Unionist Party

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(Redirected from Zamindar Association)

The Unionist Party was a political party based in the province of Punjab during the period of British rule in India.

The Unionist Party was also known by the names Zamindar Party or Zamindara Party, Zamindar League, Zamindar Association, Punjab Unionist Party, National Unionist Party etc.

This political party mainly represented the interests of the farming communities which included Muslims, Hindus and Sikhs. The Unionists dominated the political scene in Punjab from World War I to the independence of India (1947).

Organisation

The Unionist Party, a secular party, was formed to represent the interests of Punjab's large farming classes and gentry. Sir Sikandar Hyat Khan, Sir Fazle Husain, Chaudhry Sir Shahab-ud-Din, Khizr Hayat Khan and Sir Chhotu Ram were the co-founders of the party. Although a majority of Unionists were Muslims, a large number of Hindus and Sikhs also supported and participated in the Unionist Party.

The Muslim elements of the Unionists shared many common points with the Muslim League but the Unionists were virtually an independent political party in the 1920s and 1930s, when the Muslim League was unpopular and divided into feuding factions. However, the rule of Unionist leader Sir Sikandar remained undisputed in the Punjab and he remained the Punjab's Premier (Chief Minister) from 1937 to 1942, in alliance with the Indian National Congress and the Shiromani Akali Dal despite Jinnah's opposition to both parties. Sir Sikandar thus remained the most popular and influential politician in Punjab during his lifetime, preventing both Jinnah and Muhammad Iqbal from gaining the support of a majority of Punjabi Muslims.

Role of Sir Chhotu Ram in the Unionist Party

चौधरी छोटूराम जी ने 6 नवम्बर 1920 को कांग्रेस छोड़ दी। इसके पश्चात् उन्होंने पंजाब के प्रसिद्ध मुस्लिम नेता मियां सर फजले हुसैन से मिलकर संयुक्त राष्ट्रवादी दल (यूनियनिस्ट नेशनल पार्टी) यानी जमींदार लीग बनाई। चौधरी छोटूराम यह समझते थे कि महाजन, साहूकार और हिन्दू महासभा के गुप्त समर्थक कांग्रेसी नेताओं के किसान विरोधी गठबन्धन को चुनौती, बिना किसी सबल संगठन के देना, आसान नहीं है। अतः आप ने किसानों अर्थात् जमींदार के नाम पर सिख, मुसलमान तथा जाटों को संगठित किया। इस जमींदार लीग का उद्देश्य था देहात के किसानों और पिछड़े हुए गरीब लोगों का उद्धार करना। कांग्रेस अब देहात में पूरी तरह नहीं पहुंच पाई थी। जमींदार पार्टी ने वह किया जो कांग्रेस आज तक भी नहीं कर पाई है। देहात को उसने अपने साथ लगा लिया।

कांग्रेस छोड़कर जमींदार लीग बनाने पर कांग्रेसी तथा ईर्ष्यालु लोगों ने चौधरी छोटूराम को अंग्रेजों का दास, पिट्ठू, टोडी, देशद्रोही, गद्दार और विश्वासघाती बताया और कहते रहे। आज भी कुछ ईर्ष्यालु एवं अज्ञानी लोगों की बुद्धि से कुछ ऐसे विचार दूर नहीं हुये हैं। पहले इसी के बारे में स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता है। चौधरी छोटूराम तथा उनकी जमींदार लीग ने अंग्रेज सरकार से मिलकर पंजाब के किसानों तथा गरीबों की हर पहलू में उद्धार एवं उन्नति की। जहां तक किसानों तथा देश के हित का प्रश्न हुआ तो सर छोटूराम ने अवश्य ही अंग्रेज सरकार से मिलकर सहायता ली। किन्तु जहां पर अंग्रेजों ने देश, किसानों तथा छोटूराम के विरुद्ध अपने हितों की बात करनी चाही वहीं पर चौधरी छोटूराम ने निडरता से उनकी बात को ठुकरा दिया और डटकर टक्कर ली। वे सच्चे देशभक्त, अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के पक्ष में तथा किसानों के सच्ची हितकारी एवं ‘मसीहा’ थे।[1]

Major reformist laws passed by the Unionist Party

मुस्लिम लीग ने पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी से और भारत में कांग्रेस पार्टी से टक्कर लेने की योजना बनाई। नारा था “इस्लाम खतरे में है।” चौ० छोटूराम ने अपने आर्थिक कार्यक्रम से पंजाब के मुस्लिम किसानों के दिल को जीत लिया। इसलिए मुस्लिम लीग की वहां दाल न गली। सर चौ० छोटूराम का नारा था कि “मजहब बदल सकता है परन्तु खून का नाता तो एक रहता है, जो बदल नहीं सकता।” इस पर सब धर्मों के जाट जैसे हिन्दू, सिक्ख, मुसलमान तथा ईसाई जिनमें किसानों की संख्या अधिक थी, चौ० छोटूराम की ‘जमींदार लीग’ के झण्डे के नीचे आ गये और उनको अपना प्रिय नेता मान लिया। चौ० छोटूराम ने अपनी राजनीति को मजहब से अलग रखा। इसीलिए अंग्रेजों की “फूट डालो और राज करो” की नीति भी पंजाब में फेल हो गई। इसी प्रकार कांग्रेस पार्टी भी पंजाब में अपने पांव जमाने में पूर्ण असफल रही।

चौ० छोटूराम एक चतुर, मजबूत राजनीतिज्ञ थे। वे समय और स्थिति के अनुसार अमल


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करते थे। वे ध्येय और सिद्धांत सामने रखते थे। यही कारण थे कि उनके मरने तक (9 जनवरी, 1945) उनकी ‘जमींदार लीग’ का पंजाब में दृढ़ और कुशल शासन रहा। चौ० छोटूराम को अंग्रेजों का साथी (Collaborator) कहने वाले अज्ञानी, मूर्ख तथा ईर्ष्यालु हैं।

अप्रैल सन् 1937 में चौ० छोटूराम मन्त्रीमण्डल में -

चुनाव जीतने के बाद अप्रैल 1937 में पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी का मन्त्रीमण्डल बना। सर सिकन्दर हयात खां इसके प्रीमियर (प्रधानमंत्री); चौधरी छोटूराम विकास मन्त्री, मियां अब्दुल हई शिक्षा मन्त्री; लाला मनोहरलाल वित्त मन्त्री; मलिक खिज्र हयात खां टिवाना लोक निर्माण मन्त्री, सरदार सुन्दरसिंह मजीठिया राजस्व मन्त्री बने। स्पीकर चौ० शहाबुद्दीन ही चुने गये। सर चौ० छोटूराम पंजाब के इस पार्टी मन्त्रीमण्डल में अप्रैल 1937 से 9 जनवरी 1945 (मृत्यु) तक रहे। इस जमींदार पार्टी के संचालक एवं अगवानी नेता चौ० छोटूराम थे और अन्त तक रहे।

सुनहरी कानून

सन् 1936 के चुनाव के समय पंजाब में 57% मुस्लिम, 28% हिन्दू, 13% सिक्ख और 2% ईसाई थे। इस जनसंख्या का 90% भाग किसानों का था, जिनमें से 80% किसान कर्जदार थे। यूनियनिस्ट पार्टी व्यावहारिक स्तर पर 90% आबादी के हितों की रक्षक थी। कांग्रेस के नेता भी 90% किसानों के हितों की बात तो करते थे, लेकिन कानून साहूकारों के हितों में बनाते थे। यही कारण है कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के चोटी के नेताओं के प्रचार करने के बाद भी उनकी हार हुई। मन्त्रीमण्डल बनते ही चौ० छोटूराम ने विकास का कार्य प्रारम्भ किया। इसके लिए जो कानून बनाए गए उनको किसानों ने ‘सुनहरी कानून’ बताया और शहरियों एवं साहूकारों ने ‘काले कानून’ का नाम दिया। इन कानूनों से पंजाब में गरीबों को बड़ी राहत मिली। शोषकों पर कमरतोड़ हमले किए गए।

इस उद्देश्य से, जिन कानूनों का निर्माण किया गया, उनकी सूची इस प्रकार है -

1.
पंजाब इन्तकाल अराज़ी एक्ट (Land Alienation Act) - इसमें संशोधन किए गये, जिनके आधार पर खेती करने वाले साहूकारों को भी गैर जमींदार साहूकारों की सूची में रख दिया गया। रहनशुदा भूमि की ज़रखेज़ी (अन्न पैदा करने की शक्ति) को खराब नहीं किया जा सकता।
2.
बंधक भूमि वापिस एक्ट (The Punjab Restitution of Mortgaged Land Act, 1938) - इसके द्वारा 8 जून, 1901 से पहले की रहनशुदा जमीनों को इनके असली मालिकों को वापिस करा दिया गया। इस कानून से 365000 किसानों को फायदा हुआ और 835000 एकड़ जमीन इन किसानों को वापिस मुफ्त मिल गई।
3.
पंजाब कृषि-उत्पादन मार्केटिंग एक्ट (The Punjab Agricultural Produce Marketting Bill 1938) - इस एक्ट के फलस्वरूप मंडियों का पंजीकरण किया गया। महाजनों को लाइसेंस लेना जरूरी कर दिया। मंडी मार्केटिंग कमेटी में 2/3 प्रतिनिधि किसानों के और 1/3 महाजनों के निर्धारित किए गये। इस बिल को डा० गोकुलचन्द नारंग ने मारकूट अथवा माईटिंग (शक्तिमान्) बिल कहा। और भी कई गैर किसानों ने

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कहा कि इस बिल से हमारा सर्वनाश हो जायेगा। उत्तर में चौ० छोटूराम जी ने कहा - “मुझे दुःख है कि गरीबों की हिमायत करने वाली कांग्रेस के प्रतिनिधि भी इस बिल का विरोध करते हैं। वे कांग्रेस के उद्देश्य और हिदायतों को ताक में रखकर अपने नंगे रूप में हमारे सामने आ गये हैं। उन्हें लज्जा आनी चाहिए थी।” डा० गोकुलचन्द नारंग ने कहा कि “इस बिल के पास होने पर रोहतक का दो धेले का जाट लखपति बनिया के बराबर मार्केटिंग कमेटी में बैठेगा।” चौ० छोटूराम ने उसके उत्तर में कहा कि “मैं डाक्टर साहब से कहना चाहता हूं कि जाट एक अरोड़े से किसी भी भांति कम आदर का पात्र नहीं है। और यह वही जाट है जिसके लिए हरयाणा की हिन्दू कान्फ्रेंस में डाक्टर साहब ने कहा था कि जाट समस्त हिन्दू जाति के संरक्षक हैं। वह समय आ रहा है जब धन के गुलाम लोगों को परिश्रमी धनी जाट बहुत पीछे छोड़ देगा।”
4.
दी पंजाब वेट्स एण्ड मैजर्स एक्ट (माप तौल कानून 1941) के अनुसार व्यापारियों के बांटों को तोलने और उनकी जांच का कार्य प्रारम्भ हुआ। डण्डी वाली तखड़ी के स्थान पर कांटे वाली तराजू नियुक्त की गई। इनकी जांच पड़ताल के लिए इंस्पेक्टर नियुक्त किए गये। फलतः खरीददारों को निर्धारित मात्रा से कम तोलकर देने और विक्रेताओं से अधिक तोलकर लेने की आदत पर रोक लगी।
5.
पंजाब रजिस्ट्रेशन ऑफ मनीलैंडर्ज एक्ट (1938) - इस एक्ट के आधार पर ब्याज पर रुपया देने का धंधा करने वाले महाजनों व साहूकारों को नियंत्रित किया गया। इससे अनाप-सनाप ब्याज लेने की योजना घट गई। इस बिल के अनुसार साहूकार लाइसैंस लेकर ही कोई व्यापार (बनज) कर सकेगा।
6.
पंजाब ट्रेड एम्पलाईज एक्ट (1940) - इस एक्ट के अनुसार सप्ताह में, कामगारों, मुनीमों और मजदूरों की, एक दिन की वैतनिक छुट्टी होने लगी। काम करने के घण्टे निश्चित किए गए। किसी को नौकरी से हटाने के लिए एक मास का नोटिस देना आवश्यक हो गया।
7.
मसहलती बोर्ड (Conciliation Board) की नियुक्ति की गई। इसके अनुसार कर्जदार आठ आने की कोर्ट फीस भरकर अपने कर्जे को घटाने की दरखास्त दे सकता है, जो पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी।
8.
बेनामी भूमि ट्रांसैक्शन एक्ट (1938) - इस एक्ट के आधार पर तमाम बेनामी जमीनों को वापिस उनके मालिक किसानों को दिलवाया गया। इसके लिए 5 तहसीलदार नियुक्त किए गए थे जिन्होंने अकेले गुरुदासपुर जिले में 44 लाख रुपये की बेनामी को पकड़ा था। यही हाल सब जिलों में था।
9.
कृषक सहायक कोष चालू किया जिसमें किसानों की सहायता के लिए 55 लाख रुपये डाले गये ताकि ओले, टिड्डी, बाढ़ तथा सूखा द्वारा की गई हानि की स्थिति में किसानों की सहायता की जा सके।
10.
शुद्ध घी में वनस्पति घी न मिलाया जा सके, अतः वनस्पति घी में रंग डालने का कानून बनाया।

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11.
गांवों में उद्योग धन्धे खोले गए, ताकि ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिक उन्नति हो और शहरों तथा कस्बों में आबादी का दबाव न बढ़े।
12.
किसानों के लिए नौकरियों में सुविधायें दी गईं। पहले कमिश्नर लोग भी लाला लोगों की ही बात सुनते थे। जमींदारों का उनके पास पहुंचना ही मुश्किल था।
13.
किसानों के हित के लिए बिक्री टैक्स और जायदाद टैक्स कानून बनाये। जायदाद से होने वाली आमदनी पर 20 फीसदी टैक्स लगाया गया। किराया वही रहा जो अब से दो वर्ष पहले लिया जाता था, अतः वह बढ़ाया न जाए। लेकिन रहने के मकान टैक्स से बरी रहेंगे। बिक्री पर 5,000 रुपये तक कोई टैक्स नहीं होगा। पांच से दस हजार तक यह टैक्स दो आने प्रति सैंकड़ा, किन्तु किसान जो अनाज या खेत की पैदावार बाजार में बेचने जायेगा उस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा।
14.
इन टैक्सों के अतिरिक्त साहूकारों पर छः करोड़ सालाना की आमदनी के टैक्स लगाये गये। उस आमदनी से देहातों में पानी, दवा और शिक्षा का उत्तम प्रबन्ध किया गया।
15.
पंजाब कर्जदार रक्षक कानून (The Punjab Debtors Protection Act 1936) पास करके किसानों की जमीनों की रक्षा कर दी गई।
16.
पंजाब मलकियत अधिकार कानून 1934 व तीसरा संशोधन 1940 - इसके अनुसार जमींदार सरकार ने पंजाब के किसानों की आर्थिक गुलामी के जुए को उतार फेंका। इस कानून द्वारा किसानों को निम्न प्रकार की सुविधायें मिलीं।
  1. कोई साहूकार जमींदार को कैद नहीं करा सकता।
  2. किसान के रहने के घर तथा नौहरे कुर्क नहीं किये जा सकते।
  3. खेत में काम आने वाले औजार जैसे हल, कस्सी, कसोला, गाड़ी आदि तथा बैल, दुधारू पशु और फसल कुर्क नहीं हो सकती।
  4. किसानों के बैल तथा पशु बांधने के स्थान, कूड़ा डालने का स्थान (खाद की कुर्ड़ी), चारा एवं चारा रखने का स्थान तथा उपले पाथने का स्थान (गितवाड़ व बिटोड़ा) भी कुर्क नहीं हो सकते।
  5. घर में प्रयोग आने वाला सामान, फसल की पैदावार का एक-तिहाई कुर्क नहीं हो सकता और यदि वह एक-तिहाई आसानी से छः महीने के गुजारे के लिए काफी नहीं है तो उतना हिस्सा कुर्क नहीं होगा जो छः महीने के लिए काफी हो। खेती के पेड़ भी कुर्क नहीं हो सकते। इस कानून के अनुसार, चाचा, ताऊ की मौत के साथ ही साहूकार का कर्जा भी मर जाता है।

सर चौ० छोटूराम गरीब किसानों के लिए कितना दर्द रखते थे यह उनके निम्न शब्दों से मापा जा सकता है जो कि उन्होंने 17 नवम्बर 1940 को रावलपिंडी के स्थान पर कहे -

“यदि संघीय न्यायालय ने यह फैसला कर दिया कि पंजाब विधान सभा ‘बेनामी’ और ‘रहन विधायक उन्मुक्ति’ एक्टों को पास करने का अधिकार नहीं रखती तो मैं पंजाब के इस कोने से लेकर उस कोने तक एक अभूतपूर्व आंदोलन छेड़ दूंगा। यदि जरूरत पड़ी तो मैं अपने मन्त्री पद और विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर किसानों को संगठित करके एक झण्डे के नीचे खड़ा कर दूंगा और तभी चैन लूँगा जबकि पंजाब सरकार को ऐसे कानून पास करने का अधिकार मिल जायेगा। यद्यपि मैं अब वृद्ध और दुर्बल हूं, पर आपको विश्वास दिलाता हूं कि यमराज भी मुझे अपने कार्य से हटाने में तब

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तक बुरी तरह से असफल रहेगा जब तक कि मैं पंजाब के किसानों के दुःखों को दूर न कर दूं। मैं तब तक आराम नहीं करूंगा जब तक कि किसानों को यूनियनिस्ट सरकार द्वारा पारित कानूनों से सब लाभ प्राप्त न हो जाएं।” टीकाराम, “सर छोटूराम”, पृ० 40-41.

विधानसभा को यह अधिकार मिल गये और सर छोटूराम ने कानून पास करके किसानों को सब लाभ प्राप्त करा दिए।

इन कानूनों के अलावा किसानों तथा गरीबों की हालत सुधारने के लिए कुछ कदम चौ० छोटूराम ने और उठाए। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं -

  • 1. स्थानीय स्वराज्य के विकास के लिए पंचायत कानून पास किया। जिसके अनुसार देहातों में पंचायतों का जाल बिछा दिया गया और सच्चे देहाती स्वराज्य की नींव पड़ गई।
  • 2. पंजाब में सबसे अधिक सड़कें बनवाईं। पुरानी सड़कों की मरम्मत कराई।
  • 3. बिजली द्वारा सिंचाई का क्षेत्र बढ़ाने के लिए मण्डी हाइड्रो इलैक्ट्रिक स्कीम चालू की। इसके अतिरिक्त हवेली प्रोजेक्ट ढाई वर्ष में पूरा कर लिया गया जिस पर चार-पांच करोड़ खर्च आया। इन दोनों स्कीमों से लाखों बीघे जमीन की सिंचाई होने लगी।
  • 4. दक्षिण-पूर्वी पंजाब के सूखे इलाकों में सिंचाई करने के लिए तीन योजनायें बनाई गईं - (1) नलकूपों से (2) भाखड़ा बांध (3) व्यास नदी पर बांध। इन तीनों के पूरा हो जाने पर पंजाब का हर कोना-कोना हरा-भरा बन जायेगा। (4) सन् 1937 में बाढ़ से जो हानि हुई उसके लिए 37 लाख रुपये की सरकारी सहायता कराई। गुरुद्वारा शहीदगंज के साम्प्रदायिक केस का न्याययुक्त लोकप्रिय निर्णय कराया। दस लाख एकड़ भूमि की सिंचाई के लिए एक नहर बहुत शीघ्र बनवाई, जिसमें बजट से डेढ़ करोड़ रुपया कम खर्च किया। हरयाणा के अकाल (संवत् 1995-1996 का अकाल) पर अप्रैल 1941 ई० तक तीन करोड़ रुपये व्यय किये गये। 15 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई के लिये नहर स्थल की खुदाई प्रारम्भ की, जिस पर डेढ़ करोड़ रुपये खर्च हुए। सवा करोड़ की लागत से हरयाणा में (रोहतक-हिसार जिले) एक और फसली (बरसाती) नहर निकाली जो बाद में बारहमासी कर दी गई।
  • 5. स्टोरों की स्थापना की गई, जिनमें किसान अपना माल अच्छे दाम मिलते तक जमा कर सकें और काम चलाने के लिये अपने माल की लगभग तिहाई कीमत पेशगी प्राप्त कर सकें।
  • 6. किसानों को उत्तम बीज देने के लिये 2 करोड़ 77 लाख रुपये का प्रावधान किया गया। हजारों स्थानों पर किसानों की एकत्रित सभाओं में उन्नत खेती के तरीके बताये जाते थे। कई तरह के कपास और गेहूं के बीजों का अनुसंधान लायलपुर के कृषि कालिज में किया गया।
  • 7. सारे भारत में पंजाब ही एक ऐसा प्रान्त था जहां चकबन्दी की गई। प्रतिवर्ष एक लाख एकड़ भूमि की चकबन्दी होती रही थी।
  • 8. पशु-चिकित्सा के मामले में तो कोई सूबा पंजाब की बराबरी नहीं कर सका। शुरु में

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1200 प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र स्थापित किये गये और 79 डिस्पैन्सरियां चालू कीं। हिसार में पशु फार्म की स्थापना की गई। पशुओं, बकरियों और भेड़ों को उन्नत बनाने का कार्य शुरु किया गया।
  • 9. पंजाब प्रान्त में उद्योग-धन्धों की उन्नति की गई। अधिक से अधिक कारीगर प्राप्त करने के लिये स्कूलों में टैक्नीकल और व्यावहारिक शिक्षा का प्रबन्ध किया गया।

27 दिसम्बर 1938 को लाहौर में औद्योगिक प्रदर्शनी जिसको अन्य प्रान्तों के मिनिस्टरों ने देखकर भूरि-भूरि प्रशंसा की और उन्होंने अपने प्रान्तों में भी ऐसा ही करने का विचार किया। मिट्टी के बर्तनों और रेशम की कारीगरी को उन्नत करने के लिए 60 हजार रुपये वार्षिक का प्रावधान किया गया। जुलाहों के गरीबी को दूर करने के लिए उनकी औद्योगिक को-आपरेटिव सोसाइटियां बनाईं गईं। उन्हें ठीक दाम पर सूत प्राप्त करने का प्रबन्ध किया गया। उद्योग-धन्धों की खोज के लिए भी एक विशेष विभाग स्थापित किया गया।

पटना, दिल्ली और कराची की प्रदर्शिनियों में पंजाब की कारीगरी की चीजों पर अनेक पुरस्कार मिले। चूंकि उद्योग विभाग चौ० सर छोटूराम के पास था, इसलिए इसकी यह कीर्ति उन्हीं की है।

मजदूर हितों की रक्षा

चौ० छोटूराम को जिस भांति किसानों की चिन्ता रहती थी, उसी भांति मजदूरों के भले के लिए भी वे चिन्तित थे। सन् 1935 के शासन-सुधारों के बाद बनी मिनिस्ट्री में विकास के अतिरिक्त उद्योग विभाग भी उन्हीं के पास था। उद्योगों की उन्नति का प्रमाण इन आंकड़ों से मिलता है - सन् 1936 में 71 कारखानों का रजिस्ट्रेशन हुआ। सन् 1937 में 98, सन् 1938 में 48 और सन् 1939 में 81 कारखाने रजिस्टर्ड हुए। अर्थात् चार वर्षों में 298 नये कारखाने खुले। कारखानों की कुल संख्या 800 हो गई। सन् 1936 की अपेक्षा सन् 1939 तक इन कारखानों पर 13 लाख से 24 लाख खर्च होने लग गया था। हजारों मजदूर इन कारखानों में काम करते थे किन्तु उनकी सुविधा के लिए कारखानों के मालिक कुछ भी ध्यान नहीं देते थे। चौ० छोटूराम ने एक मजदूर सुविधा बिल पास कराया, जिसके अनुसार प्रत्येक मजदूर को दो हफ्ते में एक दिन की छुट्टी वेतन सहित और दिन में 8 घण्टे काम करने के नियत किये गये। काम करते हुए यदि कोई अंग भंग हो जाय तो उसके लिए मुआवजा देने का प्रावधान किया गया। पंजाब की भांति फिर तो सारे भारत में ही यह कानून पास कर दिया गया। चौ० छोटूराम किसानों की भांति ही मजदूरों के शोषण को भी समाप्त करने के लिए प्रयत्नशील थे।

चौ० सर छोटूराम जी की जमींदारों के लिए एक विशेष सूचना

चौ० छोटूराम ने किसानों, गरीबों तथा मजदूरों के हित के लिए कानून पास करवा कर उनको साहूकारों के शोषण से बचा लिया। इससे साहूकार वर्ग एवं कांग्रेसी नेता उनसे जलने लगे और उनके विरुद्ध जहर उगलने लगे। पंजाब के कांग्रेसी नेताओं में सबसे अधिक जहर उगलते थे जिला रोहतक के पं० श्रीराम शर्मा। उर्दू दैनिक पत्र ‘मिलाप’ और ‘प्रताप’, कांग्रेसी नेता तथा साहूकार बनिये उन्हें ‘छोटूखां’ कहने लगे जबकि पंजाब के किसान खासकर मुसलमान उन्हें ‘छोटा राम’ कहा करते थे और किसानों का ‘मसीहा’ नाम प्रसिद्ध कर दिया। इतना होने पर भी


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चौ० छोटूराम ने कभी सरकारी सत्ता का अपने विरोधियों पर इस्तेमाल नहीं किया। वे अपने विरोधियों की गाली-गलौच का उत्तर किन शब्दों में देते थे, उसका एक नमूना उनके सोनीपत के जमींदार जलसे में किये गये भाषण में मिलता है। उन्होंने कहा था कि “मैं आप (जमींदारों) के हित के लिए कोई काम करता हूं या नहीं, इसका अन्दाजा आप इससे लगाते रहना कि ये शहरी नेता और अखबार मुझे जितनी ही कड़वी गाली दें, आप समझना कि छोटूराम हमारे लिए कोई इतना ही बड़ा काम कर रहा है। जिस दिन ये गाली देना बन्द कर दें आप समझ लेना कि अब छोटूराम बदल गया है और हमारे हितों के कामों की ओर से ढीला हो गया है।”

स्वराज्य का अर्थ

एक कांग्रेसी जाट वकील ने चौ० छोटूराम से कहा कि ‘स्वराज्य’ आने पर किसानों के संकट तो अपने आप मिट जायेंगे। चौ० छोटूराम ने उत्तर दिया कि स्वराज्य का अर्थ यदि हिन्दुस्तानियों के हाथ राज्य आ जाने से है तो देशी राज्यों को क्यों छेड़ा जाता है? और यदि स्वराज्य का अर्थ जनता का राज्य है तो हमारा और आपका कर्त्तव्य है कि हम जनता को इतना समर्थ और समझदार बना लें कि स्वराज्य कुछ चोटी के लोगों तक ही सीमित न रह जाए। बहुसंख्यकों पर अल्पसंख्यक राज्य न करते रहें। वकील साहब, मुझे ऐसा लगता है कि स्वराज्य के मिलने पर आपकी कांग्रेस भी यही कहेगी कि स्वराज्य हमारी कुर्बानियों से मिला है, अतः राज्य करने का अधिकार हमारा ही है। मैं यह चाहता हूं कि स्वराज्य हर भारतवासी की सम्पत्ति है और वह केवल कांग्रेस की ही सम्पत्ति न बन जाए। कोटि-कोटि जनता जिसके लिए स्वराज्य होगा, उसका उसमें समुचित भाग हो। यह तभी हो सकता है जब पिछली कतार अधिक सबल और सजग हो जाय। इसीलिए मैंने पंजाब में देहातियों की एक मजबूत पार्टी का संगठन किया है जो राष्ट्रीय संयुक्त पार्टी (Nationalist Unionist Party) कहलाती है।

कांग्रेसी वकील ने फिर चौ० छोटूराम से पूछा कि आप किसान नौजवानों को सरकारी नौकरियों में प्रविष्ट होने के लिए क्यों उत्साहित करते हैं? चौ० साहब ने उस वकील को बताया कि कुछ दिन पहले एक गरीब किसान परिवार का मुखिया अपंग हो गया। उसके अबोध बाल-बच्चे अपने हाथ से खेती नहीं कर सकते थे। साहूकार ने उस पर अपने कर्जे का दावा किया।

‘कर्जदार राहत’ कानून के अनुसार किसान के खेत व मकान व खेती करने के उपकरण और तिहाई अन्न कुर्क नहीं हो सकते थे। किन्तु लाला जयदयाल ने कृषक की परिभाषा यह कर दी कि किसान वह है जो अपने हाथ से खेती करता हो। अदालत दीवानी ने हाईकोर्ट के जज के इस रूलिंग के अनुसार उस किसान और उसके परिवार को गैर काश्तकार करार दे दिया। लाला जयदयाल के स्थान पर किसान चीफ जज होता तो वह यह फैसला करता कि “किसान वह है जिसकी जीविका का मुख्य आधार खेती है।” और अब हम ‘कर्जदार राहत’ कानून में संशोधन करके कृषक की यही परिभाषा प्रविष्ट करा रहे हैं। चौधरी साहब ने यह संशोधन पास करा दिया। सर छोटूराम ने आगे कहा कि सरकार के दो वर्ग हैं। एक वर्ग जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों का होता है जो कानून बनाता है। दूसरा वर्ग नौकरों का होता है जो कानूनों के अनुसार देश का प्रबन्ध करता है अथवा स्कीमों की पूर्ति करता है। जब तक दोनों वर्ग समान विचारधारा के न हों, कल्याणकारी राज्य नहीं बन सकता। अब सरकार किसानों की है तो किसानों के शिक्षित युवक


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इस सरकार के नौकरशाही वर्ग में अधिकाधिक प्रविष्ट हो जायें जिससे सरकार के कानूनों का सद्भावना और उत्साह से पालन हो सके। चौ० छोटूराम किसान की दृष्टि से उसी ही स्वराज्य मानते थे जिसमें विधान सभा तथा सरकारी दफ्तर इन दोनों में किसानों का बहुमत हो।

Sir Chhotu Ram stated in 1940, “The Lord of plough is also the Lord of Province”. (Sunday Reading, by B.R. Malik). अर्थात् सन् 1940 में सर छोटूराम ने कहा था कि “हलपति एक राज्यपति भी है।”

External Links

References