Vats
Vats (वत्स) [1] or Bachhra (बछड़ा) [2] Bachhas (बछस) is gotra of Jats found in District Muzaffarnagar in Uttar Pradesh. [3]They fought Mahabharata War in Pandava's side
Origin
This gotra originated after an ancient kingdom named Vatsa (वत्स). [4]
History
वत्स वंश
डॉ ओमपाल सिंह तुगानिया [5] ने लिखा है....कहीं-कहीं गोत्र और वंश एक ही अर्थ में प्रयोग किए जाते हैं जो अज्ञानता का सूचक है. लाकड़ा गोत्र के गांवों यथा रमाला, किरठल, लूम्ब, तुगाना आदि में विवाह संस्कार के अवसर पर अपना गोत्र चौहान ही बताने लगे हैं जबकि गोत्र लाकड़ा और वंश या कुल चौहान बताना चाहिए.
इसी प्रकार जिला फरीदाबाद में बसे गांव मीतरोल आदि के लोग अपना गोत्र वत्स (बच्छस) बताते हैं जबकि वत्स तो ऋषि गोत्र है यह अभी तक अपने ऋषि गोत्र से काम चला रहे हैं. इनका भी गोत्र लाकड़ा ही है.
वत्स जाटवंश
दलीप सिंह अहलावत[6] के अनुसार वत्स जाटवंश के वीर सैनिक महाभारत युद्ध में पाण्डवों की ओर होकर कौरवों के विरुद्ध लड़े थे (महाभारत भीष्मपर्व)। बौद्ध ग्रन्थों में वत्सों को गणतन्त्री बच्छ के नाम से ही लिखा है। महाभारत के बाद ये लोग कौसाम्बी को छोड़कर पंजाब में आ गये थे। इस वंश के राजा उदयन का शासन बातिभय (भटिंडा) पर था। इस राजा का उज्जैन के राजा प्रद्योत से युद्ध भी हुआ था। इसका मन्त्री यौगन्धरायण बड़ा योग्य पुरुष था। वासवदत्ता संस्कृत काव्य इसी राजा की रानी के नाम पर बना है। इसी वत्स खानदान में कई पीढियों बाद बच्छराज के घर मलखान का जन्म हुआ। बच्छ उस समय विपत्ति के दिन काट रहा था। मलखान का पालन-पोषण चन्देल राजा परमाल के यहां जस्सराज के पुत्रों के साथ हुआ था। जस्सराज और वत्सराज (बच्छराज) दोनों भाई थे। बड़े होने पर मलखान ने अपने बाप-दादों की भूमि भटिंडा के पास सिरसा में अपना राज्य स्थापित किया। पूर्णसिंह जाट जो कि मलखान की सेना का एक प्रसिद्ध सेनापति था, वह मलखान का चचेरा भाई था। इन बच्छ अथवा बछड़े जाटों की यू० पी० में भी आबादी है। (जाट इतिहास उत्पत्ति और गौरव खण्ड) पृ० 105-106, लेखक ठाकुर देशराज)।
नोट - इस उपर्युक्त लेख से यह प्रमाणित हो जाता है कि वीर योद्धा आहला, ऊद्दल, मलखान आदि जाट थे। इनका वर्णन उचित स्थान पर किया जायेगा।
वत्सवंश का शाखागोत्र - वत्स चौहान।
वत्स गोत्र का इतिहास
महिपाल आर्य[7] लिखतेहैं कि महाभारत भीष्म पर्व में वत्स क्षत्रियों का वर्णन मिलता है। बौद्ध ग्रंथों में भी वत्सों को गणतंत्र के शासक "बच्छ" नाम से उद्धरत किया गया है। वासवदत्ता संस्कृत नाटक वत्स वंश पर ही लिखा गया है। पाणिनि ने अष्टाध्यायी 4.1.174-1/6 तदेव 5.3.91 वत्सोक्षाश्वर्ष- भेम्यश्च तनुत्वे सूत्रांक अनुसार 2040 अनुसार वत्स देश की स्थिति उक्ष (कृष्णा सागर) तथा श्ववर्ष तथा ऋषभ (समे, सीरिया) तक थी। इस राज्य की राजधानी कोशाम्बी उत्तर-पश्चिमी टर्की में थी।
काशिका 4.2.97 में पाणिनीय गणपाठ के गणों में एक शब्द नवकौशाम्बी पढ़ा गया है। कया पुरातन कौशाम्बी नष्ट हुई थी और उसके स्थान पर पाणिनि से पहले कोई नई कौशाम्बी बन गयी थी। यह अन्वेषण का विषय है। इतना निश्चित है कि कौशाम्बी वत्स गणराज्य की राजधानी थी। वत्सों के साथ भर्ग जनपद था।
इसकी पुष्टि ऐतरेय ब्राह्मण 8128 और अष्टाध्यायी 4-1-111,177 में उल्लेखित सूत्रांकों से होती है। अथापत्याधिकार: (तद्धित प्रकरण) में "वत्सा:"1006 सूत्र में वत्स गोत्र वाले जन भाषित हैं। वत्सांसाभ्यां कामबले 5.2/1905 के अनुसार काम और बल अर्थ में वत्स गोत्रीय जन की विद्यमानता है। इसके साथ ही पाणिनि ने लोहित नामों का संकेत किया है। अष्टाध्यायी में लोहितादिडाज्म्य: 3/3/13 सूत्रांक 2668, लोहितान्मणौ 5/4/30 सूत्रांक 2098, लोहिताल्लिन्ग्बाधानं वा इत्यादि सूत्रों में लौह संघ का निर्देश मिलता है।
महाभारत युद्ध काल में वत्स देश अधिक प्रसिद्ध नहीं था। वत्सों की प्रसिद्धि गौतम बुद्ध के काल में महाराज उदयन के कारण अधिक हुई। वर्तमान प्रयाग के समीप ही वत्स जनपद था। 'वत्स्भूमिं च कौन्तेयो विजिम्ये बल्वान्बलात' महाभारत सभा पर्व में वर्णित श्लोकानुसार भीम ने अपनी विजय यात्रा में वत्सों को जीता था।
And the long-armed hero then, coming from that land, conquered Madahara, Mahidara, and the Somadheyas, and turned his steps towards the north. And the mighty son of Kunti then subjugated, by sheer force, the country called Vatsabhumi, and the king of the Bhargas, as also the ruler of the Nishadas and Manimat and numerous other kings.
- निवृत्य च महाबाहुर मथर्वीकं महीधरम
- सॊपथेशं विनिर्जित्य परययाव उत्तरा मुखः
- वत्सभूमिं च कौन्तेयॊ विजिग्ये बलवान बलात (II.27.9)
- भर्गाणाम अधिपं चैव निषाथाधिपतिं तदा
- विजिग्ये भूमिपालांश च मणिमत परमुखान बहून (II.27.10)
यही कारण था कि वत्स क्षेत्रीय महाभारत युद्ध में पांडवों के पक्ष में होकर कौरवों के विरुद्ध लड़े थे। महाभारत युद्ध के बाद ये कोसंबी छोड़कर पंजाब में आ गएथे . इरान में लूर क्षेत्र पंजाब पाकिस्तान में आज भी वत्सों की गाथा समेटे हुए हैं।
बुद्ध के समय यहाँ भारतवंशी शातानीक परन्तम का पुत्र उदयन (उदेन ) शासक था। शातानीक का उल्लेख मिस्री फराह (1200-1198 ई. पू. ) रूप में मिलता है। जिसने मिस्र के छोटे-बड़े सामंतों पर अधिकार कर शासन व्यवस्था कायम की। जिसका उत्तराधिकारी मारण भट्ट हुआ। शातानीक को प्रवास कर उत्तर में जाना पड़ा। पुराण अनुसार शातानीक जनमेजय के पुत्र थे, जिन्होंने पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा दृषद्वती में बड़े-बड़े यज्ञ किये यहे। भारतीय स्रोतों में उदयन के पारिवारिक सम्बन्ध अवंती [ P.16] के प्रद्योत, मगध के दर्शक तथा अंग नरेश दृढवर्मन से थे।
इस वंश के राजा उदयन का शासन 'बातिभय नगर' जिसे आज भटिंडा कहा जाता है, पर भी था। इस राजा का उज्जैन के राजा प्रद्योत से युद्ध हुआ था। इसका मंत्री योगंधरायण बड़ा योग्य पुरुष था। वासवदत्ता संस्कृत नाटक इसी राजा उदयन की रानी के नाम पर बना था। उसने वीरता पूर्वक सुदूर कलिंग की विजय की थी। उसका पुत्र बोधिकुमार युवराज की हैसियत से सुमसुगगिरी तथा कृष्ण सागर के दक्षिणी क्षेत्रों का शासक भी बना। इसी खानदान में कई पीढ़ियों के बाद वत्सराज के घर मल्खान, वत्सराज के भी जसराज के घर आल्हा-उदल आदि वीरों ने जन्म लिया जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया था। आगे चलकर इसी वंश में लौहसी नामक वीर योद्धा ने जन्म लिया, जिसके नाम पर वत्स वंश का शाखा गोत्र लौरा हो गया। समभवता: यह गोत्र ईरान, पाकिस्तान, सीरिया, टर्की आदि में अपनी उपस्थिति बनाये है। जो भिन्न-भिन्न नाम से विख्यात है।
कथासरित्सागर , बृहत्कथा मंजरी, स्वप्नवासवदत्ता में कोसंबी नरेश का जीवन-वृत्त विस्तार पूर्वक पढ़ा जा सकता है। इससे वत्स गोत्रीय जन के बारे में बहुत सी जानकारी उपलब्ध हो सकती है।
यजुर्वेद 21/18 में काम्पील (काम्पिल्य) , ब्राहमणग्रंथों में कौषीतकि ब्राहमण26/5 मन्त्र में , "नैमिषीय" छान्दोम्य उपनिषद् मन्त्र में नैमिषाराण्य का वर्णन है। प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने जहाँ अनेक आश्रम बनाये हुए थे। वर्तमान में यह नीमसर कहलाता है और एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। शतपथ ब्राहमण 12/2/2/13 अनुसार "प्रीतिर्ह कौशाम्बेय:" शब्द से स्पस्ट है कि उत्तर वैदिक युग में कौशाम्बी नगरी की स्थापना हो चुकी थी। बाद में यह नगरी वत्स महाजनपद की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध हुई। इसे वर्तमान समय का कोसम सूचित करता है जो प्रयाग के समीप यमुना के तट पर स्थित है।
कौषीतकी उपनिषद् में मत्स्य महाजनपद के साथ ही "वश" का भी उल्लेख किया गया है। वश की राजधानी कौशाम्बी नगरी थी और यही जनपद बाद में वत्स कहलाया।
हमारे मंतव्य अनुसार वत्स संघ बभ्रुगण कहलाता था। इस संघ में कीकान, अर्थवाल, आर्तक्षेत्र इत्यादि अनेक छोटे बड़े सामंत थे, जो वत्स संघ के अधिपत्य में थे। यही कारण है कि वत्स गोत्र अत्यधिक गोत्रों का संघ है।
चौहान और वत्स का सम्बन्ध
प्राचीन वत्स नामक राज्य के आधार पर सम्पूर्ण चौहान वर्ग अपने को वत्स गोत्री बतलाता है। बिजोलिया शिलालेख विक्रम संवत 1226 (1170 AD) से इस तथ्य की पुष्टि होती है। यह शिला लेख एपिग्राफिक इंडिया भाग 26 प. 90 -100 पर प्रकाशित हुआ है. डॉ. गोपीनाथ शर्मा [8]लिखते हैं कि यह लेख बिजोलिया के पार्श्वनाथ मंदिर की उत्तरी दीवार के पास एक चट्टान पर उत्कीर्ण है. इसमें 93 संस्कृत पद्यों का प्रयोग किया गया है. इसका समय विक्रम संवत 1226 फाल्गुन कृष्णा तृतीया, तदानुसार फरवरी 5, सन 1170 है. इसमें साम्भर और अजमेर के चौहान वंस की सूची तथा उपलब्धियों का वर्णन है. इसमें शासकों को वत्स गोत्र का बताया गया है.
पूरा शिलालेख प्राप्त नहीं है. इस शिलालेख की कुछ पंक्तियां नीचे दी गयी हैं:
- विप्र श्री वत्स गोत्रे भूदहिच्छ्त्रपुरे पुरा । सामन्तोअनन्त सामन्त: पूर्नतल्लो नृपस्तत: ॥ तस्माच्छ्री :जयराजविग्रहनृपौ-श्री चन्द्रगोपेन्द्रकौ । तस्मादुर्लभ गूबको शशिनृपौ-गूवाकसच्चन्दनौ ॥ [9]
वत्स जाट गोत्र की शाखाएं
- चौहान गोत्र - यह सोलह आने सच है कि चौहान गोत्र इस वत्स जाट गोत्र की शाखा गोत्र है। कुछ लोग चौहान उपधिवाचक गोत्र को राजपूत समझ लेते हैं जबकि चौहान गोत्र जाट क्षेत्रीय गोत्र है। प्राचीन ग्रंथों में राजपूत जाति का उल्लेख नहीं है। राजपूत जाती का जब राजस्थान में राज्य स्थापित हो गया तब 14 शादी में शदी में सभी क्षेत्रीय राजपूत माने जाने लगे। कर्नल टॉड ने कवी चंदबरदाई के आधार पर प्रतिहार-परमार सोलंकी और चौहान जाट क्षेत्रियों को अग्नि से उत्पन्न लिखा है। कवी की कल्पना को सत्य मानकर टॉड ने इन्हें राजपूत जाती का मान लिया। स्मरण रहे कि अग्निकुल घटनाकाल में अनेक जाट गोत्र यथा
- फोगाट,
- नरवाल,
- देवड़ा,
- हाड़ा,
- बुरड़क आदि ने चौहान उपाधि धारण करके अपने को गौरवान्वित समझा।
- लौरा - दलीप सिंह अहलावत लिखते हैं कि लौरा एक प्रसिद्ध जाट गोत्र है जो वत्स या बत्स जाट गोत्र की शाखा चौहान जाटों का शाखा गोत्र है। वत्स जाट गोत्र के योद्धा महाभारत युद्ध में पाण्डवों की ओर होकर लड़े थे। महाभारत युद्ध के बाद वत्स जाटों का राज्य पंजाब में भटिण्डा क्षेत्र पर रहा जिनका राजा उदयन था। फिर इनका शासन उज्जैन में रहा। इसी गोत्र के प्रसिद्ध वीर योद्धा आल्हा, उद्दल और मलखान थे। (देखो तृतीय अध्याय वत्स/बत्स प्रकरण)। इसी वत्स वंश का शाखा गोत्र चौहान है। इन चौहान जाटों में लौह नामक वीर योद्धा हुआ जिसके नाम पर इन चौहान जाटों का एक संघ लौरा या लौरे कहलाया।(जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-1030)
Distribution
Distribution in Uttar Pradesh
Notable persons
- वत्सराज - इसी खानदान में कई पीढ़ियों के बाद वत्सराज के घर
- मल्खान, वत्सराज के भी
- जसराज के घर
- आल्हा-
- उदल आदि वीरों ने जन्म लिया जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया था। आगे चलकर इसी वंश में
- लौहसी नामक वीर योद्धा ने जन्म लिया, जिसके नाम पर वत्स वंश का शाखा गोत्र लौरा हो गया।[10]
- इन्हीं दिनों वत्स गोत्र के चौधरी मांगेराम एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी के रूप में उभर कर सामने आए। उन्होंने हिसार में ‘कीर्ति किसान दल’ की स्थापना की। चौधरी मांगेराम वत्स इस हद तक संघर्षरत हुए कि उन्होंने सम्भवतः देशभक्तों में सब से अधिक जेलें काटीं और ब्रिटिश सरकार का भयंकर दमन सहन किया। आगे चलकर चौधरी मांगेराम वत्स सोशलिस्ट पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ता रहे। आन्दोलन के दिनों में ही सीमान्त गांधी खान अब्दुल गफ्फार खां हरयाणा में पधारे। भारी जनसभाएं हुईं और पंजाब प्रान्त के सभी प्रमुख नेताओं ने इनमें भाग लिया।[11]
External links
See also
References
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.59,s.n. 2268
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ब-7
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII,s.n. 22.p-585
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998 p. 266
- ↑ Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu/Gotra, p.6
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-294
- ↑ जाट ज्योति, अगस्त 2013,p.13-17
- ↑ राजस्थान के इतिहास के स्तोत्र, प. 94-95
- ↑ Epigraphia Indica, Vol.3
- ↑ Asli Lutere Koun/Part-I,p.69
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter X (Page 843)
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