Panne Singh Kuhad

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Kunwar Panne Singh Deorod (1902-1933) was a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. He was born on chaitra krishna ekadashi samvat 1959 (1902 AD) in the family of Chaudhary Jalu Ram.

कुंवर पन्ने सिंह देवरोड़ का जीवन परिचय

पन्ने सिंह का जन्म वि.स. १९५९ (१९०२) के चैत्र कृष्ण एकादशी को चिड़ावा तहसील जिला झुंझुनू के गाँव देव रोड़ में हुआ. आप अपने पिता चौधरी जालू राम के तीसरे पुत्र थे. सर्वप्रथम आप १९२५ में शेखावाटी जत्थे के साथ केसरिया वस्त्र पहन कर पुष्कर के जाट महोत्सव में गए थे, जहाँ से आप कौमी सेवा और देश सेवा का व्रत लेकर लौटे. आपने मास्टर रतन सिंह और राम सिंह कुंवरपुरा के साथ मिलकर बगड़ में जाट सभा की स्थापना की. और किसान आन्दोलन में सक्रीय सहयोग दिया.

मार्च १९३१ में दिल्ली में हुए अखिल भारतीय जाट महासभा के सालाना जलसे में आपने हिस्सा लिया. इस महोत्सव के बाद तो आप जाति के संगठन में दिन-रत लग गए. अक्टूबर १९३१ में अखिल भारतीय जाट महासभा का एक प्रतिनिधि-मंडल शेखावाटी आया तो आपने उसके साथ सारी शेखावाटी का भ्रमण किया और जगह जगह सभाएं की. अथक प्रयास कर आपने स्थान-स्थान से लोगों को देश सेवा औए जाति सेवा के लिए तैयार किया. इसके बाद आपने कभी शांति से साँस नहीं लिया. आप जहाँ भी लोगों की कमजोरी की बात सुनते पहुँच जाते. आप अपनी कठोर किन्तु सत्य व् दृढ़तापूर्वक कही गयी वाणी से लोगों में उत्सक का बिजली की तरह संचार पैदा करते थे. ठिकानों के आदमी आपकी हलचलों से कांप गए थे.

१९३२ में झुंझुनू के जाट महोत्सव को सफल बनाने के लिए आपने दिन-रात एक कर दिया. उस अवसर पर जयपुर प्रांतीय जाट सभा का संगठन हुआ, जिसके आप अध्यक्ष चुने गए. इससे सारी शेखावाटी में आपका नाम जाग उठा और लोगों ने नए उत्साह के साथ आपके साथ काम करना शुरू किया. झुंझुनूं महोत्सव के बाद तो आप इतने चमके की सारे इलाके की निगाह आप पर जा जमी. ठिकानों की स्वेच्छाचारिता के खिलाफ आपकी आँखें लाल हो उठती थी और क्रोध में काँप उठाते थे. आपका सुन्दर गठा हुआ और लम्बा शारीर धनुष की तरह खिच जाता था. गरीब लोगों को आप न केवल सहानुभूति देते थे अपितु धन और जन से भी मदद करते थे. गरीबों के तो आप परम सहायक थे. झुंझुनू महोत्सव के बाद तो आपका सितारा खूब चमका. कौम में जहाँ आपकी इज्जत बढ़ी , राज्य में भी गिनती के आदमियों में सामिल थे. आपने थोड़े ही समय में देवरोड़ को शेखावाटी के लोगों की आशा का केंद्र बना दिया.

दुर्भाग्य से सीकर महायज्ञ के कुछ पूर्व १९३३ के मध्य में कुछ दिन की बीमारी के बाद आपका देहावसान हो गया.

सन्दर्भ

डॉ पेमा राम: राजस्थान में किसान आन्दोलन (Rajasthan mein Kisan Andolan), Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, First Edition 2007, p.81


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