Shankaravarman

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Shankaravarman (शंकरवर्मन) (A.D. 883 to 901) was an Utpal clan ruler of Kashmir in 9th century. He was son of Avantivarman.

उत्पल - उप्पल गोत्र का इतिहास

कैप्टन दलीप सिंह अहलावत[1] ने उत्पल-उप्पल गोत्र का इतिहास वर्णन इस प्रकार किया है।

अवन्तिवर्मन: इस उत्पल जाट राजवंश का महाराजा अवन्तिवर्मन कश्मीर नरेश सम्वत् 912 (855 ई०) में सम्पूर्ण डोगरा प्रदेश पर शासन करता था।

शंकरवर्मन: उसके पश्चात् इसके पुत्र राजा शंकरवर्मन शासक हुए, जिसके पास एक लाख घुड़सवार, 9 लाख पैदल सैनिक और 300 हाथियों की सेना थी। इसने विक्रमी संवत् 959 (902 ई०) तक अनेक विजययात्राओं में मन्दिरों को भी लूटा।

राजा पार्थ: इसके पुत्र राजा पार्थ के शासनकाल में अकाल के कारण मरने वालों की लाशों से जेहलम नदी का जल देर तक श्रीनगर को दुर्गन्धित किए रहा था। इस राजा पार्थ ने प्रजा से साधारण ऊंचे दर पर सम्पूर्ण अनाज मोल लेकर सैंकड़ों गुने ऊंचे दर से बेचा। उसने बड़ी प्रसन्नतायुक्त उत्सुकता से अपने महलों के पास दम तोड़ते अपनी प्रजा को देखा।

उन्मत्तवन्ति: वि० सम्वत् 994 (937 ई०) में इसके पुत्र उन्मत्तवन्ति ने तो क्रूरताओं की एक ऐसी सीमा स्थिर की जिसे अभी तक कोई न लांघ सका। इन अत्याचारों व क्रूरता के कारण इस राजवंश का अन्त हो गया।

जाटों और खत्रियों में इस वंश की समान रूप से संख्या है। वीर योद्धा हरीसिंह नलवा इसी वंश के महापुरुष थे (इसकी जीवनी देखो, पंजाब केसरी महाराजा रणजीतसिंह प्रकरण)।

उत्पल जाटों ने बीकानेर के पास बड़ी खाटू के समीप पलाना गांव बसाया। उस गांव के बाद अन्य स्थानों पर बसने वाले उन जाटों ने अपना परिचय पिलानिया नाम से देना आरम्भ कर दिया।

इस वंश का बांहपुर बहुत ऊंचा घराना है, जो कुचेसर भरतपुर के वैवाहिक सम्बन्धों से जातीय जगत् में विशेष प्रसिद्ध हुआ। यहां के राजा कर्णसिंह ने वैधानिक रीति से ऊंचा गांव इस्टेट की स्थापना की। वहां पर कुं० सुरेन्द्रपालसिंह जी (बहनोई महाराजा भरतपुर) ने एक नया किला और दर्शनीय राजमहल बनवाया। उप्पल-उत्पल जाटों की सिक्खों में बहुसंख्या है।

References


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