Bhinya Ram Sihag: Difference between revisions

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चौधरी भींया राम सिहाग इस समय महकमा ख़ास में साइकल सवार के पद पर थे. आपकी नौकरी का समय अब पूरा होने के नजदीक था. आपने नौकरी छोड़ने से पहले ही रात-दिन कठोर परिश्रम करके अपने गाँव परबतसर में किसानों के बच्चों को पढाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एक नई संस्था 'श्री [[Tejaji|वीर तेजाजी]] जाट बोर्डिंग हाउस परबतसर' की स्थापना ५ मई १९४५ में की. शुरू में बच्चों को आपने अपने घर में रखा और बाद में चन्दा करके १ मई १९४६ को व्यास धनराजजी पन्नालालजी शंकरलालजी का एक मकान ८५०० रूपये में खरीद कर  छात्रावास को उसमें स्थानांतरित कर दिया. आप १४ सितम्बर १९४६ को ५५ वर्ष पूरे होने पर सेवानिवृत होने वाले थे और जोधपुर सरकार आपकी सेवाओं से खुश होकर एक वर्ष की सेवा-वृधी देना चाहती थी, परन्तु आपने स्वीकार नहीं की और ३० सितम्बर १९४६ को सेवानिवृत हुए.  
चौधरी भींया राम सिहाग इस समय महकमा ख़ास में साइकल सवार के पद पर थे. आपकी नौकरी का समय अब पूरा होने के नजदीक था. आपने नौकरी छोड़ने से पहले ही रात-दिन कठोर परिश्रम करके अपने गाँव परबतसर में किसानों के बच्चों को पढाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एक नई संस्था 'श्री [[Tejaji|वीर तेजाजी]] जाट बोर्डिंग हाउस परबतसर' की स्थापना ५ मई १९४५ में की. शुरू में बच्चों को आपने अपने घर में रखा और बाद में चन्दा करके १ मई १९४६ को व्यास धनराजजी पन्नालालजी शंकरलालजी का एक मकान ८५०० रूपये में खरीद कर  छात्रावास को उसमें स्थानांतरित कर दिया. आप १४ सितम्बर १९४६ को ५५ वर्ष पूरे होने पर सेवानिवृत होने वाले थे और जोधपुर सरकार आपकी सेवाओं से खुश होकर एक वर्ष की सेवा-वृधी देना चाहती थी, परन्तु आपने स्वीकार नहीं की और ३० सितम्बर १९४६ को सेवानिवृत हुए.  
== स्वर्गवास ==
== स्वर्गवास ==
समाज व किसानों की सेवा करते हुए '''10'''अक्टूबर 1954''' में आपका स्वर्गवास हो गया.
समाज व किसानों की सेवा करते हुए '''10''' अक्टूबर''' 1954''' में आपका स्वर्गवास हो गया.


== लेखक [[User:Lrburdak|लक्ष्मण बुरडक]] ==
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चौधरी भींया राम सिहाग

चौधरी भींया राम सिहाग (1891-1954) (Chaudhary Bhinya Ram Sihag) का नाम मारवाड़ की दशा सुधारने वाले महानुभावों में अग्रणी है. आपका जन्म भादवा सुदी ११ विक्रम संवत १९४८ तदनुसार १४ सितम्बर १८९१ को नागौर जिले के परबतसर नामक शहर में हुआ था. आपके पिताजी का नाम चौधरी जेतारामजी सियाग और माता का नाम श्रीमती कंवरी देवी था. जब वे १८ वर्ष के थे तब इनका विवाह खोखर गाँव के चौधरी श्री पन्नाराम जी मून्डवाड़िया की पुत्री झम्कू से हो गया. साधारण पढ़ने-लिखने के बाद आप काम-धंधे की तलाश में जोधपुर चले गए और वहाँ हमीरसिंह मेड़तिया की सिफारिश पर जोधपुर मिलिट्री के सुमेर केमल कोर में साइकल सवार के पद पर १४ फरवरी १९१८ को नियुक्त हुए. उस समय जोधपुर में काफी जाट अधिकारी थे, वहां आप उनके सम्पर्क में आए जिससे आपकी भावनाएँ उच्च कोटी की बनी और धीरे धीरे आपका मन समाज सेवा की और बढ़ा.

शिक्षा प्रचार

अक्टूबर १९२५ में कार्तिक पूर्णिमा को अखिल भारतीय जाट महासभा का एक अधिवेसन पुष्कर में हुआ था उसमें मारवाड़ के जाटों में जाने वालों में चौधरी गुल्लारम जी, चौधरी मूलचंद जी सियाग, मास्टर धारासिंह, चौधरी रामदान जी, आदि के साथ आप भी पधारे थे. इन सभी ने पुष्कर में अन्य जाटों को देखा तो अपनी दशा सुधारने का हौसला लेकर वापिस लौटे. उनका विचार बना की मारवाड़ में जाटों के पिछड़ने का कारण केवल शिक्षा का आभाव है.

आजादी के पूर्व मारवाड़ में किसानों की हालत

जिस समय भींया राम सियाग का जन्म हुआ, उस समय मारवाड में किसानों की हालत बडी दयनीय थी। मारवाड़ का ८३ प्रतिशत इलाका जागीरदारों के अधिकार में था इन जागीरदारों में छोटे-बडे सभी तरह के जागीदार थे। छोटे जागीरदार के पास एक गांव था तो बडे जागीरदार के पास बारह से पचास तक के गांवो के अधिकारी थें और उन्हें प्रशासन, राजस्व व न्यायिक सभी तरह के अधिकार प्राप्त थे। ये जागीरदार किसानों से न केवल मनमाना लगान (पैदावार का आधा भग) वसूल करते थे बल्कि विभिन्न नामों से अनेक लागबाग[1] व बेगार भी वसूल करते थें किसानों का भूमि पर कोई अधिकार नहीं था और जागीरदार जब चाहे किसान को जोतने के लिए दे देता थां किसान अपने बच्चों के लिए खेतों से पूंख (कच्चे अनाज की बालियां) हेतु दो-चार सीटियां (बालियां) तक नहीं तोड सकता था। जबकि इसके विपरीत जागीरदार के घोडे उन खेतों में खुले चरते और खेती को उजाडते रहते थे और किसान उन्हें खेतों में से नहीं हटा सकते थे। इसके अलावा जागीरदार अपने हासिल (भूराजस्व) की वसूली व देखरेख के लिए एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जो ‘कण्वारिया‘ कहलाता था, रखता था। यह कणवारिया फसल पकने के दिनों में किसानों की स्त्रियों को खतों से घर लौटते समय तलाशी लेता था या फिर किसानों के घरों की तलाशी लिया करता था कि कोई किसान खेत से सीटियां तोडकर तो नहीं लाया है। यदि नया अनाज घर पर मिल जाता था तो उसे शारीरिक और आर्थिक दण्ड दोनों दिया जाता था।

लगान के अलावा जागीरदारों ने किसान का शोषण करने के लिए अनेक प्रकार की लागें (अन्य घर) लगा रखी थी जो विभिन्न नामों से वसूल की जाती थी, जैसे मलबा लाग, धुंआ लाग आदि-आदि इसके अलावा बैठ-बेगार का बोझ तो किसानों पर जागीरदार की आरे से इतना भारी था कि किसान उसके दबाव से सदैव ही छोडकर जागीरदार की बेगार करने के लिए जाना पडता था। स्वयं किसान को ही नहीं, उनकी स्त्रियों को भी बेगार देनी पडती थी। उनको जागीरदारों के घर के लिए आटा पीसना पडता था। उनके मकानों को लीपना-पोतना पडता था और भी घर के अन्य कार्य जब चाहे तब करने पडते थे। उनका इंकार करने का अधिकार नहीं था और न ही उनमे इतना साहस ही था। इनती सेवा करने पर भी उनको अपमानित किया जाता था। स्त्रियां सोने-चांदी के आभूषण नहीं पहन सकती थी। जागीरदार के गढ के समाने से वे जूते पहनकर नहीं निकल सकती थी। उन्हें अपने जूते उतारकर हाथों में लेने पडते थे। किसान घोडों पर नहीं बैठ सकते थे। उन्हे जागीरदार के सामने खाट पर बैठने का अधिकार नहीं था। वे हथियार लेकर नहीं चल सकते थें किसान के घर में पक्की चीज खुरल एव घट्टी दो ही होती थी। पक्का माकन बना ही नहीं सकते थे। पक्के मकान तो सिर्फ जागीरदार के कोट या महल ही थे। गांव की शोषित आबादी कच्चे मकानों या झोंपडयों में ही रहती थी। किसानों को शिक्षा का अधिकार नहीं था। जागीरदार लोग उन्हें परम्परागत धंधे करने पर ही बाध्य करते थे। कुल मिलाकर किसान की आर्थिक व सामाजिक स्थिति बहुत दयनीय थी । जी जान से परिश्रम करने के बाद भी किसान दरिद्र ही बना रहता था क्योंकि उसकी कमाई का अधिकांश भाग जागीरदार और उसके कर्मचारियों के घरों में चला जाता था। ऐसी स्थिती में चौधरी भींया राम सिहाग ने मारवाड के किसानों की दशा सुधारने का बीडा उठाया।

"जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर" की स्थापना

आपके प्रयास से ४ अप्रेल १९२७ को चौधरी गुल्लारामजी के मकान में "जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर" की स्थापना की । आप इसके उपमंत्री चुने गए. आपने शुरू से ही इस संस्था के लिए बड़ा परिश्रम किया. इसकी सहयते के लिए आपने एक दिन में ४५-४५ मील की यात्रा साईकिल पर कच्चे रास्तों से संस्था के स्थापित होते समय की. शुरू में संस्था की सहायता के लिए धन उगाकर लाने वालों में आपका ही दूसरा स्थान था. आप जीवन पयंत इस संस्था की सहायता के लिए जुटे रहे.

१९३० तक जब जोधपुर के छात्रावास का काम ठीक ढंग से जम गया और जोधपुर सरकार से अनुदान मिलने लग गया तब चौधरी मूलचंद जी, बल्देवराम जी मिर्धा, भींया राम सियाग, गंगाराम जी खिलेरी, धारासिंह एवं अन्य स्थानिय लोगों के सहयोग से बकता सागर तालाब पर २१ अगस्त १९३० को नए छात्रावास की नींव नागौर में डाली ।

मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा की स्थापना

सन् १९३७ में चटालिया गांव के जागीरदार ने जाटों की ८ ढाणियों पर हमला कर लूटा और अमानुषिक व्यवहार किया । चौधरी साहब को इससे बड़ी पीड़ा हुई और उन्होंने तय किया कि जाटों की रक्षा तथा उनकी आवाज बुलंद करने के लिए एक प्रभावशाली संगठन आवश्यक है । अतः जोधपुर राज्य के किसानों के हित के लिए २२ अगस्त १९३८ को तेजा दशमी के दिन परबतसर के पशु मेले के अवसर पर "मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा" नामक संस्था की स्थापना की । चौधरी मूलचंद इस सभा के प्रधानमंत्री बने, गुल्लाराम जी रतकुडिया इसके अध्यक्ष नियुक्त हुए और भींया राम सिहाग कोषाध्यक्ष चुने गए । इस सभा का उद्देश्य जहाँ किसानों में फ़ैली कुरीतियों को मिटाना था, वहीं जागीरदारों के अत्याचारों से किसानों की रक्षा करना भी था.

मारवाड़ किसान सभा की स्थापना

किसानों की प्रगती को देखकर मारवाड़ के जागीरदार बोखला गए । उन्होंने किसानों का शोषण बढ़ा दिया और उनके हमले भी तेज हो गए । जाट नेता अब यह सोचने को मजबूर हुए की उनका एक राजनैतिक संगठन होना चाहिए । सब किसान नेता २२ जून १९४१ को जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर में इकट्ठे हुए जिसमें तय किया गया कि २७ जून १९४१ को सुमेर स्कूल जोधपुर में मारवाड़ के किसानों की एक सभा बुलाई जाए और उसमें एक संगठन बनाया जाए । तदानुसार उस दिनांक को मारवाड़ किसान सभा की स्थापना की घोषणा की गयी और मंगल सिंह कच्छवाहा को अध्यक्ष तथा बालकिशन को मंत्री नियुक्त किया गया.

मारवाड़ किशान सभा का प्रथम अधिवेशन २७-२८ जून १९४१ को जोधपुर में आयोजित किया गया । मारवाड़ किसान सभा ने अनेक बुलेटिन जारी कर अत्याधिक लगान तथा लागबाग[2] समाप्त करने की मांग की । मारवाड़ किसान सभा का दूसरा अधिवेशन २५-२६ अप्रेल १९४३ को सर छोटू राम की अध्यक्षता में जोधपुर में आयोजित किया गया । इस सम्मेलन में जोधपर के महाराजा भी उपस्थित हुए । वास्तव में यह सम्मेलन मारवाड़ के किसान जागृति के इतिहास में एक एतिहासिक घटना थी । इस अधिवेशन में किसान सभा द्वारा निवेदन करने पर जोधपुर महाराज ने मारवाड़ के जागीरी क्षेत्रों में भूमि बंदोबस्त शु्रू करवाने की घोषणा की । मारवाड़ किसान सभा जाटों के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी । जब मारवाड़ में किसान सभा जागीरों में भूमि बंदोबस्त शुरू कराने में सफल हुई और परबतसर परगने में सेटलमेंट शुरू हो गया तो भींया राम सिहाग ने ईसके लाभों का गाँवों में जाकर प्रचार किया तथा सेटलमेंट की जानकारी किसानों को देकर सही रिकार्ड तैयार करवाने तथा किसानों को पट्टे वितरित कराने में पूरा सहयोग देकर किसानों की बड़ी सेवा की. पुराने किसान गाँवों में आज भी इनका खूब गुणगान करते हैं.

वीर तेजाजी जाट बोर्डिंग हाउस परबतसर के संस्थापक

चौधरी भींया राम सिहाग इस समय महकमा ख़ास में साइकल सवार के पद पर थे. आपकी नौकरी का समय अब पूरा होने के नजदीक था. आपने नौकरी छोड़ने से पहले ही रात-दिन कठोर परिश्रम करके अपने गाँव परबतसर में किसानों के बच्चों को पढाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एक नई संस्था 'श्री वीर तेजाजी जाट बोर्डिंग हाउस परबतसर' की स्थापना ५ मई १९४५ में की. शुरू में बच्चों को आपने अपने घर में रखा और बाद में चन्दा करके १ मई १९४६ को व्यास धनराजजी पन्नालालजी शंकरलालजी का एक मकान ८५०० रूपये में खरीद कर छात्रावास को उसमें स्थानांतरित कर दिया. आप १४ सितम्बर १९४६ को ५५ वर्ष पूरे होने पर सेवानिवृत होने वाले थे और जोधपुर सरकार आपकी सेवाओं से खुश होकर एक वर्ष की सेवा-वृधी देना चाहती थी, परन्तु आपने स्वीकार नहीं की और ३० सितम्बर १९४६ को सेवानिवृत हुए.

स्वर्गवास

समाज व किसानों की सेवा करते हुए 10 अक्टूबर 1954 में आपका स्वर्गवास हो गया.

लेखक लक्ष्मण बुरडक

संदर्भ

Footnotes

  1. लागबाग के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के कर सम्मिलित हैं. किसान की पैदावार का आधा भाग लगान के रूप में लिया जाता था. लगान के अलावा किसान पर अन्य लागें भी लगा रखी थी जैसे मलबा लाग, धुआं लाग, आंगा लाग, कांसा लाग, नाता लाग, हल लाग आदि
  2. लागबाग के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के कर सम्मिलित हैं. किसान की पैदावार का आधा भाग लगान के रूप में लिया जाता था. लगान के अलावा किसान पर अन्य लागें भी लगा रखी थी जैसे मलबा लाग, धुआं लाग, आंगा लाग, कांसा लाग, नाता लाग, हल लाग आदि

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