्यादि अनेक छोटे बड़े सामंत थे, जो वत्स संघ के अधिपत्य में थे। यही कारण है कि वत्स गोत्र अत्यधिक गोत्रों का संघ है।
लववंशी क्षत्रिय जाटों का इतिहास
लववंशी क्षत्रिय जाटों का बहुत बड़ा इतिहास है । श्री रामचन्द्र जी के दो पुत्र थे एक लव और दूसरे कुश । लोहरा/लौर गोत्र और लोरस क्षत्रिय (खत्री) गोत्र लववंशी क्षत्रिय जाट हैं । लौर और खत्री एक ही गोत्र है । इसलिए दोनों गोत्र में शादी नही होती है ।
जैसे जैसे समय गुजरता गया लोग लववंशी क्षत्रिय जाटों को लौह (Lauh), लोह (Loh) कहने लगे या युँ कहो कि लौह (Lauh) या लोह (Loh) कहलाने लगे, लौह (Lauh)/लोह (Loh) का अर्थ है, लोहे के समान बलशाली, ताक़तवर, और समय के साथ शब्दोँ के अपभ्रंश (शब्दोँ का बिगड़ना बोली और क्षेत्र के अनुसार) के कारण लोग लौह (Lauh) से लौर (Laur/Lor) कहने लगे या युँ कहो कहलाने लगे और लोह (Loh) से लोहरा Lohra/लौरा Lohkana-लोह्कना/लोह्काना कहलाने लगे ।
खत्री Khatri भी शब्दों के अपभ्रंश के कारण ही प्रचलन में आया । जो जाट आज अपने को खत्री Khatri लिखते हैं वो भी लववंशी क्षत्रिय जाट ही हैं । खत्री जाट पहले अपने आप को लववंशी क्षत्रीय जाट होने के कारण अपने को लोरस क्षत्रिय लिखते थे जो समय के साथ भाषा/बोली और शब्दोँ के अपभ्रंश के कारण लौरस क्षत्रिय (Loras Kshatri) से खत्री Khatri लिखने लग गए या युँ कहो कि खत्री Khatri लिखना प्रचलन मेँ आ गया । लौरस क्षत्रिय (Loras Kshatri) का अपभ्रंश ही खत्री/Khatri है ।
बड़गोती (Badgoti) गोत्र, जो लौर (Laur) गोत्र का ही सब गोत्र है । बड़गोती Badgoti अर्थ है "बड़े गोत्र का" । बड़गोती Badgoti जाट गोत्र भी लौर Laur/Lor के रूप में जाना जाता है या हम कह सकते हैं कि सही विवरण Badgotis लिए Laur/Lor होना चाहिए जिसके द्वारा वे आम तौर पर बुलंदशहर में जाने जाते हैँ । बड़गोती मूल रूप से बहुत अमीर, बड़ी भूमि होने वाली जाट की पीढ़ी के हैं । बड़गोती जाट राष्ट्र के प्रति समर्पित रहे हैँ । ये मुसलमानों और अंग्रेजों के खिलाफ अपने स्वयं के द्वारा देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े । आज के समय मेँ हम इन्हें रक्षा और पुलिस सेवाओं में अधिकतम पा सकते हैं । ये ईमानदार, बहादुर और अपने काम के प्रति जिम्मेदार रहे हैँ । ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उच्च प्रतिष्ठित जाट हैं ।
लववंशी क्षत्रिय जाट राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र मेँ बसे हुये हैं । लववंशी क्षत्रिय जाट गोत्र के 300 से अधिक गाँव हैं । भाषा (बोली) और क्षेत्र के अंतर के कारण कोई अपने को लौर Laur/Lor लिखता है और कोई लोहरा/लौरा Lohra/Laura लिखता है और जो लौरस क्षत्रिय (Loras Kshatri) लिखते थे वो जाट आज अपने को खत्री लिखते हैं ।
महिपाल आर्य[18] लिखते हैं कि इस गोत्र के पूर्वज जाट पंजाब, राजस्थान, में राज्य करते रहे हैं। लौरा आर्य क्षेत्रीय जन अजमेर से ददरेवा होते हुए अन्य जगह भादरा, बालसमंद इत्यादि में आबाद हुए। बालसमंद लौरा लोग सम्भवत: 1120-1122 वि. में आकर बसे। इससे पूर्व यहाँ पूनिया जाट वास करते थे। साथ ही नेहरा गोत्रीय जन भी थे। जिन्हें लौरा लोगों ने अन्यत्र जाने के लिए विवश किया। पुनिया जाटों का गढ़ बालसमंद में था। इसकी पुष्टि गढ़ पिछली नाम से आख्यित एक जोहड़ी है। लौरा गोत्रीय जन के बही भाट बालसमंद गाँव को संवत 1120 वि. (1063 ई.) आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को आबाद होना मानते हैं।
कुण्डली का बलिदान
स्वामी ओमानन्द सरस्वती ने देशभक्तों के बलिदान पुस्तक में लिखा है: सूबा देहली में नरेला के आस-पास लवौरक गोत्र के जाटकुल क्षत्रियों के दस बारह ग्राम बसे हुए हैं । उनमें से ही यह कुण्डली ग्राम सोनीपत जिले में जी. टी. रोड पर है । इस ग्राम के निवासियों ने भी सन् 1857 के स्वतन्त्रता युद्ध में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था । यहां के वीर योद्धाओं ने भी इसी प्रकार अत्याचारी भागने वाले अंग्रेज सैनिकों का वध किया था ।
एक अंग्रेज परिवार ऊँटकराची में बैठा हुआ इस गांव के पास से सड़क पर जा रहा था । वे चार व्यक्ति थे, एक स्वयं, दो उसके पुत्र और एक उसकी धर्मपत्नी । जब वे चारों इस ग्राम के पास आए तो गांव के लोगों ने उँटकराची को पकड़ लिया । ऊँट को भगा दिया और कराची को एक दर्जी के बगड़ में बिटोड़े में रखकर भस्मसात् कर दिया । उस अंग्रेज और उसके दोनों लड़को को मार दिया । उस देवी को भारतीय सभ्यता के अनुसार कुछ नहीं कहा । उसे समुचित भोजनादि की व्यवस्था करके गांव में सुरक्षित रख लिया । जब युद्ध की समाप्ति पर शान्ति हुई तो एक अंग्रेज नरेला के पास पलाश-वन में, जो कुण्डली से मिला हुआ है, शिकार खेलने के लिए आया । उसकी बन्दूक के शब्द को सुनकर अंग्रेज स्त्री आंख बचाकर उसके पास पहुंच गई और उसने अपने परिवार के नष्ट होने की सारी कष्ट-कहानी उसको सुना दी । वह उसे अपने साथ लेकर तुरन्त देहली पहुंच गया । एक किंवदन्ती यह भी है कि उस कराची में 80 हजार का माल था जो उस ग्राम वालों ने लूट लिया । अंग्रेज आदि उस समय कोई कत्ल नहीं किया । वह माल लूटकर इस भय से कभी तलाशी न हो, नरेला भेज दिया गया । कुण्डली ग्राम के कुछ निवासी इस घटना को असत्य भी बताते हैं । कुछ भी हो, इस ग्राम को दण्ड देने के लिए एक दिन प्रातः चार बजे अंग्रेजी सेना ने आकर घेर लिया ।
ग्राम के वस्त्र, आभूषण, पशु इत्यादि सब अंग्रेजी सेना ने लूट लिये और सारे पशु इत्यादि को अलीपुर ले जाकर नीलाम कर दिया । स्त्रियों के आभूषण बलपूर्वक उतारे गये, यहां तक कि भूमि खोद-खोद कर गड़ा हुआ धन भी निकाल लिया गया । बहुत से व्यक्ति तो जो भागने में समर्थ थे, ग्राम को छोड़कर भाग गए । ग्राम के कुछ मुख्य-मुख्य आदमी जो भागे नहीं थे, गिरफ्तार कर लिए गए । कुछ व्यक्ति ग्राम के सर्वनाश का एक कारण और भी बताते हैं । जब अत्याचारी मिटकाफ जो काणा साहब के नाम से प्रसिद्ध था और हरयाणा के वीर ग्रामों को दण्ड देता और आग लगाता हुआ फिर रहा था, वह नांगल की ओर से आया तो कुछ व्यक्ति उसके स्वागत के लिए दूध इत्यादि लेकर नांगल की ओर चले गए । वे मार्ग में ही इसका स्वागत करके अपने गांव को बचाना चाहते थे । किन्तु उस दिन मिटकाफ ने दूसरे किसी ग्राम का प्रोग्राम नांगल, जाखौली इत्यादि का बना लिया । कुण्डली वाले विवश हो लौट आये । जिस समय यह लौट रहे थे, तो अंग्रेजी सरकार की चौकी पर मालिम नाम का व्यक्ति रहता था । उसने ग्रामवासियों से दूध मांगा कि यह दूध मुझे दे जाओ, किन्तु चौधरी सुरताराम जो कठोर प्रकृति के थे, उसे यह कहकर धमका दिया कि तेरे जैसे तीन सौ फिरते हैं, तेरे लिए यह दूध नहीं है । उस व्यक्ति ने कहा - अच्छा, मुझे भी उन तीन सौ में से एक गिन लेना, समय पड़ने पर मैं भी आप लोगों को देखूंगा । उसी व्यक्ति ने मिटकाफ साहब को सूचना दी कि अंग्रेजों को कुण्डली ग्राम वालों ने मारा है । और अंग्रेज अपनी सेना लेकर ग्राम पर चढ़ आये । निम्नलिखित व्यक्तियों को गिरफ्तार किया –
1- श्री सुरताराम जी, 2- उनक पुत्र जवाहरा, 3- बाजा नम्बरदार 4- पृथीराम 5- मुखराम 6- राधे 7- जयमल । कुछ व्यक्ति जो और भी गिरफ्तार हुए थे, उनके नाम किसी को याद नहीं । यह लोकश्रुति है कि 14 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए थे - ग्यारह को दण्ड दिया गया और तीन को छोड़ दिया गया । इनमें से 8 को एक-एक वर्ष का कारागृह का दण्ड मिला । तीन को अर्थात् सुरताराम, उनके पुत्र जवाहरा तथा बाजा नम्बरदार को आजन्म काले पानी का दण्ड दिया गया । इनको अण्डमान द्वीप (कालेपानी में) भेज दिया गया । वहां पर चक्की, कोल्हू, बेड़ी इत्यादि भयंकर दण्ड देकर खूब अत्याचार ढ़ाये गये । अतः ये तीनों वीर अपने देश की स्वतन्त्रता के लिए बलिवेदी पर चढ़ गये, इनमें से कोई लौटकर नहीं आया । इसके विषय में लोगों ने बताया कि जब इनको गिरफ्तार करके ले जाने लगे तो बाजा नम्बरदार ने सुरता नम्बरदार को कहा - यह ग्राम सुख से बसे, हम तो लौटकर आते नहीं । सुरता ने कहा - बाजिया, तू तो यों ही घबराता है, मेरे माथे में मणि है (अर्थात् मैं भाग्यवान् हूं), हम अलीपुर व देहली से ही छूटकर अवश्य घर लौट आयेंगे, हमारा दोष ही क्या है ? बात यथार्थ में यह है कि अंग्रेजों ने खूब यत्न किया । इस ग्राम के द्वारा अंग्रेजों के कत्ल के अभियोग को सिद्ध नहीं क्या जा सका । सुरता की बात सुनकर बाजा ने कहा - जिनके ढोर, पशुधन आदि ही नहीं रहा, वह लौटकर कैसे आयेगा ? हुआ भी ऐसा ही । ये तीनों बहीं पर समाप्त हो गए । जो इस ग्राम के वीर स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर चढ़े, उन की पीढ़ियां निम्न प्रकार से हैं -
कुंडली के शहीदों की वंशावली
आजकल कुंडली ग्राम के स्वामी सोनीपत निवासी ऋषिप्रकाश आदि हैं, यह ग्राम उनको किस प्रकार मिला, इसके विषय में यह किंवदन्ती है कि सोनीपत निवासी मामूलसिंह नाम का ब्राह्मण (मोहर्रिर) लेखक था । सड़क पर एक आदमी की लाश पड़ी थी । कोई यह कहता है कि वह किसी अनाथ का ही शव था । उसके ऊपर वस्त्र डालकर उसके पास बैठकर मामूलसिंह रोने लगा । जब उसके पास से कुछ अंग्रेज गुजरे तो कहने लगा - यह मेरा आदमी आप लोगों की सेवा में मर गया । इसी के फलस्वरूप अंग्रेजों ने प्रसन्न होकर उसे पहले तो खामपुर ग्राम पारितोषिक के रूप में दिया था किन्तु पीछे कुण्डली ग्राम का स्वामी बना दिया । जिस समय नोटिश (विज्ञापन) लगाया गया था कि यह गांव तीन वर्ष के लिए जब्त किया जा रहा है और मामूलसिंह को दिया जा रहा है, ग्राम वालों का कहना है कि उस समय उसने अपनी चालाकी, दबाव अथवा लोभ से दबा और सिखाकर सदा के लिए अपने नाम लिखा लिया । ग्राम के लोगों ने अनेक बार मुकदमा भी लड़ा और कलकत्ते तक भाग दौड़ भी की, किन्तु नकल ही नहीं मिली । मुकदमे में यह झूठ बोल दिया गया कि यह ग्राम मेरे बाप दादा का है, हमारी यह पैतृक सम्पत्ति है । इसीलिए आज तक भी मामूलसिंह के व्यक्ति इस ग्राम के स्वामी हैं और गांव के देशभक्त कृषक जो ग्राम के निवासी और स्वामी हैं, भूमिहीन (मजारे) के रूप में अनेक प्रकार से कष्ट सहकर अपने दिन काट रहे हैं । मामूलसिंह के बेटे पोतों ने इस ग्राम को खूब तंग किया । अनेक प्रकार के पूछी आदि टैक्स लगाये, चौपाल तक नहीं बनाने दी । ग्रामवासियों ने भी खूब संघर्ष किया । अनेक बार जेल में गये । अन्त में चौपाल तो बनाकर ही छोड़ी । श्री रत्नदेव जी आर्य, जो सुरता और जवाहरा के परिवार में से हैं, इन्होंने ग्राम पर होने वाले अत्याचारों को दूर करने के लिए संघर्षों में नेतृत्व किया और खूब सेवा की । इस ग्राम के निवासी प्रायः सभी उत्साही हैं । अंग्रेजी राज्य के रहते इस ग्राम के पढ़े लिखे को किसी भी सरकारी नौकरी में नहीं लिया गया । सभी प्रकार के कष्ट यह लोग सहते रहे और यह आशा लगाये बैठे थे कि जब देश स्वतन्त्र होगा तब हमारे कष्ट दूर हो जायेंगे । जब सन् 47 में 15 अगस्त को देश को स्वतन्त्रता मिली और लाल किले पर तिरंगा झण्डा फहराया गया उस समय यह गांव बड़े हर्ष में मग्न था कि अब हमारे भी सुदिन आ गये हैं । किन्तु आज देश को स्वतन्त्र हुए 38 वर्ष हो चुके हैं, यहां के ग्रामवासी पहले से भी अधिक दुःखी हैं । हमारे राष्ट्र के कर्णधारों व राज्याधिकारियों का इनके कष्टों की ओर कोई ध्यान नहीं । भगवान् ही इनके कष्टों को दूर करेगा । कुण्डली ग्राम के निवासी वृद्ध जीतराम जी जिनकी आयु 85 वर्ष है, तथा सुरता और जवाहरा के परिवार के श्री महाशय रत्नदेव जी और उनके बड़े भाई आशाराम जी ने इस ग्राम के इतिहास की सामग्री इकट्ठी करने में मुझे पूरा सहयोग दिया है, इन सबका मैं आभारी हूँ ।
खामपुर, अलीपुर, हमीदपुर, सराय आदि अनेक ग्राम हैं जिन्होंने सन् 1857 के युद्ध में बड़ी वीरता से अपने कर्त्तव्य का पालन किया था । जब कभी मुझे समय मिला, मेरी इच्छा है मैं हरयाणा का एक बहुत बड़ा इतिहास लिखूं, तब इनके विषय में विस्तार से लिखूंगा । खामपुर आदि ग्राम भी जब्त कर लिए गए थे । ग्राम खामपुर दिल्ली निवासी एक ब्राह्मण लछमनसिंह के बाप दादा को दिया गया था । आज भी वह परिवार उस ग्राम का स्वामी है । खामपुर ग्राम के जाट जो निवासी थे वे भाग गये थे, वह खेड़े आदि अन्य ग्रामों में बसते हैं । इस ग्राम में तो अन्य मजदूरी करने वाले लोग बसते हैं । अलीपुर ग्राम के आदमियों को भी लिबासपुर के निवासियों के समान सड़क पर डालकर कोल्हू से पीस दिया गया था और अलीपुर ग्राम को बुरी तरह लूटकर जलाकर राख कर दिया गया था । अलीपुर ग्राम को जब्त करके दिल्ली के कुछ देशद्रोही मुसलमानों को दे दिया गया था । उन मुसलमानों के परिवार ने जो इस ग्राम के स्वामी थे, चरित्र संबन्धी गड़बड़ कुण्डली ग्राम में आकर की । कुंडली ग्राम के दलितों ने इन पापियों के ऊपर अभियोग चलाया और उसी अभियोग में विवश होकर वह अलीपुर ग्राम मुसलमानों को जाटों के हाथ बेचना पड़ा । हमीदपुर ग्राम भी जब्त करके मुसलमानों को दिया गया था । इसी प्रकार ही ऐसे देशभक्त ग्रामों को जब्त करके देशद्रोहियों को दे दिया गया था । इसके विषय में विस्तार से कभी समय मिलने पर लिखूंगा ।
लौरा गोत्र का विस्तार
लौरा गोत्र के लोग हरयाणा के भिन्न-भिन्न जिलों में आबाद हैं।
- जिला हिसार में - बालसमंद, राखी - गढ़ी , खरबला, मिर्चपुर, महेन्दा गढ़ी, मसूदपुर, न्योली खुर्द, चमार खेड़ा,
- जिला भिवानी - बिनोई, कुडल, ओबरा, में लौर बसते हैं।
- जिला रिवाड़ी में - झाबुआ (बड़ा गाँव) , बनीपुर, खजूरी, अलावलपुर इत्यादि।
- जिला रोहतक - घिलोड़ - ये बालसमंद से आकर आबाद हुए।
- जिला पानीपत: में पलडी - ये बालसमंद से आकर आबाद हुए।
- जिला कैथल: कसान गाँव जो बड़ा गाँव है ये लालड़ गोत्र लिखते हैं। कैथल जिले में ही सौंगरी और छोत गाँव में कसान गाँव से आकर बसे हैं।
- जिला सिरसा - बनसुधार,
- जिला फतेहाबाद - मेहूवाला
- जींद - मंगलपुर
- यमुनानगर - खर्द्बन, बापोली, जटलाना, लाला हड़ी, दिन्द्याणा , रापौर आदि ये लालड़ लिखते हैं।
- कुरुक्षेत्र - बण, बूढा , झलेड़ा (लालड़ गोत्र)
उत्तर प्रदेश में:
राजस्थान में:
- जिला नागौर - केडली, लालरु , गुगड़वार, जाबदीनगर , भिंडा देवली, लौरों की ढाणी, आदि
- जोधपुर, पाली और बीकानेर में भी लौरा गोत्र के जाट हैं।
उत्तर प्रदेश में अलीगढ और बुलन्दशहर के आस-पास भी कई गाँव हैं।
पंजाब में लुधियाना में लौरा सिख जाट हैं।
लोरा वंशीय खाप हरयाणा का गठन
लोरा वंशीय भाईयों व बहनों के लिए दिनांक 25 नवम्बर 2012 का ऐतिहासिक अवसर लेकर आया। पहली बार इस समाज के करीब 11 जिलों में दूर-दूर बसे भाईयों ने घिलोड़ कलां जिला रोहतक में इकट्ठे होकर इस शुभ कार्य को पूरा किया। लोर वंशीय गोत्र के हरयाणा में सबसे बड़े गाँव बालसमंद जिला हिसार के चौधरी रणजीत सिंह लौरा, भूतपूर्व चेयरमैन को सर्वसम्मति से खाप प्रधान बनाया गया। सर्वश्री प्रिंसिपल जिले सिंह मांगलपुर, जींद , धर्मवीर सिंह पलडी, पानीपत, कैप्टन भीम सिंह, राखीगढ़ी (हिसार) सुन्दर सिंह, घिलोड़ कलां (रोहतक) को उप-प्रधान बनाया गया।
खाप गठन के समय सभी भाईयों से प्रधान रणजीत सिंह लौरा ने आह्वान किया कि हमें मिलजुल कर सामाजिक भाईचारा बनाना है। सामाजिक बुराईयों का मजबूती से विरोध करना है। खाप के उद्देश्यों की पूर्ती के लिए और इसे सही रूप से चलाने हेतु प्रधानजी ने व सभी उप-प्रधानों ने सर्वसम्मति से इन्द्रजीत आर्य (बालसमंद) को खाप का महासचिव तथा सुखबीर सिंह (घिलोड़ कलां) को कोषाध्यक्ष बनाया गया। (साभार: इन्द्रजीत आर्य, बालसमंद, मो: 9313592515, जाट ज्योति, जनवरी 2013, पृ 23)
सभी की और अधिक जानकारी के लिए लववंशी क्षत्रिय जाटोँ की हर साल मार्च मेँ राम नवमी के दिन नरेला (दिल्ली) गाँव मेँ इनकी वार्षिक बैठक होती है । इस बार एक समुदाय का गठन किया जायेगा और लववंशी क्षत्रिय जाट गोत्र के इतिहास से संबंधित एक पत्रिका का संपादन भी होगा और पत्रिका लववंशी क्षत्रिय जाटोँ के गोत्रोँ के गाँवोँ मेँ मुख्य रुप से बाँटी जायेगी ।
Laur Khap
Laur Khap has 10 villages in Aligarh district in Uttar Pradesh. Main villages are Gauraula (गौरौला), Naglia Gauraula (नगलिया गौरौला). Jat Gotra - Laur.[19]
लौर खाप
66. लौर खाप - इस खाप के 10 गांव अलीगढ़ जनपद में हैं जिनमें पर परसेरा, नागरिया आदि प्रमुख हैं. यह लौर गोत्र के जाटों की एक छोटी खाप है.[20]
Distribution in Rajasthan
दलीपसिंह अहलावत लिखते हैं - लौरा जाटों की संख्या राजस्थान में बहुत है। उत्तरप्रदेश में जि० मेरठ, अलीगढ़ और बुलन्दशहर में इस गोत्र के जाटों के काफी गांव हैं। (जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-1031)
Villages in Alwar district
Lohra Jats have been living in Tatarpur, Alwar Rajasthan for more than 300 years. Tatarpur,
Villages in Hanumangarh district
Bhadi, Dabri Daultawaly, Dungrana, Gunjasari, Shivdanpura, Sikrodi Barani,
Villages in Jaipur district
Locations in Jaipur city
Murlipura Scheme, Vaishali Nagar, Vidyadhar Nagar,
Villages in Sikar district
Arjunpura, Banathla, Banuda (4), Khud, Lora Ki Dhani (Khud), Thikriya,
Villages in Nagaur district
Dodiyana Nagaur, Gugarwar, Jabdinagar, Lora Ka Bas, Loron Ki Dhani, Lorpura, Loroli Kalan, Loroli Khurd, Lohrana, Lalas Nagaur, Modriya, Nalot, Palri Kalan, Rajlota, Tehla,
Villages in Jhunjhunu district
Villages in Churu district
Lora found in villages: Sujangarh (10),
Distribution in Uttar Pradesh
दलीपसिंह अहलावत लिखते हैं - लौरा जाटों की संख्या राजस्थान में बहुत है। उत्तरप्रदेश में जि० मेरठ, अलीगढ़ और बुलन्दशहर में इस गोत्र के जाटों के काफी गांव हैं। (जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-1031)
Villages in Aligarh district
Gauraula, Kansera, Naglia Gauraula, Nagariya, Palshera,
Villages in Bulandshahar district
Bhootgarhi, Chikhal, Hurthala, Jagdishpur, Mahmoodpur, Manchad
Villages in Gautam Budh Nagar district
Villages in Mathura District
Villages in Meerut District
Jatpura Meerut(जटपुरा/ जाटपुरा), Bhainsa(भैंसा)
Villages in Moradabad District
Lalhar Jats live in Nakhoonka,Ramnagar Khagoowala
Villages in Gonda District
Villages in Balrampur District
Villages in Farrukhabad District
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Ratlam district
Villages in Ratlam district with population of Laur (लौर) gotra are:
Dhaturiya 1,
Villages in Ratlam district with population of Lor (लोर) gotra are:
Ratlam 1,
Distribution in Haryana
Villages in Bhiwani District
Dudhwa, Khatiwas, Kurdal, Leghan Bhanan, Obra,
Villages in Faridabad District
Villages in Hisar District
Balsamand, Kharbla, Kharia Hisar, Kumaria, Masudpur Hansi, Mehanda, Mirchpur, Mirzapur Hisar, Neoli Khurd, Rakhi Garhi, Rakhi Khas,
Villages in Jind District
Villages in Panipat District
Villages in Sonipat District
Villages in Rohtak District
Villages in Rewari district
Alawalpur, Badhoj, Bidawas, Banipur, Jhabuwa, Khijuri,
Villages in Kaithal district
Villages in Sirsa district
Villages in Fatehabad district
Villages in Kurukshetra district
Ban Kurukshetra, Budha Kurukshetra, Sirsma[21]
Villages in Yamunanagar district
Bapauli, Jathlana, Khurdban, Lalhari Kalan,
Distribution in Punjab
Villages in Ludhiana district
Notable persons
- Ravi Kumar Laur served in Indian Air Force who won Bronze medal in 10 metre air pistol in commonwealth games 2018 at gold coast Australia belongs to Bhainsa village Meerut
- Virendra Singh Laur - Social worker and influential Jat leader, President Bulandsahar district Jat Mahasabha. Born at village Hurthala (हुर्थला), Surjavli, Uttar Pradesh.[22]
- Hari Singh Lora - [Manager Raj. State Land Development Bank] VPO - Banathala, Teh. - Danta Ramgarh, Distt. - Sikar, Present Address : 72, Nemi Nagar, Vaishali Nagar, Jaipur, Phone Number : 0141-2350315, Mob: 9414824395
- Chaudhari Ranjit Singh Lora - From village Balsamand Hisar is the President of Lora Khap.
- Dharmvir Singh Lora - From Palri Israna, Vice President Lora Khap.
- Sundar Singh Lora - From Ghilod Kalan, Vice President Lora Khap.
- Captain Bhim Singh Lora - From Rakhigarhi, Vice President Lora Khap.
- Sukhbir Singh Lora - From Ghilod Kalan, Treasurer Lora Khap.
- Bablu Singh Laur (Sepoyy) (10.07-1987 - 30.07.2016), [[Sena Medal, is a Martyr of militancy in Jammu and Kashmir. He was from village Jhandipur Bangar, tahsil and district Mathura, Uttar Pradesh. He became martyr on 30.07.2016 during Operation Rakshak. Unit-18 Jat Regiment/61 Rashtriya Rifles.
- Indrajit Singh Arya Lora - From Balsamand Hisar, is General Secretary Lora Khap. Mob:9313592515
- Shefali Chaudhary (Laur) - शहीद पायलट शैफाली चौधरी, भारतीय वायुसेना में ‘शौर्य चक्र’ प्राप्त करने वाली प्रथम महिला।
- Viney Choudhary (Maj) (Lora) (18.1.1968 - 29.4.1999) became martyr on 29 Apr 1999 during a counter-insurgency operation at Takia village in Jammu and Kashmir. He was from village Mangalpur in Jind district of Haryana.
- Sachin Laur became martyr of militancy on 21.11.2023 in Rajauri sector of Jammu and Kashmir. He was from Naglia Gauraula village in Khair tahsil in Aligarh district in Uttar Pradesh.
- Unit - 9 Parachute (SF)
See also
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ल-32
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.59,s.n. 2259
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ल-48
- ↑ Mahipal Arya, Jat Jyoti, August 2013, p. 17
- ↑ देशभक्तों के बलिदान by Swami Omanand Sarswati
- ↑ An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan, H. W. Bellew, p.184
- ↑ Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Introduction,p.9
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 280
- ↑ Mahipal Arya, Jat Jyoti, August 2013,p. 14
- ↑ Book I (p.7)
- ↑ An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan, p.184
- ↑ "Archaeological Survey Of India; Excavations - Important - Bihar".
- ↑ Book I (p.7)
- ↑ Rajatarangini of Kalhana:Kings of Kashmira/Book VII (i), pp. 266-267
- ↑ Natural History by Pliny Book VI/Chapter 29
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Shashtham Parichhed, p.126
- ↑ जाट ज्योति, अगस्त 2013,p.13-17
- ↑ जाट ज्योति, अगस्त 2013,p. 16
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p. 21
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p. 21
- ↑ User:Rakeshkumharia
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 382
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