Kasyapa Matanga
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Kasyapa Matanga (काश्यपमातंग) was an Indian Buddhist monk who is traditionally believed to have first introduced Buddhism to China in the 1st century CE.
Variants
- Kashyapa Matanga (काश्यप मातंग)
- Kasyapamatanga (काश्यपमातंग) (AS, p.339)
- Kāśyapa Mātaṇga
- Jia Yemoteng 迦葉摩騰
- Jia Shemoteng 迦攝摩騰
- Zhu Yemoteng 竺葉摩騰
- Zhu Shemoteng 竺攝摩騰
History
According to popular accounts of Chinese Buddhism, Emperor Ming of Han Dynasty dreamt of a golden deity interpreted as the Buddha and sent a delegation to India. They returned circa 67 CE with the monks Kasyapa Matanga and Dharmaratna, and white horses carrying Buddhist texts and images. The emperor established White Horse Temple in the Han capital Luoyang, where the two supposedly first translated the Sutra of Forty-two Chapters into Chinese.[1]
James Legge[2] writes.... We read in the Khang-hsi dictionary that when Kasyapa Matanga came to the Western Regions, with his Classics or Sutras, he was lodged in the Court of State-Ceremonial, and that afterwards there was built for him “The Court of the White-horse” , and in consequence the name of Sze came to be given to all Buddhistic temples.
चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार
विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार चीन के हान वंश के सम्राट मिगंती के समय में (65 ई.) हुआ था। उसने स्वप्न में सुवर्ण पुरुष बुद्ध को देखा और तदुपरांत अपने दूतों को भारत से बौद्ध सूत्रग्रन्थों और भिक्षुओं को लाने के लिए भेजा। परिणामस्वरूप, भारत से 'धर्मरक्ष' और 'काश्यपमातंग' अनेक धर्मग्रन्थों तथा मूर्तियों को साथ लेकर चीन पहुंचे और वहां उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की। धर्मग्रन्थ श्वेत अश्व पर रख कर चीन ले जाए गए थे, इसलिए चीन के प्रथम बौद्ध विहार को श्वेताश्वविहार की संज्ञा दी गई। भारत-चीन के सांस्कृतिक संबंधों की जो परंपरा इस समय स्थापित की गई थी, उसका पूर्ण विकास आगे चल कर फ़ाह्यान (चौथी शती ई.) और युवानच्वांग (सातवीं शती ई.) के समय में हुआ, जब चीन के बौद्धों की सबसे बड़ी आकांक्षा यहां रहती थी कि किसी प्रकार भारत जाकर वहां के बौद्ध तीर्थों का दर्शन करें और भारत के प्राचीन ज्ञान और दर्शन का अध्ययन कर अपना जीवन समुन्नत बनाएं। उस काल में चीन के बौद्ध, भारत को अपनी पुण्यभूमि और संसार का महानतम सांस्कृतिक केंद्र मानते थे।
External links
References
- ↑ 迦葉摩騰, Digital Dictionary of Buddhism
- ↑ A Record of Buddhistic Kingdoms/Chapter 20, fn.18
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.339