Kirata

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Kirata (किरात) were ancient people who had territory in the mountains, particularly in the Himalayas and North-East India and who are believed to have been Sino-Tibetan in origin.[1][2] The Kiratas are Limbu, Rai, Yakkha, Sunuwar and Lepcha tribes of Eastern Nepal [3][4]

Origin

The Kiratas in Distant Past A Sanskrit-English Dictionary refer the meaning of 'Kirat' as a 'degraded, mountainous tribe, a savage and barbarian' while other scholars attribute more respectable meanings to this term and say that it denotes people with the lion's character, or mountain dwellers.[5]

Variants

History

किरात देश

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...किरात देश (AS, p.190)

उपर्युक्त उद्धरणों से किरात देश की स्थिति पूर्व बंगाल या आसाम के जंगली और पहाड़ी भागों में सिद्ध होती है. सभा पर्व है 14,20 में किरात देश को वासुदेव पौंड्रक के अधीन बताया गया है. किरात का संभवत: सर्वप्रथम निर्देश अथर्ववेद में है जिससे यह सूचना मिलती है कि इस जाति का निवास हिमालय के पूर्वी क्षेत्र की उपत्यकाओं में था.

किरात

किरात भारत की एक प्राचीन अनार्य (संभवत: मंगोल) जाति थी, जिसका निवास-स्थान मुख्यत: पूर्वी हिमालय के पर्वतीय प्रदेश में था। प्राचीन संस्कृत साहित्य में किरातों का संबंध पहाड़ों और गुफ़ाओं से जोड़ा गया है और उनकी मुख्य जीविका आखेट बताई गई है। यजुर्वेद तथा अथर्ववेद में किरातों का पर्वत और कन्दराओं का निवासी बताया गया है। 'वाजसनेयीसंहिता' ((30, 16)) और 'तैत्तिरीय ब्राह्मण' में किरातों का संबंध गुहा से बताया गया है- 'गुहाभ्य: किरातम'।

वाल्मीकि रामायण में किरात नारियों के तीखे जूड़ों का वर्णन है और उनका शरीर वर्ण सोने के समान वर्णित है- 'किरातास्तीक्षणचूडाश्च हेमाभा: प्रियदर्शना: किष्किधाकांड' (किष्किधाकांड, 40।27)

महाभारत में किरातों के विषय में अनेक निर्देश मिलते हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि उनकी गिनती बर्बर या अनार्य जातियों में की जाती थी- 'उग्राश्च भीमकर्माणस्तुषारायवना: खसा:, आंध्रकाश्च पुलिंदाश्च किराताश्चोग्रविक्रमा:। म्लेच्छाश्च पार्वतीयाश्च, कर्ण' (कर्णपर्व, 73,19-20)

महाभारत, सभापर्व (अध्याय 26) में प्राग्ज्योतिषपुर (वर्तमान असम) के निकट अर्जुन की किरातों के साथ हुई लड़ाई का वर्णन है। महाभारत, सभापर्व के अंतगर्त उपायन उपपर्व में युधिष्ठिर के पास भेंट में किरात लोगों द्वारा लाए गए उपहारों का वर्णन है। (सभापर्व 52, 9-12) इसी प्रसंग में किरातों को फल-मूलभोजी, चर्मवस्त्रधारी, भयानक शस्त्र चलाने वाले और क्रूरकर्मा बताया गया है।

संस्कृत काव्य में किरातों का सबसे सुंदर वर्णन शायद महाकवि कालिदास ने किया है- 'भागीरथी निर्झरसीकराणं बोढा मुहु: कंपित देवदारु:। युद्वायुरन्विष्टमृगै: किरातैरासेव्यते भिन्नशिखंडिबर्ह: ( कु. सं., 1, 15)

यहाँ हिमालय पर्वत पर गंगा के निर्झरों से सिक्त, देवदारुवृक्षों को बार-बार कंपायमान करने वाली और मयूरों के पंखों के भार को अस्त-व्यस्त कर देने वाली वायु का (कस्तूरी?) मृगों की खोज में घूमने वाले किरात सेवन करते हैं। रघु ने हिमालय प्रदेश की विजय के पश्चात् जब वहाँ से अपनी सेना का पड़ाव उठा लिया, तब उस स्थान के वन्य किरातों ने रघु की सेना के हाथियों की ऊँचाई का अनुमान उनके गले की रस्सों की रगड़ से देवदारु वृक्षों के तनों पर उत्कीर्ण रेखाओं से किया। ( रघुवंश 4, 76)

प्लिनी, टॉलमी और मेगस्थनीज़ के लेखों में भी किरातों के विषय में कई उल्लेख हैं। टॉलमी ने इन्हें 'किरादिया' लिखा है और भारत में इनकी विस्तृत बस्तियों का उल्लेख किया है। खारवेल के प्रसिद्ध अभिलेखों में चीन और किरात दोनों का एकत्र उल्लेख है।

ऐसा जान पड़ता है, कालांतर में किरात लोग अपने मूल निवास हिमालय से अतिरिक्त भारत के अन्य भागों में भी फैल गए थे। साँची (मध्य प्रदेश) के स्तूप पर किसी किरात भिक्षु के दान का उल्लेख है और दक्षिण भारत में नागार्जुनीकोंड के एक अभिलेख में भी किरातों का वर्णन हुआ है। महाभारत में उपाययनपर्व के उपर्युक्त निर्देश में किरातों की भेंट में चंदन की भी गणना की गई है, जिससे यह प्रतीत होता है कि कुछ किरातों की बस्तियाँ उस समय मैसूर आदि के समीपवर्ती प्रदेश में भी रही होगी। 'मनुस्मृति' में कई अन्य अनार्य जातियों के समान किरातों की भी व्रात्य क्षत्रियों में गणना की गई है- 'पारदा: पह्‌लवाश्चीना: किराता दरदा: खशा:। ('मनुस्मृति' (10, 43-44)) यह भी संभव है कि किरात शब्द का प्रयोग वन्य जातियों के लिए साधारणत: होने लगा हो। सिक्किम के पश्चिम स्थित मोरग में आज भी किरात नामक एक जाति बसती है। संभवत: किरातों का मूल निवास स्थान यहीं रहा होगा।

संदर्भ: किरात

In Mahabharata

Kirata (किरात) is mentioned in Mahabharata (II.13.19),(II.27.13), (II.48.8), (II.48.10),(III.48.20),(III.174.11),(V.19.15),(VI.10.49), (VI.10.55), (VI.10.67), (VI.20.13),(VI.46.46),(VIII.4.15),(VIII.51.19),

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 13 mentions the Kshatriyas in support of Jarasandha. Kirata (किरात) is mentioned in Mahabharata (II.13.19). [7]....king of Vanga Pundra and the Kiratas, endowed with great strength, and who is known on earth by the names of Paundraka and Vasudeva hath also espoused the side of Jarasandha.

External links

References

  1. Radhakumud Mukharji (2009), Hindu Shabhyata, Rajkamal Prakashan Pvt Ltd, ISBN 978-81-267-0503-0, ".."
  2. Shiva Prasad Dabral, Uttarākhaṇḍ kā itihās, Volume 2, Vīr-Gāthā-Prakāshan, "."
  3. Indian Literature By Sähitya Akademi, 1981
  4. P.218 Problems of Ethnicity in the North-East India By Braja Bihārī Kumāra, Concept Publishing Company, 2007 - Ethnic conflict
  5. The Indian Journal of Social Work, Volume 62 By Department of Publications, Tata Institute of Social Sciences in 2001
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.
  7. वङ्ग पुण्ड्र किरातेषु राजा बलसमन्वितः, पौण्ड्रकॊ वासुदेवेति यॊ ऽसौ लॊकेषु विश्रुतः (II.13.19)