Alipur Delhi

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Note - Click Alipur for details of similarly named villages at other places.


Alipur (अलीपुर) is a large village in Delhi.

Location

Origin

History

In Alipur there is a shaheed park, managed and administered by MCD, there are 70 names written in the park. They were crushed to death by road-roller by Britishers for revolting in 1857, they were all jats and there clan name was Mann. There were only 70 families of Jats in this village at that time and all who were above 18 years of Age, were crushed to death by road roller in 1857. After this incident, the Britishers made a permanent stay in the village and set up a choki/thana to curb the Jats.

Swami Omanand Saraswati writes -

अलीपुर की घटना - मानेलुक नाम का एक अंग्रेज घोड़े पर सवार अलीपुर ग्राम से जा रहा था । वह प्यास से अत्यन्त व्याकुल था । उसने एक किसान को, जो सड़क के पास ही अपने खलिहान (पैर) में गाहटा चला रहा था, संकेत से जल पीने को मांगा । किसान को दया आई और वह घड़े में से जल लेने के लिए गाहटा छोड़कर चल दिया किन्तु उस समय घड़े में जल न मिला । विवश होकर किसान अपने घड़े को उठाकर कुएं पर जल भरने को चला गया । किसान के इस सहानुभूति पूर्ण व्यवहार को देखकर अंग्रेज विचारने लगा इस व्यक्ति ने मेरे लिए अपना काम भी छोड़ दिया । वह अंग्रेज उसके खलिहान में आ गया और घोड़े से उतर कर, यह समझ कर कि किसान के कार्य में हानि न हो, उसमें घुस गया और बैलों को हांकना प्रारम्भ कर दिया और अपना घोड़ा पास के किसी वृक्ष से बांध दिया । उसी समय एक दूसरा अंग्रेज घुडसवार, जिसका नाम गिलब्रट था, उसी सड़क से जा रहा था । उसने यह समझा कि मानेलुक से बलपूर्वक गाहटा हंकवाया जा रहा है और वह शीघ्रता से वहां से भागकर चला गया और अपने डायरी में अलीपुर ग्राम के विषय में अंग्रेजों पर अत्याचार करने के लिए नोट लिख दिया, अर्थात् अलीपुर पर अत्याचार का आरोप लगाया । वह गिलब्रट नाम का अंग्रेज जो वहां से भय के मारे शीघ्रता से भाग गया, उसने भय के कारण सत्यता का अन्वेषण भी नहीं किया । इधर जब किसान जल का घड़ा भरकर लाया तो अंग्रेज गाहटे में खड़ा था और बैल उससे बिधक कर (डरकर) भाग गये थे । किसान ने अंग्रेज को सहानुभूतिपूर्ण शब्दों में कहा - आपने ऐसा कष्ट क्यों किया ? उस किसान ने मानेलुक अंग्रेज के कपड़े झाड़े, धूल साफ की, जल पिलाया और रोटी भी खिलाई । इस प्रकार उसकी अच्छी सेवा की और वह अंग्रेज चला गया । उस अंग्रेज (मानेलुक) ने डायरी में लिखे गए अपने नोट में अलीपुर के विषय में बहुत अच्छा लिखा । शान्ति होने के पश्चात् गिलब्रट की डायरी, जिसमें अलीपुर के बारे में बुरा लिखा हुआ था, उसी के अनुसार अलीपुर ग्राम को बुरी तरह लूटा गया और मनुष्य, पशु आदि प्राणियों सहित अग्नि में जलाकर भस्मसात् कर दिया गया । कुछ दिन पीछे मानेलुक की सच्ची रिपोर्ट भी अंग्रेजों के आगे पेश हुई । तब अंग्रेजों को ज्ञात हुआ कि जिस अलीपुर ग्राम को पारितोषिक मिलना चाहिए था उसको तो भीषण अग्निकांड में जला दिया गया । यह अंग्रेजों की मूर्खता का एक उदाहरण है और हरयाणा के ग्रामों पर दोष लगाया जाता है कि यहां के किसानों ने सब अंग्रेज स्त्रियों से गाहटा चलवाया था । यह सब बात इस अलीपुर के गाहटे की घटना के समान मिथ्या और भ्रम फैलाने वाली है । भारतीयों ने अंग्रेज महिलाओं और बच्चों पर कभी अत्याचार नहीं किये ।


अलीपुर का बलिदान

अलीपुर ग्राम कई शताब्दियों से बड़ी सड़क जी. टी. रोड पर बसा हुआ है । इसी सड़क से अंग्रेजों की सेनायें गुजरती थीं । यहां के वीर लोगों ने भी सन् 1857 के स्वातन्त्र्य संग्राम में खूब बढ़ चढ़ कर भाग लिया और इस सड़क पर गुजरने वाले अनेक अत्याचारी अंग्रेजों को काल के गाल में पहुंचाया गया । यही नहीं, इस स्वतन्त्रता समर में बलिदान देने वाले वीरों की संख्या इस ग्राम में सबसे बढ़कर है । अलीपुर ग्राम में 1857 में सड़क के निकट ही सरकारी तहसील विद्यमान थी और उसके पास ही बाहर बाजार था । क्रांति के समय ग्राम के लोगों ने तहसील में घुसकर सब सरकारी कागजों को फूंक दिया और बाजार को भी लूट लिया । ऐसा अनुमान है कि बाजार में जो दुकान थीं, या तो वे सरकार की थी या सरकारी पिट्ठुओं की थी । इसलिए उन्हें लूटा गया । तहसील पर जिस समय जनता के लोगों ने आक्रमण किया तो तहसील के सरकारी नौकरों ने अवश्य कुछ न कुछ विरोध किया होगा । उसके फलस्वरूप युद्ध हुआ और वीरों ने गोलियां चलाईं । उन गोलियों के निशान आज भी लकड़ी के किवाड़ों पर विद्यमान हैं । उन्हीं दिनों अनेक अंग्रेज ग्रामीण योद्धाओं के द्वारा मारे गये ।

अलीपुर ग्राम को दण्ड देने के लिए मिटकाफ (काना साहब) सेना लेकर अलीपुर पहुंच गया । उसने अपनी सेना का शिविर दो कदम्ब (कैम) के वृक्षों के नीचे लगाया जो आज भी विद्यमान हैं । ये ऐतिहासिक वृक्ष अंग्रेजों के अत्याचार के मुंह बोलते चित्र हैं । गांव के चारों ओर सेना ने घेरा डाल दिया । तोपखाना भी लगा दिया । किसी व्यक्ति को भी गांव से बाहर नहीं निकलने दिया गया । सेना के बड़े बड़े अधिकारी गांव में घुस गए और गांव के 70-75 चुने हुए व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया । हंसराम नाम का एक व्यक्ति उस समय हलुम्बी ग्राम की ओर शौच गया हुआ था, उसे पकड़ने के लिए कुछ अंग्रेज जंगल में ही पहुंच गए और उसे गिरफ्तार कर लिया । वह खेड़े के निकट कुण्डों के पास पकड़ा गया । वह अत्यन्त स्वस्थ, सुन्दर आकृति का युवक था । पकड़ने वाले अंग्रेज अधिकारी के मन में दया आ गई तथा उसकी सुन्दर आकृति व स्वास्थ्य से प्रभावित होकर उसे छोड़ दिया । किन्तु उस युवक ने कहा कि मैं तो अपने साथियों के साथ रहना चाहता हूँ, जहां वे जायेंगे मैं भी वहीं जाऊंगा । मेरा कर्त्तव्य है कि मैं अपने साथियों के साथ जीऊँ और साथियों के साथ ही मरूँ । अंग्रेज सिपाहियों ने उसे बहुत छोड़ना चाहा और उसे भागने के लिए बार बार प्रेरणा की किन्तु उसने भागने से इन्कार कर दिया और गिरफ्तार हुए साथियों के साथ मिल गया । अंग्रेज 70-75 व्यक्तियों को गिरफ्तार करके लाल किले में ले गये और उन सब को फांसी पर चढ़ा दिया गया ।

यह घटना 1857 के मई मास के अन्तिम सप्ताह की है ।

लाल किले में से हंसराम को घसियारे के रूप में अंग्रेजों ने निकालना चाहा । वह अंग्रेज उसके सुन्दर शरीर तथा स्वास्थ्य को देखकर उसे छोड़ना चाहता था, किन्तु उसने फिर इन्कार कर दिया । तो फिर उसे भी फांसी पर चढ़ा दिया ।

मुहम्मद नाम का एक मुसलमान किसी प्रकार बचकर भाग आया । वह फिर सकतापुर भोपाल राज्य में जाकर बस गया ।

कुछ व्यक्तियों का ऐसा भी मत है कि इन व्यक्तियों को फांसी नहीं दी गई थी किन्तु इन सब को पत्थर के कोल्हू के नीचे सड़क पर डालकर पीसकर मार डाला गया था । वे पत्थर के कोल्हू अभी तक इस सड़क पर पड़े हुए हैं ।

जिन व्यक्तियों को फांसी दी गई उनमें से तुलसीराम और हंसराम के अतिरिक्त और किसी के भी नाम का पता यत्न करने पर भी नहीं चल सका । अलीपुर ग्राम का भाट सोनीपत का निवासी है जो आजकल जाखौली ग्राम में रहता है । उसकी पोथी में पैंतीस व्यक्तियों के नाम मिलते हैं । उस विश्वम्भरदयाल भाट के पास जाखौली इन्हीं नामों को जानने के लिये मैं गया, किन्तु जिस पोथी में ये नाम हैं, उस पोथी को उस भाट का पुत्र लेकर किसी गांव में अपने यजमानों के पास चला गया था, दुर्भाग्य से वे नाम नहीं मिल सके ।

अलीपुर ग्राम में भी मैं इसी कार्य के लिए तीन बार गया । जिन घरों में इन नामों के मिलने की आशा थी, खोज करवाने पर भी वे नाम नहीं मिल सके । यह हमारा दुर्भाग्य ही रहा कि जिन हुतात्मा वीरों ने हंसते हंसते देश की स्वतन्त्रता के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया, आज उनके नाम भी हमें उपलब्ध न हो सके ।

जिस किसी ने भी 1857 के स्वातन्त्र्य समर के विषय में लिखा है, हरयाणा प्रान्त के विषय में दो चार शब्द लिखने का भी कष्ट नहीं किया । यथार्थ में यह युद्ध हरयाणा प्रान्त के सैनिकों ने ही लड़ा था । सभी रिसाले और पलटनों में, मेरठ आदि सभी छावनियों में हरयाणा के वीर सैनिक ही अधिक संख्या में थे । उस समय तक हरयाणा प्रान्त के सभी ग्रामों में पंचायती सैनिक थे । सभी गांवों में अखाड़े चलते थे जहां पंचायती सैनिक तैयार किए जाते थे, किसी प्रकार की आपत्ति पड़ने पर जो धर्मयुद्ध में भाग लेते थे । अलीपुर गांव के जो नवयुवक इस क्रांति में हंसते-हंसते बलिवेदी पर चढ़ गये वे भी इसी प्रकार के पंचायती सैनिक थे । इन सबको फांसी देने के लिए जिस समय गिरफ्तार किया गया, तोपों के द्वारा गांव पर गोले बरसाये गए । जिस समय तोपें चलीं, उस समय तोपें चलाने वाला कोई अंग्रेज अफसर दयालु स्वभाव का था । उसने इस ढ़ंग से तोपें चलवाईं कि तोप के गोले गांव के ऊपर से गुजरकर जंगल में गिरते रहे । ग्राम नष्ट होने से बच गया । कुछ का ऐसा भी मत है कि ग्राम को लूटा भी गया । जितने व्यक्ति इस ग्राम के मारे गये, उनमें भंगी से लेकर ब्राह्मण तक सभी सम्मिलित थे । जाट उनमें कुछ अधिक संख्या में थे ।

एक पटवारी और एक नम्बरदार ने, जब उनको बहुत तंग किया गया, तब इन सब लोगों के नाम लिखवाये थे जिनको फांसी दी गई थी । फांसी आने के बाद जो देवियां विधवा हो गईं थीं, उन्होंने उस नम्बरदार के घर के आगे आकर अपनी चूड़ियां फोड़कर डाल दीं । इस प्रकार उनकी सहानुभूति में ग्राम की अन्य देवियों ने भी अपनी चूड़ियां फोड़कर ढ़ेर लगा दिया । यहां यह लोकश्रुति है कि उस समय उस नम्बरदार के घर के सामने सवा मन चूड़ियों का ढ़ेर लग गया ।

जिस समय ग्राम पर यह आपत्ति आई, ग्राम के सब बाल-बच्चे, स्त्री और बूढ़े भागकर हलुम्बी ग्राम में चले गये । नवयुवक सब ग्राम में ही विद्यमान थे जिनमें से गिरफ्तार करके पचहत्तर को फांसी दी गई । ग्राम पर यही दोष लगाया गया था कि इन्होंने तहसील को जलाया और कुछ अंग्रेजों का वध किया था । एक दो व्यक्तियों ने ऐसा भी बताया कि दोनों प्रकार के प्रमाण-पत्र गांव में मिले । ग्राम ने कुछ अंग्रेजों को मारा और कुछ को बचाया भी । इसलिए एक अंग्रेज स्त्री के निषेध करने पर इस गांव को जलाया नहीं गया और न ही जब्त किया गया । बारह वर्ष पूर्व ही यह गांव कुछ नम्बरदारों के सरकारी लगान स्वयं खा जाने पर एक मुसलमान के पास चार हजार रुपये में गिरवी रख दिया गया था । क्रांति युद्ध के पीछे यहां के निवासियों ने रुपये देकर इसे खरीद लिया । जो अंग्रेज अलीपुर में मारे गए थे, उनकी कब्रें अलीपुर के पास ही बना दी गईं थीं, जो कुछ वर्ष पहले विद्यमान थीं ।

अंग्रेज अफसरों की आज्ञा से सिक्ख सेना ने बादली ग्राम के आस पास के बारह ग्रामों के अहीर आदि सभी कृषकों के सब पशु हांक लिए थे । उस समय तोताराम नाम के एक चतुर व्यक्ति ने अपने अलीपुर ग्राम के सब निवासियों को उत्साहित किया और युद्ध करके सिक्खों से अपना सब पशुधन छुड़वा लिया और उन ग्रामों के, जिनके ये पशु थे, उनको ही सौंप दिये । किन्तु वह चतुर वीर तोताराम इस युद्ध में मारा गया । अब तक बादली, समयपुर आदि ग्रामों के निवासी उस उपकार के कारण अलीपुर के निवासियों का बड़ा आदर करते हैं ।

पीपलथला, सराय आदि ग्रामों को भी इसी प्रकार लूटा और जलाया गया । इसी सराय ग्राम (भड़ोला) के पास आज भी एक अंग्रेज अफसर का स्मारक बना हुआ है जो उस समय ग्रामवासियों द्वारा मारा गया था । इस सराय ग्राम में कभी एक छोटी सी गढ़ी (दुर्ग) थी जो आज खण्डहर के रूप में पड़ी हुई है, केवल उसके दो द्वार खड़े हुए हैं । अनुमान यही है कि इस क्रान्तियुद्ध में ये अंग्रेजों द्वारा ही नष्ट किये गए ।

हरयाणा के सैंकड़ों ग्रामों ने सन् 1857 के युद्ध में इसी प्रकार भाग लिया और पीछे अंग्रेजों द्वारा दंडित हुए । इनके विषय में मैं समय मिलने पर लिखूँगा । (देखें पेज देशभक्तों के बलिदान - लेखक स्वामी ओमानन्द सरस्वती)

Jat Gotras

Population

Notable Persons

External Links

References


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